लाइटनिंग शोट /वेक्सिनेसंस एट दी स्पीड ऑफ़ लाईट ,कर्ट्सी लेज़र्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ३१ , २०१० ,पृष्ठ१९ )।
सीधे सीधे कोशा के कवच को बींध अब दवा और असरकारी वेक्सीन मरीज़ के शरीर में पलांश में ही पहुंचाई जा सकेगी .इसका श्रेय जाता है "जोर्जिया टेक "के साइंसदानों को जिन्होनें दवा को सीधे सीधे कोशाकी झिल्ली के पार पहुंचाने में लेज़र पल्स का पहली मर्तबा स्तेमाल किया है ।
यूं कोशिका के प्रतिरक्षा कवच में सैंध लगाकर दवा के अणु छोड़ना कोई आसान काम नहीं है .बेशक कई विषाणु भी नौक दार ,सुईं -नुमा नीडिल लाइक अपेंडेज़ का स्तेमाल कोशा को बींधकर आनुवंशिक पदार्थ अन्दर ठेलने में करतें हैं .कोशा के सारे दिफेंसिज़ धरे के धरे रह जातें हैं उस पल- छिन.
वास्तव में प्राणी कोशायों की हिफाज़त वह झिल्लियाँ करतीं हैं जो कोशा को घेरे रहतीं हैं .यह अन्दर का कोशीय पदार्थ बाहरी हमले से बचाए रहतीं हैं .इन्हीं कोशाओं की झिल्लियों के पार दवा को पहुंचाना साइंसदानों का लक्ष्य रहा है .यही हासिल है इस रिसर्च का .इस तजुर्बे का ।
यह काम लेज़र बीम से किया गया .अवरक्त प्रकाश की स्पन्दें (पल्सिस ऑफ़ इन्फ्रा रेड लाइट्स )डालकर कार्बन नेनो -कणों की मदद से .ठीक कोशा तक पहुंचाए गये येब्लेकिंड नेनो -पार्तिकिल्स .बस लेज़र पल्स से पैदा ताप ने सूट(ब्लेकिंड कार्बन नेनो -कणों ) को गर्म किया .देखते ही देखते एक अति सूक्ष्म बबिल(बुलबुला )इसके गिर्द बन गया .स्पन्द के चुकते ही बुलबुला एक आवेग के साथ फट जाता है .इससे एक शोक वेव बनती है .यही कोशा की झिल्ली में सूराख बना देती है .जेवरात की सफाई भी अल्ट्रा साउंड वेव्स की मदद से इसी तरह की जाती है ।
बस दूसरे ही पल सेल मेम्ब्रेन अपनी क्षति पूर्ती कर पूर्व स्थिति में आ जाती है अपनी मरम्मत ,हील कर लेती है खुद से खुद को.लेकिन शोक वेव्स के असर से दस फीसद कोशायें पूरी तरह नष्ट भी हो जातीं हैं ।
इस लिए दवा पहुंचाने के इस तरीके को दुधारी तलवार पर चलने की तरह ही समझा जा रहा है .रणनीति यह है ,सूराख ठीक इतना बड़ा किया जाए ,दवा भी अन्दर दाखिल हो जाए ,सूराख भी भर जाए .कोशा भी बच जाए .यानी सांप भी मर जाए लाठी भी ना टूटे ।
इस अल्प कालीन अवसर को भुना कर किमो -थिरेपी के लिए रसायन ,तथा वेक्सीन के डी एन ए कोकोशिका के अन्दर दाखिला दिलवाना एक एहम मुद्दा है .
नेचर नेनो -टेक्नोलोजी में यह अध्धय्यन प्रकाशित हुआ है .
शनिवार, 31 जुलाई 2010
अब बनाया गया सुपर स्ट्रोंग दर्द नाशी मरीन कोन स्नैल्स से
सुपर - स्ट्रोंग पैन -किलर फ्रॉम स्नेल स्पिट(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई ३१ ,२०१० ,पृष्ठ ,१९ )
साइंसदानों ने घोंघे की लार से एक असरकारी दर्द -हारी दवा(एनलजेसिक ) तैयार कर लेने की बाबत बतलाया है .समझा जाता है अपनी लार में मौजूद एक रसायन का स्तेमाल मरीन कोनस्नेल अपने शिकार को उलझाकर पकड़ने में करतें हैं .इसे मोर्फीन की तरहएक असरकारी दर्द नाशक लेकिन नॉन -एडिक्टिव पाया गया है .दरअसल इसकी लार में पेप्टाइड टोक्सीन्स की खतरनाक मात्रा मौजूद रहती है .यही इस रफ्ता रफ्ता रेंगने चलने वालेसमुद्री जीवके शिकार को उलझाकर पकड़वाने में सहायक सिद्ध होती है .अपने सुईनुमा दांतों की मार्फ़त ही यह अपने नज़दीक से गुजरने वाले जीवों को दांत गढ़ाकर उनके शरीर में लार इंजेक्ट करदेतें हैं .यही लार यह उगलते रहते हैं .इसी में मौजूद एक रसायन से साइंसदान एक असरकारी सुपर -स्ट्रोंग दर्द नाशक बनाने में कामयाब रहें हैं .अलबत्ता इसे सीधे सीधे मनुष्य की स्पाइन(रीढ़ ) में ही इंजेक्ट करके पहुंचाना पड़ता है जो इसके स्तेमालकी मात्रा को सीमित कर देता है .
साइंसदानों ने घोंघे की लार से एक असरकारी दर्द -हारी दवा(एनलजेसिक ) तैयार कर लेने की बाबत बतलाया है .समझा जाता है अपनी लार में मौजूद एक रसायन का स्तेमाल मरीन कोनस्नेल अपने शिकार को उलझाकर पकड़ने में करतें हैं .इसे मोर्फीन की तरहएक असरकारी दर्द नाशक लेकिन नॉन -एडिक्टिव पाया गया है .दरअसल इसकी लार में पेप्टाइड टोक्सीन्स की खतरनाक मात्रा मौजूद रहती है .यही इस रफ्ता रफ्ता रेंगने चलने वालेसमुद्री जीवके शिकार को उलझाकर पकड़वाने में सहायक सिद्ध होती है .अपने सुईनुमा दांतों की मार्फ़त ही यह अपने नज़दीक से गुजरने वाले जीवों को दांत गढ़ाकर उनके शरीर में लार इंजेक्ट करदेतें हैं .यही लार यह उगलते रहते हैं .इसी में मौजूद एक रसायन से साइंसदान एक असरकारी सुपर -स्ट्रोंग दर्द नाशक बनाने में कामयाब रहें हैं .अलबत्ता इसे सीधे सीधे मनुष्य की स्पाइन(रीढ़ ) में ही इंजेक्ट करके पहुंचाना पड़ता है जो इसके स्तेमालकी मात्रा को सीमित कर देता है .
केल्सियम पिल्स और हार्ट अटेक्स,फर्क है पश्चिम और पूरब में ?
स्टडी :केल्सियम पिल्स रेज़ रिस्क ऑफ़ हार्ट अटेक्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ३१ ,२०१० ,पृष्ठ १४ )
डेडली डोज़ ?
तकरीबन १२,००० लोगों से सम्बद्ध जो सभी खुराखमें शामिल आदर्श मात्रा ,ओपटीमम -- केल्सियम के अलावा केल्सियम सम्पूरण भी ले रहे थे ,से ताल्लुक रखने वाले ११ रेंडम कंट्रोल्ड ट्रायल्स की पड़ताल के बाद न्यूज़ीलैंड के रिसर्चरों ने यह निष्कर्ष निकाला है ,इनमे हार्ट अटेक्स का ख़तरा ३० फीसद बढ़ गया था ।
भारतीय चिकित्सा विद अध्धय्यन के नतीजों को सिर्फ पश्चिमी खुराख के सन्दर्भ में ही प्रासंगिक मानतें हैं जहां खुराख में पहले से ही केल्सियम की ज़रूरी मात्रा ८.८-१०.८ मिलिग्रेम प्रति डेसीलिटर प्रति १०० मिलीलीटर रक्त में मौजूद रहती है .भारत में परिदृश्य इससे जुदा है .यहाँ शरीर में केल्सियम की कमी बेशी रहती है .अलबत्ता केल्सियम की शरीर में मात्रा आदर्श १०.८ एम् जी /डी एल से ज्यादा हो जाने पर ज़रूर, हाई -पर -केल्शियिमा का जोखिम पैदा हो जाता है जो हार्ट अटेक्स की वजह बन सकता है ।
इसलियें न्यू- ज़ीलैंड के अबेरदीन और औच्क्लैंड(औक -लैंड )विश्विद्यालयों के रिसर्चरों के अध्धय्यनों के रिव्यू के नतीजे भले उन रजोनिवृत्त महिलाओं और बुजुर्गों के लिए प्रासंगिक हों जो शरीर में ओप्तिमम केल्सियम के बावजूद केल्सियम सम्पूरण भकोसते रहें हैं ,भारतीयों पर यह लागू नहीं होंगें ।
बेशक हाई -पर -केल्सीयिमिया हार्ट - अटेक्स के अलावा स्ट्रोक्स और तद्जन्य मृत्यु के जोखिम को भी बढाता हो जैसा रिसर्चर कह रहें हैं .ब्रितानी मेडिकल जर्नल में इस अध्धय्यन विमर्श के नतीजे प्रकाशित हुएँ हैं ।
रिसर्चरों ने बतलाया है ,वह ऐसा मानते भी है ,केल्सियम सम्पूरण का सेवन रक्त में केल्सियम के स्तर को बढाता रहता है ऐसेमें धमनी रोगों का ख़तरा सहज ही बढ़ जाता है .यह नतीजे सभी उम्र के लोगों,औरतों और मर्दों पर समान रूप से लागू होतें हैं इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है वह कौन सा केल्सियम सम्पूरण लेते रहें हैं .
भारतीय सन्दर्भ में यह जान लेना भी मौजू है ,हरियाणा ,पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को यदि छोड़ दिया जाए तो शेष राज्यों के लोग डैरी-उत्पादों का स्तेमाल कम ही करते पाए जातें हैं जो केल्सियम का प्रमुख स्रोत हैं ।
जबकि यह भी सत्य है एक स्वस्थ वयस्क (बालिग़ या एडल्ट )की खुराख में ९०० मिलिग्रेम केल्सियम रहना चाहिए .जबकि भारतीय थाली ले देकर रोजाना ४०० मिलिगेर्म ही खुराखी केल्सियम ही मुहैया करवा पाती है .वह भी तब जब आप रोजाना दो ग्लास दूध लेते होंवें ,पनीर ,दही और चीज़ का भी सेवन करतें हों .वह भी सुबह औ शाम दोनों वक्त के भोजन में .इसलिए यदि आप ५०० मिलिग्रेम केल्सियम अपने डॉ के परामर्श पर ले रहें हैं रोज़ -बा -रोज़ तो बेशल लेतें रहें .यह कहना जल्दबाजी होगा ,इससे हार्ट अटक का जोखिम (३०) फीसद बढ़ जाता है ।
डेडली डोज़ ?
तकरीबन १२,००० लोगों से सम्बद्ध जो सभी खुराखमें शामिल आदर्श मात्रा ,ओपटीमम -- केल्सियम के अलावा केल्सियम सम्पूरण भी ले रहे थे ,से ताल्लुक रखने वाले ११ रेंडम कंट्रोल्ड ट्रायल्स की पड़ताल के बाद न्यूज़ीलैंड के रिसर्चरों ने यह निष्कर्ष निकाला है ,इनमे हार्ट अटेक्स का ख़तरा ३० फीसद बढ़ गया था ।
भारतीय चिकित्सा विद अध्धय्यन के नतीजों को सिर्फ पश्चिमी खुराख के सन्दर्भ में ही प्रासंगिक मानतें हैं जहां खुराख में पहले से ही केल्सियम की ज़रूरी मात्रा ८.८-१०.८ मिलिग्रेम प्रति डेसीलिटर प्रति १०० मिलीलीटर रक्त में मौजूद रहती है .भारत में परिदृश्य इससे जुदा है .यहाँ शरीर में केल्सियम की कमी बेशी रहती है .अलबत्ता केल्सियम की शरीर में मात्रा आदर्श १०.८ एम् जी /डी एल से ज्यादा हो जाने पर ज़रूर, हाई -पर -केल्शियिमा का जोखिम पैदा हो जाता है जो हार्ट अटेक्स की वजह बन सकता है ।
इसलियें न्यू- ज़ीलैंड के अबेरदीन और औच्क्लैंड(औक -लैंड )विश्विद्यालयों के रिसर्चरों के अध्धय्यनों के रिव्यू के नतीजे भले उन रजोनिवृत्त महिलाओं और बुजुर्गों के लिए प्रासंगिक हों जो शरीर में ओप्तिमम केल्सियम के बावजूद केल्सियम सम्पूरण भकोसते रहें हैं ,भारतीयों पर यह लागू नहीं होंगें ।
बेशक हाई -पर -केल्सीयिमिया हार्ट - अटेक्स के अलावा स्ट्रोक्स और तद्जन्य मृत्यु के जोखिम को भी बढाता हो जैसा रिसर्चर कह रहें हैं .ब्रितानी मेडिकल जर्नल में इस अध्धय्यन विमर्श के नतीजे प्रकाशित हुएँ हैं ।
रिसर्चरों ने बतलाया है ,वह ऐसा मानते भी है ,केल्सियम सम्पूरण का सेवन रक्त में केल्सियम के स्तर को बढाता रहता है ऐसेमें धमनी रोगों का ख़तरा सहज ही बढ़ जाता है .यह नतीजे सभी उम्र के लोगों,औरतों और मर्दों पर समान रूप से लागू होतें हैं इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है वह कौन सा केल्सियम सम्पूरण लेते रहें हैं .
भारतीय सन्दर्भ में यह जान लेना भी मौजू है ,हरियाणा ,पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को यदि छोड़ दिया जाए तो शेष राज्यों के लोग डैरी-उत्पादों का स्तेमाल कम ही करते पाए जातें हैं जो केल्सियम का प्रमुख स्रोत हैं ।
जबकि यह भी सत्य है एक स्वस्थ वयस्क (बालिग़ या एडल्ट )की खुराख में ९०० मिलिग्रेम केल्सियम रहना चाहिए .जबकि भारतीय थाली ले देकर रोजाना ४०० मिलिगेर्म ही खुराखी केल्सियम ही मुहैया करवा पाती है .वह भी तब जब आप रोजाना दो ग्लास दूध लेते होंवें ,पनीर ,दही और चीज़ का भी सेवन करतें हों .वह भी सुबह औ शाम दोनों वक्त के भोजन में .इसलिए यदि आप ५०० मिलिग्रेम केल्सियम अपने डॉ के परामर्श पर ले रहें हैं रोज़ -बा -रोज़ तो बेशल लेतें रहें .यह कहना जल्दबाजी होगा ,इससे हार्ट अटक का जोखिम (३०) फीसद बढ़ जाता है ।
शुक्रवार, 30 जुलाई 2010
अब कुदरती तौर पर तैयार किये जा सकेंगेशरीर के अन्दर ही स्टेम सेल्ससे घिसे पिटे जोड़ .
साइसदानों ने यह पहली बार दर्शाया है, अब शरीर के अन्दर हीअसर ग्रस्त व्यक्ति की कलम कोशाओं से हिप (नितम्ब )या घुटने भी तैयारभी किये जा सकेंगें .
खरगोशों पर किये गए परीक्षणों में साइंसदानों ने इनकी स्टेम कोशाओं को ही राज़ी कर अस्थि और उपास्थि तैयार करने का आदेश देकर एक पहले से निकाल दिया गया जोड़ फिर से तैयार करवाने का करिश्मा कर दिखाया .इतना ही नहीं यह दोबारा अपना काम सामान्य तरीके से करने लगा .इन कामों में वेट बियरिंग और गति ,संचलन(लोकोमोशन)भी शामिल था ।
कूलाम्बिया यूनिवर्सिटीमेडिकल सेंटर में कार्यरत प्रोफ़ेसर जेरेमी मो के नेत्रत्व में यह रिसर्च वर्क संपन्न हुआ है .
अपने प्रयोगों में मो और उनके साथी रिसर्चरों ने १० खरगोशों की फोर्लिम्ब थाई जोइंट निकाल कर इनके स्थान पर जैविक रूप से संगत (बाय -लोजिक्ली कम्पेतिबिल )ढाँचे (स्केफोल्डिंग )लगा दिए .अब एक कुदरती तौर पर पाए जाने वाले पदार्थ का स्तेमाल करते हुए जो कोशाओं की बढवार को प्रेरित करता है रेबिट्स की कलम कोशाओं को उस जगह पहुँचने का इशारा किया गया जहां से जोड़ गायब किया गया था .तथा इन्हें राज़ी किया गया उपास्थि और अस्थि निर्माण के लिए .वह भी दो अलग अलग परतों में ।
४ हफ़्तों में ही खरगोश फिर से अपने सारे काम अंजाम देने करने लगे .विज्ञान पत्रिका लांसेट में इस रिसर्च के नतीजे छपें हैं .
यहाँ विशेष बात यह है ,फोर्लिम्ब थाई जोइंट का पुनर -जनन खरगोशों की अपनी ही कलम कोशाओं से हुआ है .एक दिन इस रिसर्च के नैदानिक उपयोग भी सामने आयेंगें .एक सिद्धांत हाथ लगा है .हिप ,नी ,शोल्डर ,फिंगर जोइंट्स आज कृत्रिम तौर पर तैयार करके ही लगाये जा रहें हैं .कल इनका इसी सिद्धांत को आधार बनाकर पुनर -जनन भी किया जा सकता है मरीज़ की अपनी ही कलम कोशाओं से .. अलबत्ता इससे पूर्व कई वैज्ञानिक और विनयमन सम्बन्धी मुद्दों से रू -ब-रू होना पड़ेगा तब जाकर इसे मंयुष्यों पर आजमाया जा सकेगा .हिप रिप्लेसमेंट के मामले में स्वास्थ्य लाभ देर से मिलता है क्योंकि मनुष्य अपना सारा भार दो पैरों पर उठाता है .जोड़ के पुनर -जनन के दौरान पीरियड ऑफ़ इम्मोबिलिती लंबा रहता है .जड़ता के इस दौर की अपनी समस्याओं से उलझना पड़ेगा .
खरगोशों पर किये गए परीक्षणों में साइंसदानों ने इनकी स्टेम कोशाओं को ही राज़ी कर अस्थि और उपास्थि तैयार करने का आदेश देकर एक पहले से निकाल दिया गया जोड़ फिर से तैयार करवाने का करिश्मा कर दिखाया .इतना ही नहीं यह दोबारा अपना काम सामान्य तरीके से करने लगा .इन कामों में वेट बियरिंग और गति ,संचलन(लोकोमोशन)भी शामिल था ।
कूलाम्बिया यूनिवर्सिटीमेडिकल सेंटर में कार्यरत प्रोफ़ेसर जेरेमी मो के नेत्रत्व में यह रिसर्च वर्क संपन्न हुआ है .
अपने प्रयोगों में मो और उनके साथी रिसर्चरों ने १० खरगोशों की फोर्लिम्ब थाई जोइंट निकाल कर इनके स्थान पर जैविक रूप से संगत (बाय -लोजिक्ली कम्पेतिबिल )ढाँचे (स्केफोल्डिंग )लगा दिए .अब एक कुदरती तौर पर पाए जाने वाले पदार्थ का स्तेमाल करते हुए जो कोशाओं की बढवार को प्रेरित करता है रेबिट्स की कलम कोशाओं को उस जगह पहुँचने का इशारा किया गया जहां से जोड़ गायब किया गया था .तथा इन्हें राज़ी किया गया उपास्थि और अस्थि निर्माण के लिए .वह भी दो अलग अलग परतों में ।
४ हफ़्तों में ही खरगोश फिर से अपने सारे काम अंजाम देने करने लगे .विज्ञान पत्रिका लांसेट में इस रिसर्च के नतीजे छपें हैं .
यहाँ विशेष बात यह है ,फोर्लिम्ब थाई जोइंट का पुनर -जनन खरगोशों की अपनी ही कलम कोशाओं से हुआ है .एक दिन इस रिसर्च के नैदानिक उपयोग भी सामने आयेंगें .एक सिद्धांत हाथ लगा है .हिप ,नी ,शोल्डर ,फिंगर जोइंट्स आज कृत्रिम तौर पर तैयार करके ही लगाये जा रहें हैं .कल इनका इसी सिद्धांत को आधार बनाकर पुनर -जनन भी किया जा सकता है मरीज़ की अपनी ही कलम कोशाओं से .. अलबत्ता इससे पूर्व कई वैज्ञानिक और विनयमन सम्बन्धी मुद्दों से रू -ब-रू होना पड़ेगा तब जाकर इसे मंयुष्यों पर आजमाया जा सकेगा .हिप रिप्लेसमेंट के मामले में स्वास्थ्य लाभ देर से मिलता है क्योंकि मनुष्य अपना सारा भार दो पैरों पर उठाता है .जोड़ के पुनर -जनन के दौरान पीरियड ऑफ़ इम्मोबिलिती लंबा रहता है .जड़ता के इस दौर की अपनी समस्याओं से उलझना पड़ेगा .
कार्डियो -पल्मोनरी -रिससिटेशन केवल हाथों से भी असर कारी रहता है
हैंड्स -ओनली सी पी आर एनफ टू सेव ए लाइफ ,माउथ-टू -माउथ नोट नीडिद इन मोस्ट कार्डिएक अरेस्ट केसिज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ३० ,२०१० ,पृष्ठ २३ )
एक नै रिसर्च के मुताबिक़ मौके पे मौजूद (बाई -स्तैंदर्स)लोगों को थोड़ा सा प्रशिक्षण देकर केवल हाथों से थम्पिंद द्वारा अचानक रुक गए दिल को आपातकाल में चालू करना सिखलाकर हज़ारों हजार लोगों की जान बचाई जा सकती है .इसके लिए माउथ -टू -माउथ सांस फूंकना भी ज़रूरी नहीं है ।
कार्डियो -पल्मोनरी -रिससितेसन क्या है ?
इसे कार्डिएक मसाज़ ,कार्डिएक कम्प्रेसन भी कह देतें हैं .रिदमिक कम्प्रेसन ऑफ़ समबोडीज हार्ट इन ऑर्डर टू रेस्टोर ऑर मेनटेन ब्लड सर्क्युलेसन आफ्टर दी पर्सन हेज़ हेड ए हार्ट अटेक इस काल्ड कार्डियो -पल्मोनरी -रिससितेसन ।
इसे अल्प कालीन प्रशिक्षण से सीखा जा सकता है .सीखना चाहिए भारतीय सन्दर्भ में तो और भी ज्यादा प्रासंगिक है ऐसा प्रशिक्षण ,जहां दूरदराज़ क्या महानगर से सटे इलाके भी मूलभूत सुवधाओं से वंचित देखे जा सकतें हैं ।
दो एक दम से ताज़ा अध्धय्यनों से यही सामने आया है "हैंड्स- ओनली" चेस्ट कम्प्रेसन इज एनफ टू सेव ए लाइफ .बेशक सावधानी पूर्वक हाथों से थम्पिंग करना सीखना होगा .अमरीकन हार्ट असोशिएसन इसका पक्ष धर बन दो सालों के लिए प्रशिक्षण देने की बात कर रहा है ।
आपत्कालीन चिकित्सा के अर्थुर केल्लेर्मन्न (रेंड कारपोरेशन के एक माहिर )भी यही विचार व्यक्त करते हुए कहतें हैं इस प्रशिक्षण में देरी कैसी ,द सूनर दी बेटर।
हेल्प लाइन सेसंपर्क में समय जाया करने से बेहतर है मौके पर मौजूद लोगों द्वारा दी गई इमदाद .अध्धय्यन केमुताबिक ऐसा करने से असर ग्रस्त व्यक्तियों के बच जाने की दर १२ फीसद बढ़ी है ।
करना भी तो कुछ ख़ास नहीं है बस छाती पर सभाल के ३० हार्ड पुशिज़ लगाने हैं प्रशिक्षण के मुताबिक़ .ऐसा करने से झट पट कुछ रक्त आपूर्ति,जीवन दाई ऑक्सीजन , जीवन क्षम अंगोंदिल औ दिमाग ,फेफड़ों आदि को मयस्सर हो जाती है .नियमित इमदाद के लिए ज़रूरी वक्त भी मिल जाता है .ना सही माउथ -टू -माउथ सांस फूंकना जो कई लोगों को संकोच में मरीज़ से दूरही छिटकाए रहता है .नतीजे दोनों के यकसां आयें हैं .हैंड्स ओनली सी पी आर इज एनफ .
एक नै रिसर्च के मुताबिक़ मौके पे मौजूद (बाई -स्तैंदर्स)लोगों को थोड़ा सा प्रशिक्षण देकर केवल हाथों से थम्पिंद द्वारा अचानक रुक गए दिल को आपातकाल में चालू करना सिखलाकर हज़ारों हजार लोगों की जान बचाई जा सकती है .इसके लिए माउथ -टू -माउथ सांस फूंकना भी ज़रूरी नहीं है ।
कार्डियो -पल्मोनरी -रिससितेसन क्या है ?
इसे कार्डिएक मसाज़ ,कार्डिएक कम्प्रेसन भी कह देतें हैं .रिदमिक कम्प्रेसन ऑफ़ समबोडीज हार्ट इन ऑर्डर टू रेस्टोर ऑर मेनटेन ब्लड सर्क्युलेसन आफ्टर दी पर्सन हेज़ हेड ए हार्ट अटेक इस काल्ड कार्डियो -पल्मोनरी -रिससितेसन ।
इसे अल्प कालीन प्रशिक्षण से सीखा जा सकता है .सीखना चाहिए भारतीय सन्दर्भ में तो और भी ज्यादा प्रासंगिक है ऐसा प्रशिक्षण ,जहां दूरदराज़ क्या महानगर से सटे इलाके भी मूलभूत सुवधाओं से वंचित देखे जा सकतें हैं ।
दो एक दम से ताज़ा अध्धय्यनों से यही सामने आया है "हैंड्स- ओनली" चेस्ट कम्प्रेसन इज एनफ टू सेव ए लाइफ .बेशक सावधानी पूर्वक हाथों से थम्पिंग करना सीखना होगा .अमरीकन हार्ट असोशिएसन इसका पक्ष धर बन दो सालों के लिए प्रशिक्षण देने की बात कर रहा है ।
आपत्कालीन चिकित्सा के अर्थुर केल्लेर्मन्न (रेंड कारपोरेशन के एक माहिर )भी यही विचार व्यक्त करते हुए कहतें हैं इस प्रशिक्षण में देरी कैसी ,द सूनर दी बेटर।
हेल्प लाइन सेसंपर्क में समय जाया करने से बेहतर है मौके पर मौजूद लोगों द्वारा दी गई इमदाद .अध्धय्यन केमुताबिक ऐसा करने से असर ग्रस्त व्यक्तियों के बच जाने की दर १२ फीसद बढ़ी है ।
करना भी तो कुछ ख़ास नहीं है बस छाती पर सभाल के ३० हार्ड पुशिज़ लगाने हैं प्रशिक्षण के मुताबिक़ .ऐसा करने से झट पट कुछ रक्त आपूर्ति,जीवन दाई ऑक्सीजन , जीवन क्षम अंगोंदिल औ दिमाग ,फेफड़ों आदि को मयस्सर हो जाती है .नियमित इमदाद के लिए ज़रूरी वक्त भी मिल जाता है .ना सही माउथ -टू -माउथ सांस फूंकना जो कई लोगों को संकोच में मरीज़ से दूरही छिटकाए रहता है .नतीजे दोनों के यकसां आयें हैं .हैंड्स ओनली सी पी आर इज एनफ .
शार्क मछली अपने शिकार को पैने दांतेदार दांतों के अलावा खतरनाक जीवाणु से भी मारती है
अपार्ट फ्रॉम टीथ, शार्क्स कैन किल देयर प्रे विद डेडली बेक -टीरिया(साईं -टेक /मुंबई मिरर जुलाई ३०,२०१० ,पृष्ठ ३० )खतरनाक दांतेदार मुक्तावली की स्वामिनी शार्क कहतें हैं दूर से ही खून सूंघ लेती है अलावा इसके खतरनाक बेक -टीरिया से भी यह वार करती है अपने शिकार पर .यहाँ तक के इनका स्पर्श भी जानलेवा हो सकता है ।
रिसर्च के मुताबिक़ शार्क जानलेवा ,दवा -रोधी जीवाणु की कोलोनी व्यवस्थित किये रहतीं हैं .आश्रय देतीं हैं डेडली ड्रग रेज़िस्तेंत बेक्टीरिया को .इनमे स्टेफी -लोकोक़स और ई -काली भी शामिल हैं .बेशक शार्क बेक्टीरिया से आदिनांक किसी संक्रमण की खबर तो नहीं है लेकिन सभी एनिमल्स में (जल और थल -वासी )में इनकी मौजूदगी चौंकाती ज़रूर है . अध्धययन के सह -लेखक साइंसदान जासों ब्लाच्क्बुर्ण (जेसन ब्लेक्बर्ण )कहतें हैं ड्रग रेज़ीस्तेंट बेक्टीरिया का किनारे से निरपेक्ष (रिगार्ड -लेस ऑफ़ डिस्टेंस फ्रॉम शोर ऑरइन्तेरेक्सन विद ह्यूमेन इन्फ़्ल्युएन्सिज़ ) किसी भी दूरी पर मिलना चिंता का वायस बन रहा है .
साइंसदानों के मुताबिक़ ये जीवाणु पेंसिलिन तथा दोक्सिसाइक्लीन जैसे एंटी -बायो -टिक्स से बे असर बने रहतें हैं .किनारे एवं खुले समुन्दर पर दोनों ही जगह शार्क्स में इनकी मौजूदगी हतप्रभ करने वाली हैं जहां (ओपीन सी )में तो इंसानों से इनका कोई इन्तेर्क्सन होने की संभावना ही नहीं रहती है ।
हो सकता है यह बा रास्ता मनुष्य के मलमूत्र के समुन्दर की राह हो लेने का नतीजा हो .(एकोर्डिंग टू ब्लेक बर्न ड्रग्स गिविन टू ह्युमेंस कुड सिम्पली बी एक्स्क्रीतिद एंड इवेंच्युँली फाइंड देयर वे इनटू दी ओशन .अलबत्ता इनके स्रोत की पड़ताल के लिए अभी और परीक्षणों के बाद ही कुछ निश्चय पूर्वक कहा जा सकेगा ।
लेकिन इंसानों और खुद शार्क्स पर इनके अभी तक कोई अवांछित पार्श्व प्रभाव दिखलाई नहीं दिए हैं ।
अलबत्ता इनसे मनुष्यों के संक्रमित होने पर इन्फेक्सन से जूझने में खासी मुश्किल पेश आ सकती है .
रिसर्च के मुताबिक़ शार्क जानलेवा ,दवा -रोधी जीवाणु की कोलोनी व्यवस्थित किये रहतीं हैं .आश्रय देतीं हैं डेडली ड्रग रेज़िस्तेंत बेक्टीरिया को .इनमे स्टेफी -लोकोक़स और ई -काली भी शामिल हैं .बेशक शार्क बेक्टीरिया से आदिनांक किसी संक्रमण की खबर तो नहीं है लेकिन सभी एनिमल्स में (जल और थल -वासी )में इनकी मौजूदगी चौंकाती ज़रूर है . अध्धययन के सह -लेखक साइंसदान जासों ब्लाच्क्बुर्ण (जेसन ब्लेक्बर्ण )कहतें हैं ड्रग रेज़ीस्तेंट बेक्टीरिया का किनारे से निरपेक्ष (रिगार्ड -लेस ऑफ़ डिस्टेंस फ्रॉम शोर ऑरइन्तेरेक्सन विद ह्यूमेन इन्फ़्ल्युएन्सिज़ ) किसी भी दूरी पर मिलना चिंता का वायस बन रहा है .
साइंसदानों के मुताबिक़ ये जीवाणु पेंसिलिन तथा दोक्सिसाइक्लीन जैसे एंटी -बायो -टिक्स से बे असर बने रहतें हैं .किनारे एवं खुले समुन्दर पर दोनों ही जगह शार्क्स में इनकी मौजूदगी हतप्रभ करने वाली हैं जहां (ओपीन सी )में तो इंसानों से इनका कोई इन्तेर्क्सन होने की संभावना ही नहीं रहती है ।
हो सकता है यह बा रास्ता मनुष्य के मलमूत्र के समुन्दर की राह हो लेने का नतीजा हो .(एकोर्डिंग टू ब्लेक बर्न ड्रग्स गिविन टू ह्युमेंस कुड सिम्पली बी एक्स्क्रीतिद एंड इवेंच्युँली फाइंड देयर वे इनटू दी ओशन .अलबत्ता इनके स्रोत की पड़ताल के लिए अभी और परीक्षणों के बाद ही कुछ निश्चय पूर्वक कहा जा सकेगा ।
लेकिन इंसानों और खुद शार्क्स पर इनके अभी तक कोई अवांछित पार्श्व प्रभाव दिखलाई नहीं दिए हैं ।
अलबत्ता इनसे मनुष्यों के संक्रमित होने पर इन्फेक्सन से जूझने में खासी मुश्किल पेश आ सकती है .
गत पोस्ट से आगे आत्म निर्भर रोबोट (ज़ारी )
फिल वक्त खाने से प्राप्त ऊर्जा का मात्र १ फीसद ही यह बोट खर्च कर पातें हैं जबकि इंसान इसका ३० फीसद तक बरत लेता है .लेदेकर एक दिन में यह २१ सेंटीमीटर ही खिसक सकता है ।
२००२ में इको -बोट -१ तथा २००४ में इको -बोट- २,अस्तित्व में आया था .पहली पीढ़ियों के ये दोनों बोट्स कार्बनिक कचरे (ओरगेनिक वेस्ट )यथा "डेड फ्लाईज़ "सड़े -गले फलों और चीनी से पावर लेते थे .फ्यूल सेल में माइक -रोब्स की मदद से ही यह इस सड़े गले को सरल रासायनिक प्रति -रूपों में विखंडित करते थे ।
इको बोट -३ थोड़ा तेज़ है .इसकी कार्य क्षमता बेहतर है ।
इससे भी आगे की सोची जा रही है .ब्रिस्टल -रोबोटिक्स की नजर इको -बोट -४ पर है .इसमें अब तक की सबसे सक्षम माइक्रो -बीयल फ्यूल सेल्स स्टेक्स (पाइल्स )काम में ली जायेंगी .रफ्तार के अलावा इतर कचरे का भी ईंधन के बतौर इसमें स्तेमाल किया जा सकेगा .सोचा यह भी जा रहा है पेपर और प्लास्टिक को भी हजम कर जाने वाली पीढ़ी सामने आये इको -बोट्स की .अकार्बनिक कचरा तो हमारे चारों तरफ ही फैला हुआ है .एक तरफ इसे ठिकाने लगाया जाए दूसरी तरफ अपने त्याज्य कचरे से पैदा ईंधन से ही गुज़र बसर की जाए .बोट्स की ऐसी पीढ़ी का इंतज़ार है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ए रोबोट विद एन एपेटाईट फॉर फ़ूड ,साइंटिस्ट्स हेव क्रीयेतिद ए सेल्फ -सस्टेनिंग बोट देट कैन क्रियेट इट्स ओन एनर्जी बाई ईटिंग ,दाइजेस्तिन्ग एंड पूपिंग फ़ूड ,जस्ट लाइक अस .इट कुड एंड आवर दिपेंदेंस ओन बेट्रीज़(साईं -टेक /मुंबई मिरर /जुलाई ३० ,२०१० ,पृष्ठ ३० )
२००२ में इको -बोट -१ तथा २००४ में इको -बोट- २,अस्तित्व में आया था .पहली पीढ़ियों के ये दोनों बोट्स कार्बनिक कचरे (ओरगेनिक वेस्ट )यथा "डेड फ्लाईज़ "सड़े -गले फलों और चीनी से पावर लेते थे .फ्यूल सेल में माइक -रोब्स की मदद से ही यह इस सड़े गले को सरल रासायनिक प्रति -रूपों में विखंडित करते थे ।
इको बोट -३ थोड़ा तेज़ है .इसकी कार्य क्षमता बेहतर है ।
इससे भी आगे की सोची जा रही है .ब्रिस्टल -रोबोटिक्स की नजर इको -बोट -४ पर है .इसमें अब तक की सबसे सक्षम माइक्रो -बीयल फ्यूल सेल्स स्टेक्स (पाइल्स )काम में ली जायेंगी .रफ्तार के अलावा इतर कचरे का भी ईंधन के बतौर इसमें स्तेमाल किया जा सकेगा .सोचा यह भी जा रहा है पेपर और प्लास्टिक को भी हजम कर जाने वाली पीढ़ी सामने आये इको -बोट्स की .अकार्बनिक कचरा तो हमारे चारों तरफ ही फैला हुआ है .एक तरफ इसे ठिकाने लगाया जाए दूसरी तरफ अपने त्याज्य कचरे से पैदा ईंधन से ही गुज़र बसर की जाए .बोट्स की ऐसी पीढ़ी का इंतज़ार है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ए रोबोट विद एन एपेटाईट फॉर फ़ूड ,साइंटिस्ट्स हेव क्रीयेतिद ए सेल्फ -सस्टेनिंग बोट देट कैन क्रियेट इट्स ओन एनर्जी बाई ईटिंग ,दाइजेस्तिन्ग एंड पूपिंग फ़ूड ,जस्ट लाइक अस .इट कुड एंड आवर दिपेंदेंस ओन बेट्रीज़(साईं -टेक /मुंबई मिरर /जुलाई ३० ,२०१० ,पृष्ठ ३० )
किसी बाहरी स्रोत से नहीं अपने ही भोजन से पैदा ऊर्जा से चलेगा यह इको बोट
ब्रिस्टल रोबोटिक्स लैब के रिसर्चरों ने एक ऐसा रोबोट (बोट )बना लिया है जो किसी बाहरी स्रोत से ऊर्जा ना जुटाकर खुद खाने पचाने और मल त्याग की क्षमता से लैस होने के साथ अपनी तमाम ऊर्जा खुद ही तैयार करेगा .इए इको बोट ३ कहा जा रहा है ।
एक हफ्ता तक यह बहरी अनुदेशों के बिना खुद अपना काम करेगा .प्रकाश के प्रति सचेत रहेगा ,थोड़ा सोचने समझने का भी माद्दा होगा इसमें .ऊर्जा की अपनी ज़रूरीयात यह मल संशाधन से (खुद त्यागे हुए एक्स्क्रीता)से करेगा .अब तक तैयार किये गए बोटों की तरह इसे बैटरियों ,बिजली के सहारे नहीं रहना पड़ेगा ।
इसे ब्रेड -बोट भी कहा समझा जा रहा है जो वास्तव में एक कृत्रिम गट(आंत) से लैस है हमारी तरह.इसी आंत में जीवाणु खाने को ठिकाने लगायेंगें .पाचन करेंगें खाद्य का इसी गट में ।
वास्तव में यह दो सेट्स २४ एम् ऍफ़ सी (माइक्रो -बिअल फ्यूल सेल्स के) हैं .यही सेल्स खाने की यांत्रिक ऊर्जा को हाड्रोजन के रूप में इलेक्त्रिसिती में तब्दील कर देनेगें ।
इसी हाइड्रोजन का एक अंश रोबोट को आवश्यक विद्युत् धारा (करेंट )मुहैया करवाएगा .काम करने के लिए ज़रूरी पावर पैदा करेगा .बाकी बचा हिस्सा एक और कक्ष में ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर जल तैयार करेगा ।
वेस्ट मैटर एक बार फिर फीडर तक भेजा जाएगा .यहाँ फिर वही दोबारा मेटाबोलिक प्रक्रियाएं (चय-अपचय ) ज्यादा से ज्यादा पावर पैदा करेंगी ।
जहां ना पहुंचे मानव वहां पहुँच सके रोबोट .रिमोट एरिया एक्सेस ,रिलीज़ एंड फोरगेट मिशन में जहां एनर्जी ऑटो नमी बड़ी ज़रूरी होती है इन बोटों की अतिरिक्त उपयोगिता साबित होगी ।
पहुँच से बाहरचले जाने पर इसे सर्विसिंग की भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी ।
फिलवक्त यह भोजन से प्राप्त कुल एक फीसद ऊर्जा का ही स्तेमाल कर रहा है .जबकि मनुष्य इसका ३० फीसद काम में ले लेता है .कुल मिलाकर यह दिन भर में २१ सेंटीमीटर ही रेंग पाता है .(ज़ारी )
एक हफ्ता तक यह बहरी अनुदेशों के बिना खुद अपना काम करेगा .प्रकाश के प्रति सचेत रहेगा ,थोड़ा सोचने समझने का भी माद्दा होगा इसमें .ऊर्जा की अपनी ज़रूरीयात यह मल संशाधन से (खुद त्यागे हुए एक्स्क्रीता)से करेगा .अब तक तैयार किये गए बोटों की तरह इसे बैटरियों ,बिजली के सहारे नहीं रहना पड़ेगा ।
इसे ब्रेड -बोट भी कहा समझा जा रहा है जो वास्तव में एक कृत्रिम गट(आंत) से लैस है हमारी तरह.इसी आंत में जीवाणु खाने को ठिकाने लगायेंगें .पाचन करेंगें खाद्य का इसी गट में ।
वास्तव में यह दो सेट्स २४ एम् ऍफ़ सी (माइक्रो -बिअल फ्यूल सेल्स के) हैं .यही सेल्स खाने की यांत्रिक ऊर्जा को हाड्रोजन के रूप में इलेक्त्रिसिती में तब्दील कर देनेगें ।
इसी हाइड्रोजन का एक अंश रोबोट को आवश्यक विद्युत् धारा (करेंट )मुहैया करवाएगा .काम करने के लिए ज़रूरी पावर पैदा करेगा .बाकी बचा हिस्सा एक और कक्ष में ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर जल तैयार करेगा ।
वेस्ट मैटर एक बार फिर फीडर तक भेजा जाएगा .यहाँ फिर वही दोबारा मेटाबोलिक प्रक्रियाएं (चय-अपचय ) ज्यादा से ज्यादा पावर पैदा करेंगी ।
जहां ना पहुंचे मानव वहां पहुँच सके रोबोट .रिमोट एरिया एक्सेस ,रिलीज़ एंड फोरगेट मिशन में जहां एनर्जी ऑटो नमी बड़ी ज़रूरी होती है इन बोटों की अतिरिक्त उपयोगिता साबित होगी ।
पहुँच से बाहरचले जाने पर इसे सर्विसिंग की भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी ।
फिलवक्त यह भोजन से प्राप्त कुल एक फीसद ऊर्जा का ही स्तेमाल कर रहा है .जबकि मनुष्य इसका ३० फीसद काम में ले लेता है .कुल मिलाकर यह दिन भर में २१ सेंटीमीटर ही रेंग पाता है .(ज़ारी )
सिर्फ बारह साल की मोहलत है और उसके बाद
"इन १२ ईयर्स ,अर्थ टू फेस मेजर मेल्टडाउन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,३० ,२०१० )।
फिलवक्त वायुमंडल में दस लाख भागों के पीछे ३९२ भाग ग्रीन हाउस गैसकार्बन -डाय -ऑक्साइड घेरे हुए है .जबकि इसकी सुरक्षित सीमा जो पृथ्वी की बर्दाश्त के अन्दर है वह ३५० भाग ही बतलाई गई है .नासा के जलवायु माहिर भी इसे ही सुरक्षित सह्य सीमा मानतें हैं ।
ख़तरा यह है जिस रफ़्तारसे एमिशन ज़ारी है उसके चलते आगामी १२ बरसों में ही पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी बज सकती है ,विश्व -व्यापी तापन तापमानों को इस कदर बढा देगा ,बर्फ की चादर पिघलने लगेगी .महासागरों में जल का उफान आ जाएगा ।
यह अनुमान लगाया है थाईलैंड के माहिरों ने जिनमे महिदोल विश्व -विद्यालय(थाईलैंड ) के एक प्रोफ़ेसर भी शामिल हैं .आप ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के माहिर चिरापोल सिंतुनावा से इत्तेफाक रखतें हैं जिन्होनें उक्त अनुमान लगाया है .इस आकलन के अनुसार आगामी १२ बरसों में ही हमारे वायुमंडल में कार्बन डाय-ऑक्साइड की मात्रा बढ़कर ३९२ से ४५० भाग प्रति दस लाख भाग हो जायेगी .
यही वजह है फिलवक्त ३५० भाग की हदबंदी के लिए दुनिया भर में अभियान चलरहा है ,सुदूर साइबेरिया तक इस अभियान की खदबदाहट मौजूद है ।
क्या आप जानतें हैं ४५० पी पी एम् का मतलब ?वायुमंडल में इतनी कार्बन -डाय -ऑक्साइड पसर जाने के बाद विश्व -व्यापी तापन तापमानो को २ सेल्सियस तक बढा देंगें ।
फलस्वरूप उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय हिम टोपियाँ ज्यादा रफ्तार से पिघलने लगेंगी .अब नहीं तो फिर कभी नहीं .बेटर लेट देन नेवर .जल प्लावन जन्य विनाश से बचने की एक ही सूरत है हम इस चेतावनी को हलके में ना लें .कुछ करें या मरें ?
वगरना फिर कोई मनु लिखेगा जल -प्लावन की कथा .फिर कोई जय शंकर प्रसाद लिखेंगें "कामायनी "
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शिला की शीतल छाँव
एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,
ऊपर हिम था ,नीचे जल था ,एक सघन था ,एक तरल ,
एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन ."
फिलवक्त वायुमंडल में दस लाख भागों के पीछे ३९२ भाग ग्रीन हाउस गैसकार्बन -डाय -ऑक्साइड घेरे हुए है .जबकि इसकी सुरक्षित सीमा जो पृथ्वी की बर्दाश्त के अन्दर है वह ३५० भाग ही बतलाई गई है .नासा के जलवायु माहिर भी इसे ही सुरक्षित सह्य सीमा मानतें हैं ।
ख़तरा यह है जिस रफ़्तारसे एमिशन ज़ारी है उसके चलते आगामी १२ बरसों में ही पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी बज सकती है ,विश्व -व्यापी तापन तापमानों को इस कदर बढा देगा ,बर्फ की चादर पिघलने लगेगी .महासागरों में जल का उफान आ जाएगा ।
यह अनुमान लगाया है थाईलैंड के माहिरों ने जिनमे महिदोल विश्व -विद्यालय(थाईलैंड ) के एक प्रोफ़ेसर भी शामिल हैं .आप ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के माहिर चिरापोल सिंतुनावा से इत्तेफाक रखतें हैं जिन्होनें उक्त अनुमान लगाया है .इस आकलन के अनुसार आगामी १२ बरसों में ही हमारे वायुमंडल में कार्बन डाय-ऑक्साइड की मात्रा बढ़कर ३९२ से ४५० भाग प्रति दस लाख भाग हो जायेगी .
यही वजह है फिलवक्त ३५० भाग की हदबंदी के लिए दुनिया भर में अभियान चलरहा है ,सुदूर साइबेरिया तक इस अभियान की खदबदाहट मौजूद है ।
क्या आप जानतें हैं ४५० पी पी एम् का मतलब ?वायुमंडल में इतनी कार्बन -डाय -ऑक्साइड पसर जाने के बाद विश्व -व्यापी तापन तापमानो को २ सेल्सियस तक बढा देंगें ।
फलस्वरूप उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय हिम टोपियाँ ज्यादा रफ्तार से पिघलने लगेंगी .अब नहीं तो फिर कभी नहीं .बेटर लेट देन नेवर .जल प्लावन जन्य विनाश से बचने की एक ही सूरत है हम इस चेतावनी को हलके में ना लें .कुछ करें या मरें ?
वगरना फिर कोई मनु लिखेगा जल -प्लावन की कथा .फिर कोई जय शंकर प्रसाद लिखेंगें "कामायनी "
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शिला की शीतल छाँव
एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,
ऊपर हिम था ,नीचे जल था ,एक सघन था ,एक तरल ,
एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन ."
क्या है फर्टिलिटी फोरम ब्यूटीफुल डोट कोम ?
२००२ में इसकी स्थापना डेनमार्क में की गई .इस समय ब्यूटीफुल फोरम के १९० देश सदस्य हैं .इस तक पहुंचाती है आपको वेबसाईट ,"ब्यूटीफुल .कोम "इसकी सदस्यता प्राप्त करने के लिए इच्छुक व्यक्ति को पहले अपना एक फटोग्रेफ सदस्यों की स्वीकृति हेतु भेजना पड़ता है .खूबसूरत लोग ही आपकी खूबसूरती का आकलन करके इत्तला देतें हैं आपको .६०,००० लोग इस खूबसूरत समुदाय के सदस्य हैं ।
अलबत्ता अट्रेक्तिव स्पर्म तथा अट्रेक्तिव एग डोनर्स के लिए अब इसके रास्ते उन लोगों के लिए भी खुल गएँ हैं जो खुद तो सुन्दर नहीं हैं लेकिन खूबसूरत संतान चाहतें हैं .फोरम का मकसद ही खूबसूरती को आगे ले जाना है खूबसूरत संतानों की मार्फ़त ।
खूबसूरत लोग दान कर सकतें हैं अपना स्पर्म ,अपने एग्स उन लोगों को जो स्वयं आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ना सही खूबसूरत संतानें चाहतें हैं ।
लेकिन दक्षिणी केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के प्रजनन माहिर जो रिप्रोदाक्तिव मेडिसन में गत २५ सालों से दखल रखतें हैं कहतें हैं ,इस सब के बावजूद खूब सूरत बच्चे ही पैदा हों यह लाजमी नहीं है ।
याद रहे पूर्व में इसी फोरम ने ५००० खूबसूरत लोगों की सदस्यता समाप्त कर दी थी केवल इस बिना पर ,वह ज़रा ओवरवेट हो गए थे .आप जानतें हैं "नार्सिसस "को भी आत्म रति ,अपने ही अक्श पर रीझने ,मर मिटने का भूत सवार हुआ था .तभी से नारसीसिज्म (आत्म रति ,आत्म शलाघा खुद पर ही रीझने के लिए प्रयुक्त होने लगा ).नर्गिश का फूल अपने अस्तित्व को हज़ारों हज़ार साल कोसता है कहता हुआ -"हज़ारों साल रोती है नर्गिश अपनी बे -नूरी पर ,तब चमन मेंकहीं पैदा होता है एक दीदावर .
सन्दर्भ -सामिग्री :-एन्स्युरिंग जेन- नेक्स्ट इज एस ब्यूटीफुल एज दी प्रिजेंट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २९.२०१० )
अलबत्ता अट्रेक्तिव स्पर्म तथा अट्रेक्तिव एग डोनर्स के लिए अब इसके रास्ते उन लोगों के लिए भी खुल गएँ हैं जो खुद तो सुन्दर नहीं हैं लेकिन खूबसूरत संतान चाहतें हैं .फोरम का मकसद ही खूबसूरती को आगे ले जाना है खूबसूरत संतानों की मार्फ़त ।
खूबसूरत लोग दान कर सकतें हैं अपना स्पर्म ,अपने एग्स उन लोगों को जो स्वयं आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ना सही खूबसूरत संतानें चाहतें हैं ।
लेकिन दक्षिणी केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के प्रजनन माहिर जो रिप्रोदाक्तिव मेडिसन में गत २५ सालों से दखल रखतें हैं कहतें हैं ,इस सब के बावजूद खूब सूरत बच्चे ही पैदा हों यह लाजमी नहीं है ।
याद रहे पूर्व में इसी फोरम ने ५००० खूबसूरत लोगों की सदस्यता समाप्त कर दी थी केवल इस बिना पर ,वह ज़रा ओवरवेट हो गए थे .आप जानतें हैं "नार्सिसस "को भी आत्म रति ,अपने ही अक्श पर रीझने ,मर मिटने का भूत सवार हुआ था .तभी से नारसीसिज्म (आत्म रति ,आत्म शलाघा खुद पर ही रीझने के लिए प्रयुक्त होने लगा ).नर्गिश का फूल अपने अस्तित्व को हज़ारों हज़ार साल कोसता है कहता हुआ -"हज़ारों साल रोती है नर्गिश अपनी बे -नूरी पर ,तब चमन मेंकहीं पैदा होता है एक दीदावर .
सन्दर्भ -सामिग्री :-एन्स्युरिंग जेन- नेक्स्ट इज एस ब्यूटीफुल एज दी प्रिजेंट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २९.२०१० )
गुरुवार, 29 जुलाई 2010
एल्कोहल और रह्युमेतिक आर्थ -राइटिस क्या कोई अंतर सम्बन्ध है ? ,
ड्राउनिंग पैन :एल्कोहल ईज़िज़ आर्थ -राइटिस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २९ ,२०१० ,पृष्ठ ,२१ )
क्या कोई ऐसा साक्ष्य जुटाया जा सका है आदिनांक ,एल्कोहल हमारे रोग प्रति -रोधी कुदरती तंत्र की सक्रियता का शमन करता है ?और इसका असर उन रास्तों (पाथ्वेज़ पर पड़ता है )जो र्ह्युमैतिक आर्थ -राइटिसके पनपने की वजह बनतें हैं ., इन्ही रास्तों से होकर जिनके जोड़ों का बर्दाश्त बाहरदर्द पनपने लगता है ?आइये पड़ताल करतें हैं शोध की खिड़की से ।
बेशक दर्द की उग्रता को एल्कोहल का सेवन काबू में रख सकता है ऐसा संकेत हालिया अध्धय्यनों से मिला है.
.लेकिन ? ब्रितानी विश्व -विद्यालय ,शेफ़्फ़िएल्द कैम्पस के प्रोफ़ेसर गेर्री विल्सन के नेत्रित्व में ८७३ आर्थ -राइटिस ग्रस्त एवं १००४ कंट्रोल ग्रुप के अन्य लोगों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है यह अध्धय्यन .गुज़रे महीने में इनमे से किसने कितनी शराब पी इसका जायजा लिया गया .एक प्रश्नावली भी इनसे भरवाई गई ,एक्स रे के अलावा इन सभी का ब्लड टेस्ट्सभी किया गया ,जोड़ों की भी पड़ताल की गई ।
पता चला साफ़ साफ़ ,दो टूक ,जिन लोगों ने अकसर जब जी चाहा शराब पी उनमे दर्द काबू में रहा ,लक्षणों की उग्रता उतनी गंभर नहीं रही ,बनिस्पत उनके जो या तो शराब से दूर रहे या फिर कभी कभार ही इसका जायका लिया ।
यह कहना है र्ह्युमेतोलोजी के माहिर ,रोथेरहम फाऊन -देशन एन एच एस ट्रस्टके जेम्स मैक्सवेल का .एक्स रेज़ के नतीजों ने इनके जोड़ों में अपेक्षाकृत कम नुकसानी (डेमेज )दिखलाया .खून की जांच में इन्फ्लेमेशन (शोजिश और कैसा भी संक्रमण )कम ही देखने को मिला .दर्द ,जोड़ों की शोजिश अपेक्षाकृत कमतर रही ।
बिला शक ऐसे ही नतीजे पूर्व में रोड़ेंट्स(चूहों ,खरगोशों आदि )पर संपन्न अध्धय्यनों में भी मिलें हैं ,लेकिन यह पहली मर्तबा है इंसानों में भी एल्कोहल की मात्रा का सेवन और दर्द की उग्रता ,इतर लक्षणों में एक रिश्ता दिखलाई दिया है .जितनी मर्तबा और जितना ज्यादा पी शराब उसी अनुपात में घटे र्हयुमेतिक आर्थ -राइटिस के लक्षण .
शराब से परहेजी रखने वालों में आर्थ -राइटिस के लक्षणों के उभरने की संभावना चार गुना ज्यादा दर्ज़ की गई बरक्स उनके जिन्होनें एक महीने में कमसे कम दस मर्तबा शराब नोशी की ।
औरतों और मर्दों में अन्वेषण के नतीजे यकसां रहें हैं .दोनों किस्मों में आर्थ -राइटिस की :(१)एंटी -साइक्लिक सित्रयु-लिनेटिद पेप्टाइड तथा(२) "निगेटिव "किस्म में .,आर्थ -राइटिस की .
ज़ाहिर है साइंसदान सिर्फ अनुमान ही लगा सकें हैं .आखिर ऐसा हुआ क्यों ?और आप जानतें हैं ,अनुमान की अपनी सीमाएं हैं .व्यक्ति सिर्फ संभावनाओं में तो नहीं जी सकता ?
क्या कोई ऐसा साक्ष्य जुटाया जा सका है आदिनांक ,एल्कोहल हमारे रोग प्रति -रोधी कुदरती तंत्र की सक्रियता का शमन करता है ?और इसका असर उन रास्तों (पाथ्वेज़ पर पड़ता है )जो र्ह्युमैतिक आर्थ -राइटिसके पनपने की वजह बनतें हैं ., इन्ही रास्तों से होकर जिनके जोड़ों का बर्दाश्त बाहरदर्द पनपने लगता है ?आइये पड़ताल करतें हैं शोध की खिड़की से ।
बेशक दर्द की उग्रता को एल्कोहल का सेवन काबू में रख सकता है ऐसा संकेत हालिया अध्धय्यनों से मिला है.
.लेकिन ? ब्रितानी विश्व -विद्यालय ,शेफ़्फ़िएल्द कैम्पस के प्रोफ़ेसर गेर्री विल्सन के नेत्रित्व में ८७३ आर्थ -राइटिस ग्रस्त एवं १००४ कंट्रोल ग्रुप के अन्य लोगों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है यह अध्धय्यन .गुज़रे महीने में इनमे से किसने कितनी शराब पी इसका जायजा लिया गया .एक प्रश्नावली भी इनसे भरवाई गई ,एक्स रे के अलावा इन सभी का ब्लड टेस्ट्सभी किया गया ,जोड़ों की भी पड़ताल की गई ।
पता चला साफ़ साफ़ ,दो टूक ,जिन लोगों ने अकसर जब जी चाहा शराब पी उनमे दर्द काबू में रहा ,लक्षणों की उग्रता उतनी गंभर नहीं रही ,बनिस्पत उनके जो या तो शराब से दूर रहे या फिर कभी कभार ही इसका जायका लिया ।
यह कहना है र्ह्युमेतोलोजी के माहिर ,रोथेरहम फाऊन -देशन एन एच एस ट्रस्टके जेम्स मैक्सवेल का .एक्स रेज़ के नतीजों ने इनके जोड़ों में अपेक्षाकृत कम नुकसानी (डेमेज )दिखलाया .खून की जांच में इन्फ्लेमेशन (शोजिश और कैसा भी संक्रमण )कम ही देखने को मिला .दर्द ,जोड़ों की शोजिश अपेक्षाकृत कमतर रही ।
बिला शक ऐसे ही नतीजे पूर्व में रोड़ेंट्स(चूहों ,खरगोशों आदि )पर संपन्न अध्धय्यनों में भी मिलें हैं ,लेकिन यह पहली मर्तबा है इंसानों में भी एल्कोहल की मात्रा का सेवन और दर्द की उग्रता ,इतर लक्षणों में एक रिश्ता दिखलाई दिया है .जितनी मर्तबा और जितना ज्यादा पी शराब उसी अनुपात में घटे र्हयुमेतिक आर्थ -राइटिस के लक्षण .
शराब से परहेजी रखने वालों में आर्थ -राइटिस के लक्षणों के उभरने की संभावना चार गुना ज्यादा दर्ज़ की गई बरक्स उनके जिन्होनें एक महीने में कमसे कम दस मर्तबा शराब नोशी की ।
औरतों और मर्दों में अन्वेषण के नतीजे यकसां रहें हैं .दोनों किस्मों में आर्थ -राइटिस की :(१)एंटी -साइक्लिक सित्रयु-लिनेटिद पेप्टाइड तथा(२) "निगेटिव "किस्म में .,आर्थ -राइटिस की .
ज़ाहिर है साइंसदान सिर्फ अनुमान ही लगा सकें हैं .आखिर ऐसा हुआ क्यों ?और आप जानतें हैं ,अनुमान की अपनी सीमाएं हैं .व्यक्ति सिर्फ संभावनाओं में तो नहीं जी सकता ?
गर्भवती का मोटापा गर्भस्थ-ए - खतरे -जान
डोंट ईट फॉर टू ,प्रग्नेंट वोमेन टोल्ड ( टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २९ ,२०१० )
अकसर दादी नानियाँ जच्चाओं को बच्चे के हिस्से का भी खाने की हिदायतें देती सुनी गईं हैं .लेकिन इस परम्परा गत सीख को ब्रितानी सरकार के हेल्थ वाच डॉग ने गर्भस्थ के जीवन के लिए ख़तरा -ए -जान ,जोखिम भरा बतलाया है ।
नॅशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉर हेल्थ एंड क्लिनिकल एक्सीलेंस (एन आई सी ई यानी नाइस),दी वाच दोग को मजबूरन इस परम्परा गत सोच को परे धकेलते हुए हिदायत के तौर पर सुझाना पड़ा है गर्भवती भावी माताओं को कमसे कम रोजाना ३० मिनिट का व्यायाम (जोगिंग या ब्रिस्क वाकिंग ,तेज़ टहल कदमी ,तैराकी ,या फिर साइकिलिंग ताकि ओबेसिटी से हर हाल में इस दरमियान बचा जा सके .मोटापा खतरनाक है जच्चा बच्चा दोनों की ही सेहत के लिए ।
अध्धय्यन में तकरीबन आधी गर्भवती माताएं ओवर वैट पायी गईं हैं .मोटापे की गिरिफ्त में इन्हें आते हुए देखा गया है .ऐसे मेंसेहत के लिए खतरनाक (फैटल हेल्थ कंडीशंस )यथा ब्लड क्लोट्स ,मिस्केरिजिज़ तथा "स्टिल बर्थ (मरा हुआ शिशु पैदा होना )के खतरे का वजन एक दम से बढ़ जाता है ।
अलावा इसके हिदायत यह भी है ,नव माताओं को प्रसव के ६ माह बाद ही अपना बेबी वेट बरतरफ करने की कोशिश करते रहना चाहिए ।
माँ बनने से पहले ही इस दिशा में कदम बढा देना अकलमंदी है .किशोरियों को ओवर वैट होने ,फिर ओबेसिटी में ही माँ बनने के जोखिम से वाकिफ करवाया जाना चाहिए स्कूल कोलिज मेंही यह बतलाया जाना चाहिए .गर्भावस्था की पहली दो तिमाही में तो बिलकुल भी ओवर ईट नहीं करना चाहिए .अपने को सामान्य खुराख तक ही सीमित रखना चाहिए ।
अलबता तीसरी तिमाही में खुराख में २०० केलोरीज़ (दो केले से प्राप्त हो जातीं हैं २०० केलोरीज़ )बढा सकतें हैं ।
ओबेसी माताओं के शिशुओं के लिए जन्म जात विकृतियों ,शोल्डर दिस्टोशिया के खतरे का वजन बढ़ जाता है ।
शोल्डर दिस टोशिया में बेबी अपनी जेस्तेश्नल एज (गर्भावस्था उम्र )के अनुरूप ना रहकर ज्यादा कद काठी का हो जाता है .ऐसे में बाल्य-काल में मोटापे की सूरत पैदा हो जाती है ।
मरे हुए भी पैदा हो सकतें हैं प्रसव के समय ऐसे बच्चे ।
शोल्डर दिस -टोशिया :व्हेअर ए बेबीज़ शोल्डर बिकम स्तक.दिस -टोशिया मीन्स डिफिकल्ट लेबर .इट मे बी प्रो -द्युऊस्द बाई आइदर दी साइज़ ऑफ़ दी पैसिंजर(दी फीटस )ऑर दी स्माल साइज़ ऑफ़ दी पेल्विक आउट -लेट .लार्ज साइज़ ऑफ़ दी फीटस युज्युअली काज़िज़ दिस कंडीशन .एब्नोरमली दिफीकल्ट चाइल्ड बर्थ इज काल्ड दिस -टोशिया .
अकसर दादी नानियाँ जच्चाओं को बच्चे के हिस्से का भी खाने की हिदायतें देती सुनी गईं हैं .लेकिन इस परम्परा गत सीख को ब्रितानी सरकार के हेल्थ वाच डॉग ने गर्भस्थ के जीवन के लिए ख़तरा -ए -जान ,जोखिम भरा बतलाया है ।
नॅशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉर हेल्थ एंड क्लिनिकल एक्सीलेंस (एन आई सी ई यानी नाइस),दी वाच दोग को मजबूरन इस परम्परा गत सोच को परे धकेलते हुए हिदायत के तौर पर सुझाना पड़ा है गर्भवती भावी माताओं को कमसे कम रोजाना ३० मिनिट का व्यायाम (जोगिंग या ब्रिस्क वाकिंग ,तेज़ टहल कदमी ,तैराकी ,या फिर साइकिलिंग ताकि ओबेसिटी से हर हाल में इस दरमियान बचा जा सके .मोटापा खतरनाक है जच्चा बच्चा दोनों की ही सेहत के लिए ।
अध्धय्यन में तकरीबन आधी गर्भवती माताएं ओवर वैट पायी गईं हैं .मोटापे की गिरिफ्त में इन्हें आते हुए देखा गया है .ऐसे मेंसेहत के लिए खतरनाक (फैटल हेल्थ कंडीशंस )यथा ब्लड क्लोट्स ,मिस्केरिजिज़ तथा "स्टिल बर्थ (मरा हुआ शिशु पैदा होना )के खतरे का वजन एक दम से बढ़ जाता है ।
अलावा इसके हिदायत यह भी है ,नव माताओं को प्रसव के ६ माह बाद ही अपना बेबी वेट बरतरफ करने की कोशिश करते रहना चाहिए ।
माँ बनने से पहले ही इस दिशा में कदम बढा देना अकलमंदी है .किशोरियों को ओवर वैट होने ,फिर ओबेसिटी में ही माँ बनने के जोखिम से वाकिफ करवाया जाना चाहिए स्कूल कोलिज मेंही यह बतलाया जाना चाहिए .गर्भावस्था की पहली दो तिमाही में तो बिलकुल भी ओवर ईट नहीं करना चाहिए .अपने को सामान्य खुराख तक ही सीमित रखना चाहिए ।
अलबता तीसरी तिमाही में खुराख में २०० केलोरीज़ (दो केले से प्राप्त हो जातीं हैं २०० केलोरीज़ )बढा सकतें हैं ।
ओबेसी माताओं के शिशुओं के लिए जन्म जात विकृतियों ,शोल्डर दिस्टोशिया के खतरे का वजन बढ़ जाता है ।
शोल्डर दिस टोशिया में बेबी अपनी जेस्तेश्नल एज (गर्भावस्था उम्र )के अनुरूप ना रहकर ज्यादा कद काठी का हो जाता है .ऐसे में बाल्य-काल में मोटापे की सूरत पैदा हो जाती है ।
मरे हुए भी पैदा हो सकतें हैं प्रसव के समय ऐसे बच्चे ।
शोल्डर दिस -टोशिया :व्हेअर ए बेबीज़ शोल्डर बिकम स्तक.दिस -टोशिया मीन्स डिफिकल्ट लेबर .इट मे बी प्रो -द्युऊस्द बाई आइदर दी साइज़ ऑफ़ दी पैसिंजर(दी फीटस )ऑर दी स्माल साइज़ ऑफ़ दी पेल्विक आउट -लेट .लार्ज साइज़ ऑफ़ दी फीटस युज्युअली काज़िज़ दिस कंडीशन .एब्नोरमली दिफीकल्ट चाइल्ड बर्थ इज काल्ड दिस -टोशिया .
आपका पालतू स्वान आपकी हर हरकत की नक़ल उतारता है
पेट -डॉग्स कोपी देअर ओनर्स एक्शंज़ :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २९ ,२०१० ,पृष्ठ २१ ).
हिज़ मास्टर्स वोईस ही नहीं ,हिज़ मास्टर्स मिमिक, भी करता है स्वान ।
पूरा अनुकरण करता है आपका ,आपका पालतू स्वान .आपके हाथों के संचालन की नक़ल अपने पंजों से तथा मुखाकृति के भाव अनुभावों की आपका लाडला अपने थूथन से नक़ल उतारता है ।
एक नवीन अध्धय्यन में रिसर्चरों ने कुत्तों की स्वांग भरने की आदतों का हवाला दिया है .डेली -मेल ने प्रकाशित किया है औस्त्रियाई (ऑस्ट्रियन ) साइंसदानों की इस रिसर्च के नतीजों को .नक़ल उतारने की स्वानों की यह प्रवृत्ति मालिक के साथ उनके संबंधों के अनुरूप हीलालन पालन के दौरान विकसित होती चली जाती है .अन्योन्य क्रिया परक है यह अंतर -सम्बन्ध दोनों का .मालिक का स्वभाव ,स्वान के संग उठ्बैठ उस पर दूरगामी असर डालती है ।
यह तमाम अन्वेषण "प्रोसीडिंग्स ऑफ़ दी रोयल सोसायटी बी" ,जर्नल में प्रकाशित हुएँ हैं .
हिज़ मास्टर्स वोईस ही नहीं ,हिज़ मास्टर्स मिमिक, भी करता है स्वान ।
पूरा अनुकरण करता है आपका ,आपका पालतू स्वान .आपके हाथों के संचालन की नक़ल अपने पंजों से तथा मुखाकृति के भाव अनुभावों की आपका लाडला अपने थूथन से नक़ल उतारता है ।
एक नवीन अध्धय्यन में रिसर्चरों ने कुत्तों की स्वांग भरने की आदतों का हवाला दिया है .डेली -मेल ने प्रकाशित किया है औस्त्रियाई (ऑस्ट्रियन ) साइंसदानों की इस रिसर्च के नतीजों को .नक़ल उतारने की स्वानों की यह प्रवृत्ति मालिक के साथ उनके संबंधों के अनुरूप हीलालन पालन के दौरान विकसित होती चली जाती है .अन्योन्य क्रिया परक है यह अंतर -सम्बन्ध दोनों का .मालिक का स्वभाव ,स्वान के संग उठ्बैठ उस पर दूरगामी असर डालती है ।
यह तमाम अन्वेषण "प्रोसीडिंग्स ऑफ़ दी रोयल सोसायटी बी" ,जर्नल में प्रकाशित हुएँ हैं .
दिमाग के उद्भव और विकाश में गर्दन का बड़ा योगदान रहा है
इन दी नेक़ आफ टाइम ,साइंटिस्ट्स अन- रैवल अनादर की इवोल्यूशनरी ट्रेट देट लीड टू बेटर ब्रेन पावर ,इट्स दी नेक़ .दी इवोल्यूशन ऑफ़ दी नेक़ लैट बर्ड्स डेवलप फ्लाईट एंड लेट्स अस ह्युमेंस डू अमेजिंग थिंग्स विद अवर हेंड्स (एस सी आई -टी ई सी एच (साईं -टैक )/मुंबई मिरर जुलाई २९ ,२०१० ,पृष्ठ २४ ।
मनुष्यों और मतस्यों (मछलियों में ) आनुवंशिक विरासत के कूट संकेतों को बूझ समझ कर ,जीवन -इकाइयों में छिपे लेखे को पढ़ समझकर साइंसदानों ,आनुवंशिकी के माहिरों ने ,पता लगाया है आदमी की गर्दन( धड को सिर से जोड़ने वाला अंग )ने आदमी को गति करने की इतनी आज़ादी बख्शी,कालानुक्रम में ,आखिरकार यही छोटी सी गर्दन जो आपके हेड और शोल्डर्स को जोड़े रहती है ,दिमागी विकाश की वजह बन गई .नेचर कम्युनिकेशन में इस अध्धय्यन के नतीजे प्रकाशित हुएँ हैं ।
साइंसदान यह मानते आयें हैं ,मछलियों में "पेक्टोरल फिन्स "और मनुष्यों में "फोर्लिम्ब्स "आर्म्स एंड हैंड्स का विकाश यकसां न्युरोंस (नर्व सेल्स ,दिमागी कोशाओं )से ही हुआ है ..बोथ रिसीव्द नर्व्ज़(इन्नेर्वतिद,इनर -वेटिद )फ्रॉम दी सेम न्युरोंस .यही वजह है आज दोनों ही , आदमियों में आर्म्स (बाजू )और मतस्यों में फिन्स शरीर की एक ही जगह पर दिखलाई देतें हैं .विकसित हुएँ हैं एक ही जगह पर .लेकिन यह आभासी है .वास्तव में ऐसा है नहीं । संक्रमण के उस दौर में जब हमारे पूर्वज फिश से छिटक कर स्थल वासी बने ,न्युरोंस का उद्गम स्थल (दी सोर्स फॉर न्युरोंस )जो सीधे सीधे हमारी बाजुओं का संचालन करता था ,वह हमारे दिमाग से खिसक कर रीढ़ रज्जू (मेरु -रज्जू ,स्पाइनल कोर्ड )में चला आया .इसी के साथ हमारा धड छिटक कर सिर से अलग हुआ अलबत्ता इस पर एक गर्दन उग आई ।
इसका मतलब यह हुआ ,आदमी की बाजू चमगादड़ों और पक्षियों के विंग्स की मानिंद सिर से अलग होकर धड से और गर्दन के नीचे आ चस्पा हो गईं ।
गति संचालन और कौशल इसी गर्दन ने स्थल वासियों (भौमिक )और वायु -वासियों के परिवेश को मुहैया करवाया ।
कोर्नेल प्रोफ़ेसर(न्यूरो -बायलोजी एंड बिहेविअर विभाग से सम्बद्ध ) एवं अध्धय्यन के मुखिया अन्द्रेव ब्रास ऐसा ही अभिमत रखतें हैं ।
यह उद्भव और विकाश एक कदम ताल बनाए रहा जैव -यांत्रिक और उस वैकाशिक क्रम में जो हमारे स्नायुविक तंत्र (नर्वस सिस्टम )में कालान्तर में देखने को मिला औरकालानुक्रम में
हमारे लिम्ब्स का संचालन इसी नर्वस सिस्टम के हाथों संपन्न होने लगा .
इन्हीं हाथों का करिश्मा तो देखिये एक छोर पर यह पक्षियों को परवाज़ देतें हैं दूसरे पर मनुष्यों को विवध वाद्य
यंत्र बजाने की निपुणता .पियानो के साथ अठखेलियाँ करने का कौशल .
मनुष्यों और मतस्यों (मछलियों में ) आनुवंशिक विरासत के कूट संकेतों को बूझ समझ कर ,जीवन -इकाइयों में छिपे लेखे को पढ़ समझकर साइंसदानों ,आनुवंशिकी के माहिरों ने ,पता लगाया है आदमी की गर्दन( धड को सिर से जोड़ने वाला अंग )ने आदमी को गति करने की इतनी आज़ादी बख्शी,कालानुक्रम में ,आखिरकार यही छोटी सी गर्दन जो आपके हेड और शोल्डर्स को जोड़े रहती है ,दिमागी विकाश की वजह बन गई .नेचर कम्युनिकेशन में इस अध्धय्यन के नतीजे प्रकाशित हुएँ हैं ।
साइंसदान यह मानते आयें हैं ,मछलियों में "पेक्टोरल फिन्स "और मनुष्यों में "फोर्लिम्ब्स "आर्म्स एंड हैंड्स का विकाश यकसां न्युरोंस (नर्व सेल्स ,दिमागी कोशाओं )से ही हुआ है ..बोथ रिसीव्द नर्व्ज़(इन्नेर्वतिद,इनर -वेटिद )फ्रॉम दी सेम न्युरोंस .यही वजह है आज दोनों ही , आदमियों में आर्म्स (बाजू )और मतस्यों में फिन्स शरीर की एक ही जगह पर दिखलाई देतें हैं .विकसित हुएँ हैं एक ही जगह पर .लेकिन यह आभासी है .वास्तव में ऐसा है नहीं । संक्रमण के उस दौर में जब हमारे पूर्वज फिश से छिटक कर स्थल वासी बने ,न्युरोंस का उद्गम स्थल (दी सोर्स फॉर न्युरोंस )जो सीधे सीधे हमारी बाजुओं का संचालन करता था ,वह हमारे दिमाग से खिसक कर रीढ़ रज्जू (मेरु -रज्जू ,स्पाइनल कोर्ड )में चला आया .इसी के साथ हमारा धड छिटक कर सिर से अलग हुआ अलबत्ता इस पर एक गर्दन उग आई ।
इसका मतलब यह हुआ ,आदमी की बाजू चमगादड़ों और पक्षियों के विंग्स की मानिंद सिर से अलग होकर धड से और गर्दन के नीचे आ चस्पा हो गईं ।
गति संचालन और कौशल इसी गर्दन ने स्थल वासियों (भौमिक )और वायु -वासियों के परिवेश को मुहैया करवाया ।
कोर्नेल प्रोफ़ेसर(न्यूरो -बायलोजी एंड बिहेविअर विभाग से सम्बद्ध ) एवं अध्धय्यन के मुखिया अन्द्रेव ब्रास ऐसा ही अभिमत रखतें हैं ।
यह उद्भव और विकाश एक कदम ताल बनाए रहा जैव -यांत्रिक और उस वैकाशिक क्रम में जो हमारे स्नायुविक तंत्र (नर्वस सिस्टम )में कालान्तर में देखने को मिला औरकालानुक्रम में
हमारे लिम्ब्स का संचालन इसी नर्वस सिस्टम के हाथों संपन्न होने लगा .
इन्हीं हाथों का करिश्मा तो देखिये एक छोर पर यह पक्षियों को परवाज़ देतें हैं दूसरे पर मनुष्यों को विवध वाद्य
यंत्र बजाने की निपुणता .पियानो के साथ अठखेलियाँ करने का कौशल .
टॉयलिट फ्लश हेंडिल से कहीं ज्यादागंदा रहता है आपका सेल फोन
यूओर सेल इज १८ टाइम्स डर्टीअर देन ए टॉयलिट्स फ्लश हेंडिल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ,२९ ,२०१० )।
एक नवीन अध्धय्यन से पता चला है टॉयलेट हेंडिल से १८ गुना ज्यादा खतरनाक ज़रासीम्स (जर्म्स ,पैथोजंस ,रोगकारकों )से सना रहता है आपका सेल फोन ।
ब्रितानी माहिरों ने अपने एक अध्धय्यन में अनेक हेंड सेटों काअध्धय्यन विश्लेसन करने के बाद बतलाया है इनमे से तकरीबन एक चौथाई टी वी सी बेक- टीरिया की स्वीकृत सीमा से १० गुना ज्यादा बेक्टीरिया संजोये हुए थे ।
टी वी सी का मतलब है टोटल वायेबिल काउंट .यह मात्रात्मक अंदाजा देता है आपको माइक्रो -ओर्गेनिज्म (तमाम तरह के रोगकारक जीवाणु ,यीस्ट(खमीर ),फंगस आदि )की मौजूदगी का ।
टी वी सी का अतिरिक्त रूप से बढा हुआ स्तर खुद आपकी पर्सनल हाइजीन का कच्चा चिठ्ठा प्रस्तुत करता है ,बतलाता है कितने स्वास्थ्य सचेत हैं आप ,स्वास्थ्य विज्ञान के प्रति कितने खबरदार हैं आप ?कैसा है आपका साफ़ सफाई के प्रति रख रखाव ?दूसरे कीटाणुओं को पनपने का मौक़ा तो यह पूअर हाइजीन देती ही है आपकी आपके सेल फोन की ।
व्हिच मैगजीन के लिए किये गए इस अध्धय्यन में एक सेल फोन में जीवाणु का स्तर इस कदर बढा हुआ पाया गया ,जो गंभीर उदर -परेशानी ,सीरियस स्टमक अपसेट के लिए काफी था ।
३० सेल फोन्स के इस सर्वे में एक बात साफ़ हुई है ,कुल ६ करोड़ तीस लाख सेल फोन्स में से जोफिलवक्त अकेले ब्रिटेन में ही चलन में हैं कमसे कम एक करोड़ सैंतालिस लाख (१ ,४७ ,०० ,००० )सेहत के लिए गंभीर ख़तरा बने हैं .यह परिदृश्य अकेला ब्रिटेन प्रस्तुत करता है .बाकी का कौन हवाल ?
एक नवीन अध्धय्यन से पता चला है टॉयलेट हेंडिल से १८ गुना ज्यादा खतरनाक ज़रासीम्स (जर्म्स ,पैथोजंस ,रोगकारकों )से सना रहता है आपका सेल फोन ।
ब्रितानी माहिरों ने अपने एक अध्धय्यन में अनेक हेंड सेटों काअध्धय्यन विश्लेसन करने के बाद बतलाया है इनमे से तकरीबन एक चौथाई टी वी सी बेक- टीरिया की स्वीकृत सीमा से १० गुना ज्यादा बेक्टीरिया संजोये हुए थे ।
टी वी सी का मतलब है टोटल वायेबिल काउंट .यह मात्रात्मक अंदाजा देता है आपको माइक्रो -ओर्गेनिज्म (तमाम तरह के रोगकारक जीवाणु ,यीस्ट(खमीर ),फंगस आदि )की मौजूदगी का ।
टी वी सी का अतिरिक्त रूप से बढा हुआ स्तर खुद आपकी पर्सनल हाइजीन का कच्चा चिठ्ठा प्रस्तुत करता है ,बतलाता है कितने स्वास्थ्य सचेत हैं आप ,स्वास्थ्य विज्ञान के प्रति कितने खबरदार हैं आप ?कैसा है आपका साफ़ सफाई के प्रति रख रखाव ?दूसरे कीटाणुओं को पनपने का मौक़ा तो यह पूअर हाइजीन देती ही है आपकी आपके सेल फोन की ।
व्हिच मैगजीन के लिए किये गए इस अध्धय्यन में एक सेल फोन में जीवाणु का स्तर इस कदर बढा हुआ पाया गया ,जो गंभीर उदर -परेशानी ,सीरियस स्टमक अपसेट के लिए काफी था ।
३० सेल फोन्स के इस सर्वे में एक बात साफ़ हुई है ,कुल ६ करोड़ तीस लाख सेल फोन्स में से जोफिलवक्त अकेले ब्रिटेन में ही चलन में हैं कमसे कम एक करोड़ सैंतालिस लाख (१ ,४७ ,०० ,००० )सेहत के लिए गंभीर ख़तरा बने हैं .यह परिदृश्य अकेला ब्रिटेन प्रस्तुत करता है .बाकी का कौन हवाल ?
बुधवार, 28 जुलाई 2010
मेनिंन -ज़ईतिस से राहत के लिए सुंघनी
नेज़ल स्प्रे वेक्सीन फॉर मेनिंन -ज़ईतिस ऑन दी एन्विल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २८,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
इन दिनों साइंसदान एक ऐसी नाक से सूंघने वाली वेक्सीन (नेज़ल स्प्रे या सूँघनी )तैयार करने में जुटे हुएँ हैं जो मस्तिष्क की झिल्ली में सूजन की गंभीर बीमारी मेनिंन -ज़ईतिस का समाधान प्रस्तुत कर सकती है ,न्युमूनिया के खिलाफ भी कारगर सिद्ध हो सकती है . लिवरपूल विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ शिशु भी इसका फायदा उठाया सकतें हैं क्योंकि यह बेक -टीरिया न्युमोकोकास के खिलाफ असरकारी हो सकती है .बेअसर कर सकती है इसके असर को .इसकी ९० से भी ज्यादा किस्मे "न्युमोकोकल टाइप्स" हैं .यह न्युमोनिया ,ब्लड -पोइजनिंग तथा मेनिंन -ज़ईतिस की वजह बनती रहीं हैं ।
इस अभिनव नेज़ल स्प्रे वेक्सीन में उस प्रोटीन का एक अंश होगा जिसे तकरीबन सभी न्युमोकोकल टाइप्स तैयार करतीं हैं .इसका नाम है ,"डी ४ पी एल वाई ".आजमाइशों की कामयाबी ही इस बात को सुनिश्चित कर पाएगी :वेक्सीन असर कारी रहेगी भी या नहीं .देखें ऊँट किस करवट बैठता है ?
इन दिनों साइंसदान एक ऐसी नाक से सूंघने वाली वेक्सीन (नेज़ल स्प्रे या सूँघनी )तैयार करने में जुटे हुएँ हैं जो मस्तिष्क की झिल्ली में सूजन की गंभीर बीमारी मेनिंन -ज़ईतिस का समाधान प्रस्तुत कर सकती है ,न्युमूनिया के खिलाफ भी कारगर सिद्ध हो सकती है . लिवरपूल विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ शिशु भी इसका फायदा उठाया सकतें हैं क्योंकि यह बेक -टीरिया न्युमोकोकास के खिलाफ असरकारी हो सकती है .बेअसर कर सकती है इसके असर को .इसकी ९० से भी ज्यादा किस्मे "न्युमोकोकल टाइप्स" हैं .यह न्युमोनिया ,ब्लड -पोइजनिंग तथा मेनिंन -ज़ईतिस की वजह बनती रहीं हैं ।
इस अभिनव नेज़ल स्प्रे वेक्सीन में उस प्रोटीन का एक अंश होगा जिसे तकरीबन सभी न्युमोकोकल टाइप्स तैयार करतीं हैं .इसका नाम है ,"डी ४ पी एल वाई ".आजमाइशों की कामयाबी ही इस बात को सुनिश्चित कर पाएगी :वेक्सीन असर कारी रहेगी भी या नहीं .देखें ऊँट किस करवट बैठता है ?
सर्जरी के लिए कौन सा खून बेहतर रहता है ,ताज़ा या भंडारित ?
इज फ्रेशर ब्लड बेटर फॉर सर्जरी ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २८ ,२०१० ,पृष्ठ १९ ).
यह सवाल इन दिनों अमरीकी अस्पतालों में विमर्श का विषय बना हुआ है ?सर्जरी के लिए ताज़ा खून या ब्लड बेंक में भंडारित किया हुआ अच्छा रहता है ?
सर्जरी के वक्त किसी मरीज़ को कितना पुराना ,भंडारित खून मिलता है यह इस बात पर निर्भर करता है उस रोज़ कुल कितना खून उस वांछित वर्ग का है ,ज़ाहिर है पहले सेल्फ लाइफ के मद्दे नजर पुराना खून काम में लिया जाता है ,कहीं भंडारित खून को फैंकना ना पड़े इस बात का ध्यान रखा जाता है .अलबत्ता रेड ब्लड सेल्स की एक कारगर भंडारण अवधि रहती है इसके पहले इसे काम में ले लिया जाता है .इस अवधि के बाद फेक्टर ८ निकाल लेने के बाद इसे फैंक दिया जाता है .६ हफ्ता रहती है आम तौर पर यह अवधि इसके बाद इसे फैंकना ही पड़ता है .ऐसे में उस दिन कौन सा खून मरीज़ को चढ़ाया गया वह महज़ इत्तेफाक होता है ,वह १-३ हफ्ता या फिर ६ सप्ताह पुराना भी हो सकता है ।
अलबता ब्लड बैंकों के लिए यह एहम सवाल बन सकता है जहां खून की अकसर कमीबेशी साल भर बनी रहती है ।
अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था "ऍफ़ डी ए " ने रेड ब्लड सेल्स की भंडारण अवधि ६ हफ्ता निर्धारित की हुई है .इसलिए एक्सपायरी से पहले ही भंडारित आपूर्ति को काम में लेने की मंशा बनी रहती है चिकित्सा कर्मियों की ।
अलबत्ता इस सवाल का फैसला आगामी ग्रीष्म में हो सकता है .इसी समय अमरीकी अस्पतालों में इसी मुद्दे पर नै शोध का आगाज़ ,आजमाइशें होने जा रहीं हैं ।
अलबत्ता भंडारित खून में से कोशिकीय मलबे (सेल्युलर डेब्रीज़) को अलग कर इस नुकसानी को कम करने की दिशा में भी काम हो रहा है .मिआमी विश्व -विद्यालय ने यह कर दिखाया है .बेशक पुराने पड़ते रक्त का ब्रेकडाउन शुरू हो जाता है लेकिन यह उतना भी नहीं होताहै जिसके पार्श्व प्रभाव सामने आ सकें .अकसर इसके पहले ही इसे काम में ले लिया जाता रहा है .
यह सवाल इन दिनों अमरीकी अस्पतालों में विमर्श का विषय बना हुआ है ?सर्जरी के लिए ताज़ा खून या ब्लड बेंक में भंडारित किया हुआ अच्छा रहता है ?
सर्जरी के वक्त किसी मरीज़ को कितना पुराना ,भंडारित खून मिलता है यह इस बात पर निर्भर करता है उस रोज़ कुल कितना खून उस वांछित वर्ग का है ,ज़ाहिर है पहले सेल्फ लाइफ के मद्दे नजर पुराना खून काम में लिया जाता है ,कहीं भंडारित खून को फैंकना ना पड़े इस बात का ध्यान रखा जाता है .अलबत्ता रेड ब्लड सेल्स की एक कारगर भंडारण अवधि रहती है इसके पहले इसे काम में ले लिया जाता है .इस अवधि के बाद फेक्टर ८ निकाल लेने के बाद इसे फैंक दिया जाता है .६ हफ्ता रहती है आम तौर पर यह अवधि इसके बाद इसे फैंकना ही पड़ता है .ऐसे में उस दिन कौन सा खून मरीज़ को चढ़ाया गया वह महज़ इत्तेफाक होता है ,वह १-३ हफ्ता या फिर ६ सप्ताह पुराना भी हो सकता है ।
अलबता ब्लड बैंकों के लिए यह एहम सवाल बन सकता है जहां खून की अकसर कमीबेशी साल भर बनी रहती है ।
अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था "ऍफ़ डी ए " ने रेड ब्लड सेल्स की भंडारण अवधि ६ हफ्ता निर्धारित की हुई है .इसलिए एक्सपायरी से पहले ही भंडारित आपूर्ति को काम में लेने की मंशा बनी रहती है चिकित्सा कर्मियों की ।
अलबत्ता इस सवाल का फैसला आगामी ग्रीष्म में हो सकता है .इसी समय अमरीकी अस्पतालों में इसी मुद्दे पर नै शोध का आगाज़ ,आजमाइशें होने जा रहीं हैं ।
अलबत्ता भंडारित खून में से कोशिकीय मलबे (सेल्युलर डेब्रीज़) को अलग कर इस नुकसानी को कम करने की दिशा में भी काम हो रहा है .मिआमी विश्व -विद्यालय ने यह कर दिखाया है .बेशक पुराने पड़ते रक्त का ब्रेकडाउन शुरू हो जाता है लेकिन यह उतना भी नहीं होताहै जिसके पार्श्व प्रभाव सामने आ सकें .अकसर इसके पहले ही इसे काम में ले लिया जाता रहा है .
डेंटल केविटीज़ के लिए अब फीलिंग्स नहीं "जेल"
फ्रांस के दन्त विशेषज्ञों ने एक ऐसा ज़ेल बना लिया है जो बस चाँद हफ़्तों में ही खोखलेदान्तों को पाट देगा .इतना ही नहीं फीलिंग्स का आइन्दा के लिए भी झंझट ख़त्म हो जाएगा क्योंकि यह जैल क्षय हो चुके दन्त को दोबारा से उगा देगा .दरअसल यह कोशाओं के विभाजन के क्रम को एक बार फिर से प्रेरित कर देगा .कोशिकाएं द्विगुणित होंगी इस जैल के जादुई असर से ऐसा दावा किया गया है ।
स्वस्थ नए ऊतक पनपेंगें .बस यही ऊतक (टिश्यु )क्षय हो चुके दन्त का स्थान धीरे धीरे ले लेंगें .आजमाइशों में ऐसा लैब में हासिल करके दिखाया गया है .वह भी बस चार सप्ताह के छोटे से वक्फे में ।
दरअसल इया जैल को मिलेनो -साईटप्रेरक एक हारमोन से संयुक्त किया गया है .पैरिस के नॅशनल इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च के माहिरों के अनुसार नव दन्त ऊतक पहले से अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत और टिकाऊ साबित होंगें .वास्तव में दन्त्य-माहिरों ने एम् एस एच को एक रसायन "पोली -एल -ग्लुटामिक एसिड "के साथ संयुक्त किया है .इसी मिश्र का जैल तैयार करके डेंटल पल्प फाइबरो -ब्लास्ट्स नामक कोशाओं पर मला गया है .इसे इंसानी दांत से ही प्राप्त किया गया है .(कितने ही लोगों के दांत चिकित्सा कारणों से निकालने पडतें हैं ,ये कोशायें डेंटल पल्प फाइबरो - -ब्लास्ट्स इन्हीं एक्स्ट्रेक्तिद टीथ से जुटाई गईं थीं ।
पता चला देखते ही देखते जैल के जादुई असर से कोशाओं की बढ़वार को जैसे पंख लग गएँ हैं .इतना ही नहीं इसने एक गोंद (अदेह्सिव )का भी काम किया .लिहाजा नव निर्मित कोशायें परस्पर "लोक" होना भी शुरू हो गईं .
चूहों पर भी आजमाइशें की गईं .डेंटल केव्तीज़ पर जैल लगाया गया .जादुई असर हुआ .लेदेकर एक महीने में ही केविटी फुर्र हो गईं .अलबत्ता इसे बाज़ार में आने में ३-५ बरस लग जायेंगें .
स्वस्थ नए ऊतक पनपेंगें .बस यही ऊतक (टिश्यु )क्षय हो चुके दन्त का स्थान धीरे धीरे ले लेंगें .आजमाइशों में ऐसा लैब में हासिल करके दिखाया गया है .वह भी बस चार सप्ताह के छोटे से वक्फे में ।
दरअसल इया जैल को मिलेनो -साईटप्रेरक एक हारमोन से संयुक्त किया गया है .पैरिस के नॅशनल इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च के माहिरों के अनुसार नव दन्त ऊतक पहले से अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत और टिकाऊ साबित होंगें .वास्तव में दन्त्य-माहिरों ने एम् एस एच को एक रसायन "पोली -एल -ग्लुटामिक एसिड "के साथ संयुक्त किया है .इसी मिश्र का जैल तैयार करके डेंटल पल्प फाइबरो -ब्लास्ट्स नामक कोशाओं पर मला गया है .इसे इंसानी दांत से ही प्राप्त किया गया है .(कितने ही लोगों के दांत चिकित्सा कारणों से निकालने पडतें हैं ,ये कोशायें डेंटल पल्प फाइबरो - -ब्लास्ट्स इन्हीं एक्स्ट्रेक्तिद टीथ से जुटाई गईं थीं ।
पता चला देखते ही देखते जैल के जादुई असर से कोशाओं की बढ़वार को जैसे पंख लग गएँ हैं .इतना ही नहीं इसने एक गोंद (अदेह्सिव )का भी काम किया .लिहाजा नव निर्मित कोशायें परस्पर "लोक" होना भी शुरू हो गईं .
चूहों पर भी आजमाइशें की गईं .डेंटल केव्तीज़ पर जैल लगाया गया .जादुई असर हुआ .लेदेकर एक महीने में ही केविटी फुर्र हो गईं .अलबत्ता इसे बाज़ार में आने में ३-५ बरस लग जायेंगें .
छोटे कुत्ते के आकार के अबतक के सबसे बड़े ज्ञात चूहों का ढांचा मिला
क्या आप जानतें हैं कुतरकर चीज़ें खाने वाले प्राणी (रोदेंट्स)कुल स्तनपाई जीवों का ४० फीसद हिस्सा घेरे हुएँ हैं .हमारे पारितंत्र (इको सिस्टम )पर्यावरण -पारिस्थितिकी ,हमारी मिटटी की गुणवत्ता बनाए रखने ,बीजों को यत्र तत्र सर्वत्र बिखेरने छितराने बौने में कुतरने वाले जीवों की एहम भूमिका है .व्हेल और पक्षी प्रजातियों के संग इसीलिए इनका संरक्षण भी उतना ही ज़रूरी है ।
कृन्तकों के उद्भव और विकाश में इंडोनेशिया एक विधाई भूमिका में रहा आया है .पूरबी तिमूर की गुफाओं में पुरातात्विक विज्ञान के माहिरों ने लघु स्वान (छोटे आकार के कुत्ते) के पूरे अश्थी -पिंजर (स्कल)के अवशेष ढूंढ निकाले हैं खुदाई में .इनका वजन ६ किलोग्रेम तक पाया गया है .अब तक कुल १३ प्रजातियों के अवशेष मिलें हैं .जिनमे से ११ साइंसदानों के लिए भी नै हैं .इनमे से ८ प्रजातियों के चूहों का वजन १किलोग्रेम या उससे भी ज्यादा रहा होगा ।
रेडिओ -कार्बन -डेटिंग प्रणाली से काल निर्धारण के बाद पता चला है अब से १००० -२००० साल पहले तक भी यह अपेक्षाकृत बड़ी कद काठी वाले चूहे जीवित थे .आज जबकि ले देकर लघुतर प्रजातियाँ ही बचीं हैं ।
तिमूर द्वीप पर तकरीबन ४०,००० ,सालों तक इन जीवों के शिकार पर ही लोग ज़िंदा थे .लेकिन चूहों का अस्तित्व इस पूरी अवधि में बना रहा है .एक सिम्बियोतिक लिविंग इंसानों और इन जीवों के बीच अब से १००० -२००० साल पहले तक भी देखी जा सकती थी ।
बड़े पैमाने पर इन जीवों के सफाए की वजह खेती किसानी के लिए जंगलात की कटाई बनी .यह धातु युग की शुरुआत थी .मेटल टूल्स प्रचलन में आगये थे .वरना द्वीप तो पहले भी आबाद थे इंसानों से .पूरबी इंडोनेशिया के द्वीपों में अलग अलग प्रजातियों के जीव पनपें हैं .,अपनी अलग खासियत के साथ ।
फ्लोरेस द्वीप पर भी चूहों की ६ प्रजातियाँ एक गुफा से मिलीं हैं .हो सकता है इनमे से कुछेक आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुएँ हों .आदमी की इन पर नजर ही ना पड़ी हो ।
तिमूर में नेटिव मेमल्स तो गिनती के ही हैं .रोदेंट्स और चमगादड़ का ही यहाँ डेरा रहा आया है .यहाँ कभी बरसाती हरा भरा जंगल था .आज यहाँ एक दम से सूखा ,निर्जन ,वर्षाहीन क्षेत्र है .
लेदेकर यहाँ १५ फीसद से भी कम जंगलात बचें हैं ,लेकिन द्वीप का कुछ हिस्सा सघन वनों से ढका हुआ है ,हरियाली की चादर ओढ़े है ।
यहाँ कुछ भी छिपा हो सकता है ?
हाल ही में माहिरों को यहाँ (पूरबी तिमूर में )चूहों के ताज़े ताज़े अवशेष मिलें हैं .गुफाओं में ही पूर्व में इन्हें देखा गया था .प्रकृति अपना इंतजाम खुद करती है .हो सकता है यहीं कहीं चूहों की भी कुछ प्रजाति हों ,आदमी की नजर से बची खुची ।
अबतक केवल फिलिपाईन्स और न्यू गिनी के बरसाती वनों में ही लेदेकर दो किलोग्रेम भार के चूहे देखे गए थे .संदर्भित चूहों की खोज के बारे में "बुलेटिन ऑफ़ दी अमरीकन म्यूजियम ऑफ़ नेच्युँरल हिस्ट्री "में विस्तार के साथ छपा है .
कृन्तकों के उद्भव और विकाश में इंडोनेशिया एक विधाई भूमिका में रहा आया है .पूरबी तिमूर की गुफाओं में पुरातात्विक विज्ञान के माहिरों ने लघु स्वान (छोटे आकार के कुत्ते) के पूरे अश्थी -पिंजर (स्कल)के अवशेष ढूंढ निकाले हैं खुदाई में .इनका वजन ६ किलोग्रेम तक पाया गया है .अब तक कुल १३ प्रजातियों के अवशेष मिलें हैं .जिनमे से ११ साइंसदानों के लिए भी नै हैं .इनमे से ८ प्रजातियों के चूहों का वजन १किलोग्रेम या उससे भी ज्यादा रहा होगा ।
रेडिओ -कार्बन -डेटिंग प्रणाली से काल निर्धारण के बाद पता चला है अब से १००० -२००० साल पहले तक भी यह अपेक्षाकृत बड़ी कद काठी वाले चूहे जीवित थे .आज जबकि ले देकर लघुतर प्रजातियाँ ही बचीं हैं ।
तिमूर द्वीप पर तकरीबन ४०,००० ,सालों तक इन जीवों के शिकार पर ही लोग ज़िंदा थे .लेकिन चूहों का अस्तित्व इस पूरी अवधि में बना रहा है .एक सिम्बियोतिक लिविंग इंसानों और इन जीवों के बीच अब से १००० -२००० साल पहले तक भी देखी जा सकती थी ।
बड़े पैमाने पर इन जीवों के सफाए की वजह खेती किसानी के लिए जंगलात की कटाई बनी .यह धातु युग की शुरुआत थी .मेटल टूल्स प्रचलन में आगये थे .वरना द्वीप तो पहले भी आबाद थे इंसानों से .पूरबी इंडोनेशिया के द्वीपों में अलग अलग प्रजातियों के जीव पनपें हैं .,अपनी अलग खासियत के साथ ।
फ्लोरेस द्वीप पर भी चूहों की ६ प्रजातियाँ एक गुफा से मिलीं हैं .हो सकता है इनमे से कुछेक आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुएँ हों .आदमी की इन पर नजर ही ना पड़ी हो ।
तिमूर में नेटिव मेमल्स तो गिनती के ही हैं .रोदेंट्स और चमगादड़ का ही यहाँ डेरा रहा आया है .यहाँ कभी बरसाती हरा भरा जंगल था .आज यहाँ एक दम से सूखा ,निर्जन ,वर्षाहीन क्षेत्र है .
लेदेकर यहाँ १५ फीसद से भी कम जंगलात बचें हैं ,लेकिन द्वीप का कुछ हिस्सा सघन वनों से ढका हुआ है ,हरियाली की चादर ओढ़े है ।
यहाँ कुछ भी छिपा हो सकता है ?
हाल ही में माहिरों को यहाँ (पूरबी तिमूर में )चूहों के ताज़े ताज़े अवशेष मिलें हैं .गुफाओं में ही पूर्व में इन्हें देखा गया था .प्रकृति अपना इंतजाम खुद करती है .हो सकता है यहीं कहीं चूहों की भी कुछ प्रजाति हों ,आदमी की नजर से बची खुची ।
अबतक केवल फिलिपाईन्स और न्यू गिनी के बरसाती वनों में ही लेदेकर दो किलोग्रेम भार के चूहे देखे गए थे .संदर्भित चूहों की खोज के बारे में "बुलेटिन ऑफ़ दी अमरीकन म्यूजियम ऑफ़ नेच्युँरल हिस्ट्री "में विस्तार के साथ छपा है .
दिल को निशाना बना रहा है मुम्बैया मलेरिया ,
आखिर क्यों दिल को निशाना बना रहा है मलेरिया वाईवेक्स ?आप जानतें हैं एक संक्रामय ,इन्फेक्श्श रोग है मलेरिया जिसकी वजह एक परजीवी बनता रहा है .वेक्टर बनता है एकसंक्रमित मच्छर .,इन्फेक्तिद मस्कीटो।
वीवेक्स मलेरिया की वजह बनता है "प्लाजमोडियम -विवाक्स "तथा "फल्सिपरुम मलेरिया"की वजह बनता है "प्लाजमोडियम फाल्सिपरम "।
मुंबई में एक नया तमाशा खडा हो गया है .म्युटैत (उत्पर्वर्तित )हो रहा है "वाईवेक्स फाल्सीपेरम ".हार्ट अटेक्स की वजह यही म्युतेटिदस्ट्रेन बन रही है ।
हिंदुजा ,जुपिटर ,ब्रीच केंडीऔर लीलावती अस्पतालों में अब तक ऐसे ही आठ मामले प्रकाश में आ चुकें हैं .बस कुछ दिनों तक मलेरिया वाईवेक्स की चपेट में रहने के बाद ये स्ट्रोक्स की लपेट में आ गए .जबकि इनके परिवार में दिल की बीमारियों का कोई पूर्व वृत्तांत ,कोईचिकित्सा गत इतिहास नहीं रहा है ।
मलेरिया वाईवेक्स की खतरनाक उत्परिवर्तित स्ट्रेन धमनियों में अवरोध पैदा कर रहे है थक्का बना कर खून का .बेशक वाईवेक्सस्माल ब्लड वेसिल्स में क्लोतिंग की वजह ज़रूर रहा है लेकिन बिगर वेसिल्स (आर्तरीज़) की क्लोतिंग पहली मर्तबा देखी गई है .इसकी वजह स्लाजिंग ऑफ़ ब्लड सेल्स रहीं हैं .
यही वजह है ऐसे युवाओं के मामले में भी हृद -रोग के माहिरों को पहले एन्जिओग्रेफ़ि से ब्लोकेड को पिन पॉइंट किया गया और फिर धमनी को खोलने के लिए एनजीओ -प्लास्टी भी करनी पड़ी है ,जो ना कभी स्मोक कियें हैं और ना किसी तरह की फेमिली हिस्ट्री इनके यहाँ हृद रोगों की रही है ,बस वाईवेक्स मलेरिया के निशाने पर आ गए थे ये युवा ।
इस मर्तबा वाईवेक्स पोजिटिव मरीज़ उच्च ज्वर और बदन दर्द की परिधि का अतिक्रमण कर ब्रेथ- लेस -नेस,रेस्ट -लेस -नेस के अलावा हार्ट प्रोब्लम्स लिए आ रहें हैं .इको कार्दियोग्रेफी से डिप्रेस्ड हार्ट फंक्शन्स का साफ़ पता चला है कुछेक मामलों में .मलेरिया वाईवेक्स ,मलेरिया फाल्सीपेरम को इस मर्तबा मुंबई में काफी पीछे छोड़ चुका है .कडवा और ऊपर से नीम चढ़ा ,रही सही कसर वाईवेक्स मलेरिया के म्यूटेशन ने पूरी कर दी है .उग्रतर होकर ,जानलेवा होकर उभरे हैं इसके लक्षण .खबरदारी और एहतियात दोनों की सख्त ज़रूरत है .अपने तैं इतना तो आप कर ही सकतें हैं .पूरी बाजू के कपडे पहनिए ,खासकर सोते वक्त .मस्कीटो -रिपेलेंट भी स्तेमाल कीजिये .वेंटिलेटर से बचने का यह कहीं आसान उपाय है ।
मलेरिया का परजीवी जब हमारी रक्त कोशाओं में दाखिल होता है ,पहला काम यह क्या करता है ?ब्लड सेल्स को रप्चर कर देता है .स्लज पैदा होता है और बस थक्का बन जाता है .यही कलोटिंग धमनी अवरोध और हार्ट डिजीज की वजह बन रही है ।
माहिरों की चिंता बस यही है "कैसे दिल को वाईवेक्स की इस उत्परिवर्तित किस्म के हमले से महफूज़ रखा जाए ."?
वीवेक्स मलेरिया की वजह बनता है "प्लाजमोडियम -विवाक्स "तथा "फल्सिपरुम मलेरिया"की वजह बनता है "प्लाजमोडियम फाल्सिपरम "।
मुंबई में एक नया तमाशा खडा हो गया है .म्युटैत (उत्पर्वर्तित )हो रहा है "वाईवेक्स फाल्सीपेरम ".हार्ट अटेक्स की वजह यही म्युतेटिदस्ट्रेन बन रही है ।
हिंदुजा ,जुपिटर ,ब्रीच केंडीऔर लीलावती अस्पतालों में अब तक ऐसे ही आठ मामले प्रकाश में आ चुकें हैं .बस कुछ दिनों तक मलेरिया वाईवेक्स की चपेट में रहने के बाद ये स्ट्रोक्स की लपेट में आ गए .जबकि इनके परिवार में दिल की बीमारियों का कोई पूर्व वृत्तांत ,कोईचिकित्सा गत इतिहास नहीं रहा है ।
मलेरिया वाईवेक्स की खतरनाक उत्परिवर्तित स्ट्रेन धमनियों में अवरोध पैदा कर रहे है थक्का बना कर खून का .बेशक वाईवेक्सस्माल ब्लड वेसिल्स में क्लोतिंग की वजह ज़रूर रहा है लेकिन बिगर वेसिल्स (आर्तरीज़) की क्लोतिंग पहली मर्तबा देखी गई है .इसकी वजह स्लाजिंग ऑफ़ ब्लड सेल्स रहीं हैं .
यही वजह है ऐसे युवाओं के मामले में भी हृद -रोग के माहिरों को पहले एन्जिओग्रेफ़ि से ब्लोकेड को पिन पॉइंट किया गया और फिर धमनी को खोलने के लिए एनजीओ -प्लास्टी भी करनी पड़ी है ,जो ना कभी स्मोक कियें हैं और ना किसी तरह की फेमिली हिस्ट्री इनके यहाँ हृद रोगों की रही है ,बस वाईवेक्स मलेरिया के निशाने पर आ गए थे ये युवा ।
इस मर्तबा वाईवेक्स पोजिटिव मरीज़ उच्च ज्वर और बदन दर्द की परिधि का अतिक्रमण कर ब्रेथ- लेस -नेस,रेस्ट -लेस -नेस के अलावा हार्ट प्रोब्लम्स लिए आ रहें हैं .इको कार्दियोग्रेफी से डिप्रेस्ड हार्ट फंक्शन्स का साफ़ पता चला है कुछेक मामलों में .मलेरिया वाईवेक्स ,मलेरिया फाल्सीपेरम को इस मर्तबा मुंबई में काफी पीछे छोड़ चुका है .कडवा और ऊपर से नीम चढ़ा ,रही सही कसर वाईवेक्स मलेरिया के म्यूटेशन ने पूरी कर दी है .उग्रतर होकर ,जानलेवा होकर उभरे हैं इसके लक्षण .खबरदारी और एहतियात दोनों की सख्त ज़रूरत है .अपने तैं इतना तो आप कर ही सकतें हैं .पूरी बाजू के कपडे पहनिए ,खासकर सोते वक्त .मस्कीटो -रिपेलेंट भी स्तेमाल कीजिये .वेंटिलेटर से बचने का यह कहीं आसान उपाय है ।
मलेरिया का परजीवी जब हमारी रक्त कोशाओं में दाखिल होता है ,पहला काम यह क्या करता है ?ब्लड सेल्स को रप्चर कर देता है .स्लज पैदा होता है और बस थक्का बन जाता है .यही कलोटिंग धमनी अवरोध और हार्ट डिजीज की वजह बन रही है ।
माहिरों की चिंता बस यही है "कैसे दिल को वाईवेक्स की इस उत्परिवर्तित किस्म के हमले से महफूज़ रखा जाए ."?
मंगलवार, 27 जुलाई 2010
प्लास्टिक कचरे से बनाई गई दो पाटों वाली नौका का लंबा सफ़र
ए मेसेज इन बोटिल्स,बोइड बाई वेस्ट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २७ ,२०१० )
कचरे से दोबारा प्राप्त की गई बेकार बोतलों से ,पुनर -चक्रण से प्राप्त इर्रिगेसनपाइप्स से, एक द्रुत गामी दो पाटों वाली नौका(कैट -मैरेन ) ने सन -फ्रांसिस्को से सिडनी तक का समुद्री सफ़र तय करके एक नया कीर्तिमान ही स्थापित नहीं किया है ,प्लास्टिक कचरे से समुन्दरों को होने वाले नुकसान को भी रेखांकित किया है .कुल मिलाकर यह ग्रीन बोट रही है क्योंकि इस" कैट -मैरेन" को(फास्ट सैलिंग बोट विद टू हल्स )तैयार करने में जिस ग्ल्यू का स्तेमाल किया गया था वह भी ओरगेनिक थी .इसमें कुल १२,५०० प्लास्टिक बोतलों का स्तेमाल किया गया .इस दो पाटों वाली वेगवान नौका ने कुल मिलाकर ८,००० समुंदरी मील की दूरी तय की है .(एक समुद्री मील में १८५२ मीटर होतें हैं .).प्लास्टिक प्रदूषण समुन्दरों के लिए एक बड़ा ख़तरा बना हुआ है .करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा हमारे महासागरों के वक्ष पर पड़ा मूंग दल रहा है ।
नेक चंद जी आज भी प्रासंगिक हैं जिन्होंने चंडीगढ़ का रोक्क गार्डन कचरे से ही बनाने का कलात्मक करिश्मा करके दिखाया था .कचरा बढाने वाले बहुत हैं नेक चंदों की आज बेहद ज़रुरत है .
कचरे से दोबारा प्राप्त की गई बेकार बोतलों से ,पुनर -चक्रण से प्राप्त इर्रिगेसनपाइप्स से, एक द्रुत गामी दो पाटों वाली नौका(कैट -मैरेन ) ने सन -फ्रांसिस्को से सिडनी तक का समुद्री सफ़र तय करके एक नया कीर्तिमान ही स्थापित नहीं किया है ,प्लास्टिक कचरे से समुन्दरों को होने वाले नुकसान को भी रेखांकित किया है .कुल मिलाकर यह ग्रीन बोट रही है क्योंकि इस" कैट -मैरेन" को(फास्ट सैलिंग बोट विद टू हल्स )तैयार करने में जिस ग्ल्यू का स्तेमाल किया गया था वह भी ओरगेनिक थी .इसमें कुल १२,५०० प्लास्टिक बोतलों का स्तेमाल किया गया .इस दो पाटों वाली वेगवान नौका ने कुल मिलाकर ८,००० समुंदरी मील की दूरी तय की है .(एक समुद्री मील में १८५२ मीटर होतें हैं .).प्लास्टिक प्रदूषण समुन्दरों के लिए एक बड़ा ख़तरा बना हुआ है .करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा हमारे महासागरों के वक्ष पर पड़ा मूंग दल रहा है ।
नेक चंद जी आज भी प्रासंगिक हैं जिन्होंने चंडीगढ़ का रोक्क गार्डन कचरे से ही बनाने का कलात्मक करिश्मा करके दिखाया था .कचरा बढाने वाले बहुत हैं नेक चंदों की आज बेहद ज़रुरत है .
स्पर्म साम्पिल्स के लिए "पोर्न रूम "
ए पौंड्स ७,५०० पोर्न रूम टू हेल्प पेशेंट्स टेक स्पर्म टेस्ट्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २७ ,२०१० ,पृष्ठ १५ )।
ब्रितानी हेल्थ चीफ्स ने मरीजों के लिए अति आधुनिक गेजेट्स से सज्जित एक पोर्न रूम तैयार करवाया है .इसमें ७५०० पौंड्स के हाई -टेक गेजेट्स लगें हैं .इसे लीवर -पूल वोमेन्स नॅशनल हेल्थ सर्विस (एन एच एस )फाउन्देशन ट्रस्ट ने पुरुषों के लिए खासतौर से तैयार करवाया था ताकि जांच के लिए उनके स्पर्म साम्पिल्सआसानी से जुटाए जा सकें ।
इसमें ४६२५ पौंड्स के कंप्यूटर इक्यूपमेंट ,२२२५ पौंड्स कीमत के फ्लेट स्क्रीन टी वीज़ लगाए गए हैं .५०० पौंड्स खर्च करके ब्लू -मूवीज मंगवाई गईं हैं ।
इतर फर्टिलिटी सेंटर्स भी इस तरह की सेवायें प्रदान करतें हैं .लेकिन बा -मुश्किल साल भर में यह केंद्र उत्तेज़क पत्रिकाओं पर ही लेदेकर १०० पौंड खर्च करतें हैं .यह सब मरीजों के यौन उत्तेजन के लिएही किया जाता है ,ताकि स्पर्म टेस्ट्स संपन्न किये जा सकें ,सुगमता से .,नमूने जुटाकर .
ब्रितानी हेल्थ चीफ्स ने मरीजों के लिए अति आधुनिक गेजेट्स से सज्जित एक पोर्न रूम तैयार करवाया है .इसमें ७५०० पौंड्स के हाई -टेक गेजेट्स लगें हैं .इसे लीवर -पूल वोमेन्स नॅशनल हेल्थ सर्विस (एन एच एस )फाउन्देशन ट्रस्ट ने पुरुषों के लिए खासतौर से तैयार करवाया था ताकि जांच के लिए उनके स्पर्म साम्पिल्सआसानी से जुटाए जा सकें ।
इसमें ४६२५ पौंड्स के कंप्यूटर इक्यूपमेंट ,२२२५ पौंड्स कीमत के फ्लेट स्क्रीन टी वीज़ लगाए गए हैं .५०० पौंड्स खर्च करके ब्लू -मूवीज मंगवाई गईं हैं ।
इतर फर्टिलिटी सेंटर्स भी इस तरह की सेवायें प्रदान करतें हैं .लेकिन बा -मुश्किल साल भर में यह केंद्र उत्तेज़क पत्रिकाओं पर ही लेदेकर १०० पौंड खर्च करतें हैं .यह सब मरीजों के यौन उत्तेजन के लिएही किया जाता है ,ताकि स्पर्म टेस्ट्स संपन्न किये जा सकें ,सुगमता से .,नमूने जुटाकर .
सेहत के लिए जोगिंग सदैव ही फायदेमंद हो यह ज़रूरी नहीं है ज़नाब
'जोगिंग मे नोट आलवेज़ हेल्प स्टे फिट ':(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २७ ,२०१० ,पृष्ठ १५)।
ज़रूरी नहीं है जोगिंग आपको सदैव भला चंगा ,सेहतमंद ही रखे .एक ब्रितानी माहिर की माने तो ,जोगिंग "सल्युलाईट" ,"हार्ट अटेक्स",और "जोइंट- स्ट्रेन" की वजह भी बन सकती है ।
सेल्युलाईट क्या है ?
इस कंडीशन में चमड़ी के नीचे फैट ज़मा होने लगता है ,खासकर नितम्बों ,टांगों और जंघाओं की चमड़ी के नीचे .दी स्किन मे देन लुक लम्पी एंड ग्रैनी ।
बेशक वजन कम करने रखने की ताक़ में (चाहत में ) कितने ही लोग दौड़ना शुरू करतें हैं लेकिन वजन कम हो ही यह ज़रूरी नहीं है ।
दरअसल छोटी पेशियाँ कम ऊर्जा की खपत करतीं हैं ,अधिक सक्षम भी होती हैं स्माल मसल्स .हृद पेशी से भी यदिज़बरिया ज्यादा काम लिया जाएगा ,ज्यादा देर तक काम लिया जाएगा ,यह कम ऊर्जा खर्च करने के लिए कोंत्रेक्ट करेगी ,ज्यादा सक्षम हो जाएगा हार्ट मसल .
"इफ यु वांट टू इनक्रीज दी साइज़ ऑफ़ यूओर हार्ट देन यु मस्ट स्ट्रेंग्थ -ट्रेन यूओर हार्ट ,नोट इन्द्यु -अरेंस ट्रेन इट".यही कथन है -ग्रेग ब्रूकेस का .आप लन्दन के एक मशहूर ट्रेनर हैं .
ज़रूरी नहीं है जोगिंग आपको सदैव भला चंगा ,सेहतमंद ही रखे .एक ब्रितानी माहिर की माने तो ,जोगिंग "सल्युलाईट" ,"हार्ट अटेक्स",और "जोइंट- स्ट्रेन" की वजह भी बन सकती है ।
सेल्युलाईट क्या है ?
इस कंडीशन में चमड़ी के नीचे फैट ज़मा होने लगता है ,खासकर नितम्बों ,टांगों और जंघाओं की चमड़ी के नीचे .दी स्किन मे देन लुक लम्पी एंड ग्रैनी ।
बेशक वजन कम करने रखने की ताक़ में (चाहत में ) कितने ही लोग दौड़ना शुरू करतें हैं लेकिन वजन कम हो ही यह ज़रूरी नहीं है ।
दरअसल छोटी पेशियाँ कम ऊर्जा की खपत करतीं हैं ,अधिक सक्षम भी होती हैं स्माल मसल्स .हृद पेशी से भी यदिज़बरिया ज्यादा काम लिया जाएगा ,ज्यादा देर तक काम लिया जाएगा ,यह कम ऊर्जा खर्च करने के लिए कोंत्रेक्ट करेगी ,ज्यादा सक्षम हो जाएगा हार्ट मसल .
"इफ यु वांट टू इनक्रीज दी साइज़ ऑफ़ यूओर हार्ट देन यु मस्ट स्ट्रेंग्थ -ट्रेन यूओर हार्ट ,नोट इन्द्यु -अरेंस ट्रेन इट".यही कथन है -ग्रेग ब्रूकेस का .आप लन्दन के एक मशहूर ट्रेनर हैं .
