पी टी एस डी (पोस्ट ट्रौमेतिक स्ट्रेस डिस -ऑर्डर ):खतरे में चारों तरफ से घिर जाना हर व्यक्ति को आतंकित कर देता है .स्वाभाविक है ऐसा होना लेकिन घटना के बाद भय का बरपा रहना हफ़्तों कई मर्तबा महीनों तक एक मेडिकल कंडीशन है ,डिस -ऑर्डर है .एन्ग्जायती -डिस -ऑर्डर जिसे पी टी एस डी कहा जाता है .
यह एक वास्तविक रुग्णता है जिसकी चपेट में कोई भी प्राणि एक व्यक्तिगत और आकस्मिक हादसा होने ,प्राकृतिक विनाशलीला देखने के बाद फौरी तौर पर कुछ समय के लिए आ सकता है .फिर चाहे वह ९/११ (विश्व -व्यापार केंद्र )हो या ११/२६ (२६ नवम्बर का मुंबई के ताजमहल में आतंकी वारदात )।
फुकुशिमा- एटमी हादसा -भूकंप -और सुनामी की तिहेरी (तीन -तरफ़ा) मार हो .कुछ समय के लिए किसी का भी दिमाग सुन्न हो सकता है ज़ज्बातों को लकवा मार सकता है ,हर चीज़ में दिलचस्पी ख़त्म हो सकती है ,ऐसे में जिनमे यह लक्षण हादसे के फ़ौरन बाद आजातें हैं वह महीना दो या फिर तीन में ही इलाज़ के बाद ठीक हो जातें हैं लेकिन जिनमे लक्षण ही बाद में प्रकट हो (६महिने से कई बार दो साल बाद भी )उनका ठीक होना ज्यादा मुश्किल पेश करता है ।
यही एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर "पोस्ट ट्रौमेतिक स्ट्रेस डिस -ऑर्डर "कहलाता है .सांप गुज़र गया आपके पास से आपको उसने काटा नहीं ,आप यही सोचते डरते रहतें हैं फिर आयेगा .रास्ता देख गया ।असुरक्षा भाव आपको घेरे रहता है .
अकसर लोग समय के साथ इन हादसों वारदातों को भूल जातें हैं (कुछ अपवाद हो सकतें हैं ,बलात -कृत किशोरी इसी खौफ में जीती रह सकती है ,यौन शोषित बच्चे भी ).धुंधली पड़जातीं हैं हादसों की तस्वीरें ।
लेकिन कई मर्तबा आप एक दम से रुक जातें हैं .जीवन ही थम जाता है .आपदा की तस्वीरें आपका पीछा करतीं हैं जागती आँखों में भी खाब बनके भी .बार -बार आप उसी पीड़ा से उसी क्षण के साक्षी बनतें हैं ,एक फ्लेश्बेक चलता ही रहता है चलता ही जाता है दिनानुदिन ,हफ़्तों ,महीनों ,इलाज़ न हो तो सालों -साल भी .यही है "पी टी एस डी "।
आपको लगता है अब कुछ नहीं हो सकता ,आप बाहर नहीं आ सकेंगें इस घेराव से .तसव्वुरात में आती रहेगी वही वारदात ।लेकिन ऐसा है नहीं .सहायता और समाधान ,इलाज़ सभी तो मौजूद हैं .आप अकेले नहीं हैं .हादसे होतें रहें हैं जिंदादिल लोगों के साथ इसीलिए कहा भी गया -जिंदगी ज़िंदा- दिली का नाम है ,मुर्दा दिल क्या ख़ाक जियेंगें .
असहाय महसूस मत कीजिये .आपकी सुरक्षा को अब और कोई आंच आने वाली नहीं है .होली सी होली आगे की सुध ले ।
बेशक यह एक संवेदनात्मक विकार है जो भयावह आपदाओं का साक्षी बनने ,उनकी चपेट में आने से किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है क्योंकि यह स्ट्रेस हारमोनों तथा कुछ न्यूरो -ट्रांस -मीटर्स में फेर बदल करदेता है जिसका बा -कायदा इलाज़ होना चाहिए ।
१९८० से औपचारिक रूप से इसका रोग निदान होना शुरू हुआ है हालाकि यह कंडीशन थी पहले भी ।
इतिहास के झरोखे से देखें तो कभी इसे "सोल्जर्स हार्ट "कहा गया (अमरीकी सिविल वार )तो कभी "काम्बेट फटीग "(वर्ल्ड वार -१ ),कभी "ग्रोस स्ट्रेस रिएक्शन "(वर्ल्ड वार -२ )तो कभी "पोस्ट वियेतनाम सिंड्रोम ",बेटिल फटीग भी ,शेल शोक भी .जो हो लक्षण वही रहें हैं .नंब -नेस ऑफ़ इमोशंस ,संवेदनाओं की मौत .जो हो पचास लाख अमरीकी किसी भी समय ,किसी भी काल खंड में इससे ग्रस्त रहें हैं .७-८% अमरीकी जीवन में एक दफा ज़रूर इसकी चपेट में आतें हैं ।
हिन्दुस्तान में कितनी महिलायें किसी भी वक्त इसकी चपेट में रहतीं हैं इसका यदि विधिवत अध्ययन किया जाए तो चौकाने वाले नतीजे आयेंगें .सबसे ज्यादा बलात्कार से पैदा "पी टी एस डी " मामलों का सेहरा दिल्ली के सिर पे बंध सकता है ।
४०%अमरीकी बच्चे और किशोर कमसे कम एक बार ट्रौमेतिक इवेंट झेलतें हैं जिसके फलस्वरूप १५%लडकियां और ६%लड़के" पी टी एस डी "की चपेट में आजातें हैं ।(एक अध्ययन अमरीका के सन्दर्भ में ).
३-६ %अमरीकी हाई स्कूल छात्र तथा ३०-६०%नौनिहाल जो ख़ास हादसों और तबाहियों में बच गएँ हैं पी टी एस डी से ग्रस्त हैं ।
नौनिहालों में १००% ऐसे बच्चे जिन्होंने अपनी आँख के आगे अपने माँ -बाप में से किसी एक का मारा जाना देखा है या फिर जिनके साथ सेक्स्युअल एब्यूज हुआ है ,यौन शोषण हुआ है जिनका ,पी टी एस डी से ग्रस्त हैं .अमरीका एक प्रगति -शील समाज है वहां विधि- वत संपन्न अध्ययनों से ये नतीजे निकलें हैं .भारत के सन्दर्भ में ऐसा अध्ययन होना चाहिए पता चलेगा कितना बाल -यौन -शोषण ,घरेलू हिंसा का शिकार किशोर किशोरियां इस विकार से ग्रस्त हैं ।
एक बात यह होती है संकट में घिर जाने पर आदमी या तो बचाव में भाग खडा होता है या फिर डटके मुकाबला करता है इसे कहतें हैं -"फ्लाईट और फाईट सिंड्रोम "पी टी एस डी "में यह अनुक्रिया ही समाप्त हो जाती है .एक पल में सब कुछ बदल जाता है ,भौचक ,नंब कर जाता है संवेदनाओं को ज़ज्बातों को समाप्त कर देता है यह विकार .
(ज़ारी )
रविवार, 1 मई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें