शनिवार, 8 जनवरी 2011

पलांश me ही पैदा हो जातें हैं कुछ कैंसर .क्यों ?

कहतें हैं आदमी की उम्र छोटी होती है कैंसर की ज्यादा कई किस्म के कैंसर अपनी अंतिम अवस्था में पहुंचे इससे पहले ही आदमी मर जाता है .लेकिन कुछ कैंसर जैसे शून्य में से आ जातें हैं ,पलक झपकते ही ,कैसे होता है यह सब ?
इन्हें ही इंस्टेंट कैंसर कहा जाता है .ब्रितानी माहिरों ने इनकी तह तक पहुँचने का दावा प्रस्तुत किया है .वास्तव में कुछ मामलों में कोशायें एक विस्फोट के साथ फट जाती है जिससे डी एन ए ही विनष्ट हो जाता है ।
इतनी अधिक नुकसानी इस एकल कोशा में हुए विस्फोट से डी एन ए की हो जाती है जितनी बरसों की हार्ड कोर लिविंग में होती है .७५० ट्यूमर्स का विश्लेषण इसे समझने बूझने के लिए किया गया है .वास्तव में एक ही विस्फोट अकेली कोशिका में इतना विनाशकारी होता है कि एकादिक गुणसूत्र (क्रोमो -जोम्स ) इस विस्फोट में नष्ट हो जातें हैं टुकडा टुकडा होकर ।
वेल्कोम ट्रस्टसंगेर इंस्टिट्यूट जो केम्ब्रिज के समीप है वहां यह अध्ययन संपन्न हुआ है ।
'इफ दी सेल देन बोचिज़ दी रिपेयर ,स्टिचिंग दी फ्रेग्मेंट्स बेक टुगेदर इन ए हिग्ग्लेद्य पिग्ग्लेद्य फेशन दी डेमेज टू इट्स जीनोम ,ऑर काचे/कैश ऑफ़ डी एन ए ,लीव्ज़ इट राइप फॉर दी रेपिड डिवलपमेंट ऑफ़ कैंसर ।'
बोन कैंसर के चार में से एक मामले में ऐसा ही देखने को मिलता है .बेतरतीब नुकसानी की बेतरतीब भरपाई से डी एन ए /जीनोम में निहित सारी सूचनाएं और जीवन इकाइयों के क्रम विच्छिन्न ही रह जातें हैं नतीजा होता है कैंसर .

कोई टिप्पणी नहीं: