क्या फायदे हैं प्रो-बायोटिक्स के ?
पोषण विज्ञान के माहिरों के अनुसार प्रोबायोटिक्स हमारे भोजन से पोषक तत्वों की प्राप्ति को सहज बनातें हैं .विटामिनों और ज़रूरी अमीनो -अम्लों (इशेंशियल फेटि एसिड्स )के संश्लेषण में सुधार लातें हैं .अलावा इसके कई जीवाणु से पैदा होने वाले रोगों और फंगल इन्फेक्शन (फफूंद रोग संक्रमण )से बचाव करतें हैं ।
खमीर /खमीरा से तैयार फर्मेन्तिद खाद्य, साफ़ सुथरेकुकिंग आयल(हाइड्रोजन युक्त /ट्रांस फैट्स नहीं )से तैयार जलेबी ,डोसा ,मेदू बड़ा इडली ,ढोकला ,तथा कढ़ी खाद्यों की गुणवता पोषण मान के हिसाब से अच्छे माने जातें हैं ।
इनके फर्मेंटेशन में लेक्टो -बेसाइलास जीवाणु का स्तेमाल किया जाता है .कुल मिलाकर लेक्टो -बेसाइलास फर्मेंतिद सीरियल्स और ल्ग्युम्स स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं ।इनकी मौजूदगी खाद्यों के पोषण मान ,पुष्टिकर तत्वों में इजाफा करती है आंत्र- क्षेत्र(गैस्ट्रो -इन्तेस्तिनल ट्रेक्ट ) से ज़रूरी खनिजों की ज़ज्बी (एब्ज़ोर्प्शन ) को भी प्रोबायोटिक्स बढातें हैं ।
ऐसे में शरीर में खनिजों का संतुलन बरकरार रहता है कमीबेशी पेश नहीं आती ।
ब्रेड (आजकल ब्राउन के अलावा मल्टी ग्रेन ब्रेड भी उपलब्ध है ),फिश सौस ,वाइन और बीयर खमीरा से तैयार किन्वित खाद्यों /पेय में शामिल हैं ।
रोग प्रति -रोधी तंत्र को मजबूती प्रदान करतें हैं प्रो -बायोटिक्स .इम्युनिटी में इजाफा करतें हैं .पाचन में मदद करतें हैं .केल्सियम की ज़ज्बी को सुगम बनाते हैं .कई किस्म की एलर्जीज़ सेबचाव करतें हैं ।
डायरिया के इलाज़ में भी इनकी भूमिका है .गर्भवती द्वारा इसका सेवन (प्रसव से इक माह पूर्व ) नवजात को कई किस्म की एलर्जीज़ से बचाए रखने में सहायक है .लेकिन इसके लिए स्त्री रोग एवं प्रसूति की माहिर की अनुमति लेलें .यह ज़रूरी है .हरेक चीज़ हरेक के लिए यकसां नहीं है ।
कहा यह भी जा रहा है घुटनों चलने वाले ६ माही या और बड़े शिशुओं(६महीने से दो साला तक )की इम्युनिटी को भी प्रोबायोटिक्स बढातें हैं ।
अलबत्ता किसी भी नए व्यक्ति को इनका समावेश अपनी खुराक में रफ्ता रफ्ता ही करना चाहिए .इक स्वस्थ व्यक्ति के लिए बीस लाख(२ मिलियन लाइव ओर्गेनिज्म ) लाइव ओर्गेनिज्म युक्त खाद्य खुराक में काफी हैं ।
किसी भी मेडिकल कंडीशन के चलते /लम्बी बीमारियों यथा कैंसर ,मधुमेह का इलाज़ चलते रहने पर एच आइवी पोजिटिव होने पर इनके सेवन से पहले डॉक्टरी परामर्त्श लेलें ।
अति सर्वत्र वर्जयते यहाँ भी लागू होता है .प्रोबायोटिक्स का अतिरिक्त सेवन ,बहुत ज्यादा स्तेमाल अपच के अलावा ,ब्लोटिंग भी पैदा कर सकता है .हर आदमी का मिजाज़ फर्क है .शरीर का प्रति -रक्षा तंत्र जुदा है .बहुत सारी बातों पर गौर करना होगा प्रोबायोटिक्स खरीदते वक्त .मसलन एक्सपायरी डेट ,उत्पाद में लाइव बेक्टीरिया की मौजूदगी (वन मिलियन लाइव ओर्गेनिज्म पर डोज़ )आदि पर निगाह डालना भी ज़रूरी है .इसकी चर्चा फिर कभी .(ज़ारी .....).
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
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