हाइपो -ग्लाई -सीमिया का समबन्ध मधु मेह के खासकर उन रोगियों से होता है जो दवा या फिर इंसुलिन आश्रित रहतें हैं ,वे सेकेंडरी डायबिटीज़ से ग्रस्त भी हो सकतें हैं यानी जीवन शैली रोग डायबिटीज़ से भी और जन्मजात यानी प्राई-मरी डायबिटीज़ से भी .
अकसर ऐसे मरीज़ या तो कभी कभार दवा ज्यादा ले लेतें हैं या फिर ज़रुरत से कम खाते है ,काम की धुन में खाना नजर अंदाज़ कर जातें हैं ज्यादा कसरत के दौरान भी यह हो सकता है .रोग पुराना पड़ने पर इसकी संभावना और फ्रीक्युवेंसी/बारंबारता भी बढती जाती है खासकर लापरवाह मरीजों में जिनके न खाने का नियमित वक्त रहता है न सोने उठने का इसके लक्षण कभी भी देखे जा सकतें हैं जो ब्लड सुगर के ७५ मिलीग्राम %पार्टी देसिलीटरसे नीचे कुछ भी ६०-७० या और भी नीचे आ जाने पर प्रकट होतें हैं .अलबत्ता रोग पुराना पड़ने पर लक्षणों मेंबदलाव पेचीला पन आने पर मुखरित होतें हैं ।
आम अलक्षण हैं पसीना छूटना ,हाथ पैरों में झं न -झनाहट ,मांसपेशियों में जकड़न,झंन -झनाहट ,कमजोरी ,डबल विज़न (एककी दो चीज़ें दिखलाई देना ),हाथ पैरों का ठंडा पड़ जाना ,बेहोशी हो सकती है .मरीज़ ओमा में भी जा सकता है .
बचाव :हाइपो -ग्लाई -सीमिया में वक्त गँवाए बिना चीनी, केंडी,रूह -अफज़ा ,शरबत ,कोल्ड ड्रिंक्स ,शहद जो भी पास में है तुरंत ले लें .इंतज़ार न करें .गुड शक्कर सब चलेगा .लक्षण बने रहने पर मरीज़ को शहद,बिना पानी मिलाएं रूहाफ्ज़ा आदि कुछ भी देते रहें .ग्लूकोज़ का टीका भी लगाना पड़ सकता है .देर न करें .
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011
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