गुरुवार, 10 जून 2010

क्या है 'जलवायु -इंजीनियरिंग '?

क्या ज़ोरदार 'जियो -इंजीनियरिंग 'के ज़रिये ग्लोबल वार्मिंग (विश्व -व्यापी तापन )की मौजूदा रफ़्तार को थामा जा सकता है ?माहिरों के अनुसार अब यही विकल्प बाकी है .वरना ताप जन्य-विनाश अवशय्म -भावी है .फिर चाहें पृथ्वी की कक्षा में विशालकाय शीशे (मिररर्स,रिफ्लेक्तार्स )स्थापित किये जाएँ ,विष पाई -वृक्ष हाई -वेज़ पर जीव-अवशेषी ईंधनों से पैदा कार्बन की ज़ज्बी के लिए उगाये जाएँ ,ब्राईट -नेस बधाई जाए क्लाउड्सकी ,सी -क्लाउड्स की .विकल्प और भी हैं .आइये देखें ,क्या कुछ छिपा है संभावनाओं के गर्भ में ।
क्या कुछ जोखिम है जलवायु के साथ अदबदाकर की जाने वाली छेड़ छाड़ के ?
रिस्क्स वर्सस रिवार्ड्स ?
किसी भी बिना आजमाई अभिनव -प्रोद्योगिकी की तरह 'जियो -इंजीनियरिंग 'के अपने इन बिल्ट जोखिम है .पृथ्वी कोकृत्रिम तरीके से ठंडा करने के ग्लोबल वेदर पेट्रंस(भू -मंडलीय मौसम के मिजाज़ और ढाँचे ) के लिए निहितखतरें हैं . उत्तरी अफ्रिका भारत और खासकर चीन के लिए सूखा और दुर-भिक्ष का ख़तरा है .
जियो -इंजीनियरिंग का अर्थ शास्त्र क्या है ?
युनाइतिदकिंडमकी रोयल सोसायटी(साइंस ) के २००९ में किये गए एक आकलन के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में मिरर्स और सन शील्ड स्थापित करने में खरबों डॉलर्स का खर्च आयेगा ।
समताप-मंडल (स्ट्रातो-स्फीयर )में बिना विंग्स वाले एयर शिप्स (ब्लिम्प्स )से एयरो -सोल छिडकाव में सालाना अरबों डॉलर्स का खर्च आयेगा .क्लाउड -ब्राईट -निंग में भी सालाना २ अरब डॉलर खर्च आयेगा .सूरज की रोशनियों को पृथ्वी से परे लौटाने का यह एक ज़रिया ज़रूर है .सन शील्ड है .लेकिन कई अर्थ शास्त्री इसे लाभ का सौदा बतलातें हैं .ईट विल पे रिच दिविदेंड्स ।
मेरीन क्लाउड ब्राईट -निंग ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले ७.५ ट्रिलियन डॉलर की नुकसानी को मुल्तवी रख सकती है .इस एवज पवन चालित समुंदरी जहाज़ों से(विंड पावर्ड ओशन वेसिल्स से )समुंदरी खारे पानी का छिडकावव्यापक स्तर पर किया जाएगा .इनसे(मिस्ट से ) बादल पैदा होगा जो सूरज की रौशनी को (विकिरण -ऊर्जा )को वापस लौटा देगा पृथ्वी से परे अंतरीक्ष की ओर .
कार्बन भक्षी विष पाई वृक्ष वायुमंडल से कार्बन दाय-ओक्स्साइड ज़ज्ब कर उसे ज़मीन के नीचे दफन कर देंगें ,भंडारण कर लेंगें इस ईधन का दोबारा स्तेमाल के लिए .अलबत्ता इस सब के लिए एक जियो -इंजीनियरिंग रिसर्च, के लिए, एक नेट वर्क चाहिए ।
बेशक इस सब से विश्व -व्यापी तापन की रफ़्तार कुछ कम हो सकती है .इसे रिवर्स ग्लोबल वार्मिंग कहा जा सकता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-क्विक स्टडी :क्लाइमेट इंजीनियरिंग (रीडर्स डायजेस्ट ,अप्रैल अंक पृष्ठ ९४ -९७ )

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