महा -मशीन लार्ज हेड्रोंन कोलाइदर के बाद अब लिनीअर कोलाइदर
अब तक का सबसे बड़ा कण -त्वरक (सर्क्युलर पार्टिकल एक्स्लारेटर )लार्ज हेड्रोंन कोलाइदर बनाने के बाद योरोपी न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर के साइंसदान इन दिनों एक लिनीयर पार्टिकल एक्स्लारेटर बना लेने की ताक़ में हैं .पूर्व मेंइस महा- मशीन की हमारे टी वी चैनल वीर गाथाएँ चैनलिया भाषा में बखान कर चुकें हैं .ये हुआ तो वो हो जाएगा ,वो हुआ तो ये हो जाएगा वगैरा वगैरा .हकीकत यह है सर्क्युलर और लिनीयर दोनों ही तरह के एक्सलेरेटरबनाए गएँ हैं जिन - की सीमाएं और संभावनाएं रहीं हैं .मकसद रहा है आवेशित कणों को अधिक से अधिक ऊर्जावान बनाकर परस्पर इनकी टक्कर से बिग -बैंग जैसी परिस्थितियाँ प्रयोग शाला में रचना .सृष्टि के आरंभिक लम्हों को बूझना समझना .कैसे और कहाँ से आया सृष्टि में पदार्थ? गोचर कितनाहै ? अगोचर कितना? .कहाँ से आये ज्ञात अज्ञात बल ?डार्क एनर्जी ,डार्क मैटर ?कौन से हैं सृष्टि के बुनियादी कण?फिफ्थ फ़ोर्स ,निगेटिव ग्रेविटी क्या है ?क्यों और कितनी रफ्तार से फ़ैल रही है सृष्टि ?क्या यह विस्तार ज़ारी रहेगा या इस पर ब्रेक लगेगी ?क्या है सृष्टि का वर्तमान आकार ?कितने कण हैं गोचर सृष्टि में ?
जिनेवा के आउट स्कर्ट में एल एच सी का तमाशा आपने खूब देखा सुना .शिकागो के नज़दीक फर्मी लैब में भी एक छोटा सा कण त्वरक है "टीवा -ट्रोंन "जो आवेशित कणों को ट्रिलियन इलेक्त्रोंन वोल्ट्स ऊर्जा दे सकता है ।
लेकिन एक बार फिर एटमी साइंसदानों का ध्यान सरल रेखा में कणों को किश्तों में ऊर्जा (त्वरण )प्रदान करने वाली वेगवान मशीनों की तरफ गया है .इसी की अगली कड़ी के रूप में आ रहा है :एक लिनीयर एक्स्लारेटर ज़मीन के नीचे एक ५० किलोमीटर लम्बी सुरंग के रूप में "इंटर -नेशनल लिनीयर कोलाइदर .इस पर १२.८५ अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है .यह अब तक का सबसे बड़ा लिनीयर एक्सलारेटर होगा ।फ्रांस के राष्ट्र- पति के अनुमोदन की बाट जोह रहा है वर्तमान में यह कण त्वरक .
सन्दर्भ -सामिग्री :-एक्सपर्ट्स प्लान ए बिगर एटम स्मेशर:(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २७ ,२०१० ,पृष्ठ ,१५ ).
जिनेवा के आउट स्कर्ट में एल एच सी का तमाशा आपने खूब देखा सुना .शिकागो के नज़दीक फर्मी लैब में भी एक छोटा सा कण त्वरक है "टीवा -ट्रोंन "जो आवेशित कणों को ट्रिलियन इलेक्त्रोंन वोल्ट्स ऊर्जा दे सकता है ।
लेकिन एक बार फिर एटमी साइंसदानों का ध्यान सरल रेखा में कणों को किश्तों में ऊर्जा (त्वरण )प्रदान करने वाली वेगवान मशीनों की तरफ गया है .इसी की अगली कड़ी के रूप में आ रहा है :एक लिनीयर एक्स्लारेटर ज़मीन के नीचे एक ५० किलोमीटर लम्बी सुरंग के रूप में "इंटर -नेशनल लिनीयर कोलाइदर .इस पर १२.८५ अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है .यह अब तक का सबसे बड़ा लिनीयर एक्सलारेटर होगा ।फ्रांस के राष्ट्र- पति के अनुमोदन की बाट जोह रहा है वर्तमान में यह कण त्वरक .
सन्दर्भ -सामिग्री :-एक्सपर्ट्स प्लान ए बिगर एटम स्मेशर:(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २७ ,२०१० ,पृष्ठ ,१५ ).
दूध का अतिरिक्त सेवन प्रोस्टेट - कैंसर केखतरे के वजन को बढा सकता है .
'ड्रिंकिंग टू मच मिल्क अप्स प्रोस्टेट कैंसर रिस्क (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २७ ,२०१० ,पृष्ठ १५ )।
रिसर्चरों के मुताबिक़ दूध का ज्यादा सेवन प्रोस्टेट कैंसर के खतरे के वजन को बढा सकता है ।
प्रोस्टेट जर्नल में प्रकाशित एक कनाडाई रिसर्च के मुताबिक़ जो लोग रोजाना २०० एम् एल (२०० मिली -लीटर )के चार ग्लास दूध रोजाना पी जातें हैं उनके लिए प्रोस्टेट का जोखिम सामान्य से दो गुना ज्यादा बढ़ जाता है ।
बकौल रिसर्चरों के दूध में काव(काओ )हारमोन होतें हैं ,इनमे इंसुलिन लाइक ग्रोथ फेक्टर १ (आई जी ऍफ़ -वन ) भी शामिल है .
यही बढ़ोतरी को प्रेरित करने के अलावा प्रोस्टेट कैंसर को भी फीडकरते रहतें हैं (चुग्गा डालते रहतें हैं ,पनपातें हैं ).शायद अंडाशय कैंसर (ओवेरियन कैंसर )की भी थोड़ी बहुत वजह यही हारमोन बनतें हैं .
यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के माहिरों के मुताबिक़ कुछ हज़ार साल पहले लोग दूध से इसीलिए परहेज़ रखते थे ,यह उदरीय शूल ,स्टमक अपसेट की वजह बनता था .ऐसा इसलिए था ,योरोपीय लोगों में एक जीन नदारद था जो एंजाइम लेक्टेज़ बनाने में सहायक रहता है .ध्यान रहे यही किण्वक दूध में मौजूद लेक्टोज़(मिल्क सुगर )को सरलीकृत रूपों में तोड़ने में सहायक रहता है .लेक्टोज़ ब्रेक्स डाउन दी मिल्क सुगर लेक्टोज़ ।
हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ ,न्यूट्रीशन के मुखिया वाल्टर विल्लेट कहतें हैं पूर्व के अध्धय्यनों में भी हाई -मिल्क इनटेक और मेटास्तेतिकप्रोस्टेट कैंसर के बीच अंतर -संबंधों की पुष्टि हुई है .बात साफ़ है :दूध का ज्यादा सेवन खून में आई जी ऍफ़ -१ ग्रोथ प्रोमोटिंग हारमोन के स्तर को बढाता है .नतीजा हो सकता है प्रोस्टेट कैंसर का अतिरिक्त जोखिम .
विशेष कथन :बट नो डेंजर फ्रॉम कोफी :दक्षिण कोरियाई नेशनल कैंसर सेंटर के माहिरों ने पूर्व के १२ रिसर्चों की एक मेटा -स्टडी में बतलाया है ,कोफी पीने में ऐसा कोई ख़तरा नहीं है .मेन कैन एन्जॉय ए कप ऑफ़ कोफी विद -आउट- वरींग (वरी -इंग )अबाउट प्रोस्टेट कैंसर .कोफी दज नोट रेज़ दी रिस्क ऑफ़ कैंसर ऑफ़ दी ग्लैंड .(रायटर्स )
रिसर्चरों के मुताबिक़ दूध का ज्यादा सेवन प्रोस्टेट कैंसर के खतरे के वजन को बढा सकता है ।
प्रोस्टेट जर्नल में प्रकाशित एक कनाडाई रिसर्च के मुताबिक़ जो लोग रोजाना २०० एम् एल (२०० मिली -लीटर )के चार ग्लास दूध रोजाना पी जातें हैं उनके लिए प्रोस्टेट का जोखिम सामान्य से दो गुना ज्यादा बढ़ जाता है ।
बकौल रिसर्चरों के दूध में काव(काओ )हारमोन होतें हैं ,इनमे इंसुलिन लाइक ग्रोथ फेक्टर १ (आई जी ऍफ़ -वन ) भी शामिल है .
यही बढ़ोतरी को प्रेरित करने के अलावा प्रोस्टेट कैंसर को भी फीडकरते रहतें हैं (चुग्गा डालते रहतें हैं ,पनपातें हैं ).शायद अंडाशय कैंसर (ओवेरियन कैंसर )की भी थोड़ी बहुत वजह यही हारमोन बनतें हैं .
यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के माहिरों के मुताबिक़ कुछ हज़ार साल पहले लोग दूध से इसीलिए परहेज़ रखते थे ,यह उदरीय शूल ,स्टमक अपसेट की वजह बनता था .ऐसा इसलिए था ,योरोपीय लोगों में एक जीन नदारद था जो एंजाइम लेक्टेज़ बनाने में सहायक रहता है .ध्यान रहे यही किण्वक दूध में मौजूद लेक्टोज़(मिल्क सुगर )को सरलीकृत रूपों में तोड़ने में सहायक रहता है .लेक्टोज़ ब्रेक्स डाउन दी मिल्क सुगर लेक्टोज़ ।
हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ ,न्यूट्रीशन के मुखिया वाल्टर विल्लेट कहतें हैं पूर्व के अध्धय्यनों में भी हाई -मिल्क इनटेक और मेटास्तेतिकप्रोस्टेट कैंसर के बीच अंतर -संबंधों की पुष्टि हुई है .बात साफ़ है :दूध का ज्यादा सेवन खून में आई जी ऍफ़ -१ ग्रोथ प्रोमोटिंग हारमोन के स्तर को बढाता है .नतीजा हो सकता है प्रोस्टेट कैंसर का अतिरिक्त जोखिम .
विशेष कथन :बट नो डेंजर फ्रॉम कोफी :दक्षिण कोरियाई नेशनल कैंसर सेंटर के माहिरों ने पूर्व के १२ रिसर्चों की एक मेटा -स्टडी में बतलाया है ,कोफी पीने में ऐसा कोई ख़तरा नहीं है .मेन कैन एन्जॉय ए कप ऑफ़ कोफी विद -आउट- वरींग (वरी -इंग )अबाउट प्रोस्टेट कैंसर .कोफी दज नोट रेज़ दी रिस्क ऑफ़ कैंसर ऑफ़ दी ग्लैंड .(रायटर्स )
शुरू में ही दबा दीजिये मलेरिया को वरना
शुरू में ही शिनाख्त और इलाज़ की पहल मलेरिया को ना सिर्फ बिगड़ने से रोके रहेगी आपकी जेब और मरीज़ की जान पर भी भारी नहीं पड़ेगी .विश्व -स्वास्थ्य संगठन द्वारा तजवीज़ किये गए इलाज़ पर ,दो दवाओं के पूरे कोर्स पर कुल खर्च आयेगा मात्र २००- ४०० रुपैया .गत वर्ष की तुलना में इस बरस मुंबई में ना सिर्फ मलेरिया के ज्यादा मामले दर्ज़ हुएँ हैं (आदिनांक १०,००० के पार ), २०- ३० फीसद मरीजों को गहन चिकित्सा की भी ज़रुरत पड़ी है .जुलाई माह में ही अब तक १३ लोगों की मौत मलेरिया की वजह से ही हो चुकी है ।
हिंदुजा अस्पताल के डॉ खुस्राव बजन के मुताबिक़ इस बरस पिछले साल से दोगुने मामले अब तक प्रकाश में आ चुकें हैं .आप अस्पताल के गहन चिकित्सा विभाग के मुखिया हैं .कस्तूरबा अस्पताल संक्रामक रोग विभाग के माहिर एवं जसलोक अस्पताल के कंसल्टेंट डॉ ॐ श्रीवास्तव भी इस बरस के हालातों से चिंतित हैं ।
जिस अनुपात में मरीज़ आ रहें हैं उसी अनुपात में पेचीला मामले भी सामने आयें हैं ।
मलेरियावक्त से ध्यान ना देने इलाज़ ना करवाने पर हमारे दिमाग ,फेफड़ों ,गुर्दों को भी अपनी चपेट में ले सकता है .ब्लीडिंग दिस -ऑर्डर की भी वजह बनता है .ऐसे में ब्लड कंपोनेंट थिरेपी ,वेंटिलेटर पर मरीज़ को रखने की मजबूरी और डायलेसिस मरीज़ की जेब पर भारी पडती है ज़िन्दगी पर भी ।
वजह बनती है "सेप्सिस ".गंभीर सेप्सिस की अवस्था में मरीज़ को ३ -४ हफ्ता गहन चिकित्सा कक्ष में रखना ज़रूरी हो जाता है ।
क्या है सेप्सिस ?
आम भाषा में कहें तो संक्रमण की वजह से किसी भी अंग में पस(मवाद पड़ने )को सेप्सिस कह दिया जाता है .चिकित्सा विज्ञान की भाषा में बात करें तो -"सेप्सिस इज दी स्प्रेड ऑफ़ एन इन्फेक्शन फ्रॉम इट्स इनिशिअल साईट टू दी ब्लड स्ट्रीम ,इनिशिएतिन्ग ए सिस्टेमिक रेस्पोंस देट एड्वार्सली अफेक्ट्स ब्लड फ्लो टू वाइटल ओर्गेंस .बेक -टीरिअल इन्फेक्संस आर दी मोस्ट कोमन सोर्स ऑफ़ इनिशिअल इन्फेक्सन ,बट सेप्सिस आल्सो अकर्स विद फंगल ,पैरा-साईटिक,एंड माइको -बेक -टीरिअल इन्फेक्संस ,पट्टी -क्युलारली इन इम्यूनो -कम्प्रोमाइज़्द पेशेंट्स ।".
ऐसे में संक्रमण किसी भी वाइटल ओर्गेंन दिमाग ,गुर्दे ,फेफड़ों आदि के लिए जान लेवा बनेगा ."दी कंडीशन ऑर सिंड्रोम कौज़्द बाई दी प्रिज़ेंस ऑफ़ माइक्रो -ओर्गेनिज्म ऑर देअर टोकसिंस इन दी टिश्यु ऑर ब्लड स्ट्रीम "यानी सेप्सिस से हर हाल में बचना है ।
बेशक कई मरीजों को १०३ से ज्यादा ज्वर (ताप या जूडी ,टेम्प्रेचर ) ज़कड़े रहता है .कई को ओरल पिल्स (खाने वाली गोलियां )माफिक नहीं आतीं हैं ,इन्हें इंट्रा- वेनस ड्रिप के ज़रिये (सुइयों के द्वारा )दवा देना ज़रूरी हो जाता है ,लेकिन ज्यादा तर मरीज़ रोग के आरंभिक चरण में संभल जातें हैं ,बा -शर्ते इलाज़ में देरी ना हो ,दवा दारू और खुराख ठीक से डॉ के अनुदेशों के मुताबिक़ ली जाए .यही कहना है नित्यानंद नर्सिंग होम विले पार्ले (ईस्ट )के डॉ हरीश भट्ट का ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-मलेरिया केसिज डबल दिस ईयर (टाइम्स सिटी ,मुंबई ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई जुलाई २७ ,२०१० )
हिंदुजा अस्पताल के डॉ खुस्राव बजन के मुताबिक़ इस बरस पिछले साल से दोगुने मामले अब तक प्रकाश में आ चुकें हैं .आप अस्पताल के गहन चिकित्सा विभाग के मुखिया हैं .कस्तूरबा अस्पताल संक्रामक रोग विभाग के माहिर एवं जसलोक अस्पताल के कंसल्टेंट डॉ ॐ श्रीवास्तव भी इस बरस के हालातों से चिंतित हैं ।
जिस अनुपात में मरीज़ आ रहें हैं उसी अनुपात में पेचीला मामले भी सामने आयें हैं ।
मलेरियावक्त से ध्यान ना देने इलाज़ ना करवाने पर हमारे दिमाग ,फेफड़ों ,गुर्दों को भी अपनी चपेट में ले सकता है .ब्लीडिंग दिस -ऑर्डर की भी वजह बनता है .ऐसे में ब्लड कंपोनेंट थिरेपी ,वेंटिलेटर पर मरीज़ को रखने की मजबूरी और डायलेसिस मरीज़ की जेब पर भारी पडती है ज़िन्दगी पर भी ।
वजह बनती है "सेप्सिस ".गंभीर सेप्सिस की अवस्था में मरीज़ को ३ -४ हफ्ता गहन चिकित्सा कक्ष में रखना ज़रूरी हो जाता है ।
क्या है सेप्सिस ?
आम भाषा में कहें तो संक्रमण की वजह से किसी भी अंग में पस(मवाद पड़ने )को सेप्सिस कह दिया जाता है .चिकित्सा विज्ञान की भाषा में बात करें तो -"सेप्सिस इज दी स्प्रेड ऑफ़ एन इन्फेक्शन फ्रॉम इट्स इनिशिअल साईट टू दी ब्लड स्ट्रीम ,इनिशिएतिन्ग ए सिस्टेमिक रेस्पोंस देट एड्वार्सली अफेक्ट्स ब्लड फ्लो टू वाइटल ओर्गेंस .बेक -टीरिअल इन्फेक्संस आर दी मोस्ट कोमन सोर्स ऑफ़ इनिशिअल इन्फेक्सन ,बट सेप्सिस आल्सो अकर्स विद फंगल ,पैरा-साईटिक,एंड माइको -बेक -टीरिअल इन्फेक्संस ,पट्टी -क्युलारली इन इम्यूनो -कम्प्रोमाइज़्द पेशेंट्स ।".
ऐसे में संक्रमण किसी भी वाइटल ओर्गेंन दिमाग ,गुर्दे ,फेफड़ों आदि के लिए जान लेवा बनेगा ."दी कंडीशन ऑर सिंड्रोम कौज़्द बाई दी प्रिज़ेंस ऑफ़ माइक्रो -ओर्गेनिज्म ऑर देअर टोकसिंस इन दी टिश्यु ऑर ब्लड स्ट्रीम "यानी सेप्सिस से हर हाल में बचना है ।
बेशक कई मरीजों को १०३ से ज्यादा ज्वर (ताप या जूडी ,टेम्प्रेचर ) ज़कड़े रहता है .कई को ओरल पिल्स (खाने वाली गोलियां )माफिक नहीं आतीं हैं ,इन्हें इंट्रा- वेनस ड्रिप के ज़रिये (सुइयों के द्वारा )दवा देना ज़रूरी हो जाता है ,लेकिन ज्यादा तर मरीज़ रोग के आरंभिक चरण में संभल जातें हैं ,बा -शर्ते इलाज़ में देरी ना हो ,दवा दारू और खुराख ठीक से डॉ के अनुदेशों के मुताबिक़ ली जाए .यही कहना है नित्यानंद नर्सिंग होम विले पार्ले (ईस्ट )के डॉ हरीश भट्ट का ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-मलेरिया केसिज डबल दिस ईयर (टाइम्स सिटी ,मुंबई ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई जुलाई २७ ,२०१० )
सोमवार, 26 जुलाई 2010
(गत पोस्ट से आगे ..,ज़ारी ...)
आगामी चार बरसों में केप्लर अन्तरिक्ष अन्वेषी ऐसे ही अन्य ग्रहों और सौर मंडल का अन्वेषण करता रहेगा .अभी तो इब्तिदा ही है .अभी तो पहले ६ हफ़्तों के अध्धय्यन विश्लेषण का ही जायजा सामने आया है. कितने ही पोटेंशियल एक्स्ट्रा सोलर सिस्टम्स जिनमे ७०६ संभावी ग्रह भी हैंअभी और भी हैं जिनका अन्वेषण अध्धय्यन होना भविष्य के गर्भ में है ।
इससे ऐसा प्रतीत होता है ग्रहों का सौर -मंडलों के गिर्द होना एक आम घटना है अलबत्ता असल और एहम बात है आकारीय विभाजन ग्रहों का .फिलवक्त आगे अध्धय्यन विश्लेषण के लिए केप्लर द्वाराअब तक अन्वेषित सदस्यों की गहन पड़ताल, भू -आधारित उपकरणों ,हबल और स्पित्सर अन्तरिक्ष दूरबीनों से होना बाकी है .फरवरी तकअंतिम नतीजे आ सकतें हैं .
इसके बाद इन ग्रहों के परिमंडल (एत्मोस्फ़ीअर) की बारीक जांच होनाभी बाकी है ताकि संभावित जीवन के चिन्हों की शिनाख्त हो सके .यही कहना है खगोल विज्ञान के प्रोफ़ेसर ,हार्वर्ड विश्वविद्यालय के डिमीटर सस्सेलोव का ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एनीबॉडी आउट देअर ?"१४०अर्थ्स "फाउंड(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० ,पृष्ठ १७ .)
आगामी चार बरसों में केप्लर अन्तरिक्ष अन्वेषी ऐसे ही अन्य ग्रहों और सौर मंडल का अन्वेषण करता रहेगा .अभी तो इब्तिदा ही है .अभी तो पहले ६ हफ़्तों के अध्धय्यन विश्लेषण का ही जायजा सामने आया है. कितने ही पोटेंशियल एक्स्ट्रा सोलर सिस्टम्स जिनमे ७०६ संभावी ग्रह भी हैंअभी और भी हैं जिनका अन्वेषण अध्धय्यन होना भविष्य के गर्भ में है ।
इससे ऐसा प्रतीत होता है ग्रहों का सौर -मंडलों के गिर्द होना एक आम घटना है अलबत्ता असल और एहम बात है आकारीय विभाजन ग्रहों का .फिलवक्त आगे अध्धय्यन विश्लेषण के लिए केप्लर द्वाराअब तक अन्वेषित सदस्यों की गहन पड़ताल, भू -आधारित उपकरणों ,हबल और स्पित्सर अन्तरिक्ष दूरबीनों से होना बाकी है .फरवरी तकअंतिम नतीजे आ सकतें हैं .
इसके बाद इन ग्रहों के परिमंडल (एत्मोस्फ़ीअर) की बारीक जांच होनाभी बाकी है ताकि संभावित जीवन के चिन्हों की शिनाख्त हो सके .यही कहना है खगोल विज्ञान के प्रोफ़ेसर ,हार्वर्ड विश्वविद्यालय के डिमीटर सस्सेलोव का ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एनीबॉडी आउट देअर ?"१४०अर्थ्स "फाउंड(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० ,पृष्ठ १७ .)
पांच नए सौर मंडल और ७०६भावी ( संभावित )का पता चला .
नासा के अन्तरिक्ष केप्लर अन्वेषी ने ७०६ भावी ग्रहों एवं ५ नए सौर मंडलों का पता लगाया है .अब तक इस अन्वेषी ने डेढ़ लाख से भी ज्यादा सितारों का अध्धय्यन कर जो आंकडें पृथ्वी पर स्थापित केन्द्रों को भेजें हैं उनसे साफ़ है इनमे से प्रत्येक के कमसे कम दो या दो से अधिक तो ग्रह होंगें ही जो पृथ्वी की मानिंद अपने अपने पेरेंट सितारे की परिक्रमा कर रहें हैं .इनमे से कई पृथ्वी के सहोदर से ही लगतें हैं .
इनमे से तकरीबन १४० पृथ्वी की ही मानिंद चट्टानी हैं ,जहां जल और स्थल दोनों हैं .इन परिस्थितियों में जीवन के आदि प्रारूप के विकसित होने की संभावना से इनकार करना मुश्किल लगता है ।
खगोल विज्ञानी बेहद उत्सुक हैं यह जानने समझने के लिए क्या हमारे सौर मंडल से और भी सितारे बहुग्रहीय प्रणालियाँ भी अन्यत्र मौजूद हैं ?जहां पृथ्वी जैसे ही जीव रूप ,पृथ्वी जैसा ही जीवन पैदा होने की संभावना मौजूद हो ?
यह नतीजे केप्लर मिशन के शुरूआती ६ हफ़्तों के अध्धयन का सार हैं .(ज़ारी )
इनमे से तकरीबन १४० पृथ्वी की ही मानिंद चट्टानी हैं ,जहां जल और स्थल दोनों हैं .इन परिस्थितियों में जीवन के आदि प्रारूप के विकसित होने की संभावना से इनकार करना मुश्किल लगता है ।
खगोल विज्ञानी बेहद उत्सुक हैं यह जानने समझने के लिए क्या हमारे सौर मंडल से और भी सितारे बहुग्रहीय प्रणालियाँ भी अन्यत्र मौजूद हैं ?जहां पृथ्वी जैसे ही जीव रूप ,पृथ्वी जैसा ही जीवन पैदा होने की संभावना मौजूद हो ?
यह नतीजे केप्लर मिशन के शुरूआती ६ हफ़्तों के अध्धयन का सार हैं .(ज़ारी )
दु: -स्वप्नों की दिशा मोड़ सकने के लिए
नाईट -मेयर्स ?रिलेक्स ,यु कैन कंट्रोल ड्रीम्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुल्य२६ ,२०१०)।
कई मर्तबा हम सोते सोते कोई खौफनाक खाब देख बेहद डर जातें हैं .बिस्तर पर लौटते ही वह खाब अपनी भयानकता में फिर आ घेरता है .इस खाब की दिशा मोड़ कर इसमें से खौफ की दिशा मोड़कर बेअसर करने का नुस्खा सुझाया है साइंसदानों ने ।
इसे मोडरन वर्शन कहा जा रहा है "सेल्फ हिप्नोसिस" का .रोसलिन कार्ट राईट अपनी किताब "ट्वेंटी फॉर हावर(आवर ) माइंड"में कहतीं हैं बेहद खौफनाक ख़्वाब से डर को निकाल कर उसे भी दिलचस्प मोड़ दिया जा सकता है . फिल्म "इंसेप्शन" में लेओनार्दो डिकैप्रियो नाम का पात्र स्लीपिंग माइंड से(स्वप्न में डूबेदिमाग से ) कोर्पोरेट सीक्रेट्स चुरा लेने का करिश्मा कर दिखाता है .बेशक हर कोई ऐसा नहीं कर सकता लेकिन ड्रीमर्स खुद को सोते सोते भी बहुत कुछ सिखा समझा सकतें हैं .स्लीप रिसर्च कीइस माहिर का ऐसा मानना है ।
जैसे जैसे हम नीद में गहरे उतरते जाते हैं ,इन दी डाउन टाइम ऑफ़ स्लीप ,दिमागी कोशायें(ब्रेन सेल्स या न्युरोंस ) बेतरतीब तरीके से दिन भर की छवियाँ और इमेजिज़ और संवेगों को ऋ -फायर करते चलतें हैं .सब कुछ गड्डम गड्ड,कर देतें हैं .न्युरोंस मैश डेम अप .नतीजा होता है खाब .कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा ।ऐसे में -
दिमाग स्वप्न -दर्शी को ड्रीमर को बचाने के लिए ही कुछ जैव -रसायनों का स्राव करने लगता है .नतीज़न खौफनाक अनुभवों की अवधि घट जाती है .
ड्रीम क्लिनिकें आप को सिखाती है :"लुसिड ड्रीमिंग "साफ़ सुथरे खाब देखना .जिनका आप लुत्फ़ उठा सकें .बस आपको यह समझभर लेना है आप खाब देख रहें हैं .कुछ ईंटें इधर से उठाकर उधर रखनी हैं .भानमती का कुनबा बिखर जाएगा ।
आप स्वप्न लेखन कीजिये .विवरण लिख लीजिये अपने खाबों का ।
शेल्बी हेरिस एक बिहेवियर- अल स्लीप प्रोग्रेम क्लिनिक चलातें हैं .आप नाईट मेयर्स से आजिज़ आ चुके लोगों को ड्रीम स्क्रिप्ट्स लिखना सिखलातें हैं ।
एक रिकरिंग ड्रीम की आप दिशा मोड़ सकतें हैं ।
मसलन यदि आप खाब में खतरनाक शार्क्स से घिर गएँ हैं आप इन्हें डोल्फिंस में बदल सकतें हैं .एक आदमी का पीछा अकसर एक ख़ास आदमी खाब में करता था ,एक दिन वह उसे चोकलेट में बदलने में कामयाब हुआ और एक दिन इस चोकलेट को मज़े से खा भी गया .बस नाईट मेयर को फन में बदलना है .दु :स्वपन से छुटकारा मिल जाएगा .यही हेरिस सिखलातें हैं .यही है सेल्फ हिप्नोसिस .
कई मर्तबा हम सोते सोते कोई खौफनाक खाब देख बेहद डर जातें हैं .बिस्तर पर लौटते ही वह खाब अपनी भयानकता में फिर आ घेरता है .इस खाब की दिशा मोड़ कर इसमें से खौफ की दिशा मोड़कर बेअसर करने का नुस्खा सुझाया है साइंसदानों ने ।
इसे मोडरन वर्शन कहा जा रहा है "सेल्फ हिप्नोसिस" का .रोसलिन कार्ट राईट अपनी किताब "ट्वेंटी फॉर हावर(आवर ) माइंड"में कहतीं हैं बेहद खौफनाक ख़्वाब से डर को निकाल कर उसे भी दिलचस्प मोड़ दिया जा सकता है . फिल्म "इंसेप्शन" में लेओनार्दो डिकैप्रियो नाम का पात्र स्लीपिंग माइंड से(स्वप्न में डूबेदिमाग से ) कोर्पोरेट सीक्रेट्स चुरा लेने का करिश्मा कर दिखाता है .बेशक हर कोई ऐसा नहीं कर सकता लेकिन ड्रीमर्स खुद को सोते सोते भी बहुत कुछ सिखा समझा सकतें हैं .स्लीप रिसर्च कीइस माहिर का ऐसा मानना है ।
जैसे जैसे हम नीद में गहरे उतरते जाते हैं ,इन दी डाउन टाइम ऑफ़ स्लीप ,दिमागी कोशायें(ब्रेन सेल्स या न्युरोंस ) बेतरतीब तरीके से दिन भर की छवियाँ और इमेजिज़ और संवेगों को ऋ -फायर करते चलतें हैं .सब कुछ गड्डम गड्ड,कर देतें हैं .न्युरोंस मैश डेम अप .नतीजा होता है खाब .कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा ।ऐसे में -
दिमाग स्वप्न -दर्शी को ड्रीमर को बचाने के लिए ही कुछ जैव -रसायनों का स्राव करने लगता है .नतीज़न खौफनाक अनुभवों की अवधि घट जाती है .
ड्रीम क्लिनिकें आप को सिखाती है :"लुसिड ड्रीमिंग "साफ़ सुथरे खाब देखना .जिनका आप लुत्फ़ उठा सकें .बस आपको यह समझभर लेना है आप खाब देख रहें हैं .कुछ ईंटें इधर से उठाकर उधर रखनी हैं .भानमती का कुनबा बिखर जाएगा ।
आप स्वप्न लेखन कीजिये .विवरण लिख लीजिये अपने खाबों का ।
शेल्बी हेरिस एक बिहेवियर- अल स्लीप प्रोग्रेम क्लिनिक चलातें हैं .आप नाईट मेयर्स से आजिज़ आ चुके लोगों को ड्रीम स्क्रिप्ट्स लिखना सिखलातें हैं ।
एक रिकरिंग ड्रीम की आप दिशा मोड़ सकतें हैं ।
मसलन यदि आप खाब में खतरनाक शार्क्स से घिर गएँ हैं आप इन्हें डोल्फिंस में बदल सकतें हैं .एक आदमी का पीछा अकसर एक ख़ास आदमी खाब में करता था ,एक दिन वह उसे चोकलेट में बदलने में कामयाब हुआ और एक दिन इस चोकलेट को मज़े से खा भी गया .बस नाईट मेयर को फन में बदलना है .दु :स्वपन से छुटकारा मिल जाएगा .यही हेरिस सिखलातें हैं .यही है सेल्फ हिप्नोसिस .
कार्निया लैब में बना लेने की दिशा में पहल
सून ,ए लेब -मेड कोर्निया टू ऑफर ए रे ऑफ़ होप (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० )
प्रयोग शाला में इनदिनों चीनी साइंसदान मानवीय कोशिकाएं संवर्धित कर रहें हैं .यह कृत्रिम स्वच्छ मंडल (कोर्निया ,आँख का बाहरी पारदर्शी रक्षक आवरण या रक्षक कवच )बना लेने की दिशा में उठा पहला महत्वपूर्ण कदम है .उन पचास लाख लोगों के लिए यह आस की किरण है जो कोर्नियल ब्लाइंड -नेस से ग्रस्त हैं .इन्हें कोर्निया ट्रांसप्लांट की ज़रुरत है ।
कुछ भी देखने दृश्य अवलोकन में यही एक दम से नाज़ुक शील्ड (वल्नारेबिल शील्ड )विधाई भूमिका निभाती है .इसीलिए कोर्निया की चोट एक अति गंभीर मामला बन जाती है ।
बकौल चीनी साइंसदानों के ओशन विश्वविद्यालय,चीन के कोलिज ऑफ़ मेरीन साइंस की टीम आगामी तीन सालों में ना सिर्फ एक भरी पूरी कोर्निया तैयार कर लेगी ,इसके नैदानिक परीक्षण भी शुरू हो सकतें हैं .(आप जानतें हैं ,क्लिनिकल ट्रायल्स कई चरणों में संपन्न होतें हैं )।
एक कृत्रिम कोर्निया की कीमत १४७५ -२९५० डॉलर तक हो सकती है .लेकिन यह दान की गई कोर्निया का स्थान ले सकती है ।
इसे तैयार करने में ऊतक प्रोद्योगिकी (टिश्यु टेक्नोलोजी )के सहारे एंडो- थेलियम जैसे ही ऊतक तैयार कर लिए गएँ हैं .
कोर्निया को स्वच्छ मंडल (पारदर्शी )बनाए रखन में एंडोथेलियम का बड़ा हाथ होता है .कोशाओं की सबसे अंदरूनी तह या परत (लेयर )होती है एंडो -थेलियम ।
एंडो -थेलियम को बना पाना एक मुश्किल काम रहा है क्योंकि इसकी कोशायें पुनर -उत्पादित नहीं होतीं हैं .इसी लियें कृत्रिम स्वच्छ मंडल का अध्धय्यन ठीक से हो ही नहीं सका है ।
टीम ने इसका ही कल्टीवेशन करके दिखाया है बेशक इसके लिए ह्यूमेन एम्निओनकी सहायता ली गई है .विकाश्मान भ्रूण आप जानतें हैं इसी एम्नियोटिक सेक में सुरक्षित और आराम से रहता है .यह एक झिल्लीनुमा थैली होती है .जिसमे गर्भ जल भरा रहता है ।
अब विज्ञानी स्ट्रोमा के निर्माण में संलग्न हैं .कोर्निया की ९० फीसद मोटाई(थिकनेस इसी से है ) के लिए यही स्ट्रोमा जिम्मेवार रहता है .स्ट्रोमा एंडो -थेलियम और एपी -थेलियम के बीच एक सेतु का काम करता है .कोर्निया की सबसे बाहर वाली परत को ही एपी -थेलियम कहा जाता है .आँख में धूल-जीवाणु आदि के प्रवेश से यही परत बचाए रहती है .टीयर्स से ऑक्सीजन और सेल -न्यू -त्रियेंट्स ज़ज्ब करने का काम भी यही एपी -थेलियम करती है .
प्रयोग शाला में इनदिनों चीनी साइंसदान मानवीय कोशिकाएं संवर्धित कर रहें हैं .यह कृत्रिम स्वच्छ मंडल (कोर्निया ,आँख का बाहरी पारदर्शी रक्षक आवरण या रक्षक कवच )बना लेने की दिशा में उठा पहला महत्वपूर्ण कदम है .उन पचास लाख लोगों के लिए यह आस की किरण है जो कोर्नियल ब्लाइंड -नेस से ग्रस्त हैं .इन्हें कोर्निया ट्रांसप्लांट की ज़रुरत है ।
कुछ भी देखने दृश्य अवलोकन में यही एक दम से नाज़ुक शील्ड (वल्नारेबिल शील्ड )विधाई भूमिका निभाती है .इसीलिए कोर्निया की चोट एक अति गंभीर मामला बन जाती है ।
बकौल चीनी साइंसदानों के ओशन विश्वविद्यालय,चीन के कोलिज ऑफ़ मेरीन साइंस की टीम आगामी तीन सालों में ना सिर्फ एक भरी पूरी कोर्निया तैयार कर लेगी ,इसके नैदानिक परीक्षण भी शुरू हो सकतें हैं .(आप जानतें हैं ,क्लिनिकल ट्रायल्स कई चरणों में संपन्न होतें हैं )।
एक कृत्रिम कोर्निया की कीमत १४७५ -२९५० डॉलर तक हो सकती है .लेकिन यह दान की गई कोर्निया का स्थान ले सकती है ।
इसे तैयार करने में ऊतक प्रोद्योगिकी (टिश्यु टेक्नोलोजी )के सहारे एंडो- थेलियम जैसे ही ऊतक तैयार कर लिए गएँ हैं .
कोर्निया को स्वच्छ मंडल (पारदर्शी )बनाए रखन में एंडोथेलियम का बड़ा हाथ होता है .कोशाओं की सबसे अंदरूनी तह या परत (लेयर )होती है एंडो -थेलियम ।
एंडो -थेलियम को बना पाना एक मुश्किल काम रहा है क्योंकि इसकी कोशायें पुनर -उत्पादित नहीं होतीं हैं .इसी लियें कृत्रिम स्वच्छ मंडल का अध्धय्यन ठीक से हो ही नहीं सका है ।
टीम ने इसका ही कल्टीवेशन करके दिखाया है बेशक इसके लिए ह्यूमेन एम्निओनकी सहायता ली गई है .विकाश्मान भ्रूण आप जानतें हैं इसी एम्नियोटिक सेक में सुरक्षित और आराम से रहता है .यह एक झिल्लीनुमा थैली होती है .जिसमे गर्भ जल भरा रहता है ।
अब विज्ञानी स्ट्रोमा के निर्माण में संलग्न हैं .कोर्निया की ९० फीसद मोटाई(थिकनेस इसी से है ) के लिए यही स्ट्रोमा जिम्मेवार रहता है .स्ट्रोमा एंडो -थेलियम और एपी -थेलियम के बीच एक सेतु का काम करता है .कोर्निया की सबसे बाहर वाली परत को ही एपी -थेलियम कहा जाता है .आँख में धूल-जीवाणु आदि के प्रवेश से यही परत बचाए रहती है .टीयर्स से ऑक्सीजन और सेल -न्यू -त्रियेंट्स ज़ज्ब करने का काम भी यही एपी -थेलियम करती है .
१४ दिन की उड़ान भरने के बाद मानव रहित सौर -यान वापस लौट आया है .
सोलर ड्रोन स्टेज अलोफ्ट फॉर १४ डेज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
इस चालक रहित सौर शक्ति चालित विमान ने अमरीकी सैन्य युमा प्रोविंग ग्राउंड से उड़ान भरी थी .१४ दिन २१ मिनिट हवामे कामयाबी से उड़ते रहने के बाद यह सकुशल अरिजोना देज़र्ट्स में उतर गया है .एकदम से हलके ,अल्ट्रा लाईट बस ५० किलोग्रेम वेट ,२२.५ मीटर लम्बे "ज़ेफ्य्र "चालाक रहित सौर शक्ति चालित विमान को ब्रितानी मूल की एक प्रतिरक्षाप्रोद्योगिकी कम्पनी "किनेटिक"ने तैयार किया था .इसे सैन्य निगरानी के लिए ख़ास तौर पर तैयार किया गया है .
इस चालक रहित सौर शक्ति चालित विमान ने अमरीकी सैन्य युमा प्रोविंग ग्राउंड से उड़ान भरी थी .१४ दिन २१ मिनिट हवामे कामयाबी से उड़ते रहने के बाद यह सकुशल अरिजोना देज़र्ट्स में उतर गया है .एकदम से हलके ,अल्ट्रा लाईट बस ५० किलोग्रेम वेट ,२२.५ मीटर लम्बे "ज़ेफ्य्र "चालाक रहित सौर शक्ति चालित विमान को ब्रितानी मूल की एक प्रतिरक्षाप्रोद्योगिकी कम्पनी "किनेटिक"ने तैयार किया था .इसे सैन्य निगरानी के लिए ख़ास तौर पर तैयार किया गया है .
गर्भ धारण के महुकों को बढा सकती है बुढापा रोधी हारमोन की टिकिया
एंटी -एजिंग हारमोन पिल बूस्ट्स प्रेगनेंसी :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० ,पृष्ठ १७ ।).
इजराइली साइंसदानों ने पता लगाया है ,बुढापे को रोकने वाली हारमोन पिल गर्भ धारण के मौके बढा सकती है .इनवीट्रो -फ़र्तिलाइज़ेशन ट्रीटमेंट को अब और भी कारगर बनाने में मदद मिल सकेगी ।
वास्तव में "डी एच ई ए "एक ऐसा एंटी एजिंग हारमोन है जिसे हमारा दिमाग ,अंडाशय (ओवरीज़ )और पुरुष की टेस्ट -इज़ (दोनों अंडकोष )तैयार करतें हैं .यह बेहदएक आम हारमोन है जिसे मानव शरीर तैयार करता है . २० आदि के दशक में इसका स्तर सर्वाधिक रहता है .३० आदि के दशकों तक आते आते यहस्तर तेज़ी से गिरने लगता है ।
तेल अवीव यूनिवर्सिटी के रिसर्चर कुछ मरीजों पर किये गए एक छोटे से अध्धय्यन के नतीजों से खुद हैरान हैं .इनमे से कुछेक ने "डी एच ई ए हारमोन संपूरक "लिया था ।
ऑक्सफोर्ड सेंटर फॉर फर्टिलिटी के टीम चिल्ड्स ने भी नतीजों का स्वागत किया है .गर्भ धारण में सहायक सिद्ध होने के साक्ष्य "आई वी ऍफ़ त्रीत्मेंट्स "में सुधार के तरीके सुझा सकतें हैं .
इजराइली साइंसदानों ने पता लगाया है ,बुढापे को रोकने वाली हारमोन पिल गर्भ धारण के मौके बढा सकती है .इनवीट्रो -फ़र्तिलाइज़ेशन ट्रीटमेंट को अब और भी कारगर बनाने में मदद मिल सकेगी ।
वास्तव में "डी एच ई ए "एक ऐसा एंटी एजिंग हारमोन है जिसे हमारा दिमाग ,अंडाशय (ओवरीज़ )और पुरुष की टेस्ट -इज़ (दोनों अंडकोष )तैयार करतें हैं .यह बेहदएक आम हारमोन है जिसे मानव शरीर तैयार करता है . २० आदि के दशक में इसका स्तर सर्वाधिक रहता है .३० आदि के दशकों तक आते आते यहस्तर तेज़ी से गिरने लगता है ।
तेल अवीव यूनिवर्सिटी के रिसर्चर कुछ मरीजों पर किये गए एक छोटे से अध्धय्यन के नतीजों से खुद हैरान हैं .इनमे से कुछेक ने "डी एच ई ए हारमोन संपूरक "लिया था ।
ऑक्सफोर्ड सेंटर फॉर फर्टिलिटी के टीम चिल्ड्स ने भी नतीजों का स्वागत किया है .गर्भ धारण में सहायक सिद्ध होने के साक्ष्य "आई वी ऍफ़ त्रीत्मेंट्स "में सुधार के तरीके सुझा सकतें हैं .
पैदा होने से पहले ही गर्भस्थ शिशु ने अपनी माँ को बचा लिया
फीटस किक्स ट्यूमर इन वोम्ब ,सेव्ज़ मोम (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० )।
उस जादुई गर्भस्थ ने पैदा होने से पहले ही अपनी माँ को गर्भाशय -कैंसर से बचा लिया .डॉक्टर्स ने सोचा यह मिस्केरिज (गर्भ आपसे आप गिरने का मामला )हो सकता है लेकिन यह क्या ?यह तो गर्भाशय का ट्यूमर है जो गर्भस्थ के लात मारने से अलग हो गया गर्भाशय से छिटक कर .अभी गर्भावस्था को १८ सप्ताह ही हुए थे .सामान्य अवधि गर्भावस्था की ४० सप्ताह होती है ।
माँ जो पेशे से एक सौन्दर्य विशेषग्य हैं क्लैरे (२६ वर्षीय )को गर्भ पात की सलाह दी गई ताकि उसके कैंसर काफ़ौरन इलाज़ शुरू किया जा सके लेकिन माँ ने साफ़ इनकार कर दिया .कैंसर महीनो से बढ़ता रहा था यदि गर्भस्थ की लात नहीं पडती ,तो यह इसी तरह निर्बाध बढ़ता रहता .अब यह अलग हो गया था छिटक कर .गर्भ जल थैली में यह भी बच्चे के साथ मुक्त रूप से गति कर रहा था ।
अब गर्भस्थ २६ सप्ताह का हो गया था यानी गर्भावस्थाअवधि संपन्न होने में अभी भी १४ सप्ताह बाकी थे .ट्यूमर अबतक आकार में तीन गुना बढ़ चुका था .डॉक्टरों ने दम्पति (क्लैरे और उसके पति हर्री )को फ़ौरन प्रसव करवाने कीसलाह दी .केवल बच्चे के ज़िंदा रहने की संभावना ४० फीसद रह गई थी ।
प्रसव कर वाया गया .बच्चे का लेदेकर वजन प्रसव के वक्त २ पौंड्स ही निकला .सैंट थोमस अस्पताल,लन्दन मेबच्चे का जन्म हुआ था .माँ को दिखलाने के बाद उसे गहन चिकित्सा कक्ष में अविलम्ब ले जाया गया ।
आज वह हंसता खेलता २ साल का है ।"जाको राखे साईंयां मार सके ना कोय ,होनी तो होके रहे ,लाख करे किन कोय .... "
उस जादुई गर्भस्थ ने पैदा होने से पहले ही अपनी माँ को गर्भाशय -कैंसर से बचा लिया .डॉक्टर्स ने सोचा यह मिस्केरिज (गर्भ आपसे आप गिरने का मामला )हो सकता है लेकिन यह क्या ?यह तो गर्भाशय का ट्यूमर है जो गर्भस्थ के लात मारने से अलग हो गया गर्भाशय से छिटक कर .अभी गर्भावस्था को १८ सप्ताह ही हुए थे .सामान्य अवधि गर्भावस्था की ४० सप्ताह होती है ।
माँ जो पेशे से एक सौन्दर्य विशेषग्य हैं क्लैरे (२६ वर्षीय )को गर्भ पात की सलाह दी गई ताकि उसके कैंसर काफ़ौरन इलाज़ शुरू किया जा सके लेकिन माँ ने साफ़ इनकार कर दिया .कैंसर महीनो से बढ़ता रहा था यदि गर्भस्थ की लात नहीं पडती ,तो यह इसी तरह निर्बाध बढ़ता रहता .अब यह अलग हो गया था छिटक कर .गर्भ जल थैली में यह भी बच्चे के साथ मुक्त रूप से गति कर रहा था ।
अब गर्भस्थ २६ सप्ताह का हो गया था यानी गर्भावस्थाअवधि संपन्न होने में अभी भी १४ सप्ताह बाकी थे .ट्यूमर अबतक आकार में तीन गुना बढ़ चुका था .डॉक्टरों ने दम्पति (क्लैरे और उसके पति हर्री )को फ़ौरन प्रसव करवाने कीसलाह दी .केवल बच्चे के ज़िंदा रहने की संभावना ४० फीसद रह गई थी ।
प्रसव कर वाया गया .बच्चे का लेदेकर वजन प्रसव के वक्त २ पौंड्स ही निकला .सैंट थोमस अस्पताल,लन्दन मेबच्चे का जन्म हुआ था .माँ को दिखलाने के बाद उसे गहन चिकित्सा कक्ष में अविलम्ब ले जाया गया ।
आज वह हंसता खेलता २ साल का है ।"जाको राखे साईंयां मार सके ना कोय ,होनी तो होके रहे ,लाख करे किन कोय .... "
अवसाद से राहत के लिए (ज़ारी ...)
ज़ारी ..
(अवसाद से राहत के लिए ...)
ब्रीदिंग:योग का अनुशाशन वाक्य है ,आप अपने मन पर काबू नहीं रख सकते लेकिन सांस की आवा- जाही पर निगाह टिका सकतें हैं .विनियमन कर सकतें हैं ब्रीदिंग का .सुबह उठते ही बिस्तर छोड़ने से पहले बस कुछ लम्बी लम्बी डीप-ब्रेथ गहरी श्वास खींचिए ,स्ट्रेचिंग सेभी पहले ,पड़े पड़े बिस्तर पर अंगडाई लेने से भी पहले ऐसा ज़रूर कीजिये .जानतें हैं ऐसा करने से आपका जैविक तंत्र आपकी काया आपका तन मन,आपका सिस्टम स्ट्रेचिंग के लिए तैयार हो जाता है .श्वास को अन्दर खींचने के बाद कुछ देर तक अन्दर ही रोकिये .यदि ५ सेकिंड श्वास खींचने में लगायें हैं तो १० सेकिंड्स तक श्वास अन्दर ही रोकिये निस्श्वास से पूर्व ।
आपके बेलगाम विचारों ,रेज़ रियेक्शंस को प्राणायाम काबू में रखने में असरदार सिद्ध होगा .कभी भी कहीं भी आज़माइश कर देखिये .बस थोड़ा सा वक्त निकालिए प्राणायाम के लिए .नेत्र मूँद लीजिये ,१०-१५ लम्बे लम्बे सांस अन्दर खींचिए ,ध्यान अपने नथुनों पर टिकाइए .बस एक बार में इतना ही तो करना है .बेशक कई मर्तबा ऐसा कर सकतें हैं ।
एक्सर -साइज़ :सुबह उठते ही व्यायाम की शुरू आत की जा सकती है .अलबत्ता घर का कोई एक कौना अपने लिए तलाशिये कसरत के लिए ।
भुजंग -आसन :इस आसन के लिए पेट के बल लेट जाना है .चेहरा ज़मीन की ओरही रहेगा .हथेलियों को ज़मीन पर टिकाये टिकाये पीठ की ताकत से अपने शरीर के अग्र भाग को जितना हो सके ऊपर उठाना है .ऊपर की तरफ ही देखना है .बस इसी क्रम को दोहराना है अपनी सामर्थ्य ओर शरीर के मिजाज़ के अनुरूप (अपने शरीर के बारे में सिर्फ आप ही जानतें हैं .).भुजंग आसन आपकी रीढ़ की ओर रक्त प्रवाह बढ़ाकर कमर को मजबूती देता है .इट अल्टीमेटली रेवस अप यूओर नर्व्ज़।
शलभ -आसन :भुजंग के समान इसमें भी पेट के बल ही लेटना है लेकिन लेकिन सिर्फ बारी बारी एक बार में एक ही टांग को धीरे धीरे ऊपर छत की ओर उठाना है .थोड़ी देर वही रोकना है .ओर बस फिर टांग को पूर्व स्थिति में लाकर यही क्रम दूसरी टांग के लिए भी दोहराना है .यह आपकी जंघाओं की पेशियों को ताकत देता है ।
चक्र -आसन :दोनों पैरों में दूरी बनाते हुए खड़े हो जाइए .लम्बी सांस खींचिए ओर अपने दोनों हाथ नितम्बों पर टिकाये पीछे की ओर झुकते चले जाना है .अभ्यास करना है ज़मीन को छू लेने का .तीर कमान की डोरी सा ,धनुष सा तन जाना है .अब इसका विलोम यानी आगे की ओर झुकते हुए अपने पैर के अन्गुष्ठों(बिगर टोज़)को छूने का अभ्यास करना है .इस दरमियान सांस बाहर छोडनी है ।
अवसाद से छुटकारा दिलवाने में यह कसरत ,आसन, विधाई भूमिका निभाता है .आप अपने में ताकत अनुभव करतें हैं प्रत्यंचा सा तानते हुएखुद को ओर आगे झुकना समर्पण भाव है समझौता है जीवन की विषमतर स्थितियों को अपनाने अपना बनाने का .विषम स्थितियों से घबराना कैसा ?
डाईट:सारा खेल आज खुराख से ही तो जुड़ा है .जैसा अन्न वैसा मन .यु बिकम व्हाट यु ईट .यु बिकम व्हाट यु ड्रिंक ।अन्न से ही जुडी है आपके मानसिक स्वास्थ्य ,सम्पूर्ण स्वास्थ्य की नव्ज़.
आप अवसाद की स्थिति में जो कुछ खातें हैं उसका अनुकूल ओर विपरीत दोनों तरह का प्रभाव पड़ सकता है .एहम बात है आप खातें क्या हैं ?
सुबह उठकर गुनगुना पानी पीजिये .कभी कभार इसमें अदरक का सत अदरक का रस मिला सकतें हैं ।
फायदा पहुंचाता है यह अवसाद रोधी है ।
कार्य स्थल पर जहां तक हो चाय ,कोफी ,जंक फूड्स से बचिए .नाहक यह दिमागी उत्तेजन पैदा करतें हैं ।
इनके स्थान पर नट्स ,दलिया ,लेमोनेड ,ब्लेक पेपर ,लेमन ग्रास आपको खाने में ज़रूरी हेपी हारमोंस मुहैया कर्वायेंगें .आपके परेशान दिलो -दिमाग को राहत देंगें .सबसे ज्यादा ज़रूरी है -खाने का नियमित वक्त तय करना .कोई समझौता नहीं इससे .आप क्या खातें हैं जितना ही ज़रूरी है आप कब खातें हैं ,वक्त पर या वक्त बे -वक्त कभी भी?
सन्दर्भ -सामिग्री :-देट राइजिंग फीलिंग ,दी "की" टू यूओर डार्केस्ट मूमेन्ट्स ऑफ़ डिप्रेशन मे लाइ इन सिम्पिल ,फोकस्ड ब्रीदिंग .हेयर इज हाओ.(हेल्थ टिप्स /कोलम "यु"/मुंबई मिरर ,जुलाई २४ ,२०१० ,पृष्ठ ३२ )
(अवसाद से राहत के लिए ...)
ब्रीदिंग:योग का अनुशाशन वाक्य है ,आप अपने मन पर काबू नहीं रख सकते लेकिन सांस की आवा- जाही पर निगाह टिका सकतें हैं .विनियमन कर सकतें हैं ब्रीदिंग का .सुबह उठते ही बिस्तर छोड़ने से पहले बस कुछ लम्बी लम्बी डीप-ब्रेथ गहरी श्वास खींचिए ,स्ट्रेचिंग सेभी पहले ,पड़े पड़े बिस्तर पर अंगडाई लेने से भी पहले ऐसा ज़रूर कीजिये .जानतें हैं ऐसा करने से आपका जैविक तंत्र आपकी काया आपका तन मन,आपका सिस्टम स्ट्रेचिंग के लिए तैयार हो जाता है .श्वास को अन्दर खींचने के बाद कुछ देर तक अन्दर ही रोकिये .यदि ५ सेकिंड श्वास खींचने में लगायें हैं तो १० सेकिंड्स तक श्वास अन्दर ही रोकिये निस्श्वास से पूर्व ।
आपके बेलगाम विचारों ,रेज़ रियेक्शंस को प्राणायाम काबू में रखने में असरदार सिद्ध होगा .कभी भी कहीं भी आज़माइश कर देखिये .बस थोड़ा सा वक्त निकालिए प्राणायाम के लिए .नेत्र मूँद लीजिये ,१०-१५ लम्बे लम्बे सांस अन्दर खींचिए ,ध्यान अपने नथुनों पर टिकाइए .बस एक बार में इतना ही तो करना है .बेशक कई मर्तबा ऐसा कर सकतें हैं ।
एक्सर -साइज़ :सुबह उठते ही व्यायाम की शुरू आत की जा सकती है .अलबत्ता घर का कोई एक कौना अपने लिए तलाशिये कसरत के लिए ।
भुजंग -आसन :इस आसन के लिए पेट के बल लेट जाना है .चेहरा ज़मीन की ओरही रहेगा .हथेलियों को ज़मीन पर टिकाये टिकाये पीठ की ताकत से अपने शरीर के अग्र भाग को जितना हो सके ऊपर उठाना है .ऊपर की तरफ ही देखना है .बस इसी क्रम को दोहराना है अपनी सामर्थ्य ओर शरीर के मिजाज़ के अनुरूप (अपने शरीर के बारे में सिर्फ आप ही जानतें हैं .).भुजंग आसन आपकी रीढ़ की ओर रक्त प्रवाह बढ़ाकर कमर को मजबूती देता है .इट अल्टीमेटली रेवस अप यूओर नर्व्ज़।
शलभ -आसन :भुजंग के समान इसमें भी पेट के बल ही लेटना है लेकिन लेकिन सिर्फ बारी बारी एक बार में एक ही टांग को धीरे धीरे ऊपर छत की ओर उठाना है .थोड़ी देर वही रोकना है .ओर बस फिर टांग को पूर्व स्थिति में लाकर यही क्रम दूसरी टांग के लिए भी दोहराना है .यह आपकी जंघाओं की पेशियों को ताकत देता है ।
चक्र -आसन :दोनों पैरों में दूरी बनाते हुए खड़े हो जाइए .लम्बी सांस खींचिए ओर अपने दोनों हाथ नितम्बों पर टिकाये पीछे की ओर झुकते चले जाना है .अभ्यास करना है ज़मीन को छू लेने का .तीर कमान की डोरी सा ,धनुष सा तन जाना है .अब इसका विलोम यानी आगे की ओर झुकते हुए अपने पैर के अन्गुष्ठों(बिगर टोज़)को छूने का अभ्यास करना है .इस दरमियान सांस बाहर छोडनी है ।
अवसाद से छुटकारा दिलवाने में यह कसरत ,आसन, विधाई भूमिका निभाता है .आप अपने में ताकत अनुभव करतें हैं प्रत्यंचा सा तानते हुएखुद को ओर आगे झुकना समर्पण भाव है समझौता है जीवन की विषमतर स्थितियों को अपनाने अपना बनाने का .विषम स्थितियों से घबराना कैसा ?
डाईट:सारा खेल आज खुराख से ही तो जुड़ा है .जैसा अन्न वैसा मन .यु बिकम व्हाट यु ईट .यु बिकम व्हाट यु ड्रिंक ।अन्न से ही जुडी है आपके मानसिक स्वास्थ्य ,सम्पूर्ण स्वास्थ्य की नव्ज़.
आप अवसाद की स्थिति में जो कुछ खातें हैं उसका अनुकूल ओर विपरीत दोनों तरह का प्रभाव पड़ सकता है .एहम बात है आप खातें क्या हैं ?
सुबह उठकर गुनगुना पानी पीजिये .कभी कभार इसमें अदरक का सत अदरक का रस मिला सकतें हैं ।
फायदा पहुंचाता है यह अवसाद रोधी है ।
कार्य स्थल पर जहां तक हो चाय ,कोफी ,जंक फूड्स से बचिए .नाहक यह दिमागी उत्तेजन पैदा करतें हैं ।
इनके स्थान पर नट्स ,दलिया ,लेमोनेड ,ब्लेक पेपर ,लेमन ग्रास आपको खाने में ज़रूरी हेपी हारमोंस मुहैया कर्वायेंगें .आपके परेशान दिलो -दिमाग को राहत देंगें .सबसे ज्यादा ज़रूरी है -खाने का नियमित वक्त तय करना .कोई समझौता नहीं इससे .आप क्या खातें हैं जितना ही ज़रूरी है आप कब खातें हैं ,वक्त पर या वक्त बे -वक्त कभी भी?
सन्दर्भ -सामिग्री :-देट राइजिंग फीलिंग ,दी "की" टू यूओर डार्केस्ट मूमेन्ट्स ऑफ़ डिप्रेशन मे लाइ इन सिम्पिल ,फोकस्ड ब्रीदिंग .हेयर इज हाओ.(हेल्थ टिप्स /कोलम "यु"/मुंबई मिरर ,जुलाई २४ ,२०१० ,पृष्ठ ३२ )
पतंग का आविष्कार कब और किसने किया था ?
बेशक इसका ठीक ठीक अंदाजा लगाना किसी के बूते की बात नहीं है ,.ऐसा समझा जाता है सबसे पहले अब से कोई २,८०० बरस पहले इनका चलन चीन में शुरू हुआ था ।
कुछ ने इसके आविष्कार का श्रेय ५०० बी सी के चीनी दार्शनिक मोजी और लू बन को देने की कोशिश की है ।
५४९ ए डी में पेपर काईट (कागज़ की बनी पतंगें )चलन में आ गईं थीं .उन दिनों यह "रेस्क्यू मिशन "यानी जोखिम ,किसीभी खतरनाक ,अप्रिय स्थिति से बचाव का सन्देश देतीं थीं .यानि सूचना तंत्र का अंग बनी हुईं थीं ।
अलबत्ता प्राचीन और मध्य -युगीन चीन में पतंगों का स्तेमाल दूरियां नापने ,हवा का रुख जानने समझने के लिए भी किया गया ।
सिग्नलिंग ,सैन्य-संचार ,लिफ्टिंग मेन आदि सेवाओं में भी इनका स्तेमाल होने लगा ।
आज पतंग -बाज़ी एक जाना पहचाना शौक है .
कुछ ने इसके आविष्कार का श्रेय ५०० बी सी के चीनी दार्शनिक मोजी और लू बन को देने की कोशिश की है ।
५४९ ए डी में पेपर काईट (कागज़ की बनी पतंगें )चलन में आ गईं थीं .उन दिनों यह "रेस्क्यू मिशन "यानी जोखिम ,किसीभी खतरनाक ,अप्रिय स्थिति से बचाव का सन्देश देतीं थीं .यानि सूचना तंत्र का अंग बनी हुईं थीं ।
अलबत्ता प्राचीन और मध्य -युगीन चीन में पतंगों का स्तेमाल दूरियां नापने ,हवा का रुख जानने समझने के लिए भी किया गया ।
सिग्नलिंग ,सैन्य-संचार ,लिफ्टिंग मेन आदि सेवाओं में भी इनका स्तेमाल होने लगा ।
आज पतंग -बाज़ी एक जाना पहचाना शौक है .
जीवाणु से बहु- विध बचाएगा ग्रेफीन (कार्बन के पन्ने ).
ब्रितानी साइंसदानों ने २००४ में कार्बन की अति महीन शीट्स (पन्ने ,चादरें )तैयार की थीं .इन्हें ग्रेफीन कहा गया था .अमरीकी केमिकल सोसायटी के विज्ञान प्रपत्र "जर्नल नानो "के अनुसार इसका स्तेमाल करने की कोशिशें सौर सेल्स ,कंप्यूटर चिप्स ,सेन्सर्स आदि में की गईं थीं ।
अब इसे अब तक की महीनतम शीट्स में ढाल कर एक बहु विध उपयोगी कागज़ तैयार किया गया है जिसका स्तेमाल फ़ूड पैकेजिंग में खाने को देर तक जीवाणु रहित और तरो -ताज़ा बनाए रखने ,फुट ओडर से बचे रहने ,एंटी -बेक्तीरीअल बेंदेजिज़आदि में किया जा सकेगा .
सन्दर्भ -सामिग्री :-ए पेपर देट वार्ड्स ऑफ़ हार्मफुल बेक -टीरिया:(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० ,पृष्ठ १७ ).
अब इसे अब तक की महीनतम शीट्स में ढाल कर एक बहु विध उपयोगी कागज़ तैयार किया गया है जिसका स्तेमाल फ़ूड पैकेजिंग में खाने को देर तक जीवाणु रहित और तरो -ताज़ा बनाए रखने ,फुट ओडर से बचे रहने ,एंटी -बेक्तीरीअल बेंदेजिज़आदि में किया जा सकेगा .
सन्दर्भ -सामिग्री :-ए पेपर देट वार्ड्स ऑफ़ हार्मफुल बेक -टीरिया:(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २६ ,२०१० ,पृष्ठ १७ ).
रविवार, 25 जुलाई 2010
क्या होती है "बनाना प्रोब्लम "?
इस शब्दावली के पीछे एक कथा है :एक थी छोटी सी लडकीथी जिसने यह बतलाया था "मुझे बनाना शब्द का उच्चारण तो पता है लेकिन यह नहीं पता इसे उच्चारित करते वक्त रुकना कहाँ है ?स्ट्रेस ,बलाघात कहाँ है ?
बस यहीं से "बनाना प्रोब्लम "प्रयोग चल निकला ।
बनाना प्रोबलम काबुनियादी अर्थ है कब और कहाँ रुकना है ।
कंप्यूटर प्रोग्रेमिंग में इस समस्या का ज़िक्र आम है .एक एलोगोरिथंम का समापन गलत हुआ नहीं ,बस उसकी पुनरावृत्ति शुरू हो जाती है ."एन अल्गोरिथम विद इम्प्रोपर टर्मिनेशन कमांड लीड्स टू इट्स रिपीटीशन ."वेब डिजाइन में भी यह शब्द प्रयोग आम है ।
"इट (दी टर्म बनाना प्रोब्लम ) आल्सो एप्लाइज़ टू ए वेब डिज़ाइन ,व्हिच इज सब्जेक्तिद टू फीचर क्रीप ऑर दी रेपिड एक्सपेंशन ऑफ़ फीचर्स व्हिच कोम्प्लिकेट दी सिम्पिल डिजाइन .
बस यहीं से "बनाना प्रोब्लम "प्रयोग चल निकला ।
बनाना प्रोबलम काबुनियादी अर्थ है कब और कहाँ रुकना है ।
कंप्यूटर प्रोग्रेमिंग में इस समस्या का ज़िक्र आम है .एक एलोगोरिथंम का समापन गलत हुआ नहीं ,बस उसकी पुनरावृत्ति शुरू हो जाती है ."एन अल्गोरिथम विद इम्प्रोपर टर्मिनेशन कमांड लीड्स टू इट्स रिपीटीशन ."वेब डिजाइन में भी यह शब्द प्रयोग आम है ।
"इट (दी टर्म बनाना प्रोब्लम ) आल्सो एप्लाइज़ टू ए वेब डिज़ाइन ,व्हिच इज सब्जेक्तिद टू फीचर क्रीप ऑर दी रेपिड एक्सपेंशन ऑफ़ फीचर्स व्हिच कोम्प्लिकेट दी सिम्पिल डिजाइन .
क्या है स्वेत क्रान्ति ?
भारत के गुजरात और राजस्थान दो ऐसे राज्य रहें है जहां दूध का उत्पादन स्थानीय खपत से भी ज्यादा होता रहा है .इसी स्थिति का दोहन शोषण करने के लिए नेशनल डैरी डेवलपमेंट बोर्ड ने १९७० में बड़े पैमाने पर पशुचिकत्सा विषयक केन्द्रों ,दूध को देर तक जीवाणु रहित बनाए रखने वाले प्रशीतक संयंत्रों (मिल्क चिलिंग सेंटर्स ),दुग्ध संशाधित करने वाले केन्द्रों की स्थापना करदुग्ध सहकारी आन्दोलन कोएक नै ताकत प्रदान की .आनंद मिल्क यूनियन लिमिटिड (ए एम् यु एल यानी अमूल ) तभी से राष्ट्र की सेवा में रत है .बेशक इसे ओपरेशन फ्लड के तहत खाद्य एवं कृषि संस्था से इमदाद के बतौर बटर -आयल और दुग्ध पाउडर इफरात से मिला ।
यहीं से भारत में एक स्वेत क्रान्ति का आगाज़ हुआ .आज भारत अग्रणी दुग्ध उत्पादक मुल्कों की कतार में खड़ा है .
यहीं से भारत में एक स्वेत क्रान्ति का आगाज़ हुआ .आज भारत अग्रणी दुग्ध उत्पादक मुल्कों की कतार में खड़ा है .
क्या है ओपरेशन स्माइल ?
यह एक गैर सरकारी ,परोपकारी चिकित्सा संस्था है .इसका मुख्यालय नोरफोल्क ,वर्जिनिया (यू एस ए )में है तथा इसकी दुनिया भर में पचास देशों में शाखाएं हैं .यह परोपकारी संगठन भारत में भी कार्यरत है .जन्मजात क्लेफ्ट लिप्स और क्लेफ्ट पैलट से ग्रस्त नौनिहालों को यह निष् -शुल्क चिकित्सा मुहैया करवाता है ।
कुछ बच्चों का ऊपरी होंठ तो कुछ का हलक ही दरार लिए होता है .ठोड़ी भी कई मर्तबा स्प्लिट होती है जन्म से ही ।
क्लेफ्ट लिप इज ए मेडिकल कंडीशन इन व्हिच सम बडी इज बोर्न विद देयर अपर लिप स्प्लिट ।
क्लेफ्ट पैलट :इज ए कंडीशन इन व्हिच समबडी इज बोर्न विद दी रूफ ऑफ़ देयर माउथ स्प्लिट ,मेकिंग अनेबिल टू स्पीक किल्यरली।
शल्य चिकित्सा (प्लास्टिक सर्जरी )मुहैया करवाने वाली इस संस्था"ओपरेशन स्माइल " की स्थापना १९८२ में डॉ विलियम मागी तथा कथ्लीन मागी ने की .यह संस्था अंतर -राष्ट्रीय स्वयं सेवी मिशन आयोजित करने के अलावा काया चिकित्सकों के प्रशिक्षण में भी मदद करती है .अतिरिक्त कौशल की अपेक्षा रखती है क्लेफ्ट लिप और क्लेफ्ट पैलट की दुरुस्ती करने वाली सर्जरी .पेचीला तो है ही ।
अब तक यह संस्था दुनिया भर में १,५० ,००० नौनिहालों और एवं युव जनों को अपनी सेवाए मुहैया करवा चुकी है .सही कहा गया है -परहित सरस धरम नहीं भाई .
कुछ बच्चों का ऊपरी होंठ तो कुछ का हलक ही दरार लिए होता है .ठोड़ी भी कई मर्तबा स्प्लिट होती है जन्म से ही ।
क्लेफ्ट लिप इज ए मेडिकल कंडीशन इन व्हिच सम बडी इज बोर्न विद देयर अपर लिप स्प्लिट ।
क्लेफ्ट पैलट :इज ए कंडीशन इन व्हिच समबडी इज बोर्न विद दी रूफ ऑफ़ देयर माउथ स्प्लिट ,मेकिंग अनेबिल टू स्पीक किल्यरली।
शल्य चिकित्सा (प्लास्टिक सर्जरी )मुहैया करवाने वाली इस संस्था"ओपरेशन स्माइल " की स्थापना १९८२ में डॉ विलियम मागी तथा कथ्लीन मागी ने की .यह संस्था अंतर -राष्ट्रीय स्वयं सेवी मिशन आयोजित करने के अलावा काया चिकित्सकों के प्रशिक्षण में भी मदद करती है .अतिरिक्त कौशल की अपेक्षा रखती है क्लेफ्ट लिप और क्लेफ्ट पैलट की दुरुस्ती करने वाली सर्जरी .पेचीला तो है ही ।
अब तक यह संस्था दुनिया भर में १,५० ,००० नौनिहालों और एवं युव जनों को अपनी सेवाए मुहैया करवा चुकी है .सही कहा गया है -परहित सरस धरम नहीं भाई .
एकांत वासी केकड़ा (हर्मिट क्रेब) क्या है ?
हर्मिट क्रेब :इट इज ए सोफ्ट बॉडीड क्रेब देट टेक्स ओवर एन एम्प्टी मोलास्क्स शेल ,युज्युअली ए व्हेल्क शेल एंड केरीज़ इट अराउंड ओंन इट्स बेक फॉर प्रोटेक्शन एंड टू रिटायर इनटू ।
माल्स्क :यह एक मृदु कवच धारी जीव है .कोमल और अखंड शरीर होता है इसका .आमतौर पर यह एक कठोर आवरण युक्त कोष में रहता है .जल में भी भूमि पर भी .उभयचर है .
ज़ाहिर है अपने कोमल शरीर की हिफाज़त के लिए ही हर्मिट क्रेब मोल- स्क के कठोर आवरण का स्तेमाल करता है .इसका अपना आवरण अपेक्षाकृत कम कठोर होता है ।
दूसरे जंतुओं के कठोरऔर पुराने पड़ चुके शेल को ही यह अपनाता है .पुराने धुराने घर में रहने ,ओल्ड शेल को अपनाने की वजह ही से इसे हर्मिट क्रेब कहा जाता है ।
इनकी बस्ती ओशन फ्लोर पर ही देखने को मिलती है .यहीं तमाम प्रजातियाँ डेरा डाले रहतीं हैं .बेशक कई प्रजातियाँ थल -वासी भी हैं .अलबता प्रजनन के लए इन थल वासी मादाओं को (टेरिस्ट्रियल हर्मिट फीमेल्स को भी )समुन्द्र की और ही लौटना पड़ता है .गैर रीढ़ धारी होतें हैं हर्मिट क्रेबस .सर्व भक्षी भी .वनस्पति और मांस दोनों को चट करने वाले सफाई कर्मचारी हैं ये ,स्केवेंजर्स हैं .
माल्स्क :यह एक मृदु कवच धारी जीव है .कोमल और अखंड शरीर होता है इसका .आमतौर पर यह एक कठोर आवरण युक्त कोष में रहता है .जल में भी भूमि पर भी .उभयचर है .
ज़ाहिर है अपने कोमल शरीर की हिफाज़त के लिए ही हर्मिट क्रेब मोल- स्क के कठोर आवरण का स्तेमाल करता है .इसका अपना आवरण अपेक्षाकृत कम कठोर होता है ।
दूसरे जंतुओं के कठोरऔर पुराने पड़ चुके शेल को ही यह अपनाता है .पुराने धुराने घर में रहने ,ओल्ड शेल को अपनाने की वजह ही से इसे हर्मिट क्रेब कहा जाता है ।
इनकी बस्ती ओशन फ्लोर पर ही देखने को मिलती है .यहीं तमाम प्रजातियाँ डेरा डाले रहतीं हैं .बेशक कई प्रजातियाँ थल -वासी भी हैं .अलबता प्रजनन के लए इन थल वासी मादाओं को (टेरिस्ट्रियल हर्मिट फीमेल्स को भी )समुन्द्र की और ही लौटना पड़ता है .गैर रीढ़ धारी होतें हैं हर्मिट क्रेबस .सर्व भक्षी भी .वनस्पति और मांस दोनों को चट करने वाले सफाई कर्मचारी हैं ये ,स्केवेंजर्स हैं .
अवसाद से राहत के लिए
"देट राइजिंग फीलिंग ",दी की टू यूओर डार्केस्ट मुमेंट्स ऑफ़ डिप्रेशन मे लाइ इन सिम्पिल ,फोकस्ड ब्रीदिंग .हेअर इज हाव (यू /हेल्थ टिप्स /मुंबई मिरर /जुलाई २४ ,२०१० ,पृष्ठ ,३२ ).
बेशक अवसाद को अब एक स्वतन्त्र रोग का दर्जा मिल गया है जिसका एक बायो -केमिकल आधार भी है और अब इसे इतर मानसिक विकारों का आनुषांगिक ,संग साथ लक्षण लिए चले आना वाला रोगमात्र नहीं माना जाता है ,खुद में एक आम फ़हम रोग बन चला है डिप्रेशन .डी एस एम् ४ (डायगो-नोस्तिकल -स्तातिस्तिकल मेन्युअल ४ )वर्गीकरण में इसे बाकायदा एक अलग मानसिक रोग का दर्जा मिल चुका है ।
माहिरों ने बतलाया है हमारी युवा भीड़ (युव जन )अधैर्य के चलते जल्दी ही इस ला -इलाज़ बनते (जीवन शैली?) रोग की चपेट में आ रहें हैं .चाहे वह विवेक बाबाजी की आत्महत्या का मामला हो या हाल ही में कई और मोडिल्स बनने की इच्छुक शख्शियत का .वजह एक ही निकल कर आ रही है "इम्पेशेंश ".गुजिस्ता बरसों में परीक्षा के नतीजों को लेकर आये दिन आत्म -ह्त्या के मामले सामने आते रहें हैं यहाँ तक की नौनिहाल भी इसकी चपेट में आने लगें हैं .और यह सब उस देश में हो रहा है जो योग गुरु बना रहा है दुनिया जहान का .
क्या कहतें हैं दी योग इंस्टिट्यूट सान्ताक्रुज़ के माहिर ?
बेशक मानसिक चिकित्सा का एक महत्त्व पूर्ण अंग ,आनुषांगिक ,संपूरकचिकित्सा के रूप में उभर कर आई है योग चिकित्सा .अंतर -अनुशाशन चिकित्सा के इस दौर में ऐसा होना सहज स्वाभाविक भी है ।
आखिर काया और व्यक्ति के मानस (मन )दोनों को ही असरग्रस्त करता है -अवसाद .साइको -सोमाटिक ही नहीं ,बायो -साइको -सोसल भी है यह मानसिक विकार .आनुवंशिक वजहों के अलावा हमारे संवेगों और व्यवहार को संचालित करने वाला मनो -विज्ञान ,हमारा सामाजिक ,पारिवारिक परिवेश भी एक ट्रिगर का काम करता है अवसाद को उभारने में .ज़ाहिर है अवसाद एक वजहें अनेक ।
अपनेआप को गैर ज़रूरी मानने समझने लगना ,बेकार ,नाकारा मान बैठना रोग की जड़ में है .आत्म विशवास की कमी भी .
सही नज़रिया अपने, अपने परिवेश के प्रति ,अपनों के प्रति ,अपनी खुराख ,कसरत के लिए बस थोड़ा सा मार्जिन दैनिकी में रखने की ज़रुरत है ।
ब्रीदिंग एक्सर- साइज़ ,मेडिटेशन का आपकी बात बेबात रिएक्ट करने खीजने की आदत को छुडाने में बड़ा हाथ साबित हो सकता है .अष्ट योग का (योग के आठ अंगों में से एक )महत्वपूर्ण अंग है ध्यान ।
टेकलिंग डिप्रेशन :
प्राणायाम और "निस्पंध भाव "का नियमित अभ्यास आत्म हीनता की भावना से मुक्त करवाने में विधाई भूमिका निभा सकता है .सबसे बड़ा ख़तरा अवसाद में आत्मघात का ही बना रहता है जिसके मूल में खुद को एक दम से असहाय समझ बैठने की प्रवृत्ति काम करती है ।
आसनों को कार्य स्थल के अनुरूप ढाला जा सकता है .बस थोड़ी सी स्ट्रेचिंग ,बेन्डिंग ,रिलेक्स्ड ब्रीदिंग ही तो काम के बीच बीच में एक छोटे से अंतराल (ब्रेक के बतौर करनी है ).कोई पहाड़ नहीं खोदना है ।
बेशक योग एक पूरक आनुषांगिक चिकित्सा ही रहेगी .ज़रूरी बायो -केमिकल्स का ब्रेन केमिस्ट्री को दुरुस्त करने रखने में अपना एहम रोल है और बना रहेगा .आखिर बायो -केमिकल इम्बैलेंस ही तो हैं मानसिक रोग ,साइकेट्रिक एल्मेंट्स ।
कुछ जैव -रसायन ज़रूरत से ज्यादा या फिर कमतर बनने लगतें हैं मस्तिष्क में ,मानसिक रोग होने पर .बस इनकी मात्रा का विनियमन ही ड्रग थिरेपी है (रसायन चिकित्सा है )।
नियम निष्ठ होकर दवा तो अपने मनोरोग विद के अनुदेशों पर लेनी ही है .लेकिन योग के संग सलाह मशविरे ,क्लिनिकल कौंसेलिंग का अपना असर पड़ता है .सकारात्मक सोच जादुई असर दखाती है ।
त्रि -आयामीय हमला बोलिए अवसाद पर :
ब्रीदिंग ,एक्सरसाइज़ और खुराख का सही चयन और दैनिकी में समावेश अवसाद को परे रखेगा ।
अलबत्ता अपने शरीर का मिजाज़ आप और केवल आप जानतें हैं .कौन सा व्यायाम ,कौन सी कसरत ,कौन से आसन आपकी सेहत मेडिकल कंडीशन यदि कोई है ,उसके अनुरूप हैं यह सिर्फ आपको देखना समझना है .बाहरी मदद ले सकतें हैं ।
बेशक अवसाद को अब एक स्वतन्त्र रोग का दर्जा मिल गया है जिसका एक बायो -केमिकल आधार भी है और अब इसे इतर मानसिक विकारों का आनुषांगिक ,संग साथ लक्षण लिए चले आना वाला रोगमात्र नहीं माना जाता है ,खुद में एक आम फ़हम रोग बन चला है डिप्रेशन .डी एस एम् ४ (डायगो-नोस्तिकल -स्तातिस्तिकल मेन्युअल ४ )वर्गीकरण में इसे बाकायदा एक अलग मानसिक रोग का दर्जा मिल चुका है ।
माहिरों ने बतलाया है हमारी युवा भीड़ (युव जन )अधैर्य के चलते जल्दी ही इस ला -इलाज़ बनते (जीवन शैली?) रोग की चपेट में आ रहें हैं .चाहे वह विवेक बाबाजी की आत्महत्या का मामला हो या हाल ही में कई और मोडिल्स बनने की इच्छुक शख्शियत का .वजह एक ही निकल कर आ रही है "इम्पेशेंश ".गुजिस्ता बरसों में परीक्षा के नतीजों को लेकर आये दिन आत्म -ह्त्या के मामले सामने आते रहें हैं यहाँ तक की नौनिहाल भी इसकी चपेट में आने लगें हैं .और यह सब उस देश में हो रहा है जो योग गुरु बना रहा है दुनिया जहान का .
क्या कहतें हैं दी योग इंस्टिट्यूट सान्ताक्रुज़ के माहिर ?
बेशक मानसिक चिकित्सा का एक महत्त्व पूर्ण अंग ,आनुषांगिक ,संपूरकचिकित्सा के रूप में उभर कर आई है योग चिकित्सा .अंतर -अनुशाशन चिकित्सा के इस दौर में ऐसा होना सहज स्वाभाविक भी है ।
आखिर काया और व्यक्ति के मानस (मन )दोनों को ही असरग्रस्त करता है -अवसाद .साइको -सोमाटिक ही नहीं ,बायो -साइको -सोसल भी है यह मानसिक विकार .आनुवंशिक वजहों के अलावा हमारे संवेगों और व्यवहार को संचालित करने वाला मनो -विज्ञान ,हमारा सामाजिक ,पारिवारिक परिवेश भी एक ट्रिगर का काम करता है अवसाद को उभारने में .ज़ाहिर है अवसाद एक वजहें अनेक ।
अपनेआप को गैर ज़रूरी मानने समझने लगना ,बेकार ,नाकारा मान बैठना रोग की जड़ में है .आत्म विशवास की कमी भी .
सही नज़रिया अपने, अपने परिवेश के प्रति ,अपनों के प्रति ,अपनी खुराख ,कसरत के लिए बस थोड़ा सा मार्जिन दैनिकी में रखने की ज़रुरत है ।
ब्रीदिंग एक्सर- साइज़ ,मेडिटेशन का आपकी बात बेबात रिएक्ट करने खीजने की आदत को छुडाने में बड़ा हाथ साबित हो सकता है .अष्ट योग का (योग के आठ अंगों में से एक )महत्वपूर्ण अंग है ध्यान ।
टेकलिंग डिप्रेशन :
प्राणायाम और "निस्पंध भाव "का नियमित अभ्यास आत्म हीनता की भावना से मुक्त करवाने में विधाई भूमिका निभा सकता है .सबसे बड़ा ख़तरा अवसाद में आत्मघात का ही बना रहता है जिसके मूल में खुद को एक दम से असहाय समझ बैठने की प्रवृत्ति काम करती है ।
आसनों को कार्य स्थल के अनुरूप ढाला जा सकता है .बस थोड़ी सी स्ट्रेचिंग ,बेन्डिंग ,रिलेक्स्ड ब्रीदिंग ही तो काम के बीच बीच में एक छोटे से अंतराल (ब्रेक के बतौर करनी है ).कोई पहाड़ नहीं खोदना है ।
बेशक योग एक पूरक आनुषांगिक चिकित्सा ही रहेगी .ज़रूरी बायो -केमिकल्स का ब्रेन केमिस्ट्री को दुरुस्त करने रखने में अपना एहम रोल है और बना रहेगा .आखिर बायो -केमिकल इम्बैलेंस ही तो हैं मानसिक रोग ,साइकेट्रिक एल्मेंट्स ।
कुछ जैव -रसायन ज़रूरत से ज्यादा या फिर कमतर बनने लगतें हैं मस्तिष्क में ,मानसिक रोग होने पर .बस इनकी मात्रा का विनियमन ही ड्रग थिरेपी है (रसायन चिकित्सा है )।
नियम निष्ठ होकर दवा तो अपने मनोरोग विद के अनुदेशों पर लेनी ही है .लेकिन योग के संग सलाह मशविरे ,क्लिनिकल कौंसेलिंग का अपना असर पड़ता है .सकारात्मक सोच जादुई असर दखाती है ।
त्रि -आयामीय हमला बोलिए अवसाद पर :
ब्रीदिंग ,एक्सरसाइज़ और खुराख का सही चयन और दैनिकी में समावेश अवसाद को परे रखेगा ।
अलबत्ता अपने शरीर का मिजाज़ आप और केवल आप जानतें हैं .कौन सा व्यायाम ,कौन सी कसरत ,कौन से आसन आपकी सेहत मेडिकल कंडीशन यदि कोई है ,उसके अनुरूप हैं यह सिर्फ आपको देखना समझना है .बाहरी मदद ले सकतें हैं ।
क्या है "न्यूरो -ला "?
पहले न्यूरो -साइंस को समझना होगा .स्नायुविक विज्ञान (न्यूरो -साइंस )हमारे दिमाग की संरचना एवं प्रकार्य(फंक्शन )सेताल्लुक रखता है ,नर्वस -सिस्टम (मस्तिष्क तथा समस्त स्नायु -मंडल )का अध्धय्यनभी "न्यूरो -साइंस "के तहत आता है ।
नर्व सेल या न्यूरोन क्या है ?
नर्व सेल मस्तिष्क और मष्तिष्क के अन्य अंगों के बीच सूचना वहन करती है .इसे स्नायु -कोशा या स्नायु-कोशिका भी कहा जाता है .ए सिंगिल सेल ऑफ़ दी ब्रेन इज काल्ड ए न्यूरोन .यह एक ऐसी दिमागी कोशा है जो दिमाग के एक हिस्से से दूसरे तक तथा दिमाग और शरीर के शेष अंगों के बीच सूचना संचार का सेतु बनती है ।
अब ज़नाब सारी खुराफात आदमी के दिमाग में ही तो उपजती है .इसीलिए "ला" और कानूनी मामलों में न्यूरो -साइंटिफिक साक्षी (साक्ष्य) का महत्त्व लगातार बढ़ रहा है ।
"न्यूरो -ला" एक नया अनुशाशन है ,एक अभिनव डिसिप्लिन है जो कानूनी दांव पैचों को और बारीकी में ले जा सकता है ताकि मामले की तह तक पहुंचा जा सके ख़ास कर यौन आपराधिक मामलों ,बलात्कारऔर फिर ह्त्या आदि की तह दर तह खोली समझी जा सके .ज़ाहिर है इसके लिए एक मानकीकरण ज़रूरी है इन साक्ष्यों का .ताकि साक्ष्यों को कोई मेट ना सके ।
इस क़ानून के प्रस्तावकों का मानना समझना यह भी है ,इसका अपराध और अपराध बोध ,सज़ाकी अवधि और किस्म के निर्धारण में ,झूठ की पड़ताल ,और पूर्व -आग्रहों पर बेहद असर पड़ेगा .
नर्व सेल या न्यूरोन क्या है ?
नर्व सेल मस्तिष्क और मष्तिष्क के अन्य अंगों के बीच सूचना वहन करती है .इसे स्नायु -कोशा या स्नायु-कोशिका भी कहा जाता है .ए सिंगिल सेल ऑफ़ दी ब्रेन इज काल्ड ए न्यूरोन .यह एक ऐसी दिमागी कोशा है जो दिमाग के एक हिस्से से दूसरे तक तथा दिमाग और शरीर के शेष अंगों के बीच सूचना संचार का सेतु बनती है ।
अब ज़नाब सारी खुराफात आदमी के दिमाग में ही तो उपजती है .इसीलिए "ला" और कानूनी मामलों में न्यूरो -साइंटिफिक साक्षी (साक्ष्य) का महत्त्व लगातार बढ़ रहा है ।
"न्यूरो -ला" एक नया अनुशाशन है ,एक अभिनव डिसिप्लिन है जो कानूनी दांव पैचों को और बारीकी में ले जा सकता है ताकि मामले की तह तक पहुंचा जा सके ख़ास कर यौन आपराधिक मामलों ,बलात्कारऔर फिर ह्त्या आदि की तह दर तह खोली समझी जा सके .ज़ाहिर है इसके लिए एक मानकीकरण ज़रूरी है इन साक्ष्यों का .ताकि साक्ष्यों को कोई मेट ना सके ।
इस क़ानून के प्रस्तावकों का मानना समझना यह भी है ,इसका अपराध और अपराध बोध ,सज़ाकी अवधि और किस्म के निर्धारण में ,झूठ की पड़ताल ,और पूर्व -आग्रहों पर बेहद असर पड़ेगा .
शनिवार, 24 जुलाई 2010
सेलाइवा बेस्ड टेस्ट्स किट्स कितनी भरोसे मंद ?
सेलाइवा -बेस्ड जीन टेस्ट्स किट्स गिव बोगस रिज़ल्ट्स :प्रोब (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २४ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
जेनेटिक टेस्टिंग यू एस कम्पनीज लार की जांच करके प्रोस्टेट कैंसर या डायबिटीज़ के जोखिम का वजन बताने का दावा तो करतीं हैं लेकिन ये दावे सिर्फ दावे ही सिद्ध हो रहें हैं .इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता .आलम यह है जितनी जेनेटिक टेस्टिंग कम्पनीज उतने ही अलग नतीजे ,रोग एक निदान अनेक ।सुनिश्चित कुछ भी नहीं ।सब गोल गपाड़ा .
यह शिकायत किसी आम आदमी ने नहीं स्वयं अमरीकन गमेंट्स इन्वेस्तिगेतर्स ने "ला" मेकर्स से की है .
इन जांच कर्ताओं ने जब चोरी छिपे ,गुप्त रूप से ऐसी चार कम्पनियों की जांच की जिन्हें पांच लोगों ने अपनी लार के नमूने(डी एन ए ) जांच के लिए भेजे थे ,नतीजों में परस्पर कोई ताल मेल नहीं था .जब की बीमारी एक ही थी जिसका रोग निदान ६८ फीसद गलत तय किया गया था .असंगत था ६८ फीसद मामलों में ।
पांच में से चार डोनर्स के टेस्ट्स नतीजे ना तो उनकी मेडिकल कंडीशन के अनुरूप थे और ना ही उनकी पारिवारिक पृष्ठ -भूमि (फेमिली हिस्ट्री) सेही मेल खाते थे .
गोमेंट एकाउन्तेबिलिति ऑफिस ने जिन परीक्षणों की अध्धय्यन -जांच की उनमे से हरेक पर खर्च आया था ३००-१००० डॉलर्स .इन परीक्षणों को भरोसे मंद मानते हुए उम्मीद की गई थी एक सरीखे डी एन ए के नतीजे भी यकसां ही आयेंगें .लेकिन हुआ ठीक इसके उलट .डी एन ए एक जैसे नतीजे विषम ।
ज़ाहिर है टेस्ट्स कम्पनीज धोखाधड़ी का धंधा कर रहीं हैं .बाज़ार के कायदे कानूनों को ठेंगा दिखाना है .यह कैसी मार्किटिंग प्रेक्तिसिज़ हैं .उपभोक्ता को छल रहीं हैं ये कम्पनियां .बेकार है इनका होना हवाना उपभोक्ता के लिए ।
ये कम्पनियां (जेनोमिक टेस्टिंग कम्पनीज )बाज़ार में इस मंशा से उतारी गईं थीं यह सही प्रागुक्ति करेंगी खानदानी रोगों की ,इन्हेरितेबिल दिजीज़िज़ की ।
धड़ल्ले से बिकतें रहें हैं यह टेस्ट्स किट्स ओंन लाइन बरसों से .भला हो पाथवे जेनोमिक्स का जिसने अपने उत्पाद फुटकर बेचने की घोषणा की .वरना इनका सूक्ष्म परीक्षण कहाँ ,कब होना था .किसे करना था ?
जेनेटिक टेस्टिंग यू एस कम्पनीज लार की जांच करके प्रोस्टेट कैंसर या डायबिटीज़ के जोखिम का वजन बताने का दावा तो करतीं हैं लेकिन ये दावे सिर्फ दावे ही सिद्ध हो रहें हैं .इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता .आलम यह है जितनी जेनेटिक टेस्टिंग कम्पनीज उतने ही अलग नतीजे ,रोग एक निदान अनेक ।सुनिश्चित कुछ भी नहीं ।सब गोल गपाड़ा .
यह शिकायत किसी आम आदमी ने नहीं स्वयं अमरीकन गमेंट्स इन्वेस्तिगेतर्स ने "ला" मेकर्स से की है .
इन जांच कर्ताओं ने जब चोरी छिपे ,गुप्त रूप से ऐसी चार कम्पनियों की जांच की जिन्हें पांच लोगों ने अपनी लार के नमूने(डी एन ए ) जांच के लिए भेजे थे ,नतीजों में परस्पर कोई ताल मेल नहीं था .जब की बीमारी एक ही थी जिसका रोग निदान ६८ फीसद गलत तय किया गया था .असंगत था ६८ फीसद मामलों में ।
पांच में से चार डोनर्स के टेस्ट्स नतीजे ना तो उनकी मेडिकल कंडीशन के अनुरूप थे और ना ही उनकी पारिवारिक पृष्ठ -भूमि (फेमिली हिस्ट्री) सेही मेल खाते थे .
गोमेंट एकाउन्तेबिलिति ऑफिस ने जिन परीक्षणों की अध्धय्यन -जांच की उनमे से हरेक पर खर्च आया था ३००-१००० डॉलर्स .इन परीक्षणों को भरोसे मंद मानते हुए उम्मीद की गई थी एक सरीखे डी एन ए के नतीजे भी यकसां ही आयेंगें .लेकिन हुआ ठीक इसके उलट .डी एन ए एक जैसे नतीजे विषम ।
ज़ाहिर है टेस्ट्स कम्पनीज धोखाधड़ी का धंधा कर रहीं हैं .बाज़ार के कायदे कानूनों को ठेंगा दिखाना है .यह कैसी मार्किटिंग प्रेक्तिसिज़ हैं .उपभोक्ता को छल रहीं हैं ये कम्पनियां .बेकार है इनका होना हवाना उपभोक्ता के लिए ।
ये कम्पनियां (जेनोमिक टेस्टिंग कम्पनीज )बाज़ार में इस मंशा से उतारी गईं थीं यह सही प्रागुक्ति करेंगी खानदानी रोगों की ,इन्हेरितेबिल दिजीज़िज़ की ।
धड़ल्ले से बिकतें रहें हैं यह टेस्ट्स किट्स ओंन लाइन बरसों से .भला हो पाथवे जेनोमिक्स का जिसने अपने उत्पाद फुटकर बेचने की घोषणा की .वरना इनका सूक्ष्म परीक्षण कहाँ ,कब होना था .किसे करना था ?
लेट एज फर्टिलिटी की और है यह सफ़र
ट्रेंड ऑफ़ हेविंग किड्स लेट कुड मेक टुमारोज़ वोमेन मोर फर्टाइल इन फोटीज़(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २४ ,२०१० ,मुंबई ,पृष्ठ १९ )।
आज की महिला जीवन में सब कुछ हासिल करने के बाद ही परिवार बसाना सोचती है .चालीस के पार जा सकती है कलअधिकतम फर्टिलिटी की औसत उम्र .ब्रितानी माहिरों ने यही राय ज़तलाई है .
अब क्योंकि ज्यादातर औरतें चालीस के आसपास ही माँ बनने की कोशिश करतीं हैं ,ज़ाहिर है कामयाबी उन्हीं के हाथ लगती है जिनकी फर्टिलिटी देर तक कायम रहती है .लोंगर लास्टिंग फर्टिलिटी जींस की स्वामिनी ये महिलायें यही जीवन इकाइयां अपनी संततियों को स्थानांतरित करेंगी .ज़ाहिर है इससे फर्टिलिटी का औसत सौपान बढेगा .अवरेज लेंग्थ ऑफ़ फर्टिलिटी विल ग्रो एज देयर जींस विल बी पास्ड़ ऑन टू देयर चिल्ड्रेन ।
शेफ़्फ़िएल्द यूनिवर्सिटी के माहिरों ने इस अध्धय्यन को आगे बढाया है .बतलाया गया है ,पहले औरत अपेक्षाकृत जल्दी विवाह बंधन में बंध परिवार (बालक बच्चे )संपन्न कर लेतीं थीं .विधवा होने पर दूसरा विवाह रचाने के लिए खुद को बेकार (बेहद प्रौढ़ )मानने समझने लगतीं थीं ।
लेकिन इस दौर में यह चलन एक दम से उलट गया है ।
फर्तिलती खिसक कर प्रौढ़ाओं के पाले में जा रही है .
शायद इसीलिए प्राकृतिक चयन यंग एज फर्टिलिटी से खिसक कर लेट एज फर्टिलिटी की और धीरे धीरे आ रहा है ।
कई पीढ़ियों के अंतराल के बाद लेट एज फर्टिलिटी सांन चढ़ेगी ,परवान चढ़ेगी .इवोल्यूशनरी ट्रेंड उलट रहा है .
आज की महिला जीवन में सब कुछ हासिल करने के बाद ही परिवार बसाना सोचती है .चालीस के पार जा सकती है कलअधिकतम फर्टिलिटी की औसत उम्र .ब्रितानी माहिरों ने यही राय ज़तलाई है .
अब क्योंकि ज्यादातर औरतें चालीस के आसपास ही माँ बनने की कोशिश करतीं हैं ,ज़ाहिर है कामयाबी उन्हीं के हाथ लगती है जिनकी फर्टिलिटी देर तक कायम रहती है .लोंगर लास्टिंग फर्टिलिटी जींस की स्वामिनी ये महिलायें यही जीवन इकाइयां अपनी संततियों को स्थानांतरित करेंगी .ज़ाहिर है इससे फर्टिलिटी का औसत सौपान बढेगा .अवरेज लेंग्थ ऑफ़ फर्टिलिटी विल ग्रो एज देयर जींस विल बी पास्ड़ ऑन टू देयर चिल्ड्रेन ।
शेफ़्फ़िएल्द यूनिवर्सिटी के माहिरों ने इस अध्धय्यन को आगे बढाया है .बतलाया गया है ,पहले औरत अपेक्षाकृत जल्दी विवाह बंधन में बंध परिवार (बालक बच्चे )संपन्न कर लेतीं थीं .विधवा होने पर दूसरा विवाह रचाने के लिए खुद को बेकार (बेहद प्रौढ़ )मानने समझने लगतीं थीं ।
लेकिन इस दौर में यह चलन एक दम से उलट गया है ।
फर्तिलती खिसक कर प्रौढ़ाओं के पाले में जा रही है .
शायद इसीलिए प्राकृतिक चयन यंग एज फर्टिलिटी से खिसक कर लेट एज फर्टिलिटी की और धीरे धीरे आ रहा है ।
कई पीढ़ियों के अंतराल के बाद लेट एज फर्टिलिटी सांन चढ़ेगी ,परवान चढ़ेगी .इवोल्यूशनरी ट्रेंड उलट रहा है .
इटली से चीन तक का सफ़र तय करेगी विद्युतचालित रोबो -वैन्स
ड्राइवरलेस वैन्स बिगिन ट्रिप फ्रॉम इटली टू चाइना (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई ,२४ ,२०१० )
यकीं मानिए दो चालक रहित इलेक्ट्रिक रोबोट वैन्स एक उततेजना पूर्ण साहसिक यात्रा इटली से चीन की जानिब शुरू कर चुकीं हैं .इनका मार्ग दर्शन कैमरे और लेज़र स्केनर्स करेंगें ।
इटलीके मिलान गिरजाघर से यह यात्रा "विस्लैब इंटर -कोंटीनेंटल ऑटोनोमस चेलेंज "ने शुरू की है ।
एकतरफ यह मोस्को के भीडभाड भरे रास्तों ,ट्रेफिक से दो चार होंगें दूसरी तरफ :गोबी मरुस्थल की बेशाख्ता ठंडक का सामना .ओक्टूबर के आखिर तक ही यह दोनों वाहन शंघाई पहुँच पायेंगें ।
१२,८०० किलोमीटर का लंबा सफ़र यूं यह खुद से ही तय करेंगें अलबत्ता किसी भी आकस्मिकता का मुकाबला करने के लिए इन्हें प्रोद्योगिकी के माहिरों का सहारा मिलेगा .ये तमाम माहिर बेहद से संशोधित (हेविली मोडिफाइड व्हीकिल्स में साथ साथ चलेंगें ).
यकीं मानिए दो चालक रहित इलेक्ट्रिक रोबोट वैन्स एक उततेजना पूर्ण साहसिक यात्रा इटली से चीन की जानिब शुरू कर चुकीं हैं .इनका मार्ग दर्शन कैमरे और लेज़र स्केनर्स करेंगें ।
इटलीके मिलान गिरजाघर से यह यात्रा "विस्लैब इंटर -कोंटीनेंटल ऑटोनोमस चेलेंज "ने शुरू की है ।
एकतरफ यह मोस्को के भीडभाड भरे रास्तों ,ट्रेफिक से दो चार होंगें दूसरी तरफ :गोबी मरुस्थल की बेशाख्ता ठंडक का सामना .ओक्टूबर के आखिर तक ही यह दोनों वाहन शंघाई पहुँच पायेंगें ।
१२,८०० किलोमीटर का लंबा सफ़र यूं यह खुद से ही तय करेंगें अलबत्ता किसी भी आकस्मिकता का मुकाबला करने के लिए इन्हें प्रोद्योगिकी के माहिरों का सहारा मिलेगा .ये तमाम माहिर बेहद से संशोधित (हेविली मोडिफाइड व्हीकिल्स में साथ साथ चलेंगें ).
अब हलाल मीट के बाद ब्रिटेन में "हलाल मेक- अप "
हलाल मेक -अप लौंच्ड इन ब्रिटेन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २४ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
अब एक मुस्लिम व्यवसाई मौतरमा ने ब्रिटेन में पहली मर्तबा पादप -सार (प्लांट एक्सट्रेक्ट से ) सौन्दर्य -प्रशाधन प्रस्तुत किये हैं .यह सौन्दर्य प्रशाधन एल्कोहल या फिर पशु -उत्पादों (एनीमल प्रोडक्ट्स )से पूरी तरह मुक्त हैं इन्हें "हलाल मेक -अप "कहा जा रहा है ।
ब्रिटेन में बेहद लोकप्रिय कई हाई -स्ट्रीट मेक -अप उत्पादों में एल्कोहल एवं शूकर से प्राप्त वसीयअम्ल तथा जिलेटिन (फेटि एसिड्सएंड्स, फैट्स, फ्रॉम पिग्स ) का परम्परा गत तौर पर स्तेमाल होता रहा है ।
इस्लाम में यह दोनों चीज़ें वर्जित हैं (माफ़ कीजिये वर्जित तो हिंसा और अतिरिक्त सेक्स भी है.इस्लामिक हिंसा हिंसा ना भवति ? ).समीना इस बात से ना वाकिफ थीं .इसी से प्रेरित हो आपने "समीना प्युओर मेक- अप "उर्फ़ हलाल मेक -अप रेंज लौंच की है ।
समीना अख्तर लिप्स्तिक्स और आई -लाइनर्स पादप सत से तैयार किये गएँ हैं .इनमे एसेंशियल ओइल्स और विटामिन्स भी भरपूर हैं .आप भी आजमायें .
अब एक मुस्लिम व्यवसाई मौतरमा ने ब्रिटेन में पहली मर्तबा पादप -सार (प्लांट एक्सट्रेक्ट से ) सौन्दर्य -प्रशाधन प्रस्तुत किये हैं .यह सौन्दर्य प्रशाधन एल्कोहल या फिर पशु -उत्पादों (एनीमल प्रोडक्ट्स )से पूरी तरह मुक्त हैं इन्हें "हलाल मेक -अप "कहा जा रहा है ।
ब्रिटेन में बेहद लोकप्रिय कई हाई -स्ट्रीट मेक -अप उत्पादों में एल्कोहल एवं शूकर से प्राप्त वसीयअम्ल तथा जिलेटिन (फेटि एसिड्सएंड्स, फैट्स, फ्रॉम पिग्स ) का परम्परा गत तौर पर स्तेमाल होता रहा है ।
इस्लाम में यह दोनों चीज़ें वर्जित हैं (माफ़ कीजिये वर्जित तो हिंसा और अतिरिक्त सेक्स भी है.इस्लामिक हिंसा हिंसा ना भवति ? ).समीना इस बात से ना वाकिफ थीं .इसी से प्रेरित हो आपने "समीना प्युओर मेक- अप "उर्फ़ हलाल मेक -अप रेंज लौंच की है ।
समीना अख्तर लिप्स्तिक्स और आई -लाइनर्स पादप सत से तैयार किये गएँ हैं .इनमे एसेंशियल ओइल्स और विटामिन्स भी भरपूर हैं .आप भी आजमायें .
अस्थि क्षय की वजह बन सकती है यह "फैड डाईट"
फैड डाईट टू स्टे ट्रिम मे लीड टू ओस्टियो -पोरोसिस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २४ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )
फैडी ईटर्स सावधान :नॉन -डैरी और व्हीट फ्री डाईट बेशक अपनी मौत मरेगी इसका चलन टिकने वाला नहीं है लेकिन फिलवक्त इसका खामियाजा कई मौतार्माएं उठा रहीं हैं अपने अनजाने ही .इनदिनों ऐसी फैड -डाईट चलन में है ।
माहिरों के अनुसार यहीं से एक नींव पड़ रही है उम्र से पहले ही अस्थि क्षय (ओस्टियो -पोरोसिस ) की चपेट में आने की .जो एक ऐसा रोग है जिसमे लोस ऑफ़ बोन मॉस ,अस्थि क्षय के चलते महिलाओं की अस्थियाँ उठते बैठते भी टूटने लगती हैं .अब तक इस रोग का ख़तरा मिनोपौज़ल वोमेन को ही घेरना शुरू करता था .लेकिन अब आ बैल मुझे मार वाली बात हो रही है ।
एक अध्धय्यन के मुताबिक़ वजन कम करने रखने की सनक में तकरीबन एक तिहाई महिलायें तमाम केल्सियम आपूर्ति कराने वाले खाद्य पदार्थों से बे -तरह छिटक रहीं हैं ।
यह अध्धय्यन ४५०० महिलाओं की ईतंग हेबिट्स का जायजा लेने वाले एक पोल पर आधारित रहा है .पता चला ३० फीसद महिलायें छरहरी तन्वंगी कामिनी बने रहने दिखने की चाह में तमाम तरह के स्वास्थाय्कर खाद्यों से परहेज़ रखतीं रहीं हैं .२८ फीसद ने चीज़ ,११ फीसद ने तमाम किस्म के पशु उत्पाद (डैरी प्रोडक्ट्स )अपनी खुराख से उड़ा दियें हैं ।
तकरीबन दस में से चार से भी ज्यादा यानी ४१ फीसद ने ब्रेड को अलबिदा कह दिया है (जो नियमशय केल्सियम से पुष्टिकृत की जाती है )।
एक चौथाई से भी थोड़ा ज्यादा ने (२६ फीसद ) माना है वह खाद्य पदार्थों के सिर्फ फेट वेल्यु और केलोरीज़ पर नजर रखतीं हैं बाकी सूचना उनके लिए बेकार है .पोषक तत्व (न्युत्रिशनल कंटेंट्स जाएँ चूल्हें में )।
यकीं मानिए ३५ की उम्र तक अस्थि निर्माण में कमीबेशी रह जाना (बेहूदा खुराख के चलते )आइन्दा के लिए ,भावी जीवन में ओस्टियो -पोरोसिस को निमंत्रित करता है ।
दी फ़ूड स्टेंडर्ड एजेंसी (सप्लीमेंट फर्म एल्लाक्टिवा ) के अनुसार एक बालिग़(वयस्क या एडल्ट )
की संतुलित खुराख में रोजाना ७०० मिलिग्रेम केल्सियम का होना रहना लाज़मी है ।
केल्सियम के खुराखी स्रोत :
ब्रेड ,तमाम डैरी -प्रोडक्ट (पशु उत्पाद ,दूध और दूध से बनी चीज़ें ) ,ब्रोकली ,केबेज़ ,टोफू ,नट्स ,मच्छियों में सर्दींस ,पिल्चार्ड्स ,और भी अनेक फिश खनिजों से (इसेंशियल मिनरल्स )से भरपूर हैं ।
बॉडी इमेज चाहिए या स्वस्थ अस्थियाँ फैसला हम आप पर ही छोड़तें हैं .यह शरीर ,काया आपकी है आप जैसे इसका स्तेमाल करें .हमें क्या ?
हाँ |फैट और केल्सियम दोनों ही अस्थियों को पुष्ट बनातें हैं ,खुराख में से इनकी निकासी के अपने इन बिल्ट खतरे हैं ।
फैडी ईटर्स सावधान :नॉन -डैरी और व्हीट फ्री डाईट बेशक अपनी मौत मरेगी इसका चलन टिकने वाला नहीं है लेकिन फिलवक्त इसका खामियाजा कई मौतार्माएं उठा रहीं हैं अपने अनजाने ही .इनदिनों ऐसी फैड -डाईट चलन में है ।
माहिरों के अनुसार यहीं से एक नींव पड़ रही है उम्र से पहले ही अस्थि क्षय (ओस्टियो -पोरोसिस ) की चपेट में आने की .जो एक ऐसा रोग है जिसमे लोस ऑफ़ बोन मॉस ,अस्थि क्षय के चलते महिलाओं की अस्थियाँ उठते बैठते भी टूटने लगती हैं .अब तक इस रोग का ख़तरा मिनोपौज़ल वोमेन को ही घेरना शुरू करता था .लेकिन अब आ बैल मुझे मार वाली बात हो रही है ।
एक अध्धय्यन के मुताबिक़ वजन कम करने रखने की सनक में तकरीबन एक तिहाई महिलायें तमाम केल्सियम आपूर्ति कराने वाले खाद्य पदार्थों से बे -तरह छिटक रहीं हैं ।
यह अध्धय्यन ४५०० महिलाओं की ईतंग हेबिट्स का जायजा लेने वाले एक पोल पर आधारित रहा है .पता चला ३० फीसद महिलायें छरहरी तन्वंगी कामिनी बने रहने दिखने की चाह में तमाम तरह के स्वास्थाय्कर खाद्यों से परहेज़ रखतीं रहीं हैं .२८ फीसद ने चीज़ ,११ फीसद ने तमाम किस्म के पशु उत्पाद (डैरी प्रोडक्ट्स )अपनी खुराख से उड़ा दियें हैं ।
तकरीबन दस में से चार से भी ज्यादा यानी ४१ फीसद ने ब्रेड को अलबिदा कह दिया है (जो नियमशय केल्सियम से पुष्टिकृत की जाती है )।
एक चौथाई से भी थोड़ा ज्यादा ने (२६ फीसद ) माना है वह खाद्य पदार्थों के सिर्फ फेट वेल्यु और केलोरीज़ पर नजर रखतीं हैं बाकी सूचना उनके लिए बेकार है .पोषक तत्व (न्युत्रिशनल कंटेंट्स जाएँ चूल्हें में )।
यकीं मानिए ३५ की उम्र तक अस्थि निर्माण में कमीबेशी रह जाना (बेहूदा खुराख के चलते )आइन्दा के लिए ,भावी जीवन में ओस्टियो -पोरोसिस को निमंत्रित करता है ।
दी फ़ूड स्टेंडर्ड एजेंसी (सप्लीमेंट फर्म एल्लाक्टिवा ) के अनुसार एक बालिग़(वयस्क या एडल्ट )
की संतुलित खुराख में रोजाना ७०० मिलिग्रेम केल्सियम का होना रहना लाज़मी है ।
केल्सियम के खुराखी स्रोत :
ब्रेड ,तमाम डैरी -प्रोडक्ट (पशु उत्पाद ,दूध और दूध से बनी चीज़ें ) ,ब्रोकली ,केबेज़ ,टोफू ,नट्स ,मच्छियों में सर्दींस ,पिल्चार्ड्स ,और भी अनेक फिश खनिजों से (इसेंशियल मिनरल्स )से भरपूर हैं ।
बॉडी इमेज चाहिए या स्वस्थ अस्थियाँ फैसला हम आप पर ही छोड़तें हैं .यह शरीर ,काया आपकी है आप जैसे इसका स्तेमाल करें .हमें क्या ?
हाँ |फैट और केल्सियम दोनों ही अस्थियों को पुष्ट बनातें हैं ,खुराख में से इनकी निकासी के अपने इन बिल्ट खतरे हैं ।
शुक्रवार, 23 जुलाई 2010
अब केरियर कौंसेलिंग के लिए भी ब्रेन स्केन्स ?
ट्रस्ट ब्रेन स्केन्स टू चूज़ राईट केरियर ,साइको -मीट्रिक एसेस्मेंट्स कैन रिवील यूओर "सुपर टेले-एंट्स "(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २३ ,२०१० ,मुंबई )।
साइंसदानों की माने तो आपके ब्रेन स्केन्स देख समझ कर आपके रुझान ,अभि-रुचियों का जायजा लिया जा सकता है .आप अपने अनुरूप " काम का काम" तलाश सकतें हैं .
केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के स्नायुविक -विज्ञानी (न्यूरो -साइंटिस्ट )इसी दिशा में एक अभिनव ब्रेन मेपिंगप्रणाली पर काम कर रहें हैं .यह एक तरह का दिमागी लैंड स्केप मष्तिष्क का पूरा खाका ही होगा .न्यूरोन -दर -न्यूरोन सर्किट --री की खबर रखेगा .व्यक्ति विशेष की निपुणता ,कुदरती कौशल का जायजा लिया जा सकेगा इसकी मदद से ।
तथा कथित साइको -मीट्रिक असेस्मेंट्स यह भी बतला सकेगा आपमें हस्त कौशल कितना है ?अतिरिक्त हूनर के मालिक तो नहीं हैं कहीं आप .हूनर जो अब तक अन-चिन्हाँ पड़ा रहा है ।
मनोविज्ञानी प्रोफ़ेसर रिचर्ड हैएर इस रिसर्च के मुखिया हैं .बकौल आपके फिलवक्त यह विज्ञान अस्पष्ट ,अनिश्चित ही बना हुआ है ,उतना साफ़ साफ़ अभी कुछ नहीं हैं ,लेकिन देर सवेर यह आपकी केरियर कौंसेलिंग का जिम्मा ले लेगा ।
किसी भी व्यक्ति की बोध ज्ञानात्मक (संज्ञानात्मक क्षमता ) का उसकी कमजोरियों का एक पेटर्न इसी दिमागी खाके में छिपा रहता है .लिहाजा इस बात की पूरी और बलवती संभावना है आपकी वोकेशनल चोइस भी इसके दायरे से बाहर नहीं है .व्यावसायिक चयन , कौशल और हुनर भी यहीं कहीं है .
रिसर्चरों ने इसी बात की पड़ताल करने के लिए ६००० लोगों के ब्रेन स्केन्स लेकर ब्रेन मैप्स की तुलना ८ बोध सम्बन्धी परीक्षणों के दौरान उतारे गये ब्रेन स्केन्सके नतीजों से की है .ताकि यह जाना जा सके दिमाग और रुझान का क्या कोई अंतर सम्बन्ध है ?
इस एवज दिमागी ग्रे -मैटर की मात्रा का पता लगाया गया .यह भी जानने की कोशिश हुई कम्प्युटेशनल वर्क के दौरान दिमाग का कौन सा हिस्सा काम आता है ,वाईट मैटर का भी जायजा लिया गया .सम्प्रेषण में कौन सा हिस्सा भाग लेता है कौन सा हिस्सा तय करता है आपकी सीखने समझने गणना करने की क्षमता का .और किसमे कहाँ अवस्थिति है इसकी .तथ्य और याददाश्त कौन सा हिस्सासंजोये रखता है ।
ब्रोदमन्न(बी आर ओ डी एम् ए एन एन ):बुद्धि तत्व (बौद्धिकता ,इंटेलिजेंस ) की बुनियादमें ,मूल में जिन हिस्सों का हाथ रहता है वह ब्रोड- मण एरियाज़ कहलातें हैं .दीगर है यह दिमाग में यत्र तत्र सर्वत्र ,यहाँ वहां बिखरे हुएँ हैं ।
लार्जर अमाउंट ऑफ़ ग्रे मैटर का मतलब ?
उक्त ८ परीक्षणों के नतीजों से पता चला ,जिन की तार्किक क्षमता द्रुत गामी थी ,याददाश्त अच्छी थी उनमे ग्रे मैटर अपेक्षाकृत ज्यादा था .(स्पेसल टिस्यू पैक्ड विद नर्व सेल्स -इन ब्रोदमन्न एरियाज़ )।
आगे के परीक्षणों में रिसर्चरों ने एम् आर आई स्केन्स की मदद से ग्रे मैटर का अंतर सम्बन्ध "इन्दिपेंदेंट एबिलिटी फेक्टर्स "जनरल इंटेलिजेंस ,स्पीड ऑफ़ रीज़निंग से जोड़ा .इनमे -आगे के संदर्भित परीक्षणों में
व्यावसायिक गाइडेंस चाहने वाले ४० स्वयं सेवियों को शामिल किया गया ।
आम तौर पर देखा गया ,ग्रे मैटर्स के कुछ पेटर्न होतें हैं जिनका सम्बन्ध वास्तविक योग्यता और क्षमता से होता है .अलावा इसके औरत और मर्दों में एक जैसा 'आई .क्यु स्कोर" हासिल करने वालों का अलग ब्रेन मेक- अप होता है .बुद्धि तत्व का सम्बन्ध सदैव ही दिमाग के अलग अलग हिस्सों के भौतिक आकार सेही हो यह ज़रूरी नहीं है .
साइंसदानों की माने तो आपके ब्रेन स्केन्स देख समझ कर आपके रुझान ,अभि-रुचियों का जायजा लिया जा सकता है .आप अपने अनुरूप " काम का काम" तलाश सकतें हैं .
केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के स्नायुविक -विज्ञानी (न्यूरो -साइंटिस्ट )इसी दिशा में एक अभिनव ब्रेन मेपिंगप्रणाली पर काम कर रहें हैं .यह एक तरह का दिमागी लैंड स्केप मष्तिष्क का पूरा खाका ही होगा .न्यूरोन -दर -न्यूरोन सर्किट --री की खबर रखेगा .व्यक्ति विशेष की निपुणता ,कुदरती कौशल का जायजा लिया जा सकेगा इसकी मदद से ।
तथा कथित साइको -मीट्रिक असेस्मेंट्स यह भी बतला सकेगा आपमें हस्त कौशल कितना है ?अतिरिक्त हूनर के मालिक तो नहीं हैं कहीं आप .हूनर जो अब तक अन-चिन्हाँ पड़ा रहा है ।
मनोविज्ञानी प्रोफ़ेसर रिचर्ड हैएर इस रिसर्च के मुखिया हैं .बकौल आपके फिलवक्त यह विज्ञान अस्पष्ट ,अनिश्चित ही बना हुआ है ,उतना साफ़ साफ़ अभी कुछ नहीं हैं ,लेकिन देर सवेर यह आपकी केरियर कौंसेलिंग का जिम्मा ले लेगा ।
किसी भी व्यक्ति की बोध ज्ञानात्मक (संज्ञानात्मक क्षमता ) का उसकी कमजोरियों का एक पेटर्न इसी दिमागी खाके में छिपा रहता है .लिहाजा इस बात की पूरी और बलवती संभावना है आपकी वोकेशनल चोइस भी इसके दायरे से बाहर नहीं है .व्यावसायिक चयन , कौशल और हुनर भी यहीं कहीं है .
रिसर्चरों ने इसी बात की पड़ताल करने के लिए ६००० लोगों के ब्रेन स्केन्स लेकर ब्रेन मैप्स की तुलना ८ बोध सम्बन्धी परीक्षणों के दौरान उतारे गये ब्रेन स्केन्सके नतीजों से की है .ताकि यह जाना जा सके दिमाग और रुझान का क्या कोई अंतर सम्बन्ध है ?
इस एवज दिमागी ग्रे -मैटर की मात्रा का पता लगाया गया .यह भी जानने की कोशिश हुई कम्प्युटेशनल वर्क के दौरान दिमाग का कौन सा हिस्सा काम आता है ,वाईट मैटर का भी जायजा लिया गया .सम्प्रेषण में कौन सा हिस्सा भाग लेता है कौन सा हिस्सा तय करता है आपकी सीखने समझने गणना करने की क्षमता का .और किसमे कहाँ अवस्थिति है इसकी .तथ्य और याददाश्त कौन सा हिस्सासंजोये रखता है ।
ब्रोदमन्न(बी आर ओ डी एम् ए एन एन ):बुद्धि तत्व (बौद्धिकता ,इंटेलिजेंस ) की बुनियादमें ,मूल में जिन हिस्सों का हाथ रहता है वह ब्रोड- मण एरियाज़ कहलातें हैं .दीगर है यह दिमाग में यत्र तत्र सर्वत्र ,यहाँ वहां बिखरे हुएँ हैं ।
लार्जर अमाउंट ऑफ़ ग्रे मैटर का मतलब ?
उक्त ८ परीक्षणों के नतीजों से पता चला ,जिन की तार्किक क्षमता द्रुत गामी थी ,याददाश्त अच्छी थी उनमे ग्रे मैटर अपेक्षाकृत ज्यादा था .(स्पेसल टिस्यू पैक्ड विद नर्व सेल्स -इन ब्रोदमन्न एरियाज़ )।
आगे के परीक्षणों में रिसर्चरों ने एम् आर आई स्केन्स की मदद से ग्रे मैटर का अंतर सम्बन्ध "इन्दिपेंदेंट एबिलिटी फेक्टर्स "जनरल इंटेलिजेंस ,स्पीड ऑफ़ रीज़निंग से जोड़ा .इनमे -आगे के संदर्भित परीक्षणों में
व्यावसायिक गाइडेंस चाहने वाले ४० स्वयं सेवियों को शामिल किया गया ।
आम तौर पर देखा गया ,ग्रे मैटर्स के कुछ पेटर्न होतें हैं जिनका सम्बन्ध वास्तविक योग्यता और क्षमता से होता है .अलावा इसके औरत और मर्दों में एक जैसा 'आई .क्यु स्कोर" हासिल करने वालों का अलग ब्रेन मेक- अप होता है .बुद्धि तत्व का सम्बन्ध सदैव ही दिमाग के अलग अलग हिस्सों के भौतिक आकार सेही हो यह ज़रूरी नहीं है .
एंटी -बॉडी ओडर क्लोदिंग पैच
वर्ल्ड वार || सीक्रेट ऑफर्स क्ल्यू टू गेटिंग रिड ऑफ़ बॉडी ओडर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २३ ,२०१० ,मुंबई एडिशन ,पृष्ठ २१ )
दूसरे महायुद्ध में गैस मास्क्स के अन्दर प्रयुक्त एक मुख्य घटक का स्तेमाल अब ब्रितानी अन्वेषक स्तेवे रव्लिंग्स और उनके पुत्र थोड़ा तब्दीली के साथ एंटी -बॉडी ओडर क्लोदिंग पैच के रूप में कर रहें हैं .इस विषाक्त पदार्थ का स्तेमाल केमिकल वार -फेअर सुइट्स के रूप में ,गैस मास्क्स में आदि में किया जाता रहा है .ज़ाहिर है इसमें से ज़हर बहुत कुछ निकाल दिया गया है ।
टी बेग साइज़ रखा गया है इस एंटी -बॉडी ओडर पैच का .यह ना सिर्फ छुटकारा दिलाता है बॉडी ओडर से ,इट एलिमिनेट्स ,हार्नेस (व्यवस्थित करना ),एंड स्टोर्स(भंडारित करता है ) ,दी मोलिक्युल्स रेस्पोंसिबिल फॉर दी अन्प्लेजेंट ओडर ।यानी दुर्गन्ध नाशी अणुओं को असरदार बनाए रखता है .
कपड़े की उम्र तक ही चलतें हैं ये पैच .जिन्हें कपड़े के साथ आयरन भी किया जा सकता है सिला भी जा सकता है .
इसके अन्वेषकों के दिमाग में यह विचार कौंधा ,जब यह टोक्सिक पदार्थ सरीन गैस ,मस्टर्ड गैस से छुटकारा दिलवा सकता है ,तब बॉडी ओडर तो एक मामूली चीज़ है इसके निशाने पर .और संशोधन के बाद ठीक वैसा ही हुआ जैसा सोचा गया ।
यह पदार्थ रासायनिक ,जैविक ,रेडिओ -लोजिकल (विकिरण सम्बन्धी )एवं न्यूक्लिअर सूट्स की ज़रूरीयात पर एक दम से खरा उतरा था .इसने बॉडी ओडर को भी ठिकाने लगाने का काम बाखूबी किया ।
बेशक इसके अवयवों की (रासायनिक घटकों ) की किसी को भी खबर नहीं दी गई है .अलबत्ता डेली ट्रेवलर्स तथा उन लोगों के लिए इसे बेहद उपयोगी बतलाया जा रहा है जिन्हें दुर्गन्ध नाशी डियोड्रेंट माफिक नहीं आतें हैं ,जिनकी चमड़ी जरा ज्यादा ही संवेदी होती है दुर्गन्ध नाशियों के प्रति .
दूसरे महायुद्ध में गैस मास्क्स के अन्दर प्रयुक्त एक मुख्य घटक का स्तेमाल अब ब्रितानी अन्वेषक स्तेवे रव्लिंग्स और उनके पुत्र थोड़ा तब्दीली के साथ एंटी -बॉडी ओडर क्लोदिंग पैच के रूप में कर रहें हैं .इस विषाक्त पदार्थ का स्तेमाल केमिकल वार -फेअर सुइट्स के रूप में ,गैस मास्क्स में आदि में किया जाता रहा है .ज़ाहिर है इसमें से ज़हर बहुत कुछ निकाल दिया गया है ।
टी बेग साइज़ रखा गया है इस एंटी -बॉडी ओडर पैच का .यह ना सिर्फ छुटकारा दिलाता है बॉडी ओडर से ,इट एलिमिनेट्स ,हार्नेस (व्यवस्थित करना ),एंड स्टोर्स(भंडारित करता है ) ,दी मोलिक्युल्स रेस्पोंसिबिल फॉर दी अन्प्लेजेंट ओडर ।यानी दुर्गन्ध नाशी अणुओं को असरदार बनाए रखता है .
कपड़े की उम्र तक ही चलतें हैं ये पैच .जिन्हें कपड़े के साथ आयरन भी किया जा सकता है सिला भी जा सकता है .
इसके अन्वेषकों के दिमाग में यह विचार कौंधा ,जब यह टोक्सिक पदार्थ सरीन गैस ,मस्टर्ड गैस से छुटकारा दिलवा सकता है ,तब बॉडी ओडर तो एक मामूली चीज़ है इसके निशाने पर .और संशोधन के बाद ठीक वैसा ही हुआ जैसा सोचा गया ।
यह पदार्थ रासायनिक ,जैविक ,रेडिओ -लोजिकल (विकिरण सम्बन्धी )एवं न्यूक्लिअर सूट्स की ज़रूरीयात पर एक दम से खरा उतरा था .इसने बॉडी ओडर को भी ठिकाने लगाने का काम बाखूबी किया ।
बेशक इसके अवयवों की (रासायनिक घटकों ) की किसी को भी खबर नहीं दी गई है .अलबत्ता डेली ट्रेवलर्स तथा उन लोगों के लिए इसे बेहद उपयोगी बतलाया जा रहा है जिन्हें दुर्गन्ध नाशी डियोड्रेंट माफिक नहीं आतें हैं ,जिनकी चमड़ी जरा ज्यादा ही संवेदी होती है दुर्गन्ध नाशियों के प्रति .
गर्भ वती महिलायें भी ले सकती हैं एक कप कोफी
ए कप ऑफ़ कोफी ए डे ओ के फॉर प्रेग्नेंट वोमेन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २३ ,२०१० )।
स्त्री रोग एवं प्रसूति विज्ञान महा विद्यालय की एक अमरीकी रिसर्च टीम ने बतलाया है ,जो महिलायें सुबह एक प्याला कोफी लेने की अभ्यस्थ हैं वह ऐसा गर्भावस्था में भी बे -खोफ कर सकतीं हैं .पूर्व के अध्धय्यनों में मिस्केरिज का ख़तरा बतलाया गया था ।
अब पता चला है ऐसा कुछ भी नहीं होता है .ना ही लो बर्थ वेट के खतरे का वजन बढ़ने की संभावना रहती है .प्रिमेच्युओर बर्थ के खतरे का वजन भी नहीं बढ़ता है ।
एक दिन में २०० मिलिग्रेम कोफी का सेवन सर्वथा निरापद बतलाया गया है .१२ ओंजएक कप कोफी में तकरीबन इतनी ही केफीन होती है .एक दिन में ८ ओंज के चार प्याले चाय पीना भी मोडरेट कैफीन कन्ज़म्प्शन के अंतर्गत ही आयेगा.६-७ डार्क चोकलेट बार्स भी इसी के समतुल्य रखी जायेंगी .ओब्स्तेतरिक प्रेक्टिस से ताल्लुक रखने वाली कोलिज कमेटी ने यही अनुशंशायें की हैं .
स्त्री रोग एवं प्रसूति विज्ञान महा विद्यालय की एक अमरीकी रिसर्च टीम ने बतलाया है ,जो महिलायें सुबह एक प्याला कोफी लेने की अभ्यस्थ हैं वह ऐसा गर्भावस्था में भी बे -खोफ कर सकतीं हैं .पूर्व के अध्धय्यनों में मिस्केरिज का ख़तरा बतलाया गया था ।
अब पता चला है ऐसा कुछ भी नहीं होता है .ना ही लो बर्थ वेट के खतरे का वजन बढ़ने की संभावना रहती है .प्रिमेच्युओर बर्थ के खतरे का वजन भी नहीं बढ़ता है ।
एक दिन में २०० मिलिग्रेम कोफी का सेवन सर्वथा निरापद बतलाया गया है .१२ ओंजएक कप कोफी में तकरीबन इतनी ही केफीन होती है .एक दिन में ८ ओंज के चार प्याले चाय पीना भी मोडरेट कैफीन कन्ज़म्प्शन के अंतर्गत ही आयेगा.६-७ डार्क चोकलेट बार्स भी इसी के समतुल्य रखी जायेंगी .ओब्स्तेतरिक प्रेक्टिस से ताल्लुक रखने वाली कोलिज कमेटी ने यही अनुशंशायें की हैं .
दुनिया के सबसे प्राचीन सेक्स टॉय का पता चला
वर्ल्ड्स ओल्देस्ट सेक्स टॉय कार्व्द आउट ऑफ़ बोन बेक इन ४००० बी सी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २३ ,२०१० ,पृष्ठ ,२१ )।
स्वीडन में अब तकका सबसे प्राचीन "डिल्डो "(सेक्स ओब्जेक्त का जिसे देख कर उत्तेजना प्राप्त की जा सके ) पुरा -विदों ने पता लगाया है .इसे मृग श्रिंग से तैयार किया गया जो देखने में इरेक्तिद पेनिस (लिंगोथ्थान की स्थिति में लिंग जैसा ) सरीखा लगता है .इसकी लम्बाई चार तथा व्यास (डायमीटर )०.८ इंच है .इसकी इत्तला स्वीडन के नेशनल हेरिटेज बोर्ड ने दी है .खुदाई का काम पुरातात्विक विज्ञानी गेरन ग्रूबर की देख रेख में संपन्न हुआ है ।
विस्मित करने वाला साम्यहै .अपने चिठ्ठे आर्द्व -आर्केलोजी पर स्वीडन के पुरातात्विक विज्ञान के माहिर मार्टिन रुन्द्क्विस्त लिखतें हैं जिस किसी ने भी इसे पहले पहल निहारा होगा उसके दिमाग में यही बिम्ब उभरा होगा .पीनाइल सिमिलारितीज़ देखते ही बनती हैं इस आकृति में ।
यह "डिल्डो "सेक्स ओब्जेक्त एक मेसोलिथिक साईट से निकला है जो मोटल ,स्वीडन में है .यहाँ ४०००- ६००० बी सी तक के पुरातात्विक अवशेष बहुतायत में मिलें हैं .यहाँ की टोपोग्रेफ़ी ने ,विशेष स्थल -आकृति ने ही बोन -आर्तिफेक्ट्स (अस्थि से बनेपुरातात्विक अवशेषों को बनाए रखा है .)
स्वीडन में अब तकका सबसे प्राचीन "डिल्डो "(सेक्स ओब्जेक्त का जिसे देख कर उत्तेजना प्राप्त की जा सके ) पुरा -विदों ने पता लगाया है .इसे मृग श्रिंग से तैयार किया गया जो देखने में इरेक्तिद पेनिस (लिंगोथ्थान की स्थिति में लिंग जैसा ) सरीखा लगता है .इसकी लम्बाई चार तथा व्यास (डायमीटर )०.८ इंच है .इसकी इत्तला स्वीडन के नेशनल हेरिटेज बोर्ड ने दी है .खुदाई का काम पुरातात्विक विज्ञानी गेरन ग्रूबर की देख रेख में संपन्न हुआ है ।
विस्मित करने वाला साम्यहै .अपने चिठ्ठे आर्द्व -आर्केलोजी पर स्वीडन के पुरातात्विक विज्ञान के माहिर मार्टिन रुन्द्क्विस्त लिखतें हैं जिस किसी ने भी इसे पहले पहल निहारा होगा उसके दिमाग में यही बिम्ब उभरा होगा .पीनाइल सिमिलारितीज़ देखते ही बनती हैं इस आकृति में ।
यह "डिल्डो "सेक्स ओब्जेक्त एक मेसोलिथिक साईट से निकला है जो मोटल ,स्वीडन में है .यहाँ ४०००- ६००० बी सी तक के पुरातात्विक अवशेष बहुतायत में मिलें हैं .यहाँ की टोपोग्रेफ़ी ने ,विशेष स्थल -आकृति ने ही बोन -आर्तिफेक्ट्स (अस्थि से बनेपुरातात्विक अवशेषों को बनाए रखा है .)
अब तक के सबसे ज्यादा प्रकाशमान सितारे का पता लगाया गया गया
ब्रितानी खगोल विज्ञानियों ने एक ऐसे दीर्घ -काय सितारे का पता लगाया है जो सूरज से एक करोड़ गुना ज्यादा ज्योतिर्वान (प्रकाशवान ,चमकीला )है ।ल्युमिनस है .
इसका सुराग योरोपीय सदर्न ओब्ज़र्वेत्री (वैध शाला ) में स्थापित वेरी लार्ज टेलिस्कोप की मदद से चला है .यह वैध शाला मय टेलिस्कोप शेफ़्फ़िएल्द विश्वविद्यालय कैम्पस में स्थापित की गई है .इसका वर्गीकरण मोंस्टर स्टार्स के तहत किया गया है .इसे आर १३ ए १ कहा जा रहा है .वर्तमान में इसका द्र्वय्मान (स्टार मॉस )सौर द्रव्यमान से २६५ गुना ज्यादा तथा इसका ब्राइत्वेत (ब्राईट -वेट )३२० सोलर मॉस के बराबर है .यह अब तक सबसे ज्यादा प्रदीप्त (रोशन )सितारा बतलाया जा रहा है जिसकी चमक (ल्युमिनोसिती )सूरज से एक करोड़ गुना ज्यादा है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एक्सपर्ट्स फाइंड ब्राइटेस्ट स्टार :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २३ ,२०१० )
इसका सुराग योरोपीय सदर्न ओब्ज़र्वेत्री (वैध शाला ) में स्थापित वेरी लार्ज टेलिस्कोप की मदद से चला है .यह वैध शाला मय टेलिस्कोप शेफ़्फ़िएल्द विश्वविद्यालय कैम्पस में स्थापित की गई है .इसका वर्गीकरण मोंस्टर स्टार्स के तहत किया गया है .इसे आर १३ ए १ कहा जा रहा है .वर्तमान में इसका द्र्वय्मान (स्टार मॉस )सौर द्रव्यमान से २६५ गुना ज्यादा तथा इसका ब्राइत्वेत (ब्राईट -वेट )३२० सोलर मॉस के बराबर है .यह अब तक सबसे ज्यादा प्रदीप्त (रोशन )सितारा बतलाया जा रहा है जिसकी चमक (ल्युमिनोसिती )सूरज से एक करोड़ गुना ज्यादा है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एक्सपर्ट्स फाइंड ब्राइटेस्ट स्टार :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २३ ,२०१० )
जंक फ़ूड से छिटकने की एक ओर वजह हाज़िर है
दी अदर हार्ट बर्न ,यट एनादर रीजन टू गिव अप जंक फ़ूड .व्हाट यु थिंक इज हार्ट बर्न कैन लीड टू ए फार मोर सिरिअस कंडीशन ,जी ई आर डी (यू /हेल्थ टिप्स /मुंबई मिरर /जुलाई २३ ,२०१० /पृष्ठ ३२ ).
खाने पकाने के रसिया अकसर तलाभुना चटपटा मसालेदार खाना, जंक फ़ूड खा तो लेतें हैं ऊपर से जाम के बाद एक औरफिर और जाम,जम कर शराब भी पी लेतें हैं .वीक एंड जो ठहरा ,लेकिन इसके बाद मिचली से लेकर ,तेजाबी पाना का बारहा मुह में भर भर आना ,खाने का उगलना सिर्फ तेज़ाब बनना कह कर नहीं टाला जा सकता .कभी कभार यह अपच के कारण छाती में होने वाली जलन से (अम्ल शूल )से आगे की बहुत ही परेशानी में डालने वाली सिरिअस मेडिकल कंडीशन "गैस्ट्रो -ईसाफेजिअल री -फ्लक्स डिजीज या एसिड री -फ्लक्स होती है ।
उदर आहार -नालीय - रीफ्लक्स डिजीज क्या है ?
यह एक गंभीर किस्म का अपच सम्बन्धी विकार है ,दाइजेस्तिव दिस -ऑर्डर है .हम जो भी कुछ खातें हैं वह आहार नाल केज़रिये ही उदर में पहुँच- ता है.यहाँ से यह "पक्वाशय "ड्यू -ओ -डीनम "या ग्रहणी ,छोटी आंत का अगला भाग ,में पहुंचता है .आहार नाल और उदर के बीच एक द्वार या जंक्शन होता है "लोवर ईसाजेजिअल स्फीन्क्टर "यानी आहार नालीय निचली अवरोधिनी .अपच सम्बन्धी इस बड़ी गडबडी में (गैस्ट्रो --ईसाफेजिअल री -फ्लक्स -डिजीज )में यह अवरोधिनी ढीली पड़ जाती है,लूज़ हो जाती है ,इस गोलाकार मांश पेशी के लूज़ हो जाने पर बंद छेद खुल जाता है .नतीज़तन आहार नाल में होकर खाया पीया वापस मुख में लौट आता है .तेजाबी पानी उगला हुआ गला सना भोजन .हाइड्रो क्लोरिक एसिड और एंजाइम्स (पेपसिन ),पित्त (बाइल ) से युक्त होता है अकसर यह उगाल .इनमे से हरेक आहार नाल को नुक्सान पहुंचाता है ।
ला इलाज़ ही बना रहता है यह अपच रोग .आहार नाल की इंजरी के ठीक हो जाने के बाद भी यह स्थिति बारहा लौट आती है ।
होता क्यों है यह अपच रोग ?
बहुत मुश्किल है इसे ठीक ठीक बताना समझ पाना .अलबत्ता वजहें अनेक हो सकतीं हैं ।
(१)मिचली की पुनरावृत्ति (रिकरिंग वोमिटिंग )(२)मोटापे से पैदा अतिरिक्त उदरीय दवाब (इन्क्रीज्द एब्डोमिनल प्रेशर ड्यू टू ओबेसिटी )(३)हिअतल हर्निया (४)धूम्रपान (५)रिदयुज्द लोवर ईसफ़ेजिअल स्फिन्क्टर प्रेशर ।
लेकिन खान पान की गलत आदतें जंक फूड्स को बरी नहीं किया जा सकता .रिफ्लक्स सिम्टम्स को बद से बदतर बना देतें हैं साइट्रस फ्रूट्स का बेहिसाब सेवन ,चोकलेट्स ,केफीन ,शराब ,कोलाज़ ,रेड मीट,तला भुना चिकनाई लदा खाद्य पदार्थ ,लहसुन -प्याज ,मसालेदार टमाटर युक्त सालसा ,पिज्जा ,सौस ,स्पघेत्ते ।
शुरूआती लक्षण क्या हैं इस अपच रोग के ?
अम्ल शूल इसका आरंभिक चरण हो सकता है .इससे बचाव का एक ही कारगर तरिका है .खुराख में एल्केलाइन खाद्यों को जगह दीजिये .एसिड और एल्केलाइन का संतुलन ज़रूरी है ।
एसिडिक फूड्स एक नजर में ?
ब्रेड (ब्राउन हो चाहें वाईट ,या फिर मल्टी- ग्रेन),नूड्युल्स ,राग़ी,नाचनी ,पोहा ,रवा ,राव ,तुवर दाल ,सोया बीन्स ,बटर,पालक ,केंड- फूड्स ,ड्राई कोकोनट ,टी ,कोफी ,एल्कोहल ,कन्फेक्शनरी ,सुगर आदि अम्लीय प्रकृति लियें हैं ।
एल्केलाइन फूड्स ?
आलू (पोटेटो ),फ्रेश फिग्स ,अंजीर ,अस्परा- गस ,लीक ,मूली (रेडिश )सेलेरी ,व्हीट- ग्रास ,खीरा (ककुमबुर ) ,ग्रेप ,अंगूर ,ग्रेप फ्रूट ,ओनियन (प्याज ),अर्तिचोके .
बचाव में ही बचाव है ?
अपनी जीवन शैली बदलिए .खाना खाने के बाद टाईट कपडे ,टाईट बेल्ट मत पहनिए .इससे आंतें दवाब में आयेंगी .खाने के बाद हाड तोड़ मेहनत मत करिए .सिगरेट शराब मुल्तवी रखिये .खाली पेट ज्यादा देर तक मत रहिये .अस्वास्थय्कर नाश्ते से बचिए ( एवोइड अन्हेल्दी स्नाक्क्स आदि ).रात को हल्का भोजन (सुपाच्य )लीजिये .कद काठी के अनुरूप वजन बनाए रखिये .धीरे धीरे चबा चबा कर खाइए .खुशनुमा तनावरहित माहौल में खाइए .खाने का समय सुनिश्चित कीजिये .वक्त बे -वक्त खाना ठीक नहीं है .जल्बाजी कैसी खाने में ,तसल्ली से खाइए ."हाई -पी एच एसिड मान "वाले खाद्य ना खाएं .पर्याप्त पानी पीजिये दिन भर में (२-३ लिटर तक ).खाने के दौरान और ४५ मिनिट बाद तक अपराईट-पोजीशन में रहिये .
खाने पकाने के रसिया अकसर तलाभुना चटपटा मसालेदार खाना, जंक फ़ूड खा तो लेतें हैं ऊपर से जाम के बाद एक औरफिर और जाम,जम कर शराब भी पी लेतें हैं .वीक एंड जो ठहरा ,लेकिन इसके बाद मिचली से लेकर ,तेजाबी पाना का बारहा मुह में भर भर आना ,खाने का उगलना सिर्फ तेज़ाब बनना कह कर नहीं टाला जा सकता .कभी कभार यह अपच के कारण छाती में होने वाली जलन से (अम्ल शूल )से आगे की बहुत ही परेशानी में डालने वाली सिरिअस मेडिकल कंडीशन "गैस्ट्रो -ईसाफेजिअल री -फ्लक्स डिजीज या एसिड री -फ्लक्स होती है ।
उदर आहार -नालीय - रीफ्लक्स डिजीज क्या है ?
यह एक गंभीर किस्म का अपच सम्बन्धी विकार है ,दाइजेस्तिव दिस -ऑर्डर है .हम जो भी कुछ खातें हैं वह आहार नाल केज़रिये ही उदर में पहुँच- ता है.यहाँ से यह "पक्वाशय "ड्यू -ओ -डीनम "या ग्रहणी ,छोटी आंत का अगला भाग ,में पहुंचता है .आहार नाल और उदर के बीच एक द्वार या जंक्शन होता है "लोवर ईसाजेजिअल स्फीन्क्टर "यानी आहार नालीय निचली अवरोधिनी .अपच सम्बन्धी इस बड़ी गडबडी में (गैस्ट्रो --ईसाफेजिअल री -फ्लक्स -डिजीज )में यह अवरोधिनी ढीली पड़ जाती है,लूज़ हो जाती है ,इस गोलाकार मांश पेशी के लूज़ हो जाने पर बंद छेद खुल जाता है .नतीज़तन आहार नाल में होकर खाया पीया वापस मुख में लौट आता है .तेजाबी पानी उगला हुआ गला सना भोजन .हाइड्रो क्लोरिक एसिड और एंजाइम्स (पेपसिन ),पित्त (बाइल ) से युक्त होता है अकसर यह उगाल .इनमे से हरेक आहार नाल को नुक्सान पहुंचाता है ।
ला इलाज़ ही बना रहता है यह अपच रोग .आहार नाल की इंजरी के ठीक हो जाने के बाद भी यह स्थिति बारहा लौट आती है ।
होता क्यों है यह अपच रोग ?
बहुत मुश्किल है इसे ठीक ठीक बताना समझ पाना .अलबत्ता वजहें अनेक हो सकतीं हैं ।
(१)मिचली की पुनरावृत्ति (रिकरिंग वोमिटिंग )(२)मोटापे से पैदा अतिरिक्त उदरीय दवाब (इन्क्रीज्द एब्डोमिनल प्रेशर ड्यू टू ओबेसिटी )(३)हिअतल हर्निया (४)धूम्रपान (५)रिदयुज्द लोवर ईसफ़ेजिअल स्फिन्क्टर प्रेशर ।
लेकिन खान पान की गलत आदतें जंक फूड्स को बरी नहीं किया जा सकता .रिफ्लक्स सिम्टम्स को बद से बदतर बना देतें हैं साइट्रस फ्रूट्स का बेहिसाब सेवन ,चोकलेट्स ,केफीन ,शराब ,कोलाज़ ,रेड मीट,तला भुना चिकनाई लदा खाद्य पदार्थ ,लहसुन -प्याज ,मसालेदार टमाटर युक्त सालसा ,पिज्जा ,सौस ,स्पघेत्ते ।
शुरूआती लक्षण क्या हैं इस अपच रोग के ?
अम्ल शूल इसका आरंभिक चरण हो सकता है .इससे बचाव का एक ही कारगर तरिका है .खुराख में एल्केलाइन खाद्यों को जगह दीजिये .एसिड और एल्केलाइन का संतुलन ज़रूरी है ।
एसिडिक फूड्स एक नजर में ?
ब्रेड (ब्राउन हो चाहें वाईट ,या फिर मल्टी- ग्रेन),नूड्युल्स ,राग़ी,नाचनी ,पोहा ,रवा ,राव ,तुवर दाल ,सोया बीन्स ,बटर,पालक ,केंड- फूड्स ,ड्राई कोकोनट ,टी ,कोफी ,एल्कोहल ,कन्फेक्शनरी ,सुगर आदि अम्लीय प्रकृति लियें हैं ।
एल्केलाइन फूड्स ?
आलू (पोटेटो ),फ्रेश फिग्स ,अंजीर ,अस्परा- गस ,लीक ,मूली (रेडिश )सेलेरी ,व्हीट- ग्रास ,खीरा (ककुमबुर ) ,ग्रेप ,अंगूर ,ग्रेप फ्रूट ,ओनियन (प्याज ),अर्तिचोके .
बचाव में ही बचाव है ?
अपनी जीवन शैली बदलिए .खाना खाने के बाद टाईट कपडे ,टाईट बेल्ट मत पहनिए .इससे आंतें दवाब में आयेंगी .खाने के बाद हाड तोड़ मेहनत मत करिए .सिगरेट शराब मुल्तवी रखिये .खाली पेट ज्यादा देर तक मत रहिये .अस्वास्थय्कर नाश्ते से बचिए ( एवोइड अन्हेल्दी स्नाक्क्स आदि ).रात को हल्का भोजन (सुपाच्य )लीजिये .कद काठी के अनुरूप वजन बनाए रखिये .धीरे धीरे चबा चबा कर खाइए .खुशनुमा तनावरहित माहौल में खाइए .खाने का समय सुनिश्चित कीजिये .वक्त बे -वक्त खाना ठीक नहीं है .जल्बाजी कैसी खाने में ,तसल्ली से खाइए ."हाई -पी एच एसिड मान "वाले खाद्य ना खाएं .पर्याप्त पानी पीजिये दिन भर में (२-३ लिटर तक ).खाने के दौरान और ४५ मिनिट बाद तक अपराईट-पोजीशन में रहिये .
गुरुवार, 22 जुलाई 2010
शश्त्रा-गार में होंगें कल स्मार्ट फोन्स ?
कल की आयुधशाला (शस्त्रागार ,आर्स्निल )में परिष्कृत मोबाइल उपयोग की सौगात के तौर पर स्मार्ट फोन्स भी होंगें ?
पेत्रिओइत मिज़ाइल डिफेन्स प्रणाली की निर्मात्री कम्पनी रायथेओं इन दिनों एक ऐसा सोफ्ट वेयर विकसित कर रही है जो युद्ध के मैदान में एक सैनिक को अपने आस पास कीपूरी खबर खबर देगी .यह करिश्मा गूगल्स एन्द्रोइद ऑपरेटिंग सिस्टम की मदद से एक मोबाइल करके दिखाएगा .आप चाहें तो इसे "स्मार्ट फोन "भी कह सकतें हैं ।
यह सोफ्ट वेयर खासा पावरफुल होगा .कितना ?
"मानव रहित विमान से ,उपग्रहों से, ली गई इमेज़िज़ को यह साफ़ पकड़ लेगा .बारीकी में जाकर कारों की लाइसेंस प्लेट्स यहाँ तक की इंसान के चेहरे के मनोभावों को बांच समझ लेगा यह स्मार्ट फोन .जी हाँ स्मार्ट फोन प्रोद्योगिकी का ही हासिल होगा यह सब ।
यू एस आर्मी इसका व्यापक पैमाने पर स्तेमाल करेगी .स्पेसल फ़ोर्स टीम के कुछ सदस्यों ने इसकी क्षमताओं की जांच परख भी की है ।
यूं रायथेओं के लिए भारतीय सेना भी एक बड़ा बाज़ार साबित हो सकती है ।
फिलवक्त हरेक हैण्ड सैट के साथ एक कलर टच स्क्रीन होगा ,कीमत होगी ५०० डॉलर .अन्लोक्द कंस्यूमर स्मार्ट फोन्स की भी यही कीमत है ।
बहर -सूरत एनक्रिप्शन सोफ्ट वेयर (सूचना कूटांकन सोफ्ट वेयर )रायथेओं ही मुहैया करवाएगी .संचार तंत्र आपूर्ति भी यही शस्त्र-निर्माता कम्पनी मुहैया करवाएगी ,जो कारगर तरीके से दूरदराज़ के क्षेत्रों में काम कर सकेगी .उन क्षेत्रों तक इस तंत्र की पहुँच होगी जहां तक कोई सिग्नल ,सूचना का टुकडा भी नहीं पहुँच पाता है फिलवक्त .इसकी मदद से सैनिक आपस में भी एक दूसरे की खबर रख सकेंगें ,जान सकेंगें ,कौन कहाँ है ?शत्रु पक्ष की पहचान में भी सहायक होगा यह सोफ्ट वेयर .इस एवज एक" आइडेंन -टीटी रिकग्निशन सोफ्ट वेयर" से फोन्स को लैस किया जाएगा .केवल चुनिन्दा प्रयोक्ता ही इसे अन -लोक्क कर पायेंगें .ग्लोबल सेटेलाईट पोजिशनिंग सिस्टम भी प्रति -रक्षा सेवाओं को फोन का पता लगाने में कारगर रहेगा ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-अप्लायेंसिज़ दी आर्सनल इन फ्यूचर वार्स ?स्मार्ट फोन्स विल हेल्प सोल्ज़र्स लोकेट एनिमीज़ इन देयर वीसी -निटी(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )
पेत्रिओइत मिज़ाइल डिफेन्स प्रणाली की निर्मात्री कम्पनी रायथेओं इन दिनों एक ऐसा सोफ्ट वेयर विकसित कर रही है जो युद्ध के मैदान में एक सैनिक को अपने आस पास कीपूरी खबर खबर देगी .यह करिश्मा गूगल्स एन्द्रोइद ऑपरेटिंग सिस्टम की मदद से एक मोबाइल करके दिखाएगा .आप चाहें तो इसे "स्मार्ट फोन "भी कह सकतें हैं ।
यह सोफ्ट वेयर खासा पावरफुल होगा .कितना ?
"मानव रहित विमान से ,उपग्रहों से, ली गई इमेज़िज़ को यह साफ़ पकड़ लेगा .बारीकी में जाकर कारों की लाइसेंस प्लेट्स यहाँ तक की इंसान के चेहरे के मनोभावों को बांच समझ लेगा यह स्मार्ट फोन .जी हाँ स्मार्ट फोन प्रोद्योगिकी का ही हासिल होगा यह सब ।
यू एस आर्मी इसका व्यापक पैमाने पर स्तेमाल करेगी .स्पेसल फ़ोर्स टीम के कुछ सदस्यों ने इसकी क्षमताओं की जांच परख भी की है ।
यूं रायथेओं के लिए भारतीय सेना भी एक बड़ा बाज़ार साबित हो सकती है ।
फिलवक्त हरेक हैण्ड सैट के साथ एक कलर टच स्क्रीन होगा ,कीमत होगी ५०० डॉलर .अन्लोक्द कंस्यूमर स्मार्ट फोन्स की भी यही कीमत है ।
बहर -सूरत एनक्रिप्शन सोफ्ट वेयर (सूचना कूटांकन सोफ्ट वेयर )रायथेओं ही मुहैया करवाएगी .संचार तंत्र आपूर्ति भी यही शस्त्र-निर्माता कम्पनी मुहैया करवाएगी ,जो कारगर तरीके से दूरदराज़ के क्षेत्रों में काम कर सकेगी .उन क्षेत्रों तक इस तंत्र की पहुँच होगी जहां तक कोई सिग्नल ,सूचना का टुकडा भी नहीं पहुँच पाता है फिलवक्त .इसकी मदद से सैनिक आपस में भी एक दूसरे की खबर रख सकेंगें ,जान सकेंगें ,कौन कहाँ है ?शत्रु पक्ष की पहचान में भी सहायक होगा यह सोफ्ट वेयर .इस एवज एक" आइडेंन -टीटी रिकग्निशन सोफ्ट वेयर" से फोन्स को लैस किया जाएगा .केवल चुनिन्दा प्रयोक्ता ही इसे अन -लोक्क कर पायेंगें .ग्लोबल सेटेलाईट पोजिशनिंग सिस्टम भी प्रति -रक्षा सेवाओं को फोन का पता लगाने में कारगर रहेगा ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-अप्लायेंसिज़ दी आर्सनल इन फ्यूचर वार्स ?स्मार्ट फोन्स विल हेल्प सोल्ज़र्स लोकेट एनिमीज़ इन देयर वीसी -निटी(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )
तीव्र गति सुपरसोनिक कारें
नो नीड टू फ्लाई :ए कार देट क्रूज़िज़ एट सुपरसोनिक स्पीड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० )
एक ब्रितानी कम्पनी ने पेन्सिल आकृति की एक तीव्रगति कार का डिजाइन प्रस्तुत किया है जो ध्वनी के वेग के पार अब तक की सबसे ज्यादा लैंड -स्पीड इख्तियार करेगी .इसकी चाल रहेगी १६०९ किलोमीटर प्रति घंटा (तकरीबन १००० मील प्रति घंटा ).
पूरे तीन बरस की एयरो -डायनेमिक रिसर्च के बाद अब जाकर इसके निर्माण को हरी झंडी मिली है तब कहीं जाकर इसके निर्माण का काम शुरू हुआ है ।
इस ब्लड हाउंड सुपरोनिक कार को जेट और रोकेट इंजिन शक्ति प्रदान करेंगें .२०१२ तक यह बन कर तैयार हो जायेगी .पहला ट्रायल परीक्षण दक्षिण अफ्रिका में किया जाएगा ।
इसका चालन रोयल एयर फ़ोर्स फाइटर पायलट अनद्य(एंडी ) ग्रीन करेंगें .तीव्रगामी वर्तमान कार का अबतकका रिकार्ड भी इसी टीम के नाम है . इसके अगुवा हैं ,ब्रिटनके रिचर्ड नोब्ले .१९९७ में १२२८ किलोमीटर प्रति घंटा की सुपरसोनिक लैंड स्पीड भी आप ही के नाम है .तब भी एंडी ग्रीन ने पहल की थी ।
साउंड बेरियर का अतिक्रमण किया था ।
साउंड बेरियर क्या है ?
दी पॉइंट एट व्हिच एन एयरक्राफ्ट्स स्पीड इज दी सेम एज दी स्पीड ऑफ़ साउंड ,कौजिंग रिद्युस्द कंट्रोल ,ए वेरी लाउड नोइज़ (काल्ड ए सोनिक बूम )एंड वेरियस अदर इफेक्ट्स .टू ब्रेक साउंड बेरियर मीन्स टू त्रेविल फास्टर देन दी स्पीड ऑफ़ साउंड .ए सदेंन इनक्रीज इन दी फ़ोर्स ऑफ़ एयर अपोज़िंग एन एयरक्राफ्ट ऑर अदर मूविंग बॉडी व्हेन इट एप्रोचिज़ दी स्पीड ऑफ़ साउंड ,प्रोद्युसिंग ए सोनिक बूम .वेलोसिटी ऑफ़ साउंड इज ३३२ मीटर्स पर सेकिंड एट नोर्मल टेम्प्रेचर एंड प्रेशर (जीरो सेल्सियस एंड ७६० एम् एम् ) एंड इज ए फंक्शन ऑफ़ टेम्प्रेचर .डिपेंड्स अपोन ह्युमिदिती ,विंड स्पीड एटसेट्रा .
इस मर्तबा त्यफून(टाइफून )फाइटर जेट इंजिन तथा फाल्कोन रोकेट मिलकर इसे शक्ति प्रदान करेंगें .फर्न्बोरौघ इंटरनेश्नल एयर शो में इसका प्रदर्शन किया जाएगा .इसकी होर्स पावर रहेगी १,३५ ,००० एच पी ,जो फोर्मुला वन कार से १८० गुना ज्यादा है ।
इसका पहला ट्रायल ड्राई लेक बेड पर किया जाएगा जहां यह शून्यसेकिंड्स से आरम्भ कर ४५ सेकिंड्स में ७.२५ किलोमीटर की दूरी तय कर लेगी .इसका त्वरण शून्य से बढ़कर १००० मील प्रतिघंटा हो जाएगा .इस कार का लक्ष्य स्पीड का एक अभिनव रिकोर्ड बनाना मात्र नहीं है ,आइन्दा आने वाली इंजीनीयर्स और प्रोद्योगिकी -विदों की पीढ़ी को प्रोत्साहित भी करना है ।
साइंस म्यूजियम लन्दन में अक्टूबर २००८ इस प्रोजेक्ट की घोषणा हुई थी .तब से लेकर अब तक १५ लाख ब्रितानी बच्चे ब्लड हाउंड एज्युकेशन में शरीक हो चुकें हैं .(रायटर्स )।
सन्दर्भ -सामिग्री :-नो नीड टू फ्लाई :ए कार देट क्रूज़िज़ एट सुपरसोनिक स्पीड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ,२२ ,२०१० )
एक ब्रितानी कम्पनी ने पेन्सिल आकृति की एक तीव्रगति कार का डिजाइन प्रस्तुत किया है जो ध्वनी के वेग के पार अब तक की सबसे ज्यादा लैंड -स्पीड इख्तियार करेगी .इसकी चाल रहेगी १६०९ किलोमीटर प्रति घंटा (तकरीबन १००० मील प्रति घंटा ).
