सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

कितने वर्ग हैं विटामिनों के ?

दो तरह के हैं मोटे तौर पर विटामिन .इक वह जो पानी में पूरी तरह घुल जातें हैं (विटामिन -बी,एवं सी इसी समूह में है ).दूसरे समूह के विटामिन वसा में घुल जातें हैं .विटामिन -ए ,डी ,के ,तथा ई इसी वर्ग में आयेंगें ।किसी खास
विटामिन की कमी ,से ख़ास विटामिन डेफिशियेंसी रोग पैदा हो सकता है ।
विटामिनों की कमीबेशी से पैदा रोगों से बचें ,खुराक में पर्याप्त विटामिन शामिल करें .

विटामिन क्या और क्यों ज़रूरी हैं ?

हमारे स्वास्थ्य और समुचित विकास के लिए कुछ पदार्थों का इक समूह है जिनका अल्पांश ज़रूरी है इन्हें हमारा शरीर खुद संशाधित नहीं कर सकता इसी लिए इनका हमारी खुराक में शामिल होना लाजिमी है .बेशक इनमे केलोरीज़ नहीं हैं क्योंकि ग्लूकोज़ के कण नदारद हैं इनमे .पदार्थों का यही समूह विटामिन कहलाता है .शरीर के सभी कार्य व्यापार को सुचारू रूप चलाये रखने के लिए हमें विटामिन चाहिए ।
मसलन ज़रूरी मेटाबोलिक रेट्स (रेट्स ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ .अपचयन ,चय -अपचय )को बनाए रखने के लिए विटामिन बी ,इम्यून सिस्टम (रोग प्रति रोधी तंत्र की मजबूती )के लिए विटामिन -सी ,घाव भी जल्दी भरता है विटामिन -सी की मौजूदगी में .हड्डियों के विकास और बढ़वार के लिए विटामिन -डी एवं बीनाई (विज़न )को बनाए रखने के लिए विटामिन -ए ज़रूरी है ।इसकी कमी बालकों में रतौंधी (नाईट ब्लाइंड -नेस)की वजह बनती है .
कुछ विटामिनों ,खनिजों और अन्य पोषक तत्वों का समूह एंटी -ओक्सिडेंट कहलाता है जो शरीर में होने वाली टूट फूट की मरम्मत और चिर युवा बने रहने ,वाई -टेलीती के लिए भी ज़रूरी है .विटामिन -ई इसी समूह का सदस्य है .

गर्भवती महिलाओं में मीठी चीज़ों की लत गर्भस्थ लड़कियों के लिए अच्छी नहीं रहती है .

गर्भावस्था के दरमियान महिलाओं द्वारा मीठी चीज़ों का ज्यादा चस्का /सेवन गर्भस्थ लड़कियों के विकास को असर ग्रस्त करता है ,पुष्टिकर तत्व गर्भस्थ कन्याओं तक पूरे नहीं पहुँच पातें हैं लेकिन गर्भस्थ लडकों के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं होता है .विकास सामान्य तौर पर चलता रहता है ।
ऑकलैंड तथा न्यूज़ी -लैंड विश्विद्यालयों के रिसर्चरों ने यही निष्कर्ष अपने ताज़ा अध्ययन से निकाले हैं ।
स्तन -पाइयों(मेमल्स ) पर संपन्न आजमाइशों से इल्म हुआ ,गर्भवती माताओं द्वारा इस अवधि में शक्कर का ज्यादा सेवन नर और मादा संतानों को अलग अलग तरीके से प्रभावित करता है ।
इंडो -क्राई -नोलोजी जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :मदर्स स्वीट टूथ बेड फॉर गर्ल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २८ ,२०११ ).

जिनका बचपन खुश -हाली में बीतता है ......

जिन बच्चों की परवरिश इक खुशनुमा और मुकम्मिल (स्थाई )माहौल में होती है आगे चलकर उनके लिए तलाक के मौके बढ़ जातें हैं .केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में संपन्न इक दीर्घावधि अध्ययन के अनुसार बड़े होने पर ऐसे वयस्क आत्म विश्वास से भरे रहतें हैं इसीलिए इक कामयाब सम्बन्ध /रिश्ते को बिला वजह ढ़ोते रहने की मजबूरी इनके सामने नहीं होती .ये छिटक कर अलग राह बना लेतें हैं ।
रिसर्चरों ने १९४६ में इक ही सप्ताह में पैदा हुए हज़ारों बच्चों की परवरिश पर नजर रखी.किशोरावस्था में इनकी ख़ुशी ,दोस्ताना अंदाज़ की पड़ताल की गई .बे -चैनी,एन्ग्जायती ,डिस -ओबिदियेंस(शिक्षकों /अभिभावकों का कहा न मानने )की भी पड़ताल की गई .दशकों बाद इनके जीवन जगत का फिर जायजा लिया गया .सभी बातों का विश्लेषण करने के बाद उक्त निष्कर्ष निकाला गया है .

तन मन की थकान उतारती है चाय ,दिमाग को चुस्त -दुरुस्त बनाती है चाय ...

टायर्ड ?ए कप ऑफ़ हॉट टी विल पर्क यु अप ,बूस्ट ब्रेन पावर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २८ ,२०११ )।
शरीरकी ही नहीं दिमागी थकान को भी कम करती है चाय .पूर्व के अध्ययनों में चाय दिल की बीमारियों ,कैंसर तथा पार्किन्संज़ दीजीज़ को भी कम करने वाली बतलाई जा चुकी है ।
नियमित १० या १० से ज्यादा बरसों तक चाय का सेवन बोन डेंसिटी (अस्थि घनत्व )में सुधार लाने वाला बतलाया गया है ।
अब डच रिसर्चरों ने बतलाया है ,चाय में मौजूद प्राकृतिक घटक (नेच्युरल इन्ग्रेदियेंट्स ) ब्रेन पावर में इजाफा करतें हैं ,चौकस (चौकन्ना ),ज्यादा अलर्ट /एकाग्र रखतें हैं आदमी को .न्युत्रिश्नल न्यूरो -साइंस जर्नल में यह रिसर्च प्रकाशित हुई है ।
रिसर्चरों ने चाय में पाए जाने वाले प्रमुख तत्वों की पड़ताल के लिए चाय में पाए जाने वाले प्रमुख रासायनिक तत्वों की दिमागी कार्य क्षमता को प्रभावित करने का जायजा लिया .इसके लिए ४४ स्वयं सेवियों को सब्जेक्ट बनाया गया ।
चाय में मौजूद इक अमीनो एसिड एल -थेअनिने (जो इक कप ग्रीन टी में भीकेफीन के साथ साथ इतना ही रहता है )के असर की तुलना इक डमी रसायन से की गई .यानी प्लेसिबो दिया गया कुछ लोगों को तुलना के लिए ।
अब सबको इक स्विचिंग टास्क दी गई .पता चला जिन लोगों को २०-७० मिनिट के बाद चाय दी गई उनका प्रदर्शन बेहतर रहा .,बरक्स प्लेसिबो लेने वालों के .टी ड्रिंकर्स की एलर्ट- नेस भी शीर्ष पर रही ।
४० से कम उम्र के सब्जेक्ट्स (लोगों) की थकान उतारने में भी चाय ने अपना जादुई असर दिखलाया .बोध सम्बन्धी कार्य करने के दौरान चाय दिमागी एकाग्रता को बढ़ाती है क्षमता को भी .

हेल्थ टिप्स .

सौंफ ,मैथी -पाउडर(फेनुग्रीक ) और लॉन्ग(क्लोव ) तीनों इक तरफ ब्लड सुगर और दूसरी तरफ भूख को नियंत्रित /विनियमित रखतें हैं ।
खाना खाने से डेढ़ घंटा पहले तथा डेढ़ घंटा बाद में पानी पीना खून को सांद्र(कान्संत्रेतिद)होने से बचाए रखने का सरल उपाय है .

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

जीरो आयल कुकिंग क्यों ?

अधुनातन जीवन शैली में इक तरफ व्यायाम सिरे से नदारद है दूसरी तरफ खान -पान की आदत भ्रष्ट हो चुकीं हैं ऐसे में जीरो आयल कुकिंग की बात चलना कोई अजूबा नहीं है . विज्ञापनों के भ्रमित करने वाले मायाजाल से निकालने के लिए भी यह ज़रूरी है ।
कोलेस्ट्रोल फ्री तथा जीरो कोलेस्ट्रोल आयल बज़ वर्ड बने हुए हैं .कोई यह नहीं बतलाता ये तमाम वसाएं ग्लीस -राइड्स का ही खेल हैं .विज्ञापनों से भ्रमित लोग सोचतें हैं मैं तो कोलेस्ट्रोल रहित तेलसे बना भोजन खा रहा हूँ ,जितना मर्जी तेल खाऊ .लेकिन केलोरीज़ का अपना गणित है .इन तेलों से प्राप्त कुल केलोरीज़ मोटापे ,मधुमेह तथा उच्च रक्त चाप की वजह बन सकतीं हैं .समझदारी यही है इनका सीमित स्तेमाल (भोजन से प्राप्त कुल केलोरीज़ का २०-३०% से ज्यादा न हो )किया जाए .वसायुक्त भोजन का स्तेमाल कमसे कम किया जाए ।मोनो ,पोली तथा सेच्युरेतिद वसाएं बराबर मात्रा में स्तेमाल की जाएँ .सारी वानस्पतिक वसाएं इक ही थाली के चट्टे- बट्टे हैं .मोडरेशन इज दी की .
प्रत्येक खाद्य पदार्थ में कुदरती तौर पर भी कमोबेश कुछ न कुछ वसा मौजूद है .इसलिए बाहर से उसका सेवन खाना पकाने में किया ही क्यों जाए ।
जहां तक स्वाद का सवाल है तेल का अपना कोई स्वाद नहीं है यकीन न हो तो चख देखें ।
सब्जियों में स्वाद तेल का नहीं मसालों का होता है यकीन न हो तो सिर्फ बिना मसालों का स्तेमाल किये सब्जी बना देखें .सब्जियां बनाने और सुस्वादु बनाने के लिए पानी और मसाले काफी हैं .ऐसा करने पर मसाले अपने भरपूर स्वाद और गंध के साथ मुखरित होतें हैं ।
कड़ाई ,कुकर ,नान स्टिकिंग फ्राइंग पान जो भी हो उसे गैस /आग पर चढ़ाकर सबसे पहले जीरा मंदी आंच पर भून लें .हल्का लाल हो जाएगा यह ।
प्याज खातें हैं तो इसे ग्राउंड कर लें ,बारीक पीस लें और फिर भूने ,तली से चिपके तो चंद बूदें पानी की टपका दे .छींटा मारते रहें पानी का .स्वाद और रूचि के अनुरूप अदरक लहसुन को भी बारीक पीस लें ,तीनों को भूरा होने तक मंदी आंच पर भूने अधिक पानी न डालें वरना भोजन में उब्लेपन का स्वाद आजायेगा ..अब कडाही में पिसे टमाटर डालें तथा पानी का छींटा देकर फिर भूने .पानी में झाग बनने तक भूनें .अब हल्दी डालकर थोड़ी देर पकाएं .अंत में स्वाद के मुताबिक़ नमक ,लाल मिर्च ,धनिया पाउडर आदि डालें .जीरो आयल मसाला तैयार है ।
अगर सब्जी बनाना चाहतें हैं तो मसाले को सब्जी में डालें ।
अगर दाल बनाना चाहतें हैं तो भिगोई हुई या उबली हुई दाल मिलाकर पकाएं .तैयार होने पर लॉन्ग(क्लोव ) दाल चीनी(सिनमन ) ,मोटी इलायची(कारडामाम) से तैयार किया गया गर्म मसाला बुरकें .बारीक हरा धनिया काट कर परोसें .स्वाद की गारंटी है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :जीरो आयल कुक बुक (हिंदी तथा अंग्रेजी )-डॉ .बिमल छाजेड ,एम् .डी .,फ्यूज़न बुक्स ,एक्स -३० ,ओखला इंडस्ट्रियल एरिया ,फेज़ -२ ,नै -दिल्ली ,११०-०२० ,दूर -ध्वनी :०११ -४०७१२१ ००

होलोग्रेफी और होलोग्रेफ़ क्या हैं ?

दोनों ही लेज़र के बेहतरीन अप्लिकेशन है .इक प्रक्रिया है (होलोग्रेफी )दूसरा उसका परिणाम (होलोग्रेम )।
ए लेज़र इज ए डिवाइस देत युतिलाइज़िज़ दीएबिलिटी ऑफ़ सर्टेन सब्स्टेंसिज़ टू एब्ज़ोर्ब इलेक्ट्रो -मेग्नेटिक एनर्जी एंड री -रेडियेट इट एज ए हाइली फोकस्ड बीम ऑफ़ सिंक्रो -नाइज़्द सिंगिल वेवलेंग्थ रेडियेशन ।
लेज़र प्रकाश आगे बढ़ने पर फैलता नहीं है यदि पृथ्वी से चाँद पर डाला जाए ,इक किलोमीटर व्यास की तश्तरी ही बनेगी ।
यह उन अनुशाशित सिपाहियों की तरह है जो तीन की कतार में आगे बढतें हैं .कतार के बीच की दूरी यकसां रहती है .एक्स्ट्रीमली कोहेरेंट कहा जाता है लेज़र प्रकाश को यानी सभी फोटों इक ही फ्रीक्युवेंसी /वेवलेंग्थ लिए होतें हैं .बाल से भी पतले तर पर फोकस कर लो लेज़र प्रकाश इसी कोहेरेंस के चलते ।
लेज़र लाईट जान है होलोग्रेफी की ।
होलोग्रेफी इज ए मेथड ऑफ़ रिकोर्डिंग एंड शोइंग ए थ्री डाय -मेंस्नल इमेज ऑफ़ एन ओब्जेक्त यूजिंग ए फोटोग्रेफिक प्लेट एंड लाईट फ्रॉम ए लेज़र ।
यानी हु -बा -हु आप कश्मीर का नज़ारा तीनों आयाम में देख लीजिये ,३ डी पिक्चर ।
होलोग्रेम :होलोग्रेम इज ए थ्री डाय -मेंस्नल इमेज ऑफ़ एन ओब्जेक्त देत इज ए फोटोग्रेफिक रिकोर्ड ऑफ़ लाईट इंटर -फीयारेंस पैटर्न्स प्रोद्युस्द यूजिंग ए फोटोग्रेफिक प्लेट एंड लाईट फ्रॉम ए लेज़र ।
ए होलोग्रेम इत्सेल्फ़ इज नोट ए प्रोसेस बट इज दी प्रोडक्ट ऑफ़ दी प्रोसेस ऑफ़ होलोग्रेफी .होलोग्रेफी इज दिराइव्द फ्रॉम दी ग्रीक 'होलोस-ग्रफे 'मीनिंग 'होल ड्राइंग ',.होलोग्रेफी वाज़ इन्वेंतिद बाई फिजिसिस्ट डेनिस गेबर .इट इज ए प्रोसेस इन व्हिच ए कहेरेंट बीम ऑफ़ लाईट इज स्केतर्द इन टू डाय -रेक्संस यूजिंग ए बीम स्प्लिटर व्हेयर वन बीम इज डाय -रेक्तिद टुवर्ड्स दी ओब्जेक ,दी अदर टुवर्ड्स ए मिरर ।
आफ्टर रिफ्लेक्सन ऑफ़ बोथ दी मीडियम्स दी ओब्जेक्त वेव ऑफ़ लाईट एंड रिफ्लेक्तिद वेव मीट एट दी फोटो फिल्म प्रिफ्रेब्ली होलोग्रेफी फिल्म ।
इफ दी फिल्म इज एक्सपोज्ड मल्तिपिल टाइम्स टू मल्तिपिल ओब्जेक्ट्स एट मल्तिपिल एन्गिल्स ,दी होलोग्रेम विल हेव मल्तिपिल इमेजिज़ देट चेंज व्हेन वियुड एट डिफरेंट एन्गिल्स ।
कोहेरेंट /कोहेरेंस ?
कोहेरेंट इलेक्त्रोमेग्नेतिक वेव्स हेव सेम वेव्लेंग्थ्स एंड ए फिक्स्ड फेज़ रिलेशन शिप .यानी इक ही आवृत्ति और तरंग लम्बाई /तरंग दीर्घता की तरंगें कोहेरेंट कहलातीं हैं .

हेल्थ टिप्स .

इफ यु आर दाइबेतिक एवोइड वीयारिंग सोक्स विद टाईट इलास्टिक बैंड्स एज दे कैन रिड्यूस ब्लड सर्क्युलेशन टू योर फीट ।
आराम दायक मौजे पहनिए ,जिनकी इलास्टिक ( इलास्टिक बैंड ) ज्यादा कसावदार न हो ताकि पांवों तक पूरा रक्त पहुच सके ।
जब आप भारी बोझा उठाएं :स्मूथली इसे उठाइये इक दम से झटके के साथ नहीं .इससे आपकी पेशियाँ क्षति ग्रस्त हो सकतीं हैं .

व्हाट इज ए फेके -शन ?

ऍफ़ ए के ई -ए टी आई ओ एन यानी फेके -शन क्या है ?
यह है तो इक प्रकार की छुट्टी ही ,लेकिन घर से दफ्तर ,माहौल को अपने अनुकूल बनाकर चलाने की सुविधा है यहाँ .जब सारा समय ई -मेल बांचने ,ज़वाब देने ,दूसरे दफ्तरी तकाज़े वाले काम निपटाने में ही बीतता है ।
आप बीमार होने का स्वांग भर सकतें हैं चंगे भले रहते हुए ,ताकि काम निपटाए जा सकें ,अपने अनुकूल माहौल में .यह छुट्टी समस्याओं से भरपूर है .बस आपको यह एहसास ज़रूर है आप वहां नहीं हैं जहां होतें हैं .ये कोई और जगह है .इसी लिए इसे वेकेशन की जगह फेके -शन कहा जाता है .यह इक नकली छुट्टी है .छुट्टी के एहसास का ढोंग है यह .

ये रीयल पोलीटिक क्या चीज़ है ?

रीयल पोलीटिक या व्यवहारवादी राजनीति क्या है ?
ज़मीनी हकीकतों से रु -बरू इक राजनीतिक थेगली- नुमा पैबंद है रीयल पोलीटिक .इसे आप यु पी ए कह लो या एन डी ए ,प्रबंधन शैली यहाँ यकसां हैं .यहाँ देश से भी ऊपर पार्टी हित हैं .नैतिकता से बहुत दूर हो चुकी है कथित व्यवहार वादी राजनीति ।कहने को यह देश की ज़रूरतों से संचालित है .
जहां प्रधान मंत्री बोलता है लेकिन उसकी आवाज़ ही नहीं निकलती ,शवासनी मुद्रा बनाए रहता है .इक दिखाऊ बिजूका है ,क्रो -बार है जिस पर पक्षी बैठकर आराम से बीट(विष्टा )करतें हैं .यहाँ डरना मना है ।
चलिए अंग्रेजी में भी बात करलें ,समझ लें रीयल पोलीटिक को :
रीयल पोलीटिक :इट इज पोलिटिक्स बेस्ड ऑन प्रग्मेतिज्म (प्रयोग योग्य ,प्लाइएबिल ,जिसे अपनाया जा सके ,व्यवहार में लाया जा सके ) और प्रेक्टी -केलिती रादर देन ऑन एथिकल और थिरेतिकल कन्सी -डरेशन .इसी से शब्द बना है रीयल पोलितिकर .

क्या है ड्राई आइस ?

ड्राई आइस कार्बन -डाई -ऑक्साइड गैस का इक ठोस प्रतिरूप है .यदि कार्बन -डायोक्साइड गैस को सामान्य दाब पर ही लगातार ठंडा किया जाए तब इक क्रांतिक तापमान पर यह सीधे सीधे गैसीय से ठोस अवस्था में तब्दील हो जाती है .यह तापमान शून्य से ७८ सेल्सियस नीचे (-७८ सेल्सियस )है ।
शीतलन में ड्राई -आइस का बड़ा महत्व है .खासकर निम्न तापमानों पर खाद्यों /चीज़ों को संरक्षित बनाए रखने में .बर्फ (आइस )के बरक्स यह इक बेहतर कूलेंट पदार्थ है .(जल को लगातार ठंडा करने पर यह शून्य सेल्सियस पर तरल से ठोस अवस्था मे जीरो सेल्सियस पर ही आजाता है अलबत्ता इसका आयतन थोड़ा बढ़ जाता है ।)।
ड्राई -आइस इक रंग हीन गंध हीन गैर -ज्वलन- शील(नॉन -इन्फ्लेमेबिल )पदार्थ है . चीज़ों की कोल्ड चैन बनाए रखने में इसका बड़ा महत्व है .

क्या ब्लेक गोल्ड /इससे पहले क्या था ?

जमीन या समुन्दर से तेल कुओं की खुदाई से जो तेल अपनी कुदरती अवस्था में प्राप्त होता है वह इक गहरे काले रंग का तरल ही होता है ,परिष्करण से पहले .अब यही क्रूड आयल /पेट्रोलियम ब्लेक गोल्ड /पेट्रो -डॉलर कहलाता है ।
आजकल यह प्रभुत्व वादी दुनिया के दरोगा देशों के लिए युद्ध उन्माद का इक बहाना भी बन गया है ।
उन्नीसवी शती के उत्तरार्द्ध से पहले तक पशु चर्बी (एनीमल टेलो)तथा व्हेल मच्छी के ब्लबर से इक लुब्रिकेंट (चिक्नाने में प्रयुक्त पदार्थ जो तेल जैसा काम करे )प्राप्त किया जाता था .आयल लेम्पों में इसका ही प्रयोग होता था .यही उस दौर का ईंधन (पेट्रोलियम )भी था ।
१९५९ वह विधाई वर्ष था जब एडविन एल ड्रेक ने टितुस्विले में (पेंसिलवानिया राज्य) तेल की उम्मीद में खुदाई की ,संयोग से यहाँ तेल निकल आया .यही पहला तेल कुआं था ।पेशे से एडविन इक सेवानिवृत्त रेलरोड कंडक्टर था .
देखते ही देखते पश्चिमी पेंसिलवानिया इक प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र बन गया ।
पेट्रोलियम उत्पाद केरोसीन व्हेल आइल की जगह आयल लेम्पों को रोशन करने लगा ।
बीश्वी शती के आरंभिक चरण में (अर्ली नाइन -टीनहंड्रेड )टेक्सास तथा अमरीका का केलिफोर्निया राज्य तेलुत्पादन के क्षेत्र में अगुवा राज्य बन गए ।
अब ईंधन के रूप में पेट्रोलियम का इक और उत्पाद गैसोलीन भी आगया .अमरीका में आज भी इसे गैस ही कहा जाता है .आदिनांक यह परिवहन की रीढ़ बना हुआ है .डीज़ल इसी पेट्रोलियम परिष्करण का इक चरण मात्र है .

म्युफा ,प्युफा,एस वी ओ क्या हैं ?

म्युफा ,प्युफा ,एस वी ओ क्या हैं ?
म्युफा यानी एम् यु ऍफ़ ए संक्षिप रूप है मोनो -अन सेच्युरेतिद -फैटी एसिड्स का तथा पी यु ऍफ़ ए का विस्तार है पोली -अन -सेच्युरेतिद -फैटी एसिड्स और एस वी ओ है सेच्युरेतिद वेजिटेबिल आयल ।
अन सेच्युरेतिद फैटी -एसिड्ससे लेकर वनस्पति तेलों तक ,सभी तेल और चिकनाई ट्राई -ग्लीस -राइड्स कहलातें हैं .यह ग्लीस्रोल से व्युत्पन्न हुए हैं .ग्लीस्रोल तीन फैटी चेन्स /तीन वसायुक्त श्रृंखलाओं से जुड़ा होता है .इन्हीं फैटी चेन्स में कार्बन चेन्स भी होती हैं .हरेक कार्बन अणु स्वयं दो हाइड्रोजन अणुओं से जुड़ा हो सकता है ।
लेकिन यदि वसायुक्त श्रृंखला में सभी कार्बन अणु हाइड्रोजन अणुओं से ही जुड़े हुए हों तो यह संतृप्त तेल कहलाता है .संतृप्त यानी सेच्युरेतिद आयल ।यही है सेच्युरेतिद वेजिटेबिल आयल .
हाइद्रोजिनेतिद वेजिटेबिल आयल /ट्रांस -फैट्स -डालडा वनस्पति ,डालडा घी यही है .यही जम जाता है धमनियों में ।
ओलिव आयल :यह एकल असंत्रिप्त वसा है जिसमे वसा युक्त श्रृंखला से हाइड्रोजन का एक ही अणु निकलता है .इसीलिए जैतून का तेल और ऐसे सभी तेल जिनकी रासायनिक बनावट ऐसी ही हो अच्छे बतलाये जातें हैं दिल के लिए ।मोनो -अन -सेच्युरेतिद तेल यहीं हैं .
पोली -अन सेच्युरेतिद फैटी -एसिड्स /आयल :वसायुक्त श्रृंखला से इनमे एक से अधिक हाइड्रोजन अणु निकलतें हैं .इसीलिए इन्हें बहु -संतिप्त वसाएं कहा जाता है .सरसों का तेल इसका अच्छा उदाहरण है /मिसाल है जिसे दिल के लिए सर्वोत्तम बतलाया जाता है .सूरज -मुखी का तेल भी इसी वर्ग में है ।
ह्रदय रोग न होने रहने पर मधुमेह रोगी मोडरेशन में तीनों ही प्रकार की चिकनाई/वसाएं ले सकता है.लेकिन इनकी कुल हिस्सेदारी खुराक से प्राप्त कुल केलोरीज़ का २०-३० % से ज्यादा न हो .यदि आपके लिए कुल १६०० केलोरीज़ (खुराकी ) की सिफारिश की गई है तब वसा से प्राप्त केलोरीज़ ३२० केलोरीज़ की हद में रहनी चाहिए .इसमें भी तीनों किस्म के तेलों की हिस्सेदारी बराबर -बराबर यानी १०%होनी चाहिए ।
सरसों के तेल में संतृप्त वसा ६ भाग ,असंत्रिप्त ७३ तथा बहु -संतृप्त २१ भाग है .जैतून के तेल में यही हिस्सेदारी १.८ ,९८ ,तथा १.२ है .सूरजमुखी में ८,३४ ,५८ है .मक्का के तेल में १७ ,२५ ,५८ है .तिल का तेल (सेसमी आयल )में १४ ,४६ ,४० लिए है .मूंग फली में २० ,५४ ,२६ तथा नारियल का तेल (कोकोनट आयल )९० ,८,२ भाग लिए है .कपास का तेल तथा कोटन सीड्स से प्राप्त तेल क्रमशय:९१ ,८ ,१ तथा ३४ ,२६ ,४० भाग लिए है .ताड़ का तेल ८० ,१३ ,७ भाग लिए है ।
सोयाबीन में १५ ,२५ ,६० वनस्पति तेल में ७६ ,१९ ,५ भाग हैं .नारंगी का तेल ११ ,१३ ,७६ भाग वसा अनुपात लिए है .

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

वसा हमारे पाचन तंत्र में कैसे टूटती है ?

शरीर में ऊर्जा का मुख्य स्रोत वसा (फैट्स )ही हैं .इक ग्राम फैट से ९ केलोरीज़ प्राप्त होतीं हैं .पाचन की प्रक्रिया में मख्खन जैसी वसाएं आंत में ही घुल जाती हैं .लीवर(यकृत ) से पैदा होने वाले अम्ल इक कुदरती डिटर्जेंट के रूप में फैट को पानी में घोल देतें हैं .साथ ही बड़े फैट कण छोटे कणों में तब्दील हो जातें हैं .इन्हीं में से कुछ फैटी एसिड तथा कोलेस्ट्रोल भी होतें हैं .ये सब मिलकर वसा को मुकोसा की कोशिकाओं में प्रवेश दिलवातें हैं .यहाँ आकर ये छोटे छोटे कण बड़े कणों में तब्दील हो जातें हैं .इनमे से अधिकाँश आँतों के निकट लिम्फेतिक्स (लसिका तंत्र ,लिम्फेटिक सिस्टम )में चले जातें हैं .यही छोटी धमनियां वसा को ह्रदय की शिराओं तक ले आतीं हैं .जहां रक्त इस वसा को शरीर के सभी भागों में पहुंचा देता है ।
मुकोसा मुकस मेम्ब्रेन को कहा जाता है .म्यूकस मेम्ब्रेन इज दी म्यूकस लाइनिंग इन दी बॉडी पेसेजिज़ ऑफ़ ओल मेमल्स देट कन्तेंस म्यूकस सिक्रेतिंग सेल्स एंड इज ओपन डायरेक्टली ऑर इन -डायरेक्टली टू दी एक्सटर्नल एन्वायरन्मेंट ।

मधु मह रोगी क्या फैट्स (वसाएं )ले सकता है ?

सभी प्रकार के तेल /चिकनाई वसा ही हैं चाहे वह फिर परिष्कृत सफोला हो ,संड्रोप हो या फोर्च्यून ,पोस्ट -मेन हो या सरसों का तेल .देशी घी हो या वनस्पति /डालडा.ट्रांस फैट्स हों या फुल क्रीम मिल्क .अलबत्ता वसा की गुणवता में फर्क है .ट्रांस फैट्स /हाइड्रोजन युक्त वानस्पतिक तेल सबसे ज्यादा खतरनाक हैं .जो तेल ठंडा होने पर ज़म जाए वह आम तौर पर ठीक नहीं माना जाता है ।टोंड बेहतर है फुल क्रीम से .
यूं आइसक्रीम ,चोकलेट ,मख्खन ,पनीर,चीज़ आदि भी कमोबेश वसा के स्रोत हैं ।
यदि मधुमेह रोगी मोटापे और हाई -पर -टेंशन से भी ग्रस्त है तब वह हृद रोगों की चपेट में भी जल्दी आजाता है .वैसे भी आजकल हृद रोग आम हैं इसलिए मधुमेह रोगी तभी वसा ले तो बेहतर जब हृद रोगों का ख़तरा न हो .वसा भी सीमित मात्रा में ही ली जाए .

कैसे टूटतें हैं प्रोटीन पाचन तंत्र में ?

मांस अंडे तथा फलियाँ (बीन्स )आदि में मौजूद प्रोटिनें पहले चरण में एंजाइम्स द्वारा पाचन का हिस्सा बनतें हैं .ये एंजाइम्स उदर/पेट /एब्डोमन से रिश्तें हैं .इसके बाद दूसरे चरण में छोटी आंत में पहुँचने पर प्रोटीनों का पाचन होता है .यहाँ पेंक्रियाज़ (अग्नाशय ) से रिसने वाले अनेक किण्वक (एंजाइम्स )बड़े प्रोटीन कणों को लघु अमीनो अमलों के कणों में तोड़तें हैं .ये लघु कण छोटी आंत में घुल -पिसकर रक्त द्वारा शरीर के सभी अंगों तक पहुंचतें हैं .कोशिका भित्ति /कोशिकाओं की दीवारें तथा अन्य अंग /पेशियाँ इन्हीं से मजबूती प्राप्त करतीं हैं .

प्रोटीन क्या हैं ?मधुमेह रोगी के लिए इनका क्या महत्व है ?

भोजन का इक ज़रूरी हिस्सा हैं प्रोटिनें जिनके प्रत्येक इक ग्रामसे हमें चार फ़ूड केलोरीज़ प्राप्त होतीं हैं .अमीनो अम्लों का उत्पाद हैं प्रोटिनें ।
पोली -पेप -ताईड्स भी कहतें हैं अमीनो -एसिड्स को तब जबकी अमीनो अम्ल इक लम्बी श्रृंखला बनाएं .प्रोटीन पशु और पादप उत्पाद हैं ,दोनों से प्राप्त होतें हैं ।
पशुओं से मिलने वाले प्रोटीनों में दूध तथा दुग्ध उत्पाद ,मांस ,मच्छी ,अंडा आदि शामिल हैं ।
मधुमेह रोगियों के लिए पादप प्रोटीन अव्वल रहतें हैं .(लेकिन गुर्दों में खराबी होने पर इनका सेवन प्रतिबंधित हो जाता है )।
१८ किस्म की दालों से भरपूर प्रोटीन की आपूर्ति होती है .अरहर ,चना ,मूंग छिलका /साबुत मूंग ,मोठ ,काला चना ,छोले ,लोबिया ,सोयाबीन ,मटर ,तथा न्युत्रिला दालें ही दालें हैं,मधु मह रोगी के लिए । चुन तो लें .
ह्रदय रोग न होने की स्थिति में पशु प्रोटीनों का सेवन भी किया जासकता है .इनमे अमीनो एसिड्स उचित अनुपात में होतें हैं ।
प्रोटीन लेने से रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर नहीं बढ़ता है .मधुमेह रोगी प्रोटीन खूब लेसकता है ।
६०%गेंहू ,३० %चना तथा १०%सोयाबीन का आता उत्तम डायबेटिक आटा है .

कार्बो -हाइड्रेट्स पाचन तंत्र में कैसे टूटतें हैं ?

हाव डज़ कार्बो -हाइड्रेट्स ब्रेक इन दी दाइजेस्तिव सिस्टम इनटू सिम्प्लर एलिमेंट्स ?
एंजाइम्स इन दी
सेलाइवा ब्रेक्स कार्बो -हाइड्रेट्स इनटू सिम्प्लर एलिमेंट्स .लार में मौजूद किण्वक (एंजाइम्स )कार्बो -हाइड्रेट्स को साधारण कणों में तब्दील कर देतें हैं ।
स्टार्च दो चरणों में पचता है .लार में पाए जाने वाले एंजाइम्स तथा पेंक्रियाज़ से निकलने वाले स्राव (रस ,पेंक्रियेतिक जुइसिज़ ) स्टार्च को माल्टोज़ में बदल देतें हैं .इसके आगे छोटी आंत के एंजाइम माल्टोज़ को ग्लूकोज़ में तब्दील कर देतं हैं .यही ग्लूकोज़ सर्क्युलेशन /रक्त प्रवाह में शामिल हो जाता है .रक्त प्रवाह के ज़रिये ग्लूकोज़ लीवर (यकृत )तक पहुंचता
है .यहाँ यह ईंधन के रूप में काम करने लगता है /एकत्र हो जाता है .

फायदे हैं प्रोबायोटिक्स के लेकिन ......(ज़ारी ...).

क्या फायदे हैं प्रो-बायोटिक्स के ?
पोषण विज्ञान के माहिरों के अनुसार प्रोबायोटिक्स हमारे भोजन से पोषक तत्वों की प्राप्ति को सहज बनातें हैं .विटामिनों और ज़रूरी अमीनो -अम्लों (इशेंशियल फेटि एसिड्स )के संश्लेषण में सुधार लातें हैं .अलावा इसके कई जीवाणु से पैदा होने वाले रोगों और फंगल इन्फेक्शन (फफूंद रोग संक्रमण )से बचाव करतें हैं ।
खमीर /खमीरा से तैयार फर्मेन्तिद खाद्य, साफ़ सुथरेकुकिंग आयल(हाइड्रोजन युक्त /ट्रांस फैट्स नहीं )से तैयार जलेबी ,डोसा ,मेदू बड़ा इडली ,ढोकला ,तथा कढ़ी खाद्यों की गुणवता पोषण मान के हिसाब से अच्छे माने जातें हैं ।
इनके फर्मेंटेशन में लेक्टो -बेसाइलास जीवाणु का स्तेमाल किया जाता है .कुल मिलाकर लेक्टो -बेसाइलास फर्मेंतिद सीरियल्स और ल्ग्युम्स स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं ।इनकी मौजूदगी खाद्यों के पोषण मान ,पुष्टिकर तत्वों में इजाफा करती है आंत्र- क्षेत्र(गैस्ट्रो -इन्तेस्तिनल ट्रेक्ट ) से ज़रूरी खनिजों की ज़ज्बी (एब्ज़ोर्प्शन ) को भी प्रोबायोटिक्स बढातें हैं ।
ऐसे में शरीर में खनिजों का संतुलन बरकरार रहता है कमीबेशी पेश नहीं आती ।
ब्रेड (आजकल ब्राउन के अलावा मल्टी ग्रेन ब्रेड भी उपलब्ध है ),फिश सौस ,वाइन और बीयर खमीरा से तैयार किन्वित खाद्यों /पेय में शामिल हैं ।
रोग प्रति -रोधी तंत्र को मजबूती प्रदान करतें हैं प्रो -बायोटिक्स .इम्युनिटी में इजाफा करतें हैं .पाचन में मदद करतें हैं .केल्सियम की ज़ज्बी को सुगम बनाते हैं .कई किस्म की एलर्जीज़ सेबचाव करतें हैं ।
डायरिया के इलाज़ में भी इनकी भूमिका है .गर्भवती द्वारा इसका सेवन (प्रसव से इक माह पूर्व ) नवजात को कई किस्म की एलर्जीज़ से बचाए रखने में सहायक है .लेकिन इसके लिए स्त्री रोग एवं प्रसूति की माहिर की अनुमति लेलें .यह ज़रूरी है .हरेक चीज़ हरेक के लिए यकसां नहीं है ।
कहा यह भी जा रहा है घुटनों चलने वाले ६ माही या और बड़े शिशुओं(६महीने से दो साला तक )की इम्युनिटी को भी प्रोबायोटिक्स बढातें हैं ।
अलबत्ता किसी भी नए व्यक्ति को इनका समावेश अपनी खुराक में रफ्ता रफ्ता ही करना चाहिए .इक स्वस्थ व्यक्ति के लिए बीस लाख(२ मिलियन लाइव ओर्गेनिज्म ) लाइव ओर्गेनिज्म युक्त खाद्य खुराक में काफी हैं ।
किसी भी मेडिकल कंडीशन के चलते /लम्बी बीमारियों यथा कैंसर ,मधुमेह का इलाज़ चलते रहने पर एच आइवी पोजिटिव होने पर इनके सेवन से पहले डॉक्टरी परामर्त्श लेलें ।
अति सर्वत्र वर्जयते यहाँ भी लागू होता है .प्रोबायोटिक्स का अतिरिक्त सेवन ,बहुत ज्यादा स्तेमाल अपच के अलावा ,ब्लोटिंग भी पैदा कर सकता है .हर आदमी का मिजाज़ फर्क है .शरीर का प्रति -रक्षा तंत्र जुदा है .बहुत सारी बातों पर गौर करना होगा प्रोबायोटिक्स खरीदते वक्त .मसलन एक्सपायरी डेट ,उत्पाद में लाइव बेक्टीरिया की मौजूदगी (वन मिलियन लाइव ओर्गेनिज्म पर डोज़ )आदि पर निगाह डालना भी ज़रूरी है .इसकी चर्चा फिर कभी .(ज़ारी .....).

कैसे तैयार किये जातें हैं प्रोबायोटिक्स ?

कैसे तैयार किय जातें हैं ,क्या काम करतें हैं प्रोबायोटिक्स ?
प्रोबायोटिक्स -खाद्य ,लेक्टिक एसिड बेक्टीरिया ,यीस्ट्स (खमीर )या फिर दोनों की ही (मिश्र )रासायनिक क्रिया से प्राप्त किये जातें हैं ।
ये बहु -उपयोगी जीवाणु समूह ,माइक्रो -ओर्गेनिज्म कार्बो -हाइड्रेट्स और सुगर्स को सुपाच्य रूपों में तोड़ देतें हैं .इनका पोषण मान भी बढा देतें हैं .ज्यादा पुष्टिकर हो जातें हैं इनकी उपस्थिति से प्रोबायोटिक खाद्य ।
क्यों ज़रूरी /महत्वपूर्ण हैं सेहत के लिए प्रोबायोटिक्स ।?
गट फ्लोरा इज दी इकोलोजी ऑफ़ माइक्रो -ओर्गेनिज्म प्रेजेंट इन दी बॉडी .दिस इकोलोजी सम -टाइम्स गेट्स देस्त्रोइड ड्यू टू स्ट्रोंग एंटी -बायोटिक्स मेडिसंस एंड ड्रग्स ,इल्नेसिज़ ,एक्सेसिव कन्ज़म्प्शन ऑफ़ एल्कोहल एंड इविन स्ट्रेस ।
हमारा वृहद् आंत्र क्षेत्र इनका कुदरती आवास ,फलने फूलने की जगह और सम्पूर्ण पारिश्थिति तंत्र है इनके पल्लवन के लिए .बात बे बातएंटीबायोटिक्स दवाओं का सेवनकोल्ड और कफ में भी इन दिनों आम हैं ,कुछ दवाएं और ड्रग्स (नशीले पदार्थ ).लम्बी खिची बीमारी ,शराब का बेहिसाब सेवन इस गट इकोलोजी को तहस नहस कर देता है ।
दवाएं बीमारी को भगाती ज़रूर हैं लेकिन दवाओं पर ज़रुरत से ज्यादा निर्भरता रोगकारकों के साथ साथ अच्छे बेक्टीरिया को भी नष्ट कर देतीं हैं .आंत्र क्षेत्र में जीवाणु संतुलन गडबडाने से इक तरफ पाचन असर ग्रस्त होता है दूसरी तरफभोजन से हमारा शरीर सारे पोषण तत्व नहीं जुटा पाता ।
एंटी -बायोटिक्स दवाओं का दीर्घावधि तक सेवन अच्छे बेक्टीरिया की पुनर -प्राप्ति को भी बाधित करता है .यहीं पर प्रो -बायोटिक्स सहायक की भूमिका में आजातें हैं .शरीर में अच्छे जीवाणु की क्षति पूर्ती करतें हैं .लेकिन इनका उपयोग संतुलित और तार्किक होना चाहिए .चिकित्सक की देख रेख में हो तो बेहतर .(ज़ारी ...).

प्रो -बायोटिक्स का मायावी संसार .....

डज़ योर डाइट इन्क्ल्युद प्रो -बायोटिक्स ?प्रो -बायोटिक फ़ूड इज बेनिफीशियल फॉर हेल्थ एंड केपेबिल ऑफ़ बूस्टिंग इम्युनिटी .कर्ड्स,सोयाबीन प्रोडक्ट्स लाइक 'टोफू 'एंड सोय मिल्क कन्टेन प्रो -बायोटिक प्रोपर्टीज़ .फर्मेंतिद इंडियन फूड्स लाइक ईद्लीज़ ,दोसाज़ ,ढोक्लाज़,आर न्युत्रिशियास .(बोम्बे टाइम्स /वेरायटी /फरवरी २६ ,२०११ ,पृष्ठ १७ )।
क्या आप जानतें हैं हमारे पाचन क्षेत्र (दाइजेस्तिव ट्रेक्ट ) में तकरीबन ४०० किस्म की प्रजातिओं के सूक्ष्म जैविक संगठन का आवास है .इट इज इन्हेबितिद बाई ४०० स्पेसीज़ ऑफ़ माइक्रो -ओर्गेनिज्म ।
हमारे कुल शरीर भार में दो किलोग्रामके बराबर हिस्सेदारी इस माइक्रो -ओर्गेनिज्म की भी शामिल है ।
इनमे से कुछेक जीवाणु हमारे स्वास्थ्य की हिफाज़त करतें हैं हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र को मजबूती प्रदान करतें हैं .लेक्टो -बेसाइली की तमाम स्पीसीज ,बिफिदो -बेक्टीरिया इनमे प्रमुख हैं ।
हालिया बरसों में प्रो -बायोटिक्स सप्लीमेंट्स तथा फूड्स ने हमारे खान- पान में अपनी इक जगह बनाई है ,अपने लिए इक स्पेस पैदा किया है .लेकिन इनमे से कितने ही बेहद सुग्री हैं ,सिम्पिल कार्बो -हाई- द्रेट्स से लदें हैं.न इनमे विटामिन्स हैं न खनिज ,एम्प्टी केलोरीज़ भरीं हैं जो वजन बढ़ातीं हैं इसलिए चयन के मामले में सावधानी बरतें .यह व्यापक धुआंधार विज्ञापन का दौर है ।
इनके निर्माण की तथा असरदार (लाइव )बने रहने की अवधि भी देखें .पास्तुरिकृत(पेस्च्यु -राइज्द) और देर तक रेफ्रिजरेतार्स में भंडारित खाद्यों से उतने एक्टिव बेक्टीरिया भी नहीं मिलेंगे ।
प्रो -बायोटिक्स का शाब्दिक अर्थ है 'जीवन के लिए '।
प्रोबायोटिक्स एन्करेज़िज़ दी ग्रोथ ऑफ़ बेक्टीरिया देट हेव ए गुड इफेक्ट ऑन दी बॉडी ,हेल्थ।
प्रोबायोटिक्स आर बेक्टीरिया ऑर अदर ओर्गेनिज्म देट आर एडिड टू सर्टेन फूड्सएंड सप्लीमेंट्स .लेक्टो -बेसाइलास एंड अदर ओर्गेनिज्म देट आर सेड टू बी बेनीफ़िशिअल टू दी ह्यूमेन बॉडी एंड अकर नेच्युराली इन सर्टेन फूड्स सच एज योघुर्ट आर रिच इन प्रोबायोटिक्स .दी फ़ूड एंड सप्लीमेंट्स कंटेनिंग दीज़ माइक्रो ओर्गेनिज्म आर आल्सो काल्ड प्रो -बायोटिक्स ।
दो प्रकार के जीवाणु समूह हैं -दोश्त/अच्छे और दुशमन /बुरे,गुड एंड बेड कोलेस्ट्रोल की तरह ।
यीस्ट ,फंगी ,पैरा -साइट्स जो रोग पैदा करतें हैं बुरे के तहत आयेंगे .बेकर्स यीस्ट्स फर्मेंट्स कार्बो -हाइड्रेट्स टू प्रोड्यूस एल्कोहल एंड कार्बन डायोक्साइड एंड इज इम्पोर्टेंट इन ब्र्युइंग एंड ब्रेड मेकिंग .सम यीस्ट्स आर ए कोमर्शियल सोर्स ऑफ़ प्रोटीन्स एंड ऑफ़ विटामिन्स ऑफ़ दी बी कोम्प्लेक्स .ए यीस्ट इज फंगस यूस्ड इन्मेकिंग बीअर एंड वाइन ऑर टू मेक ब्रेड राइज़ ।
प्रोबायोटिक्स वे जीवित ओर्गेनिज्म हैं सूक्ष्म जैविक संगठन हैं जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं ,गुड बेक्टीरिया हैं जो इंटेस-टाइन ट्रेक्ट का संतुलन बनाए रखतें हैं ,मददगार हैं ।प्रोबायोटिक्स ऐसे जीवित माइक्रो -ओर्गेनिज्म हैं जैसे हमारे उदर-आंत्र-क्षेत्र (गैस्ट्रो -इंटेस -टिनल ट्रेक्ट )में कुदरती तौर पर पाए जातें हैं .आज ये केप्स्युल्स और खाने वाली गोलियों के रूप में भी आगएं हैं ।
दही ,छाछ (बटर -मिल्क /शीत /मठ्ठा ),सोर क्रीम ,दूध और सोय से बना टोफू ,सोय मिल्क प्रोबायोटिक ओर्गेनिज्म से भरपूर हैं .आपके गिर्द प्रोबायोटिक्स और प्रोबायोटिक्स ही हैं सवाल चयन का है .(ज़ारी .....).

फुट हेल्थ पर भी ध्यान दीजिएगा मौतर्माओं.......

आर योर हाई हील्स किलिंग यु ?ओफतिन काल्ड 'किलर हील्स ',मोर एंड मोर वोमेन आर कम्प्लैनिंग ऑफ़ बेक्पैन एंड एन्किल एक्स .लिमिट वीअरिंग हाई हील्स तू स्पेशल अकेज़ंस.(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,बोम्बे टाइम्स ,वेरायटी ,पृष्ठ १७ ,फरवरी २६ ,२०११ )।

पश्चिम का सौपान है "पाद सौन्दर्य /लेग ब्यूटी "लेकिन किस कीमत पर ?क्या पाद सौन्दर्य की आप कीमत चुका रहीं हैं ?

आइये देखें ।

स्काईeहाई हील्स ,स्तिलेत्तो,हील्स/ का चलन दीर्घावधि नुकसानी पहुंचा रहा है आपके खूबसूरत पांवों को माहिरों का यही कहना है .इसी 'फैड 'के चलते इक तिहाई किलर मौतार्मायें हेमर टोज़ ,बुनिओंस ,डेमेज टूलेग टेंदंस जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं ।
हेमर टोज़ क्या है न ?
हेमर टोज़ इज ए मेडिकल कंडीशन ऑफ़ ए टो इन व्हिच दी जोइंट बिटवीन दी टू स्माल बोंस ऑफ़ दी टो इज परमानेंटली बेंट डाउन -वार्ड्स इन ए क्ल़ा शेप ।
बुनिओंस ?
बुनिओं इज एन इन्फ्लेमेशन ऑफ़ दी सेक (बुरसा )अराउंड दी फस्ट जोइंट ऑफ़ दी बिग टो ,अकंप -नीड बाई
स्वेलिंग एंड साइड -वेज़ डिस्प्लेसमेंट ऑफ़ दी जोइंट .,आल्सो काल्ड लंप स्वेलिंग ।
माहिरों के अनुसार १.५ इंची हील्स अधिकतम होनी चाहिए इससे ज्यादा हील्स पहनना इन समस्याओं को आम्नात्रित करता है ।
बाल फुट पर प्रेशर डालता है ,जितनी अधिक हील्स उतना ही ज्यादा प्रेशर बाल फुट को झेलना पड़ता है ।
अस्थि रोगों के माहिर (ओर्थो -पीडी -शियंस मौतर्माओंको आगाह करते हुए कहतें हैं हर महिला को अपने फुट स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए .कभी भी अनदेखी न करें सेंडिल जूतों से पड़ने वाले छाले /ब्लिस्तर्स/सोरनेस की ।
कोर्न (चमड़ी पर ऊंगलियों /अगूंठे के किनारे ,पड़ने वाले गिट्टे ,घट्ठा आदि )का बाकायदा नोटिस लें .समाधान करें ।
पैरों के सेंडिल जूतों का सम्बन्ध आपके कम्फर्ट लेविल से भी है ,दिमाग से भी .आरामदायक शूज़ का चयन करें .कभी कभार १.५ इंची तक हील्स पहनना उतना बुरा नहीं है .आदत और फैड से बचें .

शहरी भीड़ और प्रदूषण में साइक्लिंग से दिल को ख़तरा .

साइक्लिंग को दिल के लिए अच्छा बतलाया गया है लेकिन शहराती भीड़ और प्रदूषण युक्त माहौल में साइकिल चलाना अब दिल के दौरे को भड़काने वाला सबसे बड़ा प्रेरक माना जा रहा है ।
डेंजर इज इन दी एयर :साइकिलिंग बिगेस्ट ट्रिगर ऑफ़ हार्ट अटेक(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २६ ,२०११ ,पृष्ठ १९ )।
३६ रिसर्च पेपर्स का विश्लेषण करने वाले इस अधययन के मुताबिक़ ट्रेफिक में बा -हैसियत ड्राइवर समय बिताना ,साइक्लिंग करना ,कम्यूट करना हार्ट अटेक को आमंत्रित कर रहा है .लांसेट में प्रकाशित हुआ है यह अध्ययन ।
लेकिन उक्त सभी में से भी साइकिल सवार के लिए ख़तरा सबसे ज्यादा है क्योंकि प्रदूषण की सबसे ज्यादा मार झेलने के अलावा वह मशक्कत भी कर रहा है ।
एक्सरसाइज़ उसके लिए हार्ट अटेक का इक और ट्रिगर बन रहा है ।
ट्रेफिक एक्सपोज़र को हार्ट अटेक के लिए ७.४%,मशक्कत (फिजिकल एक्ज़र्शन )को ६.२%गुस्से (क्रोध /एंगर )को ३.१%,हेवी मील को २.४% ,सेक्स्युअल एक्टिविटी को २.२% ,कोकेन को ०.९ % हार्ट अटेक के लिए कुसूरवार बतलाया गया है .यह आंकड़े पूरी आबादी के सन्दर्भ में हैं जिनका कोकेन से नाता कम ही रहता है ।
दूसरे जोखिम में निगेटिव इमोशंस ३.९%,पोजिटिव इमोशंस २.४ % ,ओवर ओल एयर पोल्यूशन को ५-७%हार्ट अटेक के जोखिम को बढाने वाला पाया गया है ।
अलबत्ता व्यक्ति विशेष द्वारा कोकेन का सेवन (लत )हार्ट अटेक के खतरे के वजन को २३% बढा देता है ।
एयर पोल्यूशन इसमें ५%और भी ज्यादा इजाफा कर देता है .लेकिन क्योंकि एयर क्वालिटी (हवा की गुणवत्ता )का इक बड़ी आबादी से ताल्लुक है इसीलिए एयर पोल्यूशन आबादियों के लिए कोकेन से बड़ा ख़तरा बना हुआ है ।
अलबत्ता ये तमाम रिस्क फेक्टर्स इक दूसरे से नत्थी है इन्हें अलग करना मुश्किल है .मसलन हेवी ट्रेफिक में ड्राइविंग और साइक्लिंग करना इसमें एयर पोल्यूशन ,स्ट्रेस ,फिजिकल एग्ज़र्शन ,टेम्पर ,गुस्सा भी आ जुड़ता
है ।
ओवर ओल रिस्क को बढाने वाले कई और कारक दुरभिसंधि करतें हैं शहरी जीवन में .

हेल्थ टिप्स .

प्याज का अर्क (ज्युईस )शहद या ओलिव आयल मिलाकर मुंहासों पर लगायें .ओनियन आयल मिक्स्ड विद हनी ऑर ओलिव आयल इज ए गुड ट्रीटमेंट फॉर एकने ।
स्त्राबेरीज़ और बीनाई (विज़न ):स्ट्रा- बेरी का नियमित सेवन मेक्युलर दिजेरेशन (बुढापे में अंधत्व की इक बड़ी वजह )-लोस ऑफ़ विज़न इन दी सेंटर ऑफ़ दी विज्युअल फील्ड (बीनाई कादृश्य क्षेत्र के केन्द्रीय भाग में ह्रास ) से बच्व करता है .

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

किनोया (खाद्यान्न ) मुहैया करवाएगा अन्तरिक्ष यात्रियों को पोषण .

एनशियेंट 'इनका ' ग्रेन इज न्यू हेल्थ फ़ूड फैड(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २५ ,२०११ )।
'इनका 'क्या है /कौन हैं ?
'इनका 'इज ए मेंबर ऑफ़ ए नेटिव साउथ अमेरिकन पीपुल हूज एम्पायर ,बेस्ड इन पेरू एंड कवरिंग दी एंड -ईयन रीजन ,लास्तिद फ्रॉम १२ थ सेंच्युरी अन्टिलदी मिड १६ सेंच्युरी ।
किनोया ?
किनोया इज ए प्लांट ऑफ़ गूज्फुट फेमिली देट इज कल्तिवेतिद फॉर इट्स सीड्स ,व्हिच आर ग्राउंड एंड ईटन,नेटिव तू एंड -इज़ .(चेनो -पोडियम किनोया )।
यह इक पूज्य खाद्यान्न रहा है हज़ारों बरसों से एंड -इज़ रीजन का .इन्काज़ इसे पवित्र अन्न की संज्ञा देते थे .अब इसे भविष्य का पोषक आहार बतलाया जारहा है ।
अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में भी, विषम मौसम /जलवायु में, इसकी खेती हो सकती है .हाई एल्तित्युड्स के लिए भी इसे अनुकूल पाया गया है .प्रोटीन और आवश्यक अमीनो अम्लों से भरपूर है यह खाद्यान्न ।
बकौल अगुस्तीं फ्लोरेस (बोलिविया के दक्षिणी हाइलैंड्स की तीसरी पीढ़ी का इक कृषक ) अपने पुरखों से प्राप्त पुरखों की विरासत में मिला यह खाद्यान्न हमारी दिन भर की श्रान्ति /क्लान्ति /थकान को मेट देता है जब हम इससे तैयार पेय का रसपान करतें हैं "ड्रिंक "लेतें हैं ।विविध ,बहु -उपयोगी है यह खाद्यान्न अन्न भी मदिरा भी इससे प्राप्त होती है .
गत १० -१५ बरसों में किनोआ पास्ता ,रिसोत्तोस और ग्रैतिंस का विकल्प बनकर उभरा है पश्चिमी क्विजीन में /पाक शैली में .भोजन बनाने की कला में यह शामिल हो चुका है इक पोषक विकल्प के बतौर ।
इस प्राचीन खाद्यान पर दुनिया भरके खानसामों की नजर है ।
साइंसदान /पोषण विज्ञानी इसे भविष्य का खाद्यान्न बतला रहें हैं ।
नासा ने इसे अन्तरिक्ष यात्रियों /अन्वेषकों की सेहत के अनुकूल बतलाया है .किनोया उत्पादकों का संघ इससे गद -गद है ।
ओरूरो विश्वविद्यालय के पोषण विज्ञान के माहिरों ने भी इसकी तारीफ़ में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
रेड वाइन की तरह इसे हाइप किया गया है :यहाँ तक कहा गया है 'किनोया का नियमित सेवन रोग संक्रमण और हाई -पर -टेंशन से बचाव कर सकता है ।'
न्यूरोन के विकास में तथा हेल्दी ब्रेस्ट मिल्क के लिए यह असरकारी है .

रेडिओ -कम -टोअस्तर :एन इक -सेंट्रिक किचिन गेजेट .

इसे कहतें हैं 'इकोनोमी ऑफ़ स्पेस '-रेडिओ का रेडिओ ,टोस्टर का टोस्टर .टोस्ट तैयार कीजिये शनिवार की "सुबह की चाय " कार्यक्रम के साथ ।
ब्रेविल्ले रेडिओ टोस्टर हाज़िर है इक कौशलपूर्ण गेजेट के रूप में .इस रेडिओ टोस्टर तथा डेब रेडिओ में इक सहायक इनपुट दिया गया है इससे आप अपना आई -पोड जोड़ सकतें हैं .मजेदार बात यह भी है इस टू-इन -वन- गेजेट के स्तेमाल के बाद अपनी छोटी सी रसोई में आप इक और गेजेट रख सकतें हैं .रेडिओ की जगह तो अभी खाली ही है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :विद रेडिओ -टोस्टर ,मेक ब्रेकफास्ट एंड प्ले म्युज़िक (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २५ ,२०११ ,पृष्ठ १९ ).

चमड़ी कैंसर की शिनाख्त के लिए नै कैंसर युक्ति .

साइंसदानों ने इक नै लेज़र युक्ति विकसित की है जो वक्त रहते खतरनाक चमड़ी कैंसर मेलानोमा का पता लगा सकती है ।
यह इक टाइनीलेज़र है (कम शक्ति का ) जो इक साथ दो लेज़र पुंज निसृत करती है -जिनकी संयुक्त ऊर्जा कमतर ही रहती है इक लेज़र पॉइंटर के बनिस्पत ।
बस यह किरण पुंज संदेहास्पद मस्से /तिल /मोल पर डाला जाता है .इसके बाद चमड़ी के अलग अलग भागों में मौजूद रंजक (पिगमेंट )का जायजा लेकर पूरा विश्लेषण प्रस्तुत करती है यह लेज़र किरण -माला ।
माहिर इसके बाद बस यह पता लगातें हैं ,पिगमेंट्स में कितना 'यूमेलानिनहै .यही पदार्थ संभावित /संदेहास्पद कैंसर युक्त ऊतकों में ज्यादा मात्रा में मौजूद रहता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :लेज़र टू डिटेक्ट साइंस ऑफ़ स्किन कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २५ ,२०११ ,पृष्ठ १९ ).

मूत्राशय कैंसर के जोखिम का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट .

न्यू ब्लड टेस्ट टू डिटेक्ट रिस्क ऑफ़ ब्लेडर कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २४ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
ब्लेडर कैंसर का जोखिम जिन्हें ज्यादा है ,वे तमाम लोग जो आसानी से मूत्राशय के कैंसर से असर ग्रस्त हो सकतें हैं उनकी समय रहते जांच के लिए अब इक ब्लड टेस्ट साइंसदानों ने तैयार कर लिया है ।
र्होड आइलैंड की ब्राउन यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों के अनुसार इस रक्त परीक्षण के तहत मिथाइलेशन का पता लगाया जाता है ।
मिथाइलेशन इज केमिकल आल्तरेशन टू डी एन ए देट अफेक्ट्स सेल फंक्शन बाई आल्टरिंग जीन एक्सप्रेशन .कैंसर पैदा करने वाले तत्वों से प्रभावन ,कार्सीनोजेनिक एक्सपोज़र के बाद मिथाइलेशन में अकसर फर्क आजाता है ।
साइंसदानों के मुताबिक़ एब्नोर्मल पैट्रंस ऑफ़ मिथाइलेशन इन दी बॉडी कुड बी इन्दिकेतर्स ऑफ़ एन इन्क्रीज्द लाइकली हुड ऑफ़ डिव -लापिंग ब्लेडर कैंसर .यही इस बद टेस्ट की आधार भूमि बनती है .

गंहू जो सूखे में भी लहलहाता है ,बीमारी से बेअसर बना रहता है ...

दिस व्हीट कैन रेजिस्ट डी -जीज़िज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २४ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
अपने इक प्रयोग में /आज़माइश में ब्रितानी साइंसदान गेंहू की इक ऐसी प्रजाति /किस्म तैयार करलेना चाहतें हैं जो सूखा पड़ने पर भी लहलहाएगी ,बीमारी का प्रति -रोध करेगी .कीड़ा नहीं लगेगा इस गेंहू की इस फसल को ।
आज़माइश की कामयाबी पर प्रति एकड़ अधिक उत्पाद देने वाली फसलें तैयार की जा सकेंगी ।
रिसर्चरों और कम्पनियों का इक संघ इस प्रजाति के प्रजनन/की किस्म तैयार करने पर ७० लाख पोंड खर्च करने जा रहा है ।
प्रयोग की कामयाबी पर दुनिया भर को प्रतियोगी कीमत पर गेंहू की भरपूर फसल मयस्सर हो सकेगी .

हेल्थ टिप्स .

जहां सीढियां उपलब्ध हैं वहां लिफ्ट कीजगह इनका स्तेमाल नियमित करते रहने से अकाल मृत्यु का ख़तरा १५%कम हो जाता है ।
मोशन सिकनेस से बचाव के लिए :अदरक इक टुकडा जबान के नीचे रखके चूसते रहिये .

प्लास्टिक इलेक्ट्रोनिक्स के लिए प्लास्टिक कंडक्टर .

आम तौर पर प्लास्टिक का स्तेमाल इक इन्सुलेटर के रूप में केबिल्स के ऊपरबिजली की तारों के ऊपर प्लास्टिक शीथ, प्लास्टिक चढ़ाकर किया जाता रहा है .लेकिन अब ऐसा प्लास्टिक साइंसदान तैयार कर रहें हैं जिसका स्तेमाल मनमाफिक तरीके से इक सुचालक ,अति -चालक (सुपर -कंडक्टर )तथा कुचालक और बीच की सभी स्थितियों यानी इलेक्ट्रिकल रेजिस्टेंस को मनमाफिक तरीके से अरबों अरब गुना घटा बढ़ाकर किया जा सकेगा ।
इस शोध के अगुवा बने हैं क्वींस लैंड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पॉल मेरेडिथ ।
कैसे बनता है प्लास्टिक का कंडक्टर /सुपर कंडक्टर ?
इसे हासिल करने के लिएप्लास्टिक शीट के ऊपर मेटल (धातु )की इक पतली परत रख दी जाती है .अब इसे इक आयन बीम की मदद से पोलिमर सर्फेस के साथ मिलादिया जाता है ,मिक्सिंग कर दी जाती है पोलिमर की सतह के साथ इसकी .आयन बीम प्लास्टिक शीट की ट्यूनिंग कर देती है ,प्लास्टिक फिल्म के गुण धर्म बदल जातें हैं और बस यह बिजली के तारों (इलेक्ट्रिकल कंडक --टार्स यूस्ड इन इलेक्ट्रिक वायरस ).की तरह बिजली की संवाहक बन जाती है ।
इस बेहतरीन पदार्थ में इक तरफ पोलिमर की मजबूती दूसरी तरफ सुनमय्ता (मिकेनिकल फ्लेक्ज़िबिलिती ) आ जाती है .सस्ता भी रहता है यह .इसकी इलेक्ट्रिकल कन्दक्तिविती घटाई बढ़ाई जा सकती है .इक सुनिश्चित तापमान तक ठंडा करने पर इसका विद्युत् प्रति -रोध समाप्त हो जाता है .इसे सुपर -कंडक -तर की तरह काम में लिया जा सकता है ।
मजबूत ,लचीली (फ्लेक्ज़िबिल )तथा कंडक -टिव(विद्युत् -सुचालक )प्लास्टिक फिल्म्स भी इससे तैयार की जा सकतीं हैं ।
रिसर्च टीम ने इक इलेक्ट्रिकल रेजिस्टेंस थर्मामीटर इस मटीरियल का बनाकर (जो स्टेंडर्ड प्लेटिनम रेजिस्टेंस थर्मामीटर की टक्कर का है )संभावनाओं के अनेक द्वार खोल दिए हैं इसके भावी स्तेमाल के लिए ।
अब आप प्लास्टिक्स इलेक्ट्रोनिक्स का भी सोच सकतें हैं .इस फिल्म की विद्युत् भेजने /विद्युत् का विरोध करने की क्षमता को बेहतरीन तरीके से ट्यून किया जा सकता है ।
इसकी इलेक्ट्रिकल रेज़िस्तिविती (विशिष्ठ विद्युत् प्रतिरोध )१० ऑर्डर्स ऑफ़ मेग्नित्युद से तब्दील किया जा सकता है .इस विशिष्ठ प्रतिरोध को मनमाफिक बदल के चालक /सुचालक /अतिचालक /कुचालक तैयार किये जा सकतें हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :ला अप -टर्न्ड :ए प्लास्टिक देट कैन कंडक्ट इलेक्त्रिसिती .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २४ ,२०११ ,पृष्ठ २१ ).

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

व्हाट इज वैम्पायर फेसलिफ्ट ?

