मिथ या यथार्थ ,माहिरों की राय में .:क्या ज्यादा पानी पीने से वजन कम हो सकता है ?
बेशक ,यदि प्यास का मतलब 'ठंडा 'ना समझा -बूझा जाए .ठंडा यानी 'कोला -पेय '.यदि पानी पीना आपको कम खाने के लिए तैयार करे ,तब ही यह वजन कम करने में सहायक रह सकता है .एक नार्मल खुराख के संग फ़ालतू पानी पीना बेकार है .कोई लाभ नहीं होगा ।
पानी का मुख्य काम है ,शरीर से टोक्सिन्स(विष जैसे तत्वों )की निकासी ,पाचन में मदद ,शरीर के तापमान का 'थर्मोस्टेट की तरह विनियमन करना ,पेशियों का संकुचन (मसल कोंत्रेक्सन )तथा बॉडी को बराबर चार्ज करते रहना (एनर्जी -प्रोडक्सन )।
बेहिसाब पानी पीतेरहना वांछित नहीं है .एक तरफ यह शरीर के हाई -द्रोलिक बेलेंस को बिगाड़ सकता है ,दूसरी तरफ किडनी का काम बढा सकता है ।
एक साथ १०-१२ लीटर पानी पी जाना वाटर -तोक्सिमियाँ की वजह बन सकता है .मृत्यु भी हो सकती है ,इस स्थिति में ।
(२ )चालीस के पार औरतें अकसर एब्डोमिनल -ओबेसिटी का शिकार हो जातीं हैं .क्यों ?क्या ज़रूरी है ऐसा होना ही होना ?
रजो -न्रिवित्ति से पहले औरतें नितम्बों (हिप्स )और जंघाओं पर चर्बी चढ़ा लेतीं हैं .गर्भावस्था में यह मददगार रहती है ।
लेकिन रजो -निवृत्ति के बाद (पोस्ट -मीनो -पोज़ )हारमोन सम्बन्धी बदलाव आतें हैं .एक तरफ इस्ट्रोजन कम दूसरी तरफ पुरुष -हारमोन 'तेस्तोस्तेरोंन "अपेक्षाकृत पहले से ज्यादा हो जाता है .और इसी के साथ मर्दों की तरह 'एब्डोमिनल -ओबेसिटी 'घर बनाने लगती है ।
इसकी एक वजह 'मीनोपोज़ 'के प्रति नकारात्मक नज़रिए से या फिर किसी भी और वजह से पैदा तनाव भी बनता है .यही तनाव एक ट्रिगर बन जाता है 'स्ट्रेस -हारमोन -कोर्तिसोल 'के लिए .
यही कोर्तिसोल चर्बी तथा पेशीय ऊतकों को तोड़ने लगता है ।
यहीं से तलब होने लगती है कार्बो -हाई -द्रेट्स और चिकनाई सनी चीज़ों की ,एनर्जी -डेंस फूड्स की ताकि शरीर को फौरी तौर पर ऊर्जा मिले ।
अब ऐसे में यदि इस अतिरिक्त केलोरी को खर्च ना किया जाए (बैठे ठाले राष्ट्रीय चिंतन किया जाए )तब 'सेन्ट्रल -ओबेसिटी 'के अनुकूल माहौल बन ही जाता है ।
एशियाइयों में सेन्ट्रल ओबेसिटी किप्रवृत्ति के भौगोलिक -आनुवंशिक कारण सामने आयें हैं .जेनेटिक और मेटाबोलिक -सिंड्रोम का हिस्सा रही आई है यह सेन्ट्रल -ओबेसिटी ।
कम अंतर से ज्यादा बच्चे पैदा होना ,एब्डोमिनल मसल्स को कमज़ोर बना देता है .नतीज़ा होता है चर्बी चढना .ऐसे में 'वेस्ट -तू -हिप रेशियो 'कहाँ ०.९ से कम रह पाताहै .एक के पार चला जाता है ।
अलबत्ता इससे बचाव की कुंजी है ,हेल्दी तथा एक्टिव जीवन शैली ,सकारात्मक सोच ।
(३ )रात्रि ९ बजे के बाद डिनर करने से वजन बढ़ता है ?
महज़ एक मिथ है ,यह मान लेना ,रात के वक्त मेटा -बोलीक रेट्स (केलोरीज़ खर्च करने की दर कम हो जाती है ).अलबत्ता कुछ और वजहों से लेट दाइनार्स का वजन बढ़ सकता है ।
फर्क इस बात से पड़ता है ,आप क्या और कितना खातें हैं ,इस बात से बिलकुल नहीं कब खातें हैं .हमारा शरीर रात के नौ बजे भी वैसे ही काम करता है जैसे १० बजे ।
असल बात यह है आप कितनी केलोरीज़ वाला भोजन ले रहें हैं . कितनी केलोरीज़ खर्च कर रहें हैं ?यदि केलोरीज़ कम खर्च कर रहें हैं यानी बेंक में पैसा डाल ज्यादा रहें हैं निकाल कम रहें हैं ,जमा -जोड़ बढेगा ही बढेगा ।
अलबत्ता खाना खाने के फ़ौरन बाद सो जाना 'पाचन तंत्र 'के लिए ठीक नहीं है .दो घंटे का अंतराल आदर्श गैप है .इस दौरान आपको कुछ खाने की तलब उठे ,आफ्टर डिनर स्नेक्स की जगह कोई एक फ्रूट ले लीजिये ।
सन्दर्भ -सामिग्री :प्रिवेंसन (हेल्थ मैगजीन ,अप्रैल अंक )/मिथ या यथार्थ माहिरों की राय .
सोमवार, 7 जून 2010
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