रविवार, 6 जून 2010

बेशुमार ढंग से छीज़ी है 'आर्कटिक आइस शीत

एक व्यापक अंतर -राष्ट्रीय अध्धययन से पता चला है ,ज्ञात -भू -गर्भीय -इतिहास में हालिया बरसों में उत्तरी -ध्रुवीय हिम -चादर अप्रत्याशित ढंग से छीज है .इस अध्धय्यन में पांच मुल्कों के माहिर (लीडिंग साइंसदान ) शामिल रहें हैं .गत हजारों सालों में यह चादर जितनी झीनी आज है ,पहले कभी नहीं थी ।

गत शती के आरम्भ में हुईछीज़नकी शुरुआत पिछले तीस बरसों में एक दम से रफ़्तार पकड़ अधिकतम हो गई है 'आर्कटिक सी आईस थिनेस्त इन थाऊज़ेन्द्स ऑफ़ ईयर्स ,आइस लोस स्तार्तिद इन अर्ली २० एथ सेंच्युरी एंड एकस -सलेरेतिद ओवर दी लास्ट थ्री डिकेड्स ,सेज रिसर्चर्स ,देखें ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ५ ,२०१० )।

क्वाटर-nअरी साइंस रिव्यू में ओहयो -स्टेट यूनिवर्सिटी रिसर्च सेंटर के नेत्रित्व में संपन्न इस अध्धय्यन के नतीजे शीघ्र प्रकाशित होंगें ।

पता चला है आर्कटिक ओशन के गिर्द जो 'सी -आईस 'एक बड़े इलाके में फैला दिखलाई देता इ ध्रुव था आज वह नदारद है .वजह रही है 'उत्तरी ध्रुव का अप्रत्याशित तापन (एम्प्लिफ़ाइद वार्मिंग ).इस तापन की वजह बहु -चर्चित 'ग्रीन हाउस गैसों का वायुमंडल में पसराव बढाव 'ही रहा है ।

बरसों से विज्ञानी 'आर्कटिक ओशन फ्लोर से सेदिमेंट्स (अवसाद )उठाकर उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के अतीत को खंगालने की ताक में रहें हैं .ताकि जाना जा सके ,सुदूर अतीत में कैसी और कितनी थी यह 'हिम -चादर '.और कैसे हिम नतीजे समाहित कर ।

उक्त निष्कर्ष निकाले हैं साइंसदानों ने हालिया अध्धय्यनों के संग गत ३०० अध्धय्यनों के nateeze samaahit kar ukt nishkarsh nikaale hain .


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