दी कैंसर रिसर्चर्स वोंट कंज्यूम 'फ्रूट्स एंड वेजितेबिल्स ग्रोन दी कन्वेंसनल वे '-गोपाल सी .कुंडू ,साइंटिस्ट 'ऍफ़ ',नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसिज़ ,पुणे ।(प्रिवेंसन ,हेल्थ मैगजीन ,अप्रैल अंक ,पृष्ठ ६६.
उन्नत खेती उन्नत बीज के तहत उगाये गए उत्पादों को बेशुमार रासायनिक खाद ,जंतु -नाशी (पेस्ट -ईसाइद्स),फफूंद -नाशी (फंगी -साइड्स )चाहिए ,बेशुमार -पानी (इंटेंसिव इर्र-रिगेसन )चाहिए .हमारा किसान आज इन्हीं पेस्टी-साइड्स ,फंगी -साइड्स के भरोसे चल रहा है .फलस्वरूप इस प्रकार उगाई गई तरकारियाँ ,फल ,त्यूबर्स(आलू जैसी खोद कर निकाली जाने वाली ,जड़ें ....),देर सवेर सीधे या फिर घुमा फिराकर इन अवांछित तत्वों (विष )को ज़ज्ब कर लेतीं हैं .हमारे पास कोई भरोसे मंद ऐसा तंत्र ऐसी कोई प्राविधि फिलवक्त नहीं है ,जो इस ज़ज्बी की मात्रासटीक बतला सके ।
पेस्ट -ईसाइद्स से दीर्घावधि असर ग्रस्त होने का नतीज़ा कैंसर का सबब बन जाता है ,ऐसा माहिर बारहा बतला चुकें हैं ।
तरकारियों की कृत्रिम रंगाई और भी ज्यादा घातक :
परवल (स्नेक गौड)सीताफल (पम्पकिन ),ओकरा ,इतर सब्जियों के खूब -सूरत रंग, नकली हैं .आर्टिफिशियल कलरिंग का नतीज़ा हैं .ये तमाम रंग (खाद्य -योग्य )नहीं है ,एडिबिल नहीं है ,विषाक्त और कैंसर पैदा करने वाले तत्वों (कार्सिनोजंस )को लिए हैं ।
दी -सोल्यूसन :रासायनिक तौर पर तैयार उत्पादों से दूर रहिये ।
विशेष :फलों और तरकारियों की रंगत पर, सूरत पर नहीं ,सीरत (गुणवत्ता )पर जाइए .ओरगेनिक उत्पाद ही भले .महगें है तो क्या ,जान है तो जहांन है .
बुधवार, 9 जून 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें