कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज की प्रोद्योगिकी अभी अपनी शैशवास्था में ही है ,अभी ठीक से काम शुरू भी नहीं हुआ है आशंकाएं फल फूलने लगीं हैं .योजना थी स्रोत पर ही कार्बन डायोक्साइड को बिजली उत्पादन संयंत्रों से जो दिनरात जीव-अवषेसी ईंधन तेल ,गैस और कोयला फूंक रहें हैं ,अलग करके समुन्दर या फिर ज़मीन के नीचेरीत चुके गैस ,दिस्यूज्द ,नाकारा पड़े गैस फील्ड्स में दफन कर दिया जाए .दसियों अरब डॉलर का पूँजी निवेश इस एवज अमीर देशों ने रख छोड़ा है ।
लेकिन यहाँ तो सिर मुंडाते ही ओले पड़ें हैं .इस प्रोजेक्ट के आलोचक बारहा यह आशंका व्यक्त करते रहें हैं ,समुन्दर में गहरे दफ़्न की गई कार्बन डायोक्साइड के एक बार रिसाव शुरू होने के बाद समुन्दर का अमलीकरण बढ़ने लगेगा .इसका प्रभाव समुंदरी खाद्य श्रृंखला पर पड़े बगैर नहीं रहेगा ।
गैस के वायुमंडल में लौटने के नतीजे भी कम घातक नहीं रहेंगें .डेनिश सेंटर फॉर अर्थ सिस्टम साइंस ,हुम्लेबैक ,के साइंसदानों ने ऐसी ही आशंका ज़ाहिर की है ।इनके द्वारा संपन्न ताज़ा अध्धय्यन के यही नतीजे रहें हैं .अध्धय्यन के मुखिया रहें हैं गरी शाफ्फेर .आप डेनिश सेंटर फॉर अर्थ सिस्टम साइंस ,हुम्लेबैक में प्रोफ़ेसर के बतौर कार्य रत हैं .
लेदेकर कार्बन -डायोक्साइड को ज़मीन के नीचे सुरक्षित चेम्बरों में दफ़्न करने का विकल्प ही अपेक्षाकृत सुरक्षित प्रतीत होता है ,बा -शर्ते भूमि के नीचे चलने वाली हरारत ,भू -कंप एवं इतर विक्षोभ इस भू -गर्भीय कक्ष में रिसाव की वजह ना बनें ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-लीक रिस्क अंडर-माइंस कार्बन -डायोक्साइड कैप्चर ,सेज स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २८ ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ २८ ).
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें