व्यक्तिगत कमजोरी नहीं होती है किसी की पी टी एस डी .इसलिए इसके मनो -विज्ञानिक और जैविक आधार को भी बात -
- चीत द्वारा समझाया जाता है .इलनेस के बारे में सीधे बात की जाती है -ज़रुरत से ज्यादा स्ट्रेस का ज़मा हो जाना इस एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर की वजह बनता है न की कोई व्यक्ति गत कमजोरी .
बीमारी के बारे में मरीज़ को गलतविचारों और धारणाओं से मुक्त कराया जाता है .कई फौजी जो कारगिल का साक्षी बने डॉ के पास जाने को बुझदिली और शर्म की बात मान बैठतें हैं .विकार ग्रस्त व्यक्ति को व्यवहार थिरेपी के तहत गुस्से और बे- चैनी ,नर्वस -नेस ,एन्ग्जायती सभी का प्रबंधन करना सिखलाया जाता है .
कई ब्रेअथिंग और रिलेक -शेसन तकनीकें भी इन दिनों आजमाई जातीं हैं ।
मकसद एक ही ही है कायिक और संवेग सम्बन्धी ,रागात्मक लक्षणों की उग्रता को कम करना , अभिव्यक्त करने काबू में रखने का हुनर सिखलाना .
आई मूवमेंट ,डि -सेन्सिताइज़ेशन तथा ऋ -प्रोसेसिंग (ई एम् डी आर )भी कोगनिटिव थिरेपी का ही हिस्सा हैं .मकसद घटना से जुड़े नकारात्मक पहलुओं से व्यक्ति को मुक्त करवाना .बात -चीत के दौरान माहिर व्यक्ति के सामने अपनी ऊंगली को तेज़ी से घुमाता रहता है व्यक्ति से उसी पर नजर टिकाये रखने को कहता है .कई मामलों में यह तकनीक असर -कारी पाई गई है .
मेडी -केसंस के तहत "सेरो -टोनार्जिक एंटी -डिप्रेसेंट्स "के अलावा कायिक लक्षणों को शांत रखनेकम करने के लिए भी दवाएं दीजातीं हैं ।
एंटी -डिप्रेसेंट ट्रीट -मेंट साल भर ज़ारी रखने से रिलेप्स के मौके एक दम से कम हो जातें हैं .डॉ की सलाह मानकर दवा लेते रहना और इलनेस की सही जानकारी लेना रखना मरीज़ की ताकत बन जाती है ।
(ज़ारी ...)
रविवार, 1 मई 2011
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2 टिप्पणियां:
VERY INFORMATIVE POST!
AWAITED FOR NEXT PART.....
shukriya Md !
veerubhai.
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