गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

व्यवहार में कुछ भी होता रहे नियम बनाने में माहिर हैं हम लोग

मामला कोमन वेल्थ गेम्स लेन का है .दिल्ली की सड़कों पर एक लेन कोमन वेल्थ गेम्स रूट के लिए सुरक्षित कर दी गई है .नियम बनाने ,दीवारों सड़कों पर लिखने में हम माहिर रहें हैं .व्यवहार में भारत का मानस नियम पालन करने का आदि नहीं है .उसके स्वभाव में नहीं है नियमानुसार चलना .फिर कोमन वेल्थ गेम्स लेन हैं ,बा -कायदा हैं .लेन के बीचों बीच हरेक मील के फासले पर एक साफ़ सुथरा ट्रेफिक पुलिसिया भी खड़ा है ।लेन काटने पर २००० रुपया जुर्माना है .लेकिन ज़नाब लेन काटनी पडती है वरना आप अपनी राह जा ही नहीं सकते .वजह सडक भी मुडती है बारहा अपनी मंजिले मक़सूद पर पहुँचने के लिए आपको भी मुड़ना पड़ता है .
बोर्ड पर चढा एक पुलिसिया हाथ जोड़े खड़ा है ,लिखा है :दिल्ली पुलिस आपका स्वागत करती है .कैसा स्वागत करती है पुलिस सब हिन्दुस्तानी जानतें हैं .अब स्वागत सभ्यता संस्कृति से ताल्लुक रखने वाला शब्द रूप है .पुलिस के हाथ में तो डंडा दिखाया जाना चाहिए ।
मैंने कहा ना लिखने में माहिर हैं .लिखा होता है "ओनेस्ती इज अवर पालिसी ",सदा सच बोलो .लिखा यह भी होता है "किसी सामान की कोई गारंटी नहीं "-बिका हुआ माल वापस नहीं होगा .सो प्यारे यह इंडिया है .लिखने में हम माहिर हैं .आखिर लिखने में जाता क्या है .हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा ही चोखा .व्यवहार में लाओ कुछ तो जाने .जुर्माना करो सच मच में .वसूल भी करो .आखिर विदेशों में भारतीय ही क़ानून का पालन करतें हैं .जुर्माने का
डंडा है भैया असली वहां .यहाँ क्यों नहीं हो सकता ?यही तो मेरी समझ में आज तक नहीं आया ।
एक सज्जन कह रहे थे भाई साहिब इसमें भला समझने जैसा क्या है ?अमरीका हो या योरोप वहां एक तंत्र है एक सिस्टम है जिसे सब लोग मानतें हैं .जो नहीं मानेगा ज़ुर्मानअ भरेगा .डंडे से लोग डरतें हैं .तुलसी दास ने किसी झोंक में नहीं कहा होगा :भय बिन प्रीत ना हॉट गुसाईं .

2 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

बढ़िया व्यंग्य है ।

virendra sharma ने कहा…

shukriyaa sharad bhaai .
veerubhai .