जी हाँ !रोग जैसे जैसे पुराना पड़ता जाता है व्यक्ति ला -परवाह होता जाता है .उसका भावात्मक मष्तिष्क ,विवेक मष्तिष्क को अपने अधीन करलेता है .अदबदाकर मरीज़ बद परहेजी करने लगता है .कुछ नहीं होता ,अब और क्या होना है उसका फलसफा सा बनने लगता है .स्ट्रेस ईटिंग करने लगता है व्यक्ति जान बूझकर अनाप शनाप खाना ,सेहत को ,मधुमेह में नुकसान देने वाला खाना खाने लगता है .ऐसे में राजयोग ,ध्यान ,मेडिटेशन की किसी भी शैली की ज़रुरत पडती है .ताकि रागात्मक मन ,भावजगत, तर्क बुद्धि पर हावी न हो ।
मधुमेह रोग में नियमित ध्यान ज़रूरी है ,सुबह शाम बस दस मिनिट .
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