भाई सुनील कुमारजी ने ब्लोगर और मंचीय कवियों की तुलना अपने ब्लॉग में की थी उसने हमें ऐसी प्रेरणा दी हम ब्लॉग के तत्वों के निर्धारण और उसके भविष्य को आंजने में मशगूल हैं ।
ब्लॉग के अनेक तत्व और संभावनाएं हैं .ब्लॉग से आप क्या कुछ नहीं गढ़ सकते
मंच इक छोटी चीज़ है .मंच का प्रत्यक्ष होना ज़रूरी है .ब्लॉग वर्च्युअल है समय की तरंग पे सवार होकर ब्रह्म वाणी की तरह कहीं भी पहुँच जाता है .मंच से आप कितने शब्द बनाइएगा ,ब्लॉग तो संभावनाओं का द्वार है एक बार आप प्रवेश तो लें .मंच की सीमाएं हैं ।
(१)मंच .
(२)मंचिया.
(३)मंचर .
ब्लॉग समय की तरंग पे सवार होकर सारी दुनिया में पहुंचता है .ब्रह्म -वाणी है .
(ज़ारी ... ....)
सोमवार, 2 मई 2011
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2 टिप्पणियां:
लाजवाब चिंतन......बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
shukriya Md .
veerubhai .
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