गुरुवार, 3 जून 2010

पसीने कीगंध बतला देती है आत्मीय -जन का हाल .

'सोल मेट्स केन एक्च्युँली स्मेल पार्टनर्स फीयर एंड हेपीनेस 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ३ जून अंक में प्रकाशित यह खबर विशेष ध्यान आकर्षित करती है .गंधों का अपना मनो -विज्ञान रहा आया है .नवजात अपनी माँ की गंध को पहचान लेता है जबकि उसकी आँखें भी बंद रहतीं हैं .मानव की यह जनजात प्रवृति उतनी विकसित नहीं हो पाती क्योंकि उसने संवाद के लिए एक भाषा जो गढ़ ली है .आपको ठीक उस समय की भी गंधें याद होतीं हैं ,जबकि आप भाषा भी नहीं जानते थे .इसीलिए दोबारा उस गंध के पास फटकने से आप उसे कोई नाम नहीं दे पाते ।
फिर भी प्रेमीजन जिनमे बेहद लगाव होता है एक दूसरे के दुःख दर्द ,संवेदनाओं ,बे -चैनी,घबराहट ,ख़ुशी और उन्माद सभी कुछ तो जान लेतें हैं .गंधों के ज़रिये .हर मनो -भाव के लिए एक विशेष गंध है .'श्रम कण'(प्रेमालाप से पैदा स्वेद कण )और हाड तोड़ मेहनतसे निकले पसीने की अपनी गंध है .भय का अपना सैलाब है .स्वेद ग्रंथियां भय से संचालित होने पर सर्दी में भी पसीना निकालने लगतीं हैं ।
इन्हें पहचान लेने वाले आपके बहुत अपने आपके करीबी ही हो सकतें हैं .कोई एरा गैरा,नथ्थू खैरा नहीं (नोट एवरी टॉम एंड हेरी )।
एक ताज़ा रिसर्च सोल मेट्स के पसीने का राज़ खोलने की हमारी कूवत को ही उजाले में ला रही है .बेशक अंतरंगताइसके मूल में है .तभी तो किसी ने कहा है 'तेरा हर रंग हमने देखा है ,तेरा हर ढंग हमने देखा है ,आज क्यों हमसे पर्दा है ?'
रिसे यूनिवर्सिटी के मनो -विज्ञानियों ने' साइंस -न्यूज़' के समक्ष ऐसे ही विचार प्रस्तुत कियें हैं .इस रिसर्च के तहत मनो -विदों ने २० विषम लिंगी जोड़ों का अध्धययन किया है .ये गत एक से लेकर सात सालों से साथ साथ रह रहें थे ।
इन्हें यौन -उतेजना ,भय ,ख़ुशी आदि मनो -भावों का संचार पैदा करने वाली फ़िल्में दिखलाई गईं .न्यूट्रल वीडियोज (भारत सरकार की दोक्युमेंत्री सरीखे )भी दिखलाए गए ।
इनकी अंदर -आर्म्स में पसीना ज़ज्ब करने वाले पेड्स लगा दिए गए थे .अब इन तमाम साथियों को चार अलग अलग जारों में कलेक्ट किया गया पसीना सूंघने को कहा गया .इन जारों में विपरीत लिंगी अजनबी का भी पसीना रखा गया था ।
एक गंध पहचान कर उससे सम्बद्ध भाव को कुछ लोगों ने बतलाने की कोशिश की .एक जार में एक विशिष्ठ भाव से ताल्लुक रखने वाला पसीना रखा गया था .दो तिहाई मामलों में जोड़ों ने अपने साथी की गंध और मनो -भाव को ठीक ठीक पहचान लिया .यही शुद्धता अजनबियों के मामले में घटकर ५० फीसद रह गई .अपना आखिर अपना होता है .सोलमेट जो ठहरा .अपने तो अपने होतें हैं ,ओ तेरे संग लाड ल्रावा ...

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