जलता -बहता कलरव करता ,सदैव गतिमान रहा करता है अविरल ।
बहुरंगी बहुआयामी आह्लादित ,देता आया है संवेदन ,
समवेत चेतना का करता रहा सतत सृजन विसर्जन ।
समय अधिक सार्थक हो ,परिवर्तन लाता है अधुनातन ,
दिन को मॉस ,मॉस को वर्ष बनाता आया है नूतन ।
समय की आबद्ध अनुक्रमिमा में केवल "अब" अपना है ,
सतत प्रयासों से संजोयी संपदा ,क्षणभंगुर सपना है ।
नए वर्ष में ज्योतिर्मय हो ,अविनाशी अब को जाने ,
समग्र चेतना उद्भाषित कर ,सत -चित -आन्नद को पहचाने ।
बन नवयुग प्रहरी ,मानव जीवन के धुंधलके छांटें हम ,
नए वर्ष पर कुछ सुख अपना कुछ दुःख उनका बाँटें
रचना कार :श्री मुरारी लाल मुदगिल ,एन -५७७ ,जलवायु विहार ,नौएडा -२०१-३०१ .
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