ज़रूरी नहीं है मधुमेह के रोगी के मूत्र में शर्करा (सुगर )का पाया जाना .यह पेशाब में तभी प्रकट होती है जब खून में इतनी बढ़ जाए के किडनी उसे ठिकाने न लगा पाए .रीनल थ्रेश -होल्ड के यह पार चली जाए .यानी जब तक मरीज़ खबरदार है ब्लड सुगर इक स्वीकृत रेंज में है दवा दारु ठीक चल रही है यह मूत्र में प्रकट नहीं होगी .युरिस्तिक(यूरिन स्टिक्स ) से इसका पता नहीं चलेगा ।
खाना खाने के बाद इसका सामान्य स्तर १२० मिलीग्राम %प्रति -देसिलीटर होता है .आजकल १६५ मिलीग्राम%तक व्यक्ति को मधुमेह मुक्त ही माना जायेगाअलबत्ता वह बोर्दार्लाइन केस समझा जायेगा ,प्री -डायबेटिक भी .लेकिन इसका स्तर १८० मिलीग्राम %प्रति -देसिलीटर के पार चले जाने पर (रीनल थ्रेश होल्ड )यह मूत्र में दस्तक देने लगता है .इसलिए ज़रूरी नहीं है मधुमेह रोगी के मूत्र में शर्करा हो ही .यह ब्लड सुगर के नियंत्रण के स्तर अपर निर्भर करता है वह अच्छा है ,ठीक है या बुरा ,बहुत ही बुरा या क्या और कैसा है ?
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें