बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

ग़ज़ल :देश का अच्छा मिजाज़ है .

"देश का अच्छा मिजाज़ है "-मेहता वागीश ।
देखो तो सरे आम बिक रही है मूंगफली ,

अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है ।
लो उठ रहा धुआं रसोई घर से आज भी ,
तो पक रहीं हैं रोटियाँ भी देश में मेरे ,
और बर्तनों की आ रही खन सी आवाज़ है ,
अभी तो मेरे देश का ,अच्छा मिजाज़ है ।
काफी दिनों की भूख से वह शख्श मर गया ,
है सरासर झूठ वह भकुआ जो कह रहा ,
हैं भरे गोदाम सारे ,सड़ रहा अनाज है ,
अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है .
महंगाई तो समाज में सुधार के लिए ,
जिससे कि देश में खरीद फ़ालतू न हो ,
धन्य है यह देश अर्थज्ञों का राज है ।
अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है ।
अक्षर पड़े कमज़ोर पर ,डंडे जो पुलिसिया ,
हम क्या करें लाचार ,शासन तो दिखाना है ।
हम बा -खबर हैं वोट पर संयुक्त राज है ,
अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है ।
गरीबी हठाओ देश की चारों तरफ से आज ,
गोया मकान टूटेगा ,मलबा हठाना है ,
कैसी अनोखी बात है ,कैसा परवाज़ है ,
अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है ।
है एकता भावात्मक इस देश की अखंड ,
क्यूंकि जनता बोलती जय हिंद तीन बार ।
आखिर तो मेरे देश की ऊंची आवाज़ है ।
अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है ।
रंगीन चैनलों पर कह रहे हजूरिये ,
कि चल रहा है देश में विकास बेशुमार ,
है शक नहीं कि आ रहा समाजवाद है ,
अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है ।
हर बार कफ़न फोड़ कर मुर्दा है बोलता ,
आतंकवादियों का मूल स्रोत है कहाँ ,
गंगोत्री पर थूकता यह खर दिमाग है ,
अभी तो मेरे देश का अच्छा मिजाज़ है ।
प्रस्तुति एवं सहभावी :वीरेंद्र शर्मा .(वीरुभाई )

कोई टिप्पणी नहीं: