शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

सिर्फ बारह साल की मोहलत है और उसके बाद

"इन १२ ईयर्स ,अर्थ टू फेस मेजर मेल्टडाउन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,३० ,२०१० )।
फिलवक्त वायुमंडल में दस लाख भागों के पीछे ३९२ भाग ग्रीन हाउस गैसकार्बन -डाय -ऑक्साइड घेरे हुए है .जबकि इसकी सुरक्षित सीमा जो पृथ्वी की बर्दाश्त के अन्दर है वह ३५० भाग ही बतलाई गई है .नासा के जलवायु माहिर भी इसे ही सुरक्षित सह्य सीमा मानतें हैं ।
ख़तरा यह है जिस रफ़्तारसे एमिशन ज़ारी है उसके चलते आगामी १२ बरसों में ही पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी बज सकती है ,विश्व -व्यापी तापन तापमानों को इस कदर बढा देगा ,बर्फ की चादर पिघलने लगेगी .महासागरों में जल का उफान आ जाएगा ।
यह अनुमान लगाया है थाईलैंड के माहिरों ने जिनमे महिदोल विश्व -विद्यालय(थाईलैंड ) के एक प्रोफ़ेसर भी शामिल हैं .आप ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के माहिर चिरापोल सिंतुनावा से इत्तेफाक रखतें हैं जिन्होनें उक्त अनुमान लगाया है .इस आकलन के अनुसार आगामी १२ बरसों में ही हमारे वायुमंडल में कार्बन डाय-ऑक्साइड की मात्रा बढ़कर ३९२ से ४५० भाग प्रति दस लाख भाग हो जायेगी .
यही वजह है फिलवक्त ३५० भाग की हदबंदी के लिए दुनिया भर में अभियान चलरहा है ,सुदूर साइबेरिया तक इस अभियान की खदबदाहट मौजूद है ।
क्या आप जानतें हैं ४५० पी पी एम् का मतलब ?वायुमंडल में इतनी कार्बन -डाय -ऑक्साइड पसर जाने के बाद विश्व -व्यापी तापन तापमानो को २ सेल्सियस तक बढा देंगें ।
फलस्वरूप उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय हिम टोपियाँ ज्यादा रफ्तार से पिघलने लगेंगी .अब नहीं तो फिर कभी नहीं .बेटर लेट देन नेवर .जल प्लावन जन्य विनाश से बचने की एक ही सूरत है हम इस चेतावनी को हलके में ना लें .कुछ करें या मरें ?
वगरना फिर कोई मनु लिखेगा जल -प्लावन की कथा .फिर कोई जय शंकर प्रसाद लिखेंगें "कामायनी "
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शिला की शीतल छाँव
एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,
ऊपर हिम था ,नीचे जल था ,एक सघन था ,एक तरल ,
एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन ."

1 टिप्पणी:

विवेक रस्तोगी ने कहा…

शायद इस प्रलय को देखना ही पड़ेगा,,

फ़िर से एक जयशंकर प्रसाद को जन्म लेना होगा कामायनी लिखने के लिये।