आकस्मिक आपदा से घिर जाने पर सृष्टि के सभी प्राणियों के समक्ष दो ही विकल्प होतें हैं 'भाग जाओ या फिर मुकाबले के लिए मोर्चा संभाल लो '.यानी फाईट और फ्लाईट (रन अवे )'।
आत्यान्तिक दवाब के क्षणों में ,जब जान पर बन आती है ,व्यक्ति का 'सिम्पेथेतिक नर्वस सिस्टम 'उत्तेजित हो कमान संभाल लेता है .अनुक्रिया करता है ,हमारे अनजाने ही .स्वयं चालित होती है यह रेस्पोंस जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रहता .फलस्वरूप हमारा स्रावी तंत्र फ़ौरन हरकत में आ 'एड्रीनल ग्लेंड्स तथा नर्व -एन्दिंग्स 'सेएड्रीनेलिन 'या फिर' एपी -नेफ्राइन'हारमोन का स्राव करवाता है .फ्राईट लाइकस्वेटिंग इसी का नतीज़ा होती है .साथ ही व्यक्ति की दिल की धौंकनी की रफ़्तार (हार्ट रेट )गति पकड़ लेती है .आँखों की पुतली भय जन्य संवेदन से विस्तारित हो फ़ैल जाती है (इसे ही आँखें फटी की फटी रह जाना कहतें हैं .).दिमाग की तरफ खून का दौरा एक दम से बढ़ जाता है .पेशियाँ भी अतिरिक्त रूप से हरकत में आ जातीं हैं .स्किन पर 'गूज बम्प्स 'उभर आतें हैं .(रेज्ड स्किन स्पोट) नजर आने लगतें हैं . ऐसे में पसीना नहीं छूटेगा तो क्या बांछें खिलेंगी ?
मंगलवार, 8 जून 2010
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