रविवार, 29 मई 2011

ग़ज़ल :समझ न पाए लोग .

डरे हुए अपनी दुनिया से ,खुद से भी उकताए लोग ,
क्या कर सकते परिवर्तन ये ,खाए -पीये अघाए लोग ।
नष्ट भ्रष्ट कर जैव विविधता ,बुद्धि से चकराए लोग ,
करके धरती एक हज़म ,अब मंगल पर मंडराए लोग ।
माल बिकाऊ से लगतें हैं ,बाज़ारों में छाये लोग ।
कौन गिरा है कौन चढ़ा है ,इसी होड़ में आये लोग ।
सपने बुनकर बेचके सोते ,ऐसे हैं भरमाये लोग ।
कुर्सी खातिर खूब लड़ाते ,ऐसे शातिर छाये लोग ।
राजनीति का चौला पहने ,कितने नंगे आये लोग ।
पूंछ हिलाते वोट की खातिर ,इस पर भी इतराए लोग ।
अपनी ही जाति पर भौंके ,ऐसे हैं कुत्ताये लोग ।
भाड़ में जाएँ देश के वासी ,ऐसे हिंसक आये लोग ।
अबकी बार पलट डालेंगें ,इतने हैं गुस्साए लोग ।
जीने और मरने की हद तक ,ऐसे हैं भन्नाए लोग ।
आतंकी हाथों से तूने ,इतने हैं मरवाए लोग ।
देश बंटा था किसकी खातिर ,अब तक समझ न पाए लोग ।
सहभावी :डॉ .नन्द लाल मेहता वाहीश .डी .लिट .

7 टिप्‍पणियां:

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

कितनो को समझे हैं हम ,तरह तरह के बनाए लोग
बेकार सारे अस्पताल हैं ,कहां समझ पाए हम रोग
काम वासना, खाना ,पीना , बच न जाए कोई भोग
भ्रष्ट,बिकाउ, काम में डूबे लफंगे लगते लुच्चाए लोग,

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

डरे उकताए लोग ,
बुद्धि से चकराए लोग ,
धरती पर मंडराए लोग ।

बाज़ारों में छाये लोग ।
कौन गिरा है कौन चढ़ा है
कुर्सी खातिर छाये लोग

अपनी ही कुत्ताये लोग ।
अबकी बार पलट डालेंगें
ऐसे हैं भन्नाए लोग ।

virendra sharma ने कहा…

भाई वेदजी !बहुत बहुत शुक्रिया आपका .लेखन को अकसर ऐसे ही टिप्पणियाँ जीवित रखतीं हैं .प्रेम भाव बनाए रहिये

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

सेच रहा था शुक्रिया न करने की शिकायत करूंगा,,,,,,,,गया मौका हाथ से

SANDEEP PANWAR ने कहा…

जय राम जी की,
गजल, डाक्टरी, लेखनी, सब कुछ साथ-साथ,
जय हो

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

काबिले गौर ग़ज़ल है. क्या कहें हम.
भाड़ में जाएँ देश के वासी ,ऐसे हिंसक आये लोग ।

और बुद्धि से चकराए लोग.

बहुत शुक्रिया आपका.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कौन गिरा है कौन चढ़ा है ,इसी होड़ में आये लोग ।
सपने बुनकर बेचके सोते ,ऐसे हैं भरमाये लोग ।

Bahut Badhiya....