बुधवार, 2 जून 2010

सीधी-दो -टूक बात ...(ज़ारी )

(गत -पोस्ट से आगे ...)
मनमर्जी की करना ना तब ठीक था ना आज है .तम्बाकू का बहु -विध सेवन तब भी ठीक नहीं था आज भी नहीं है .आज तो परस्पर -संवाद और स्वास्थ्य चेतना पहले से कहीं ज्यादा है .सिगरेट पीना 'सेक्सी 'हो सकता है .जेंटिल -मेनली /वोमेंली )नहीं है ।
हुक्का तब भी था ,अपने ठेठ रूप में एक दम से क्रूड -फोम में ,देशी -तम्बाकू लिए .मुरादाबादी -हुक्का मुस्लिम -भाइयों के घरों की शान था .घर -गाँव में प्रचलित रहा आया है .लेकिन आज इसका ग्लेमर -भ्रमित ज्यादा कर -रहा है .मदर -डेयरी की आइसक्रीम -ब्रिक्स की तरह यह अनेक फ्लेवरों में आ गया है .नाम रूप बदल कर हुक्का 'फाइव -स्टार 'हो गया है ।
माहिरों के अनुसार इसी में ज्यादा 'टार'और कार्बन -मोनो -ओक्स्साइड का डेरा है .ज्यादा चौपट करता है यह सेहत को ।
हुक्का -पार्लरों से सावधान .बी -वेयर ऑफ़ हुक्का पार्लर्स .
शौक सिगरेट का एक फेशन स्टेटमेंट के साथ शुरू होकर कब एक ओब्सेसन बन जाता है इसका आज तक किसी भी स्मोकर को इल्म ही नहीं हुआ है .इससे बचने का एक ही तरीका है ,पहली सिगरेट सुलगाई ही ना जाए .स्मोकर -बोय्फ्रेंद यदि कोई है तो उसे बदल लिया जाए .कोई हर्ज़ नहीं है .संग का रंग चढता है .सिगरेट की लत एक बार पड़कर बामुश्किल छूटती है .फिर चाहे मर्द हो या औरत इसकी गुलामी करनी पडती है ।
कहा गया है जब एक औरत पढ़ती है तब पूरा परिवार शिक्षित होता है .ठीक इसी तरह जब एक औरत स्मोकिंग से ग्रस्त होती है यह रोग परिवारों में चलने लगता है अन्य जीवन -शैली रोगों की तरह ।
गर्भावस्था में भी पिंड नहीं छोडती है यह लत .लागी छूटे ना अब तो सनम ,चाहे जाए जिया तेरी कसम ॥
नतीज़ा औलाद को भुगतना पड़ता है .छोड़ भी दी सिगरेट डराने धमकाने से तो डिलीवरी के बाद आदत फिर लौट आती है ।
एक आदत सी बन गई है तू ,और आदत कभी नहीं जाती ,ज़िंदगी है के जी नहीं जाती ,ये जुबां हमसे सी नहीं जाती
माहिरों ने पता लगाया है -ऐसी माताओं के शिशु 'सदेंन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम का ग्रास बन सकतें हैं .स्वशन -संबंधी (रिस्पाय -रिट्री दीजीज़) के खतरे तथा मिडिल ईयर इन्फेक्सन के खतरे का वजन इनके शिशुओं के लिए ज्यादा हो जाता है ।
स्वयं महिलायें भी उम्र से पहले बूढी होने लगतीं हैं .मासूम चेहरों पर झुर्रियां खेलने लगतीं हैं .मुक्तावली की आब उड़ जाती है .पहले गम डिजीज और फिर दिल की बीमारियाँ सिगरेट की लती महिला को अपने घेरे में ले लेतीं हैं ।
काल सेंटर की नौकरी ,बेहूदा काम के घंटे ,जैविक घड़ी के साथ पहले ही खिलवाड़ कर रहे होतें हैं ,सिगरेट ,पान मसाला की आदत गिरते को एक लात और मार देती है .प्री -दायाबेतिक बना रही है ,बी पी ओज की नौकरिया .कैंसर तो बहुत बाद की बात है ,उससे पहले सेहत को दीमक लग चुकी होती है ।सब -म्यूकस -ओरल -फाइब्रोसिस मुह को पूरा नहीं खोलने देती .प्री -कैंसर स्टेज है यह ,सिगरेट की सौगात .
साईं -बोर्ग बनती इस पीढ़ी को मेरे में पास नसीहत देने को कुछ नहीं है .इन्हें सब कुछ पता है .मेरा दुर्भाग्य यही है .इन्हें कैसे समझाऊँ ?

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