वैम्पायर फेसलिफ्ट ?
वैम्पायर फेसलिफ्ट इक सौन्दर्य वर्धक शल्य है चिरयुवा बने रहने का प्रचारित नुश्खा बतलाया जारहा है .जिसमे मरीज़ के अपने ही खून से प्लेटलेट बहुल प्लाज्मा सेंत्रिफ्युज़ से मथके अलग कर लिया जाता है ।
अब इसे (प्लेट रिच प्लाज्मा /पी आर पी को ) उसी व्यक्ति की चमड़ी में इंजेक्ट कर दिया जाता है .इसी के साथ इक पूरी श्रृंखला बद्ध प्रतिकिरिया लगातार बढती और रिएक्शन को पैदा करती चलती हैं इक कास्केड की तरह ,एव्लांश की मानिंद .,जलप्रपात सी फैलती जाती हैयह रिएक्शन जो ग्रोथ फेक्टर्स तैयार करने लगती है ।
माहिरों के अनुसार दूसरे फिलर्स (जिनमे रेस्त्य्लाने भी शामिल है या जुवेदेर्म भी ) के विपरीत चंद हफ्तों में ही प्रभाव सामने आजाता है .इस प्रोसीज़र में चमड़ी का पुनर -उत्पादन होने लगता है .स्किन री -जेंरेट्स इटसेल्फ।
असर भी दो साल तक बरकरार रहता है .कई मर्तबा इससे ज्यादा अवधि तक भी प्रभाव बना रहता है .ज्यादा स्वाभाविक है यह प्रक्रिया ।
लेकिन खामी यह है यह पीड़ा -रहित प्राविधि नहीं है .चमड़ी सुन्न पड़ जाती है सुइयां लगाने से पहले .इक दम से संज्ञा शून्य .कहाँ तक यह सब वैधानिक है कुछ माहिरों की राय में इसका कोई निश्चय नहीं .
इसीलिए कई इसे संदेह की निगाह से देख समझ रहें हैं ।
अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ एस्थेटिक प्लास्टिक सर्जरी के प्रेसिडेंट इलेक्ट इसी मत के हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :ए शोट ऑफ़ ओन ब्लड टू कीप लुकिंग यंग(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २४ ,२०११ ,पृष्ठ २१ ).

इक पेग शराब दिल के लिए अच्छी है .?

हो सकता है इस रिपोर्ट को पढने के बाद कई लोग पेग लगालें .वो क्या है कि पीने वाले को तो बहाना चाहिए आज ये गम है कल ये ख़ुशी है और फिर यह तो रिसर्च रिपोर्ट है इक दम से कुछ को अपील कर सकती है ।
रिसर्चरों की माने तो :ए टिपिल ए डे कीप्स दी डॉ एट बे.(ओरिजिनल आपको पता ही है क्या था :एन एपिल ए डे कीप्स डॉ .अवे । )।
लांसेट जर्नल ने पता लगाया है जो लोग इक या फिर दो ड्रिंक्स रोजाना ले लेते हैं वे न सिर्फ अपेक्षाकृत न पीने वाले टी टोट -लार्स से तंदरुस्त रहतें हैं ,हृद रोगों का ख़तरा भी अपने तैं घटाए रखतें हैं .(अपने खुशवंत सिंह जी को देख लीजिये ,नोना -जनेरियंन हैं ज़नाब ,मन मोहन सिंह की तरह शवाशन की मुख मुद्रा बनाए नहीं रहतें हैं ।).
दरअसल कुछ लोगों के लिए दिल की बीमारियों का ख़तरा अंगूर की बेटी २५ % तक कम कर देती है .(वाइन का मुगालता न पाले एल्कोहल की बात हो रही है )।
गिरते हुए स्वास्थ्य को मोडेस्ट ड्रिंकिंग थाम सकती है .कम शराब का सेवन ब्लड कोलेस्ट्रोल (खून में बैठी चर्बी )के स्तर को सुधार सकता है .रिसर्चरों के अनुसार हिसाब से पीना खून में कई ऐसे यौगिकों (कंपाउंड्स )के स्तर को सुधार सकता है जो रोग संक्रमण (इन्फ्लेमेशन )से बचाए रहतें हैं ।
यही कुंजी है ज़नाब यही वह प्रोसेस /प्रक्रिया है जो खून की नालियों को खुला रखती है .क्लोगिंग मुल्तवी रखती है ।
सबसे बड़ी बात यह है :प्रस्तुत अध्ययन ८४ रिसर्च पेपर्स का पुनर- मूल्यांकन है .रिव्यू है ।
कालगेरी इंस्टिट्यूट फॉर पोप्युलेशन एंड पब्लिक हेल्थ ,कनाडा ने पता लगाया है :रोजाना इक ड्रिंक्स जो लेते हैं अपने लिए दिल की बीमारियों का ख़तरा (१४-२५) %
हार्ट दीजीज़ से शरीर -छोड़ने /मरने का ख़तरा इक चौथाई तथा ब्रेन अटेक से परलोक सिधार जाने का जोखिम २% कम कर लेते हैं ।
विशेष कथन :भाई साहिब पेग मैंने भी इसे पढ़कर लगाया है लेकिन उसकी और भी वजहें हैं .ये सारे अध्ययन विदेशी हैं भारतीय सन्दर्भ नहीं है जहां धमनियां अवरुद्ध होने की प्रवृत्ति मौजूद है .सब -जीरो टेम्प्रेचर जहां अकसर रहता है वहां के लिए यह सन्दर्भ सही हो सकता है .यह युनिवर्सल नहीं है ।
वीरुभाई .

आपके दफ्तरी कामकाज को भी असर ग्रस्त करता है जीवन साथी की बे -रोजगारी और तनाव .

अन -एम्प -लोइड स्पाउसिज़ स्ट्रेस कैन अफेक्ट योर पर्फोर्मंस (मुंबई मिरर ,फरवरी २४ ,२०११ ,पृष्ठ २७ )।
क्या आप अपने जीवन साथी के बे -रोज़गारहोने को लेकर परेशान हैं ?प्रबंधन करना होगा इस तनाव का साथी के साथ हिस्से दारी करके वरना आपके पारिवारिक और दफ्तरी काम पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है ।
याद रखिये साथी की इस अवस्था में अन देखी करने से समस्या हल नहीं होगी ,घर -बाहर दोनों जगह आपकी उत्पादकता ,रचनात्मकता प्रभावित होगी .यही निचोड़ है उस अध्ययन का जो हाल ही में कोलोराडो विश्व विद्यालय के रिसर्चरों ने 'जर्नल ऑफ़ एप्लाइड साइकोलोजी' में प्रकाशित किया है ।
अध्ययन में रिसर्चरों ने ऐसे दम्पतियों को शरीक किया जिनमे से सिर्फ इक बा -रोज़गार था,दूसरा जॉब की तलाश में भटक रहा था .दोनों हमजोलियों का रोजमर्रा का तनाव मापा गया .दवाब ग्रस्त स्थितियां किस प्रकार उनके काम को प्रभावित कर रहीं थीं इसका निरंतर जाय जा लिया गया ।
पता चला ऐसे में दोनों को मिलजुलकर काम बांटना चाहिए ,हिस्से दारी करनी चाहिए तकाजों की ,सिर्फ थोड़ी बहुत राहत पहुंचाने तनाव की उग्रता को कम करवाने से लाभ विशेष कुछ नहीं होगा ।
घर में यदि आपको कुछ अच्छा नहीं लग रहा है तो यही स्थिति आपके साथ दफ्तर तक चली आएगी ,दफ्तर में भी आपको कुछ भला नहीं लगेगा ,सब कुछ बुरा बुरा ही लगेगा ।
खाली मेरिटल सपोर्ट से भी काम बनने वाला नहीं है ,बोस की सपोर्ट ,समर्थन और सहयोग भी चाहिए .यही सभी के हित में होगा .मंदी के मौजूदा दौर में यह और भी ज़रूरी है .

ओरगेनिक फ़ूड स्वाद और पोषण मान दोनों में कमतर होतें हैं ?

ओरगेनिक फ़ूड लेस न्यूट्री -शश देन नोर्मल ,सेज स्टडी (मुंबई मिरर ,मुंबई ,फरवरी २४ ,२०११ ,पृष्ठ २७ )।
इक नवीन अध्ययन में ओरगेनिक फल और तरकारियों को स्वाद और पोषण मान (न्यूट्रीशन )में रासायनिकखाद अन्य तामझाम और उर्वरकों द्वारा उगाई गई सब्जियों और फलों के बरक्स दोयम दर्जे का बतलाया जा रहा है .न स्वाद न पुष्टिकर तत्व ।
कंज्यूमर वाच डॉग "व्हिच "के इक दो साला अध्ययन के अनुसार आधुनिक तरीकों से उगाये गए टमाटर ,आलू ,ब्रोक्काली को ज्यदा स्वादिष्ट और पोषण युक्त पाया गया है बरक्स इनके कार्बनिक उत्पाद के (ओरगेनिक प्रोड्यूस के )।
नॉन -ओरगेनिक ब्रोक्काली /कालाब्रेसे में ज्यादा एंटी -ओक्सिडेंट भी पाया गया है ओरगेनिक के बनिस्पत ।
आप जानतें हैं एंटी -ओक्सिदेंट्स को स्वास्थ्य के लिए अच्छा ,बुढापे को मुल्तवी रखने वाला ,कैंसर रोधी माना गया है ।
नॉन ओरगेनिक पोटेतोज़ में अपेक्षाकृत ज्यादा विटामिन -सी पाया गया है ।
स्वाद के माहिरों के इक पेनल ने नॉन -ओरगेनिक टमाटरों को ज्यादा स्वादु ,स्त्रोंगर फ्लेवर और मीठा बतलाया है ।
इस छोटे से ट्रायल के नतीजे चौंकाने वाले साबित हुए हैं ।
विशेष :जो हो रासायनिक खादों और उर्वरकों से सने फल और तरकारियाँ भी तो निरापद नहीं पाई गईं हैं .कमसे कम भारत के सन्दर्भ में तो यह निर्विवाद है .

हेल्थ टिप्स .

इन्फेक्शन ऑफ़ अपर रिस्पाय्रेतरी ट्रेक्ट एंड ओल 'चिकिन सूप :ऊपरी श्वशन क्षेत्र का रोग संक्रमण होने पर चिकिन सूप राहत दिलवाता है .हालिया रिसर्च ने यह बारहा सिद्ध किया है इसीलिए कोल्ड होने पर ओल 'चिकिन सूप सूकून देता है कन्जेस्चन में ।
वैसे हॉट लिक्विड सभी यहाँ तक की गरम पानी (२५ -३० तुलसी पत्ते डाल कर खूब ओटाया गया हो तो कहना ही क्या खूब राहत दिलवाता है "यु आर सी "में .लाज़वाब हैं बेसिल लीव्ज़ ).टमाटर को छोड़कर सभी सूप खासा फायदा देते हैं .टमाटर कई को खटास की वजह से रास नहीं आता ।
फॉर वाटर रिटेंशन ?
जल निरोधन (वाटर रिटेंशन )होने पर यह सुनिश्चित कीजिये आपकी खुराक में केले और खरबूज, तरबूज, कैंतालूप्स (मेलन परिवार ) भरपूरहों . पोटाशियम और मैग्नीशियम हो .