पूरे तीन बरस की एयरो -डायनेमिक रिसर्च के बाद अब जाकर इसके निर्माण को हरी झंडी मिली है तब कहीं जाकर इसके निर्माण का काम शुरू हुआ है ।
इस ब्लड हाउंड सुपरोनिक कार को जेट और रोकेट इंजिन शक्ति प्रदान करेंगें .२०१२ तक यह बन कर तैयार हो जायेगी .पहला ट्रायल परीक्षण दक्षिण अफ्रिका में किया जाएगा ।
इसका चालन रोयल एयर फ़ोर्स फाइटर पायलट अनद्य(एंडी ) ग्रीन करेंगें .तीव्रगामी वर्तमान कार का अबतकका रिकार्ड भी इसी टीम के नाम है . इसके अगुवा हैं ,ब्रिटनके रिचर्ड नोब्ले .१९९७ में १२२८ किलोमीटर प्रति घंटा की सुपरसोनिक लैंड स्पीड भी आप ही के नाम है .तब भी एंडी ग्रीन ने पहल की थी ।
साउंड बेरियर का अतिक्रमण किया था ।
साउंड बेरियर क्या है ?
दी पॉइंट एट व्हिच एन एयरक्राफ्ट्स स्पीड इज दी सेम एज दी स्पीड ऑफ़ साउंड ,कौजिंग रिद्युस्द कंट्रोल ,ए वेरी लाउड नोइज़ (काल्ड ए सोनिक बूम )एंड वेरियस अदर इफेक्ट्स .टू ब्रेक साउंड बेरियर मीन्स टू त्रेविल फास्टर देन दी स्पीड ऑफ़ साउंड .ए सदेंन इनक्रीज इन दी फ़ोर्स ऑफ़ एयर अपोज़िंग एन एयरक्राफ्ट ऑर अदर मूविंग बॉडी व्हेन इट एप्रोचिज़ दी स्पीड ऑफ़ साउंड ,प्रोद्युसिंग ए सोनिक बूम .वेलोसिटी ऑफ़ साउंड इज ३३२ मीटर्स पर सेकिंड एट नोर्मल टेम्प्रेचर एंड प्रेशर (जीरो सेल्सियस एंड ७६० एम् एम् ) एंड इज ए फंक्शन ऑफ़ टेम्प्रेचर .डिपेंड्स अपोन ह्युमिदिती ,विंड स्पीड एटसेट्रा .
इस मर्तबा त्यफून(टाइफून )फाइटर जेट इंजिन तथा फाल्कोन रोकेट मिलकर इसे शक्ति प्रदान करेंगें .फर्न्बोरौघ इंटरनेश्नल एयर शो में इसका प्रदर्शन किया जाएगा .इसकी होर्स पावर रहेगी १,३५ ,००० एच पी ,जो फोर्मुला वन कार से १८० गुना ज्यादा है ।
इसका पहला ट्रायल ड्राई लेक बेड पर किया जाएगा जहां यह शून्यसेकिंड्स से आरम्भ कर ४५ सेकिंड्स में ७.२५ किलोमीटर की दूरी तय कर लेगी .इसका त्वरण शून्य से बढ़कर १००० मील प्रतिघंटा हो जाएगा .इस कार का लक्ष्य स्पीड का एक अभिनव रिकोर्ड बनाना मात्र नहीं है ,आइन्दा आने वाली इंजीनीयर्स और प्रोद्योगिकी -विदों की पीढ़ी को प्रोत्साहित भी करना है ।
साइंस म्यूजियम लन्दन में अक्टूबर २००८ इस प्रोजेक्ट की घोषणा हुई थी .तब से लेकर अब तक १५ लाख ब्रितानी बच्चे ब्लड हाउंड एज्युकेशन में शरीक हो चुकें हैं .(रायटर्स )।
सन्दर्भ -सामिग्री :-नो नीड टू फ्लाई :ए कार देट क्रूज़िज़ एट सुपरसोनिक स्पीड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ,२२ ,२०१० )
कृत्रिम बुद्धि चालित रोबो करेंगें सर्जरी (ज़ारी ..)
(गत पोस्ट से आगे ,ज़ारी ....)
अब कृत्रिम बुद्धि चालित ऐसे रोबो सर्जन तैयार कर लिए गयें हैं (बेशक व्यवहार साध्य अध्धय्यनों और आजमाइशों से गुज़र रहें हैं )जो ना सिर्फ मेन-मेड एवं फैंटम लीस्ज़न(चोट ,घाव ,क्षत आदि ) में अंतर कर लेतें हैं घाव तक वांछित औज़ार को पहुंचाकर कई नामूने(साम्पिल्स ) उठा सकतें हैं .कह सकतें हैं यह मार्च है -ऑटोनोमस -रोबोट्स की दिशा में .पहला कदम उठा लिया गया है .कई साधारण चिकित्सा कर सकेंगें ऐसे यंत्र मानव बिना डॉक्टरी मदद के ।
"वी हेव शोन देट दी रोबोट कैन साम्पिल अप टू ८ डिफरेंट स्पोट्स इन सिम्युलेतिद ह्यूमेन प्रोस्टेट टिस्यू "सैड कैचेंग लिंग ,ए ड्यूक साइंटिस्ट एंड ए मेंबर ऑफ़ दी रिसर्च टीम .(पी टी आई )
सन्दर्भ -सामिग्री :-गाइदिद बाई ए आई ,रोबोट्स टू ओपरेट विदाउट डॉक्टर्स हेल्प (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० )
अब कृत्रिम बुद्धि चालित ऐसे रोबो सर्जन तैयार कर लिए गयें हैं (बेशक व्यवहार साध्य अध्धय्यनों और आजमाइशों से गुज़र रहें हैं )जो ना सिर्फ मेन-मेड एवं फैंटम लीस्ज़न(चोट ,घाव ,क्षत आदि ) में अंतर कर लेतें हैं घाव तक वांछित औज़ार को पहुंचाकर कई नामूने(साम्पिल्स ) उठा सकतें हैं .कह सकतें हैं यह मार्च है -ऑटोनोमस -रोबोट्स की दिशा में .पहला कदम उठा लिया गया है .कई साधारण चिकित्सा कर सकेंगें ऐसे यंत्र मानव बिना डॉक्टरी मदद के ।
"वी हेव शोन देट दी रोबोट कैन साम्पिल अप टू ८ डिफरेंट स्पोट्स इन सिम्युलेतिद ह्यूमेन प्रोस्टेट टिस्यू "सैड कैचेंग लिंग ,ए ड्यूक साइंटिस्ट एंड ए मेंबर ऑफ़ दी रिसर्च टीम .(पी टी आई )
सन्दर्भ -सामिग्री :-गाइदिद बाई ए आई ,रोबोट्स टू ओपरेट विदाउट डॉक्टर्स हेल्प (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० )
कृत्रिम बुद्धि चालित रोबो करेंगें कल सर्जरी बिना डॉक्टरी मदद के
अब तक डॉक्टरी मदद से ही रोबोट सर्जरी में सहायक की भूमिका में थे आने वाले कल में बिचौलिये डॉ का पत्ता कट सकता है .व्यवहार साध्य अध्धय्यनों से कुछ ऐसा ही संकेत मिल रहा है ।
ड्यूक विश्वविद्यालय के जैव -इंजीनीयर्स ने फिज़ेबिलिती अध्धय्यनों (व्यवहार साध्य स्टडीज़ )के बाद बतलाया है ऐसे कृत्रिम बुद्धि चालित "कृत्रिम मानव "तैयार कर लिए गए हैं जो सिम्युलेतिद ह्यूमेन ओर्गेंस में से "मेन- मेड" तथा "फैंटम ओर्गेंस "को अलग बतला देतें हैं ।
आप जानतें हैं चिकित्सा विज्ञान "फैंटम प्रेगनेंसी "फैंटम इलनेस 'का भी ज़िक्र करता है जब महिला गर्भ वती ना होते हुए भी खुद को गर्भ वती माने समझे रहती है .स्वस्थ व्यक्ति खुद को बीमार माने रहता है ।
प्रसंग पर लौटतें हैं .
ड्यूक विश्वविद्यालय के जैव -इंजीनीयर्स ने फिज़ेबिलिती अध्धय्यनों (व्यवहार साध्य स्टडीज़ )के बाद बतलाया है ऐसे कृत्रिम बुद्धि चालित "कृत्रिम मानव "तैयार कर लिए गए हैं जो सिम्युलेतिद ह्यूमेन ओर्गेंस में से "मेन- मेड" तथा "फैंटम ओर्गेंस "को अलग बतला देतें हैं ।
आप जानतें हैं चिकित्सा विज्ञान "फैंटम प्रेगनेंसी "फैंटम इलनेस 'का भी ज़िक्र करता है जब महिला गर्भ वती ना होते हुए भी खुद को गर्भ वती माने समझे रहती है .स्वस्थ व्यक्ति खुद को बीमार माने रहता है ।
प्रसंग पर लौटतें हैं .
लॉन्ग रिंग फिंगर दे सकती है प्रोस्टेट कैंसर की पूर्व सूचना
मानो चाहे ना मानो लॉन्ग रिंग फिंगर आगाह कर सकती है भविष्य में होने वाले प्रोस्टेट कैंसर के प्रति .दक्षिण कोरियाई डॉ अपनी इस बात पर कायम हैं ।
मूत्र विज्ञान के ब्रितानी विज्ञान प्रपत्र "युरोलोजी "में प्रकाशित एक अध्धय्यन के मुताबिक़ जिन लोगों के सीधे हाथ की रिंग फिंगर तर्जनी (अंगुष्ठ ,अंगूठे के बराबर वाली ऊंगली जिससे आप किसी की तरफ इशारा करतें हैं ,ऊंगली उठातें हैं )से बड़ी होती है उनके लिए प्रोस्टेट कैंसर के खतरे का वजन तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ जाता है ,.बरक्स उनके जिनकी रिंग फिंगर तर्जनी के ही बराबर होती है या फिर जरा सी ही बड़ी होती है तर्जनी से .
बाद वाले लोगों के लिए प्रोस्टेट का ख़तरा कमतर ही रहता है ।
लम्बी रिंग फिंगर वाले लोगों में एक प्रोस्टेट स्पेसिफिक एन्तिज़ंन का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया है .खासकर उनमे जिनके सीधे हाथ की रिंग फिंगर बड़ी है तर्जनी से ।
कभी कभार उनके रक्त में भी यह एन्तिज़ंन बढ़ा हुआ पाया जाता है जो कैंसर ग्रस्त होतें हैं ।
अध्धय्यन में ख़ास तौर पर सीधे हाथ पर ही गौर किया गया क्योंकि इसी हाथ की रिंग फिंगर और तर्जनी में ज्यादा अंतर पाया जाता है उलटे हाथ की रिंग फिंगर और फॉर -फिंगर में उतना अंतर नहीं होता है .गर्भस्थ शिशु की यही ऊंगली गर्भ में होने वाले हारमोन बदलाव के प्रति ज्यादा संवेदी रहती है ।
गचों यूनिवर्सिटी गिल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने भी इसकी पुष्टि की है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-लॉन्ग रिंग फिंगर पॉइंट्स टू प्रोस्टेट कैंसर रिस्क (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० )
मूत्र विज्ञान के ब्रितानी विज्ञान प्रपत्र "युरोलोजी "में प्रकाशित एक अध्धय्यन के मुताबिक़ जिन लोगों के सीधे हाथ की रिंग फिंगर तर्जनी (अंगुष्ठ ,अंगूठे के बराबर वाली ऊंगली जिससे आप किसी की तरफ इशारा करतें हैं ,ऊंगली उठातें हैं )से बड़ी होती है उनके लिए प्रोस्टेट कैंसर के खतरे का वजन तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ जाता है ,.बरक्स उनके जिनकी रिंग फिंगर तर्जनी के ही बराबर होती है या फिर जरा सी ही बड़ी होती है तर्जनी से .
बाद वाले लोगों के लिए प्रोस्टेट का ख़तरा कमतर ही रहता है ।
लम्बी रिंग फिंगर वाले लोगों में एक प्रोस्टेट स्पेसिफिक एन्तिज़ंन का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया है .खासकर उनमे जिनके सीधे हाथ की रिंग फिंगर बड़ी है तर्जनी से ।
कभी कभार उनके रक्त में भी यह एन्तिज़ंन बढ़ा हुआ पाया जाता है जो कैंसर ग्रस्त होतें हैं ।
अध्धय्यन में ख़ास तौर पर सीधे हाथ पर ही गौर किया गया क्योंकि इसी हाथ की रिंग फिंगर और तर्जनी में ज्यादा अंतर पाया जाता है उलटे हाथ की रिंग फिंगर और फॉर -फिंगर में उतना अंतर नहीं होता है .गर्भस्थ शिशु की यही ऊंगली गर्भ में होने वाले हारमोन बदलाव के प्रति ज्यादा संवेदी रहती है ।
गचों यूनिवर्सिटी गिल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने भी इसकी पुष्टि की है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-लॉन्ग रिंग फिंगर पॉइंट्स टू प्रोस्टेट कैंसर रिस्क (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० )
भाषा कौशल को भी बढाने में मददगार है वादन(वाद्य-संगीत ) सीखना
म्युज़िक कैन बूस्ट किड्स ,लैंग्युवेज़ स्किल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० )।
संगीत खासकर वाद्य -संगीत का प्रशिक्षण व्यक्ति को तहजीब ही नहीं सिखाता ,संभाषण ,भाषा ज्ञान ,याददाश्त को भी परवान चढ़ाता है .भाव अभिव्यक्ति को नए स्वर देता है ।
साइंसदानों की माने तो ,वाद्य - संगीत सीखना आपके मष्तिष्क को तब्दील करके रख सकता है .एक अमरीकी रिव्यू के अनुसार वाद्य -संगीत प्रशिक्षण भाषा ज्ञान को सुधार सकता है ,विदेशी भाषा सीखने में सहायक रहता है ।
रिसर्चर नीना क्रॉस आंकड़ों की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहतीं हैं ,सांगीतिक प्रशिक्षण के दरमियान जो नए न्यूरल दिमागी कनेक्संस बनतें हैं वह मानवीय सम्प्रेसन के हर पहलू को जाकर छूतें हैं .
नोर्थ- वेस्टर्न यूनिवर्सिटीके साइंसदानों ने अबतक संपन्न रिसर्च का एक ओवर -व्यू ,एक सांझा आकलन प्रस्तुत किया है .पता चला है वाद्य संगीत ट्रेनिंग ह्यूमेन कम्युनिकेसन स्किल्स के हर पहलू को प्रभाव शाली बनाती है . बच्चों को वाद्य -संगीत सिखाइए .केच डेम यंग .
संगीत खासकर वाद्य -संगीत का प्रशिक्षण व्यक्ति को तहजीब ही नहीं सिखाता ,संभाषण ,भाषा ज्ञान ,याददाश्त को भी परवान चढ़ाता है .भाव अभिव्यक्ति को नए स्वर देता है ।
साइंसदानों की माने तो ,वाद्य - संगीत सीखना आपके मष्तिष्क को तब्दील करके रख सकता है .एक अमरीकी रिव्यू के अनुसार वाद्य -संगीत प्रशिक्षण भाषा ज्ञान को सुधार सकता है ,विदेशी भाषा सीखने में सहायक रहता है ।
रिसर्चर नीना क्रॉस आंकड़ों की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहतीं हैं ,सांगीतिक प्रशिक्षण के दरमियान जो नए न्यूरल दिमागी कनेक्संस बनतें हैं वह मानवीय सम्प्रेसन के हर पहलू को जाकर छूतें हैं .
नोर्थ- वेस्टर्न यूनिवर्सिटीके साइंसदानों ने अबतक संपन्न रिसर्च का एक ओवर -व्यू ,एक सांझा आकलन प्रस्तुत किया है .पता चला है वाद्य संगीत ट्रेनिंग ह्यूमेन कम्युनिकेसन स्किल्स के हर पहलू को प्रभाव शाली बनाती है . बच्चों को वाद्य -संगीत सिखाइए .केच डेम यंग .
"आईस्ड टी" गुर्दे में पथरी का ख़तरा बढा सकती है ..
"आईस्ड टी अप्स रिस्क ऑफ़ किडनी स्टोंस "(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१० )।
एक यूरोलोजिस्ट ने आईस्ड टी के शौकीनों को चेताया है ,इसका ज़रुरत से ज्यादा सेवन किडनी स्टोंस के खतरे के वजन को बढा सकता है ।
दरअसल इस स्वाद से भरपूर फ्लेवर टी में ओग्ज़लेट्स की लोडिंग हैं .ओग्ज़लेट्स का प्राचुर्य है .यही वह ख़ास रसायन है जो गुर्दे की पथरी को प्रेसिपितेत करने में ,पथरी की नींव रखने में विधाई भूमिका निभाता है ,बेशक कसूरवार कई और केमिकल्स भी हैं ।
बेशक गरम चाय के प्याले में भी ओग्ज़लेट हैं लेकिन गरम चाय आप एक बार में एक कप ही तो पीतें हैं ,मेगा -क्वान्टिटी में नहीं .
लोयोला विश्वविद्यालय, शिकागो के स्त्रित्च स्कूल ऑफ़ मेडिसन ,मेय्वुद ,इलिनॉय के युरोलोजी विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर जॉन मिलनेर ने इस रिसर्च को आगे बढाया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-आईस्ड टी अप्स रिस्क ऑफ़ किडनी स्टोंस ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१०
एक यूरोलोजिस्ट ने आईस्ड टी के शौकीनों को चेताया है ,इसका ज़रुरत से ज्यादा सेवन किडनी स्टोंस के खतरे के वजन को बढा सकता है ।
दरअसल इस स्वाद से भरपूर फ्लेवर टी में ओग्ज़लेट्स की लोडिंग हैं .ओग्ज़लेट्स का प्राचुर्य है .यही वह ख़ास रसायन है जो गुर्दे की पथरी को प्रेसिपितेत करने में ,पथरी की नींव रखने में विधाई भूमिका निभाता है ,बेशक कसूरवार कई और केमिकल्स भी हैं ।
बेशक गरम चाय के प्याले में भी ओग्ज़लेट हैं लेकिन गरम चाय आप एक बार में एक कप ही तो पीतें हैं ,मेगा -क्वान्टिटी में नहीं .
लोयोला विश्वविद्यालय, शिकागो के स्त्रित्च स्कूल ऑफ़ मेडिसन ,मेय्वुद ,इलिनॉय के युरोलोजी विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर जॉन मिलनेर ने इस रिसर्च को आगे बढाया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-आईस्ड टी अप्स रिस्क ऑफ़ किडनी स्टोंस ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,२०१०
दोनों गर्भाशय में बच्चें हैं उसके एक लडका दूसरी लडकी
एक अति विरल स्थिति "यूट्रस दिदेल्फ्य्स "में ही ऐसा होता है जब एक महिला एक की जगह दो दो बच्चे दानी (यूट्रस )लिए इस दुनिया में चली आती है .पांच लाख के पीछे एक और केवल एक मौक़ा चिकित्सा इतिहास में दर्ज़ है जब ऐसी महिला दोनों ही गर्भाशय में गर्भ धारण कर लेती है .बहर -सूरत ३४ वर्षीय अंगी क्रोमर के साथ ऐसा ही हुआ है .डॉक्टरों ने उसे बतलाया है एक हफ्ते के अंतर से उसके दोनों गर्भाशय में गर्भ धारण की घटना घटी है .एक बच्चे - दानी में लडका है दूसरी में लडकी .प्रसव भी इसी अंतर से होगा .यह महिला साल्ट लाके (लेक )सिटी उटाह के नज़दीक मुर्रे की रहने वाली है ।ज़ाहिर है यह जुड़वां बच्चों का मामला नहीं है .यहाँ तो गर्भाधान (कन्सेप्शन )ही अलग अलग समय पर हुआ है .
चिकित्सा इतिहास में अब तक बामुश्किलऐसी सौ से भी कम ही' डबल प्र्ग्नेंसीज़ ही 'दर्ज़ हैं .इस स्थिति में समय पूर्व प्रसव या लेबर- पैन के अलावा लो बर्थ -वेट का ख़तरा बना रहता है ।
क्रोमर पहले से ही आठ साल से कम उम्र के तीन बच्चों की माँ हैं .इन्हें अपनी इस स्थिति का भान था लेकिन अब तक हुए प्रसव इससे बेअसर रहें हैं .आप अपने पति जोएल के साथ रह रहीं हैं ।
यूट्रस दिदेल्फ्य्स :यूट्रस दिदेल्फ्य्स का अर्थ है "डबल यूट्रस "
सन्दर्भ -सामिग्री :-वोमेन प्रेग्नेंट विद टू बेबीज़ इन सेपरेट वोम्ब्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,,२०१० )
चिकित्सा इतिहास में अब तक बामुश्किलऐसी सौ से भी कम ही' डबल प्र्ग्नेंसीज़ ही 'दर्ज़ हैं .इस स्थिति में समय पूर्व प्रसव या लेबर- पैन के अलावा लो बर्थ -वेट का ख़तरा बना रहता है ।
क्रोमर पहले से ही आठ साल से कम उम्र के तीन बच्चों की माँ हैं .इन्हें अपनी इस स्थिति का भान था लेकिन अब तक हुए प्रसव इससे बेअसर रहें हैं .आप अपने पति जोएल के साथ रह रहीं हैं ।
यूट्रस दिदेल्फ्य्स :यूट्रस दिदेल्फ्य्स का अर्थ है "डबल यूट्रस "
सन्दर्भ -सामिग्री :-वोमेन प्रेग्नेंट विद टू बेबीज़ इन सेपरेट वोम्ब्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २२ ,,२०१० )
बुधवार, 21 जुलाई 2010
टिन्नी-टस की एक वजह आपका सेल फोन भी हो सकता है ?
रेग्युलर मोबाइल यूज़ मेक्स ईयर्स बज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २१ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
यदि आप गत चार सालों से लगातार मोबाइल फोन का कमसे कम १० मिनिट रोजाना स्तेमाल कर रहें हैं,दोनों कानों का इस एवज स्तेमाल कर रहें हैं , तब आपके लिए टिन्नी -टस के खतरे का वजन दोगुना ज्यादा हो जाता है ।
टिन्नी -टस :आम भाषा में कह देतें हैं कान बजना ,भिनभिनाहट ,रिंगिंग या फिर बजिंग इन दी ईयर्स .लगातार रिंगिंग (छोटी घंटी की उच्च आवृत्ति ध्वनी का सुनाई देना ),रोअरिंग साउंड्स सुनाई देते रहना ,जबकि ये ध्वनी आपके परिवेश में अब हों या ना हों .एक अशक्त बना देने वाली मेडिकल कंडीशन ,जो कान की अंदरूनी कोशाओं के डेमेज (विनष्ट होने से )पैदा हो सकती है,टिन्नी -टस कहलाती है ।
उच्च तीव्रता और दीर्घकालिक मोबाइल का स्तेमाल भी इसकी(टिन्नी -टस ) अनेक वजहों में से एक हो सकता है .
वैसे इसकी आम फ़हमवजह ट्रौमा ,शोर शराबे के बीच रहने की विवशता (एक्सपोज़र तू लाउड नोइज़ ,हाई -पिच्द,हाई -डेसिबल नोइज़ ),डिप्रेशन ,रिडन -डेन्सी,बीमारी आदि भी बनतें हैं .
फिलवक्त दुनिया भर में लाखों लोग इससे ग्रस्त हैं .इन्हें दिन रात रशिंग ,रोअरिंग ,हाई -पिच्द टोंस सुनाई देतीं रहतीं हैं .दोनों कानों का हेड फोन्स,मोबाइल्स के लिए, स्तेमाल करने वाले इसकी दोगुना ज्यादा चपेट में आ सकतें हैं ।
विज्ञान प्रपत्र जर्नल ओक्युपेश्नल एंड एन्वाय्रंमेंटल मेडिसन में इस अध्धय्यन के बारे में विस्तार से रिपोर्ट प्रकाशित हुई है . बकौल इस रिपोर्ट के टिन्नी -टस की व्यापकता घटने का नाम नहीं ले रही है .मोबाइल से पैदा माक्रो -वेव एनर्जी इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है ।
हंस -पीटर हैटर (हत्तेर )इंस्टिट्यूट ऑफ़ एन्वाय्रंमेंटल हेल्थ ,यूनिवर्सिटी ऑफ़ विएन्ना (ऑस्ट्रिया )ने टिन्नी -टस से ग्रस्त १०० लोगों की तुलना इतने ही सामान्य, इस चिकित्सा स्थिति से मुक्त लोगों से की है ।
अलबत्ता लोगों ने जो कुछ बतलाया है उसे सही मान लिया गया है .भरोसा ना करने की भी कोई वजह नहीं है .ऐसा लगता है "इस की एक वजह "हाई -इन्तेसिती एंड लॉन्ग ड्यूरेशन ऑफ़ मोबाइल फोन यूज़भी बन रहा है .इसका व्यक्ति की कार्य कारी क्षमता पर साफ़ असर दिखलाई दे रहा है .इसका इलाज़ नहीं है .बचाव भर है .हेड फोन्स और मोबाइल का स्तेमाल कम कीजिये ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-रेग्युलर मोबाइल यूज़ मेक्स ईयर्स बज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २१ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )
यदि आप गत चार सालों से लगातार मोबाइल फोन का कमसे कम १० मिनिट रोजाना स्तेमाल कर रहें हैं,दोनों कानों का इस एवज स्तेमाल कर रहें हैं , तब आपके लिए टिन्नी -टस के खतरे का वजन दोगुना ज्यादा हो जाता है ।
टिन्नी -टस :आम भाषा में कह देतें हैं कान बजना ,भिनभिनाहट ,रिंगिंग या फिर बजिंग इन दी ईयर्स .लगातार रिंगिंग (छोटी घंटी की उच्च आवृत्ति ध्वनी का सुनाई देना ),रोअरिंग साउंड्स सुनाई देते रहना ,जबकि ये ध्वनी आपके परिवेश में अब हों या ना हों .एक अशक्त बना देने वाली मेडिकल कंडीशन ,जो कान की अंदरूनी कोशाओं के डेमेज (विनष्ट होने से )पैदा हो सकती है,टिन्नी -टस कहलाती है ।
उच्च तीव्रता और दीर्घकालिक मोबाइल का स्तेमाल भी इसकी(टिन्नी -टस ) अनेक वजहों में से एक हो सकता है .
वैसे इसकी आम फ़हमवजह ट्रौमा ,शोर शराबे के बीच रहने की विवशता (एक्सपोज़र तू लाउड नोइज़ ,हाई -पिच्द,हाई -डेसिबल नोइज़ ),डिप्रेशन ,रिडन -डेन्सी,बीमारी आदि भी बनतें हैं .
फिलवक्त दुनिया भर में लाखों लोग इससे ग्रस्त हैं .इन्हें दिन रात रशिंग ,रोअरिंग ,हाई -पिच्द टोंस सुनाई देतीं रहतीं हैं .दोनों कानों का हेड फोन्स,मोबाइल्स के लिए, स्तेमाल करने वाले इसकी दोगुना ज्यादा चपेट में आ सकतें हैं ।
विज्ञान प्रपत्र जर्नल ओक्युपेश्नल एंड एन्वाय्रंमेंटल मेडिसन में इस अध्धय्यन के बारे में विस्तार से रिपोर्ट प्रकाशित हुई है . बकौल इस रिपोर्ट के टिन्नी -टस की व्यापकता घटने का नाम नहीं ले रही है .मोबाइल से पैदा माक्रो -वेव एनर्जी इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है ।
हंस -पीटर हैटर (हत्तेर )इंस्टिट्यूट ऑफ़ एन्वाय्रंमेंटल हेल्थ ,यूनिवर्सिटी ऑफ़ विएन्ना (ऑस्ट्रिया )ने टिन्नी -टस से ग्रस्त १०० लोगों की तुलना इतने ही सामान्य, इस चिकित्सा स्थिति से मुक्त लोगों से की है ।
अलबत्ता लोगों ने जो कुछ बतलाया है उसे सही मान लिया गया है .भरोसा ना करने की भी कोई वजह नहीं है .ऐसा लगता है "इस की एक वजह "हाई -इन्तेसिती एंड लॉन्ग ड्यूरेशन ऑफ़ मोबाइल फोन यूज़भी बन रहा है .इसका व्यक्ति की कार्य कारी क्षमता पर साफ़ असर दिखलाई दे रहा है .इसका इलाज़ नहीं है .बचाव भर है .हेड फोन्स और मोबाइल का स्तेमाल कम कीजिये ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-रेग्युलर मोबाइल यूज़ मेक्स ईयर्स बज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २१ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )
जन्मना ही होती है खूबसूरती के प्रति दीवानगी
जन्मना ही होती है खूबसूरती के प्रति दीवानगी ,पसंदगी .वी आर हार्ड वायर्ड तू गिव ब्यूटी हायर प्रीफरेंस .यही वजह है खूबसूरत दिखने वाले मुलाजिम अपने अन्य आम साथियों की बनिस्पत ५ फीसद ज्यादा पगार पा जातें हैं ."ब्यूटी इज ओनली स्किन डीप" मीनिंग बाई-" हाओ ए पर्सन लुक्स इज लेस इम्पोर्टेंट देन हिज़ करेक्टर ."
यकीन मानिए कोर्पो -रेटीकरण के इस दौर में यह कहावत सही साबित नहीं होती है .खूबसूरत मर्द औरों से ५ फीसद ज्यादा तथा औरतें ४ फीसद ज्यादा धनार्जन कर लेतीं हैं कोर्पो -रेट दुनिया में ।
(विस्तार के लियें देखें -न्यूज़ -वीक ।)।
दूसरे शब्दों में आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लोग औसतन औरों के बरक्स २,५०,००० डॉलर ज्यादा कमा लेतें हैं ।
क्यूटर बेबीज़ ज्यादा ध्यान खींचतें हैं आम -ओ -ख़ास का .
सन्दर्भ -सामिग्री :-अट्रेक्तिव एम्प्लोयीज़ गेट पेड बेटर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २१ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )
यकीन मानिए कोर्पो -रेटीकरण के इस दौर में यह कहावत सही साबित नहीं होती है .खूबसूरत मर्द औरों से ५ फीसद ज्यादा तथा औरतें ४ फीसद ज्यादा धनार्जन कर लेतीं हैं कोर्पो -रेट दुनिया में ।
(विस्तार के लियें देखें -न्यूज़ -वीक ।)।
दूसरे शब्दों में आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लोग औसतन औरों के बरक्स २,५०,००० डॉलर ज्यादा कमा लेतें हैं ।
क्यूटर बेबीज़ ज्यादा ध्यान खींचतें हैं आम -ओ -ख़ास का .
सन्दर्भ -सामिग्री :-अट्रेक्तिव एम्प्लोयीज़ गेट पेड बेटर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २१ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )
विस्मृत भाषाओं की लिपि बांचने बूझने के लिए सोफ्टवेयर
साइंसदानों ने विस्मृत तथा आदिनांक अबूझ भाषा लिपियों को बूझने अनूदित करने के लिए एक नायाब सोफ्ट वेयर तैयार कर लिया है .यह कंप्यूटर प्रोग्रेम अबूझ लिपियों को ज्ञात भाषिक स्वरूपों में रूपांतरित करने में समर्थ है .अबतक अनेक लिपियाँ ऐसी रहीं हैं जिनके कूटांकन को डी -कोड करना असंभव रहा आया है ।
मसाचुसेत्ट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के रिसर्चरों द्वारा विकसित इस प्रोग्रेम की मदद से ३,०००साल पुरानी "उगारितिक लैंग्युवेज़" का कूटवाचन मुमकिन हुआ है .गूढ़ (कूट )लेखन को पढ़ लेना समझ लेना इस सोफ्ट वेयर का अप्रतिम योगदान कहा जा सकता है उस दौर में जबकि अनेक भाषाएँ विस्मृति के गर्त में एक एक करके जा रहीं हैं ।
कूट लेखन को बूझकर ही यह सोफ्ट वेयर शब्द व्युत्पत्ति का सुराग लेलेता है .उपसर्ग और प्रत्यय (प्रिफिक्स )पूर्व -सर्ग या प्रिफिक्स तथा अनुलग्न या सफिक्स का भी पता लगा लेता है .इस प्रकार विश्लेषण को दोहरा कर इस सोफ्ट वेयर ने उगारितिक भाषा के तमाम मुद्रित प्रतीकों ,अक्षरों ,एवं शब्दों का एक खाका तैयार कर दिया ।इनके हेब्र्यु भाषा में पर्याय भी तैयार कर दिए .
१२०० बी सी के सीरिया में यह भाषा चलन में थी .
सन्दर्भ -सामिग्री :-नोवेल सोफ्ट वेयर तू डिकोड वर्ल्ड्स लोस्ट लैंग्युवेज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २१ ,२०१० ,मुंबई एडिशन ).
मसाचुसेत्ट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के रिसर्चरों द्वारा विकसित इस प्रोग्रेम की मदद से ३,०००साल पुरानी "उगारितिक लैंग्युवेज़" का कूटवाचन मुमकिन हुआ है .गूढ़ (कूट )लेखन को पढ़ लेना समझ लेना इस सोफ्ट वेयर का अप्रतिम योगदान कहा जा सकता है उस दौर में जबकि अनेक भाषाएँ विस्मृति के गर्त में एक एक करके जा रहीं हैं ।
कूट लेखन को बूझकर ही यह सोफ्ट वेयर शब्द व्युत्पत्ति का सुराग लेलेता है .उपसर्ग और प्रत्यय (प्रिफिक्स )पूर्व -सर्ग या प्रिफिक्स तथा अनुलग्न या सफिक्स का भी पता लगा लेता है .इस प्रकार विश्लेषण को दोहरा कर इस सोफ्ट वेयर ने उगारितिक भाषा के तमाम मुद्रित प्रतीकों ,अक्षरों ,एवं शब्दों का एक खाका तैयार कर दिया ।इनके हेब्र्यु भाषा में पर्याय भी तैयार कर दिए .
१२०० बी सी के सीरिया में यह भाषा चलन में थी .
सन्दर्भ -सामिग्री :-नोवेल सोफ्ट वेयर तू डिकोड वर्ल्ड्स लोस्ट लैंग्युवेज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २१ ,२०१० ,मुंबई एडिशन ).
अन्तरिक्ष कबाड़ का पता लगाने के लिए लेज़र प्रणाली
अन्तरिक्ष में तैरता कबाड़ पृथ्वी की कक्षाओं में स्थापित उपग्रहों और अन्तरिक्ष यानों के लिए बराबर एक खतरे का सबब बना रहा है .अब एक आस्ट्रेलियाई कम्पनी ने एक ऐसी लेज़र प्रणाली तैयार कर ली है जो इस खतरे को मुल्तवी रख सकेगी ।
इलेक्ट्रिक ऑप्टिक सिस्टम्स ने जो लेज़र ट्रेकिंग सिस्टम तैयार किया है वह पृथ्वी से दागे गए एक सटीक निशाने बाज़ लेज़र बीम की मदद से १० सेंटीमीटर आकार तक छोटी देबरीज़ का पता लगाकर अन्तरिक्ष यात्रियों,अन्तरिक्ष यानों ,स्टेशनों और उपग्रहों से इनकी संभावित टक्कर को मुल्तवी रख सुरक्षा प्रदानकर सकेगी ।
यह काम पूरी शुद्धता के साथ संपन्न किया जाएगा ।
यह एक तरह से राडार प्रणाली का ही अति परिष्कृत रूप होगी जो उपग्रहों,काम में लिए जा चुके राकिटों द्वारा छोड़े गए नाकारा हो चुके कल पुर्जों पर निगाह रखेगी .
एक अनुमान के अनुसार २००,००० टुकड़े इस कबाड़ के एक सेंटीमीटर आकार से भी छोटें हैं .,५००,००० इससे बड़े हैं .यह अल्ट्रा हाई रफ़्तार से पृथ्वी की कक्षाओं में तैर रहें हैं .(३०,००० किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार होगी इन टुकड़ों की ,इतनी हाई -पर -वेलोसिटी इम्पेक्ट से बचने के लिए उपग्रहों ,इतर पिंडों को उसी कक्षा में रहना होना पड़ेगा .इनके आवेग संवेग ,मोमेंटम का परिमाण बेहद घातक हो सकता है किसी भी उपग्रह के लिए )
विविध आकारीय है यह अन्तरिक्ष कबाड़ ,इलेक्ट्रीक ऑप्टिक सिस्टम के चीफ एग्ज़िक्युतिव आफिसर के अनुसार एक छोर पर बस -साइज़ बिट्स हैं तो दूसरे छोर पर आधेमिलिमीटर से भी सूक्ष्मतर (फ्लेक्क ऑफ़ पैंट ).कैन -बेराज़ माउंट स्त्रोम्लो ओब्ज़र्वेत्री (वैध -शाला )परिसर में ही इसे तैयार कियागया है .इस एवज औस्ट्रेलियाई सरकार से ३५ लाख डॉलर का अनुदान मिला है .अलबत्ता इस लेज़र प्रणाली से अधिकतम फायदा लेने के लिए अभी एक ट्रेकिंग नेट वर्क चाहिए पृथ्वी के गिर्द रणनीतिक स्थानों पर .खासकर लोवर अर्थ ओर्बित के लिए यह एक दम से ज़रूरी है .अकेला स्टेशन सिर्फ ऑस्ट्रेलियाई कुछ ख़ास नहीं कर पायेगा ।
ए नेट वर्क इज बेटर दें ए सिंगिल स्टेशन ऑफ़ यूओर ओंन बिकॉज़ -इन लोवर ओर्बिट्स थिंग्स आर नोट आलवेज़ कमिंग ओवर यूओर हेड व्हेन यु वांट डेम तू बी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ऑस्ट्रेलियाई लेज़र सिस्टम तू ट्रेक स्पेस जंक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २१ ,२०१० )
इलेक्ट्रिक ऑप्टिक सिस्टम्स ने जो लेज़र ट्रेकिंग सिस्टम तैयार किया है वह पृथ्वी से दागे गए एक सटीक निशाने बाज़ लेज़र बीम की मदद से १० सेंटीमीटर आकार तक छोटी देबरीज़ का पता लगाकर अन्तरिक्ष यात्रियों,अन्तरिक्ष यानों ,स्टेशनों और उपग्रहों से इनकी संभावित टक्कर को मुल्तवी रख सुरक्षा प्रदानकर सकेगी ।
यह काम पूरी शुद्धता के साथ संपन्न किया जाएगा ।
यह एक तरह से राडार प्रणाली का ही अति परिष्कृत रूप होगी जो उपग्रहों,काम में लिए जा चुके राकिटों द्वारा छोड़े गए नाकारा हो चुके कल पुर्जों पर निगाह रखेगी .
एक अनुमान के अनुसार २००,००० टुकड़े इस कबाड़ के एक सेंटीमीटर आकार से भी छोटें हैं .,५००,००० इससे बड़े हैं .यह अल्ट्रा हाई रफ़्तार से पृथ्वी की कक्षाओं में तैर रहें हैं .(३०,००० किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार होगी इन टुकड़ों की ,इतनी हाई -पर -वेलोसिटी इम्पेक्ट से बचने के लिए उपग्रहों ,इतर पिंडों को उसी कक्षा में रहना होना पड़ेगा .इनके आवेग संवेग ,मोमेंटम का परिमाण बेहद घातक हो सकता है किसी भी उपग्रह के लिए )
विविध आकारीय है यह अन्तरिक्ष कबाड़ ,इलेक्ट्रीक ऑप्टिक सिस्टम के चीफ एग्ज़िक्युतिव आफिसर के अनुसार एक छोर पर बस -साइज़ बिट्स हैं तो दूसरे छोर पर आधेमिलिमीटर से भी सूक्ष्मतर (फ्लेक्क ऑफ़ पैंट ).कैन -बेराज़ माउंट स्त्रोम्लो ओब्ज़र्वेत्री (वैध -शाला )परिसर में ही इसे तैयार कियागया है .इस एवज औस्ट्रेलियाई सरकार से ३५ लाख डॉलर का अनुदान मिला है .अलबत्ता इस लेज़र प्रणाली से अधिकतम फायदा लेने के लिए अभी एक ट्रेकिंग नेट वर्क चाहिए पृथ्वी के गिर्द रणनीतिक स्थानों पर .खासकर लोवर अर्थ ओर्बित के लिए यह एक दम से ज़रूरी है .अकेला स्टेशन सिर्फ ऑस्ट्रेलियाई कुछ ख़ास नहीं कर पायेगा ।
ए नेट वर्क इज बेटर दें ए सिंगिल स्टेशन ऑफ़ यूओर ओंन बिकॉज़ -इन लोवर ओर्बिट्स थिंग्स आर नोट आलवेज़ कमिंग ओवर यूओर हेड व्हेन यु वांट डेम तू बी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ऑस्ट्रेलियाई लेज़र सिस्टम तू ट्रेक स्पेस जंक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई २१ ,२०१० )
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