बुधवार, 2 जून 2010

तम्बाकू -निगमों के निशाने पर .......

पश्चिम की पढ़ी -लिखी सभ्रांत पीढ़ी को खासकर युवतियों को जैसे जैसे स्मोकिंग के नुक्सानात का इल्म होता गया तम्बाकू निगमों की चिंताएं बढ़तीं गईं .इसी दरमियान तम्बाकू लोबी का ध्यान तीसरी गरीब दुनिया की रोल मोडिल बनतीं उन युवतियों कीओरगया जो भारत जैसे देश में अर्थ वयवस्था की बढ़ोतरी के साथ जीवन के हर क्षेत्र मे पुरुष वर्चस्व को तोड़ रहीं हैं .सभी तबकों के लियें इन दिनों यही होनहार युवतियां रोल मोडिल बन रहीं हैं .इलेक्ट्रनिक मीडिया से लेकर काल सेंटरों ,बीपीओज तक ,सर्विस सेक्टर के ह़र क्षेत्र मे इन दिनों इन्हीं सुलझी हुई मेहनती युवतियों का बोलबाला है ।
देश का दुर्भाग्य अपना भला बुरा खुद ठीक से समझने वाली समाज के पहले पायेदान पर खड़ीयह युवा भीड़ तम्बाकू निगमों के निशाने पर आ चुके है .इफ़रात से हाथ मे आया पैसा ,खर्चने की आज़ादी ,वय-संधि के पार बालिग़ होने का अपूर्व एहसास इन्हें लगातार छाया -विज्ञापनों के माया जाल से आबद्ध कर चुका है ।
एक अध्धययन के मुताबिक़ इस तबके की ८ फीसद ललनाएं बहु -विध तम्बाकू का सेवन कर रहीं हैं ,शेष के लिए धूम्र -पान का राष्ट्रीय औसत मात्र १.५ फीसद है ।
कोई १० साल पहले युवतियों की एक टोली को 'जे एन यु 'के केम्पस मे धूम्रपान करते देखा था .उस समय मैंने इसे अपवाद मानकर नजर अंदाज़ कर दिया था .आज खान मार्किट से लेकर दिल्ली हाट तक ,इतर सैर -गाहों मे एक दो युवतियां तसल्ली से धूम्रपान करती मिल जातीं हैं .जैसे यह एक फेशन स्टेटमेंट हो .धूम्रपान करना अप -देतिदहोना रहना हो .सेक्सी मान समझ लिया गया है स्मोकिंग को ,किसी पार्लर मे जाकर हुक्का गुड -गुड करने को .हुक्का पार्लर मे हुक्के भी एक से बढ़कर एक हैं ,सेक्सी हैं ।
पान -मसाला का अलग आकर्षण है जिसे एक तरह से सभ्रांत होने का नुस्खा मान लिया गया है .इधर तम्बाकू रहित उत्पादों की अलग चर्चा है जिसे खरीदने पान की दूकानों पर भी चली आती है यह जोगन -टोली .हाथ आता है -तम्बाकू -युक्त -पान मसाला .उस दिन आई एन ए मार्किट मे विलायती -शराब की दूकान पर देशी -युवतियों को किंगफिशर खरीदते देखा हाथ सुलगी हुई सिगरेट झूल रही थी ..अंदाज़े बयान किसी दौर के अक्षय -कुमार का था .'रेड एंड वाईट 'पीने वालों की बात ही कुछ ओर है .उस दौर मे भी एक जेंटिल मेंन तबका था जिसने इसी बिना पर अक्षय की फिल्मों का बहिष्कार किया था ।
आज ये युवतियां कल के अक्षय से आगे निकल गईं हैं .प्रोग्रेसिव (अग्रेसिव होने दिखने )दिखने की लालसा है या अपने पैरों पर खड़ा होने का आर्थिक एहसास ,ठीक से कुछ भी कहना सोचना मुमकिन नहीं है .बतलाना भर है .सिगरेट पीना ,हुक्का पीना ,गुटका -खैनी एक ओब्सेसन है ,क्रोनिक बन जाने वाली बीमारी है जो संततियों को भी अपनी चपेट मे लेगी ।
सौन्दर्य -बोध को सबसे पहले ले उडती है एक अकेली सिगरेट ,हुक्के का एक पफ जिसमे युवतियां फ्रूट एंड नत आइस क्रीम का मजा ढूंढ रहीं हैं .ना -वाकिफ हैं इस तथ्य से -फ्लेवर्ड हुक्के के एक पफ मे कहीं ज्यादा 'तार 'स्टिकी सब्सटेंस व्हेन टोबेको बर्न्स 'मौजूद है .यह पलांश के लिए आपके फेफड़ों को नमी से भर देता है .नमी के उड़ जाने पर फिर तलब लगती है .धीरे धीरे हुक्का एक आदत ,एक लत ,एक ओब्सेसन बन जाता है .दम के साथ ही जाता है ,हुक्का ,स्मोकिंग औरपान -मसाला .अलबत्ता दांतों की आब ,मुक्तावली का सौंदर्य पहले साथ छोड़ जाता है .स्मोकिंग स्त्रेंस ता -उम्र मुह की रौनक ले उड़ तें हैं ।
चेहरे पर झुर्रियां समय से पहले भरे जोबन मे मुखर हो जातीं हैं .उम्र के कई साल ले उडती है -सिगरेट की लत .जीवन की गुणवत्ता छीज जाती है .जीवन शैली रोगों के साथ जीना भी कोई जीना है दोस्त .जीवन शैली रोग ही तो है स्मोकिंग जो दायाबितीज़ की तरह सभी काया रोगों की जननी है .

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