आइये देखें क्या प्रागुक्ति है खगोल विज्ञानियों की सृष्टि के विनाश की बाबत ?
एक तरफ लघु गृह (एस्तेरोइद्स ,ए एस टी ई आर ओ आई डी )लघु गृह पट्टी से गुरुत्व की डोर . से खींचे चले आ सकतें हैं ,दूसरी तरफ कोमेत्री क्लाउड्स (धूम -केतुओं के बादल से धूम केतु ).गनीमत यही है ,अन्तरिक्ष से यह विनाश कारी मलबा कभी कभार ही विशाल आकार लिए होता है ,छोटी डेब्रीज़ की भरमार रहती है .इसीलियें विनाश को पंख नहीं लग पाते ।
लेदेकर सौ साल में एक दफा कोई उल्का (मीटियो -राईट )औसतन १० मीट्रि, पृथ्वी से आ टकराती है .आखिरी बार ऐसा १९०८ में हुआ था .तुंगुस्का निर्जन प्रांत में हुआ था यह उल्का पात जहां एक बड़ा क्रेटर बन गया था .इस विस्फोट से एक स्माल न्यूक्लियर डिवाइस (एटमी बम के बराबर ऊर्जा ही निसृत हुई थी .जान माल की कोई हानि नहीं )।
KUCHH हज़ार साल बस में एक बार पृथ्वी धूमकेतुओं के घने बादलों के बीच से होकर गुजरती है .यह अन्तरिक्ष में एक डेडली आग के अंधड़ सा नज़ारा होता है जिसे कुछ लोग लाईट शो भी कह देतें हैं ।
तकरीबन एक लाख बरसों में सिर्फ एक बार सैंकड़ों मीटर आकार का कोई आसमानी प्रक्षेपात (प्रोजेक्टाइल )पृथ्वी पर आ टकरा एक बड़े भू -भाग (इंग्लैंड सरीखे )को विनष्ट कर सकता है .सौर विकिरण को रोक कर पृथ्वी को अँधेरी चादर के हवाले कर सकता है ,हरियाली के ओढने का सत्यानाश कर सकता है .(ज़ारी ..)
रविवार, 20 जून 2010
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