इन दिनों पेरू के एन -डीज़ शिखरों को (दक्षिण अमरीकी परबत माला तंत्र जो पश्चिमी तट के पनामा से लेकर तिएर्रा देल फ्येगो तक फैली हैं )वाईट -वाश किया जा रहा है .दसवा हिस्सा सफेदी से धक् भी दिया गया है .ऐसा हिमनदों के पिघलाव को रोकने ,मुल्तवी रखने के लिए किया जा रहा है ।
हम जानतें हैं किसी सतह को सफेदी से ढक देने पर उसका "एल्बिडो "कम हो जाता है .क्योंकि अब आपतित सौर विकिरण का ज्यादा अंश सतह से लौट ने लगता है ।
"एल्बिडो इज दी फ्रेक्सन ऑफ़ इन्सिडेंट लाईट देत इज रिफ्लेक्तिद बाई ए (एन ओब्जेक्त सुच एज ए प्लेनेट और मौंतें टॉप ऑर एनी अदर ओब्जेक्त ) सर्फेस ।"
इस एवज श्रमिकों को वाईट- वाश की मोर्टार्स को ४७०० मीटर की ऊंचाई तक ले जाना पड़ता है .यही पेरुवियन एन -डीज़ का ज्ञात एलटी -त्युद है .(समुन्द्र तल से ऊंचाई है )..इस अभ्याँ के पीछे एक गैर सरकारी संगठन "'ग्लासिअरेस दे पेरू "का अभिनव प्रयास है ।
इसकी कल्पना और इस विचार को अमली जामा पहनाने की ठानी है ,"एडुँर्दो गोल्ड" ने .आप विश्व -बैंक के उन २६ विजेताओं में से एक हैं ,जिन्होंने पृथ्वी को बचाने वाले १०० मूल विचारों में से एक को प्रस्तुत किया है ।
आपने "सेव दी प्लेनेट कोम्पितिसन -२००९" में भाग लिया था .आपने अपनी योजना पर काम ज़ारी रखा हुआ है हालाकि अभी इनामी राशि दो लाख डॉलर्स उन्हें मिलने बाकी हैं ।
तीन शिखरों का कुल १७३ एकड़ क्षेत्र सफेदी से ढका जाना है .यह शिखर दक्षिणी पेरू के एन -दियन इलाके "अयाकुचो "में हैं ।
शिखरों पर सफेदी करने के लिए जगों का स्तेमाल किया जा रहा है ,ब्रश का नहीं .इस एवज लूज़ रोक्स पर सफेदी (चुनापैंट )छिडका जा रहा है .दो एकड़ क्षेत्र पर सफेदी की जा चुकी है ।
गर्मियों में सफ़ेद कपडे क्यों पहने जातें हैं ?
ठंडा रखतें हैं इसीलिए ना ?.सूरज की रोशनियो का बहुलांश लौटा देतें हैं ,जबकि काली सतह उसे रोक लेती है ।
सफेदी सेव ढके शिखर ना सिर्फ विकिरण का बहुलांश लौटा -एंगें आसपास के क्षेत्र को ठंडा भी रखेंगे .इस प्रकार एक माइक्रो -क्लाइमेट ही पैदा हो जायेगी .ठंडक से और भी ज्यादा ठंडक और गर्मी से गर्मी पैदा होती है .यह विज्ञान है ,मुहावरा मात्र नहीं .लोक व्यवहार में भी ऐसा ही होता है .इन्फ्रा -रेड विकिरण तो हर ताप पर बाहर जाता ही है जो ग्रीन हाउस गैसों को रोके रहता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एन -डीज़ पीक "वाईट-वाश्ड " तू स्लो डाउन ग्लेशियर मल्ट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ३० ,२०१० )
बुधवार, 30 जून 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें