रिसर्चरों ने कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं के खात्मे के लिए एक नै तरकीब ढूंढ ली है .इसके तहत असर ग्रस्त हिस्से तक एक्स्प्लोडिंग गैस बबिल्स पहुंचाए जातें हैं .इनके विस्फोट के साथ ही कैंसर ग्रस्त कोशायें भी उड़ जातीं हैं ।
यह तकनीक लीड्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने ईजाद की है जिसमे माइक्रो -स्कोपिक बबिल्स (बाल से दस गुना कम आकार )की सहायतासे केमोथिरेपी के तहत दिए जाने वाले रसायन ट्यूमर तक पहुंचाए जातें हैं .इस प्रकार असर ग्रस्त हिस्से तक ज्यादा से ज्यादा दवा पहुँचती है .क्योंकि दवा सीधे सीधे कैंसर ग्रस्त कोशाओं तक पहुँचती है .माइक्रो -स्कोपिक बबिल्स देखते ही देखते कैंसर कोशिकाओं के गिर्द गुच्छ बना लेतें हैं ,दीज़ क्लंप अराउंड दी ट्यूमर ।
अब एक अल्ट्रा -साउंड स्पंद (पल्स )बुलबुले के अन्दर की गैस को कम्पित करती है ,कम्पन पैदा करती है बुलबुले में ज़ोरदार ,फलस्वरूप बुलबुले एक विस्फोट के साथ फट जातें हैं .विस्फोट से पैदा शोकवेव (शाक वेव )कैंसर कोशिकाओं को छलनी कर देती है नतीज़न दवा अन्दर तक असर करती है .कीमोथिरेपी के अवांछित प्रभाव भी कमतर हो जातें हैं ,क्योंकि दवा असर ग्रस्त कैंसर कोशाओं तक ही पहुँचती है ,आसपास की स्वस्थ कोशायें नष्ट होने से बच जातीं हैं ।
अल्ट्रा साउंड स्केन्स में साफ़ तस्वीर के लिए इन्हीं बुलबुलों का स्तेमाल किया जाता रहा है ।
फिलवक्त इसकी आज़माइश कोलो -रेक्टल कैंसर के इलाज़ में ही की जा रहीं हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-गैस बबिल्स तू बिलों अवे कैंसर सेल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९ ,२०१० )
मंगलवार, 29 जून 2010
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