वाईट -राईस रेज़िज़ रिस्क ऑफ़ दायाबितीज़ ,ब्राउन ए बेतर ओपसन ,इज रिच इन विटामिन्स एंड मिनरल्स ,सेज रीसर्च (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १६ ,२०१० )।
रिसर्चरों ने पता लगाया है जहां ब्राउन राईस मधु -मेह(दाया -बितीज़ )के खतरे को कम करता है ,पोलिश किया ,चोकर (भूसी या शल्क )हठा मिल से परिष्कृत किया हुआ कथित पुष्टिकर वाईट राईस इसके खतरे के वजन को बढाता है ।
हारवर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ द्वारा संपन्न इस अध्धय्यन के अनुसार सप्ताह में ५ या ज्यादा बार ली गई सफ़ेद चावल की खुराख जहां सेकेंडरी दायाबितीज़ के जोखिम को बढा सकती है ,वहीँ हफ्ते में २ या ज्यादा बार 'ब्राउन -राईस 'का सेवन इस खतरे को खासा कम करदेता है ।
रिसर्चरों के मुताबिक़ वाईट राईस की जगह खुराख में मोटे अनाजों और ब्राउन राईस को शामिल कर इस खतरे को आलमी स्तर पर कम किया जा सकता है .एशियाइयों ,खासकर हम भारतीयों के लिए इस सिफारिश का बड़ामहत्व है जहां उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक सभी प्रान्तों में चावल खुराख में जगह बनाए हुए है ।
दरअसल ब्राउन राईस गुणों की खान है जिसमे भरपूर खाद्य रेशें हैं ,खनिज और विटामिन हैं ,फाई -तो केमिकल्स हैं .लो -ग्लैसेमिक इंडेक्स है .इसे खाने के बाद खून में शक्कर धीरे धीरे और देर से पहुँचती है ,उतनी नहीं बढती है मिलिंग और पोलिशिंग ब्राउन राईस इन तमाम गुणकारी प्रभावों को समाप्त कर देती है ।
खाद्य रेशा तकरीबन उड़ जाता है .यही वह जादुई अंश है जो खून में शक्कर के सैलाब को ताले रहता है ,खून में घुली चर्बी भीकम करता है ।
दायाबितीज़ और ब्राउन तथा वाईट राईस लिंक की पड़ताल के लिए संभावित जोखिम औरलाभ की पैमाइश के लिए १५७,४६३ औरतों और ३९,७६५ मर्दों के राईस कन्ज़म्प्सन की जांच की गई .इन्होनें 'ब्रिघम एंड वोमेन्स हॉस्पिटल बेस्ड नर्सिज़ हेल्थ स्टडी १ और २ में हिस्सा लिया .हेल्थ प्रोफेसनल फोलो अप स्टडी में भी भाग लिया हर चार साल के बाद इनके हेल्थ स्टेटस ,जीवन शैली ,नशा पत्ता ,खुराख की पड़ताल की जाती रही ।
२२ और २० साला नेशनल हेल्थ सर्वे -१ और २ में ५५०० तथा २३५९ सेकेंडरी दाया -बितीज़ के मामले दर्ज़ हुए .दूसरे
रिस्क फेक्टर्स का भी ख़याल रखा गया .जो नतीजों को असर ग्रस्त बना सकते थे .कुसूरवार वाईट राईस का अधिकाधिक सेवन ही सिद्ध हुआ .
बुधवार, 16 जून 2010
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