बरसों से साइंसदान मुह से ली जाने वाली इंसुलिन टिकिया (ओरल -इंसुलिन )तैयार करलेने की ताक़
में रहें हैं .लेकिन आमाशय (स्टमक एसिड एंड एंजाइम्स )में बन ने वाला तेज़ाब और कई एंजाइम्स इस प्रयास को पलीता लगाते रहें हैं .दरअसल पेट में बननेवाले ये दोनों पदार्थ इंसुलिन गोली के असर को बे -असर ,निष् -प्रभावी बनाते रहें हैं ।
इस समस्या के प्रति रसायन -विद सचेत रहें हैं .अमरीकी केमिकल सोसायटी के मुताबिक़ अब एक विशेष कोटिंग के साथ इंसुलिन को सील कर रहें हैं ,ताकि यह आमाशयी तेज़ाब और किन्वकों (एंजाइम्स )के विनष्ट -कारी प्रभावों से बची रहे ।
बहर-सूरत अभी 'ओरल -इंसुलिन -पिल 'के ट्रायल्स चल रहें हैं .क्लिनिकल ट्रायल्स कई चरणों में चलतें हैं .कामयाबी के बाद -इंसुलिन की टिकिया इंसुलिन -शोट्स से निजात दिलवा सकती है .गौर तलब है दुनिया भर में कोई १८ करोड़ आबालवृद्ध प्राइमरी या फिर सेकेंडरी दायाबितीज़ से ग्रस्त हैं .अकेले भारत में ही इसके ४.५ करोड़ मरीज़ हैं .जीवन शैली रोग बन गया है मधुमेह जिसे सब रोगों की जननी कहा समझा जाता है .एक मेटाबोलिक डिस-ऑर्डर है यह जीवन शैली रोग ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-इंसुलिन पिल्स मे रिप्लेस नीदिल्स(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ४ ,२०१० ).
शुक्रवार, 4 जून 2010
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