मूल मन्त्र है :जब जब जो जो होना है ,तब तब सो सो होता है .'तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय ,अनहोनी होनी नहीं होनी होय सो होय .फिर जो कुछ होता है ,हुआ है उसे हम बदल भी नहीं सकते .वास्तिवकता को बदला नहीं जा सकता इसी लिए इसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए इसी में भला है .इक और दर्शन है :जो भी होता है अच्छा ही होता है ,भले ही आज वह हमारे अनुरूप न दिखे लगे ,दीर्घावधि में उसके भी अच्छे नतीजे निकलने वाले हैं .सकारात्मक सोच ज़रूरी है .बहुत कुछ ऐसा होता है जो हमारे अनुरूप नहीं होता है .लेकिन होता है .विवेक से उसे ग्राहिय बनाना चाहिए ।
विवेकी मस्तिष्क को समझाइये जो होना था हो चुका .बाहरी दवाब के कारण हुआ .इसे पहचानिए ,इससे बचिए .खुद को बदलिए .औरों को आप नहीं बदल सकते ।और फिर सब दिन इक जैसे नहीं होते .केवल परिवर्तन ही शाश्वत है .
भावात्मक मस्तिष्क ,दिमाग का भाव जगत भी इक नहीं बारहा आहत होता है ."मुश्किलें मुझपर पड़ी इतनी की आसाँ हो गईं "इक फलसफा यह है और दूसरा :पूछना है गर्दिशे ऐयाम से ,अरे हम भी बैठेंगे कभी आराम से ।
और इक नज़रिया यह भी है :जाम को टकरा रहा हूँ जाम से ,अरे खेलता हूँ गर्दिशे ऐयाम से ,और उनका गम ,उनका तसव्वुर उनकी याद ,अरे कट रही है ,ज़िन्दगी आराम से .
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
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