मधुमेह रोगों को बेशक पर्याप्त व्यायाम आहार चिकित्सा ,चहलकदमी (सैर )तथा ध्यान /मेडिटेशन आदि पर पूरा ध्यान देना चाहिए लेकिन यदि इतने पर भी फास्टिंग सुगर (१०-१२ घंटे की फास्टिंग के बाद सुबह खाली पेट लिया गया ब्लड सेम्पिल )यदि १०० मिलीग्राम %प्रति -डेसीलिटर से ज्यादा आये तथा इसके ठीक बाद नाश्ते के दो घंटा बाद पी पी /पोस्ट प्रेंदियल सुगर १४० मिलीग्राम %/डेसीलिटर के पार चली जाए तो डायबिटीज़ से ग्रस्त मरीज़ को अपने दाय्बेतोलोजिस्त के परामर्श पर एंटी -दाय्बेतिक दवाएं लेनी चाहिए .दवा की मात्रा का निर्धारण दाय्बेतो -लोजिस्ट ही करेगा जिसे नियमनिष्ठ होकर लेना चाहिए ।
दवा किसी पडोसी के कहे अनुसार न लें .हर रोगी का मर्ज़ अलग चरण में होता है .मैं ऐसे कई मरीजों को जानता हूँ जो दवा लेने से छिटक ते थे कहते थे -'दवा की आदत पड़ जाती है .वैसे ही खान- पान से ठीक हो जायेगी .मैं मैथी खाता हूँ ,करेले का जूस पीता हूँ वगैरा वैगेरा ।'ये सब ना -समझी की बातें हैं ,नादानी है .ये नहीं जानते यह ला -परवाही बड़ी होकर कितनी भयावह हो जाती है .ध्यान रहे आहार इस रोग की चिकित्सा का ज़रूरी हिस्सा है जो दिन भर में ६-७ बार लेना पड़ता है निर्देशानुसार .सिर्फ दवाओं से सबकुछ नहीं होता .
ऐसे ही रोग अपना मर्ज़ बिगाड़ लेते हैं जो शुरुआत में आसानी से काबू आजाता उसमे जटिलता ,पेचीदगियां पैदा हो जातीं हैं .
गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011
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