दुनिया भर से चेचक का सफाया करने वाले ऑस्ट्रेलियाई साइंसदान फ्रेंक फेनर ने अब पृथ्वी नामक गृह से जहां इत्तेफाक से जीवन है ,होमियो -सेपियंस के आगामी सौ सालों में सफाए की प्रागुक्ति (भविष्य कथन )कर दी है ।
जनसंख्या विस्फोट (बढती आबादी अंत बर्बादी )और अतिशय उपभोग (चार्वाक वादी दर्शन )इसकी वजह बनेंगे .साथ में अन्य जीव भी मारे जायेंगे .(रेड डाटा बुक में पहले ही कितने प्राणी आ चुके हैं ,आदमी की हवस जो करादे सो कम .).जैव वैविध्य का सफाया देख रहें हैं हम लोग ,साक्षी भाव से ।
इस स्थिति से कोई पार नहीं पा सकता .आदमी कहता कुछ है करता कुछ है .विनाश के बीज बोये जा चुकें हैं .काल का रथ पीछे की ओर लौटे तो कैसे ?आदमी को भरम है ,वह समय की सवारी कर रहा है(कबीर ने यूं ही नहीं कहा था 'माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोय ,एक दिन ऐसा आयेगा मैं रोदुन्गी तोय / 'कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटी -यनके पास ,करेंगे सो भरेंगें ,तू क्यों भयाउदास ।)।
उत्तर उद्योगिक युग के बाद से आदमी ज़ब्रिया तौर पर ,गैर आधिकारिक वैज्ञानिक युग (सारि, पीरियड में )अवैधानिक तौर पर ,अन -ओफिशयली,दाखिल हो चुका है ।
अन्थ्रो -पोसीन युग है यह .जिसमे आदमी ,सिर्फ खुद को आदमी, सृष्टि के केंद्र में रखकर सबसे असरदार मान समझ रहा है .जीवन ओर जगत का नियंता मान बैठा है .यही सारे फसाद की जड़ है ।
इस नादानी का असर आसमानी आपदाओं से बाज़ी मार रहा है .हिम युग तथा ,उल्का पात (कोमेत्री इम्पेक्ट ,किसी धूम केतु के पृथ्वी से आ टकराने से जब तब पैदा हो चुकी तबाही )को बौना सिद्ध कर रहा है ।
हो सकता है 'जल वायु -परिवर्तन इस विनाश की कथा लिखे .फिर कोई मनु कहे -'हिम गिरी के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शिला की शीतल छाँव ,एक पुरुष भीगे नयनों से ,देख रहा था ,प्रलय प्रवाह '
हम भूल गए 'ईस्टर आइस -लैंड -वासियों का हश्र ?
बिना कार्बन डा- य -ओक्स्साइड के इन मूल -निवासियों ने ४०,००० -५०,००० साल निकाल दिए .बिना ग्लोबल वार्मिंग के ज़िंदा रहे बिना साइंस ओर टेक्नोलोजी के .,बने रहे .लेकिन दुनिया अपनी ढाल चलती है ।
इसीलियें डा -य -ना -सोर्स वाला हश्र हो सकता है होमियो -सेपियंस का ।
बेहद निराश हैं इस परिद्रशय से दुनिया भर के पारिस्थितिकी - विद ,केवल कुछ ही इस गहन नैराश्य की गिरिफ्त से बाहर हैं .भगवान् करे फ्रेंक फेनर गलत साबित हों .
बुधवार, 23 जून 2010
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