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

वो जो खूंटा इक किनारे पड़ा था दिग्विजय उसे उठाकर बैठ गएँ हैं .....

अपने आपको कांग्रेसी चाणक्य समझने का भ्रम पाले रहें हैं दिग्विजय सिंह .आज जो उन्होंने किया है अब इससे आगे वे अपनी निर्बुद्धि -हीनता का और सबूत नहीं दे सकते .उनसे और कोई अब अपेक्षा भी क्या कर सकता है .वह जो खूंटा इक किनारे पड़ा हुआ था ,दिग्विअज्य सिंह उस पर बैठ गएँ हैं .बिना हश्र की चिंता किये ।
कांग्रेस का मर्सिया अब वे ही पढेंगे .उनके लिए इक शैर :
शैख़ ने मस्जिद बना मिस्मार मय खाना किया ,
पहले कुछ सूरत तो थी अब साफ़ वीराना किया ।
सन्दर्भ :दिग्विजय सिंह का कांग्रेस के डिफेन्स में स्वामी राम देव पर वार .उनसे ब्लेक मनी का हिसाब मांगना ।
यूं ज़वाब स्वामी रामदेव ने यह कह कर दे दिया है :इंदिरा-नेहरु गांधी ,राजीव गाँधी के नाम पर इस देश में जितने ट्रस्ट बने हैं कांग्रेस पहले उनका ब्लेक मनी चेक करवाए .जहां हर एइरा- गैरा नथ्थू खैरा को सस्ते में जमीन मिल जाती है .स्वामीजी तो हर समय तैयार हैं .उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है , महा भारत के कृष्ण की तरह .

जायका इंडिया का .....

वो जो कल तक पेट पर हाथ फेरते हुए इंडिया के जायके की बात करते थे ,तडके की बात करते थे आज वे भी देश के मसायल पर सोचने लगे .ये अच्छी बात है .विनोद दुआ को बधाई ।
इक शैर उनके लिए :
जिन्हें पहचान नहीं गुंचा और गुल की ,
चमन हो गया आज उनके हवाले ।
सन्दर्भ -सामिग्री :विनोद दुआ /एन डी टी वी
विशेष -उल्लेख :स्वामी रामदेव जिनके लिए इक शैर विनोद दुआ साहिब ने पढ़ा :
वो जो बेचते थे दवा -ए - दिल ,वो दूकान अपनी बढ़ा चले .

बचपन में ही आपकी हिंसात्मक प्रवृत्त की पड़ताल हो सकती है ?

अपराधविज्ञान के माहिर कहतें हैं चार साल की उम्र में भी बच्चे की हिंसात्मक प्रवृत्ति ब्रेन स्केन उजागर कर सकतें हैं .इसे भांप कर बचावी कदम उठाए जा सकतें हैं .समय रहते इलाज़ भी किया जा सकता है ।
अपराधविज्ञान के माहिरों के अनुसार दिमाग की असामान्य बनावट (एब्नोर्मल फिजिकल ब्रेन मेक -अप ) अपराध की वजह बन सकती है ।
पता चला है गंभीर मनोरोग से ग्रस्त वे लोग जो खुद को आहत कर सकतें हैं ,औरों के प्रति हिंसक हो सकतें हैं (साइकोपैथ्स ) तथा अपराधी किस्म के लोगों के दिमाग के कुछ हिस्से अपेक्षाकृत छोटे रह जातें हैं .ये हिस्से हैं "अम्य्ग- डाला " और" प्री -फ्रंटल कोर्टेक्स" .ये दोनों ही हिस्से हमारे संवेगों और व्यवहार को नियंत्रित /विनियमित करतें हैं ।
"ए लेक ऑफ़ कंडीशनिंग टू फीयर पनिशमेंट व्हिच कैन बी मेज़र्द इन टोद्लार्स बिफोर डिस -रपतिव बिहेवियर इज एप्रेंट ,कुड आल्सो बी ए स्ट्रोंग इंडिकेटर "।
माहिरों ने चार साल के बच्चों को भी संवेदना शून्य ,अपराध बोध /भाव तथा तदानुभूति/इम्पैथी से रहित देखा है .यह उनके आइन्दा आगे आने वाले व्यवहार की ओर इशारा भी हो सकता है ,सूचक भी ।
"लिंकिंग दीज़ फीचर्स विद 'कंडक्ट प्रोब्लम्स 'सच एज थ्रोइंग टेंत्रम्स कुड बी ए स्ट्रोंग वे टू प्रिडिक्ट हु कुड बी एंटी -सोसल इन लेटर लाइफ ."ओपाइंस एक्सपर्ट्स ।
इन तमाम विलक्षण -ताओं की शिनाख्त करके बच्चों को अपराधी होने से बचाया जासकता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :केच देम यंग :स्केन्स टू डिटेक्ट फ्यूचर क्रिमिनल्स .विल पिक अप वायोलेंट टेन -डेन -सीज ,हेल्प इन किड्स ट्रीटमेंट .जस्ट लाइक इन "साइंस फिक्शन फिल्म "/"माइनोरिटी रिपोर्ट ",व्हिच फोकस्ड ऑन डिटेक्शन ऑफ़ प्री -क्राइम ,स्केन्स कैन हेल्प डिटेक्ट इन चिल्ड्रन एज यंग एज फॉर केलस अन -इमोशनल ट्रेट्स लाइक लेक ऑफ़ गिल्ट एंड इम्पैथी देट कुड सजेस्ट फ्यूचर बेड बिहेवियर .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २३ ,२०११ ,पृष्ठ २३ ).

२०२० तक ५ करोड़ लोग बन सकतें हैं पर्यावरण -शरणार्थी .

'५० मिलियन मे बिकम एन्वाय्रंमेंतल रिफ्युजीज़ बाई २०२० '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २३ ,२०११ ,)।
ग्लोबल नोर्थ का रुख करेंगें ५ करोड़ पर्यावरण शरणार्थी २०२०तक .वजह बनेगीजलवायु परिवर्तन से पैदा खाद्यान्नों की कमी .केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ,लोस एन्ज्लीज़ कैम्पस में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत क्रिस्टीना तिरदो संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लगाये गए इक अनुमान के हवाले से कहतीं हैं :२०२० तक हमारे बीच ५ करोड़ पर्यावरण रिफ्युजीज़ होंगें .अभी हाल ही में 'अमेरिकन असोशियेशन फॉर दी एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस की वार्षिक बैठक में इसी आशय का विमर्श संपन्न हुआ है ।
लोग कूच करते क्यों हैं अपने ठिकानों से ?
ज़ाहिर है जब वह ऐसे माहौल में रहने को विवशहोतें है जहां जीवन के लिए कायम रहसकने लायक परिस्थितियाँ नहीं हैं ,खाद्य सुरक्षा की भी चिंता है खाद्य के परिरक्षित बने रहने की भी तब वह कूच कर जातें हैं ।
दक्षिण योरोप आज यही तमाशा देख सह रहा है जहां अफ्रीकामहाद्वीप से लगातार लोग आये चले जा रहें हैं इक अविरल धारा के रूप में .कुछ तो अपनी जान भी जोखिम में डालकर ऐसा कर रहें हैं 'स्ट्रेट ऑफ़ गिब्राल्टर '/गिब्राल्टर जल संयोजी /जल डमरू मध्य ,जहां इक संकरा समुन्दर दो बड़े सागरों में मिलता है को पारकर यह स्पेन पहुंचतें हैं मोरक्को से या फिर लीबिया और ट्यूनीशिया से मेक शिफ्ट वेसिल्स में समुद्री मार्ग से सैल करतें हैं ।
ट्यूनीशिया के हालिया संकट ने इस जन प्रवाह को और हवा दी है जहां खाद्य संकट तो है ही कामकाज का भी टोटा है .

कोलेस्ट्रोल का बढा हुआ स्तर तथा उच्च रक्त - चाप याददाश्त क्षय की वजह बन सकता है ....

हाई कोलेस्ट्रोल ,बीपी कैन लीडटू मेमोरी लोस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २३ ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
वे तमाम प्रौढ़ जिनके खून में चर्बी ज्यादा घुली रहती है (हाई कोलेस्ट्रोल )तथा ब्लड प्रेशर भीजिनका सामान्य से ज्यादा रहता है और इसीलिए जो हृद्वाहिकीय (कार्डियो -वैस्क्युलर प्रोब्लम्स )से घिरे रहतें हैं उनके लिए न सिर्फ हृद रोगों का ,याददाश्त क्षय सम्बन्धी ,बोध और संज्ञानात्मक समस्याओं का जोखिम भी बना रहता है ।न्यूरो -डि -जेंरेतिव डीज़ीज़ के खतरे का वजन भी बढ़ जाता है ।
इक अध्ययन से पता चला हैवे लोग जिन्हें कार्डियो -वैस्क्युलर जोखिम ज्यादा रहता है उनका बोध सम्बन्धी प्रकार्य/कोशांक (कोगनिटिव फंक्शन )भी कम रहता है .बोध संबंधीगिरावट /संज्ञानात्मक क्षय की रफ़्तार भी ज्यादा रहती है बरक्स उनके जिनके लिए हृद रोगों का ख़तरा उतना मौजूद नहीं रहता है ।
हायर -कार्डियो -वैस्क्युलर रिस्क इज आल्सो असोशियेतिद विद ए १० -ईयर फास्टर रेट ऑफ़ ओवारोल
कोगनिटिव डिक्लाइन इन बोथ मेन एंड वोमेन कम्पेयार्ड टू दोज़ विद लोवर कार्डियो -वैस्क्युलर रिस्क ।
अध्ययन में फ्रेंच नॅशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च ,पेरिस के साइंसदानों ने ३४८६ पुरुष तथा १३४१ महिलाओं का जिनकी औसत उम्र ५५ साल रही ,दस सालों में तीन मर्तबा बोध सम्बन्धी परीक्षण (कोगनिटिव टेस्ट )किया था .

कैंसर के फैलाव को रोकने की चाबी ....

क्ल्यू टू ब्रेस्ट कैंसर मे लीड टू क्योर सून (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २३ ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
ब्रितानी इंस्टिट्यूट ऑफ़ कैंसर रिसर्च की इक टीम ने लगता है कैंसर का इलाज़ ढूंढ लिया है .साइंसदानों ने इक ऐसे एंजाइम (किण्वक )की शिनाख्त की है जो ट्यूमर की वृद्धि को प्रेरित करता है .इलाज़ योग्य एकल ट्यूमर को शरीर के दूसरे अंगों तक कैंसर गांठ के रूप में ले जाता है .आम भाषा में इसे लोग जड़ वाला फोड़ा भी कह देतें हैं ।
साइंसदान कहतें हैं यदि ऐसी दवाएं खोज ली जाएँ जो इस एंजाइम को बाधित करदें तब कैंसर को इसी आरम्भिक चरण में रोककर पुख्ता इलाज़ किया जासकता है .इसकी मेटास्टेसिस (इक अंग से दूसरे तक फैलाव )को समय रहते थामा जासकता है .कैंसर के अंतिम चरण में इस मेटा स्तेसिस को रोकने का कोई भी उपाय नहीं है ।
कैंसर इलाज़ में इसे इक बड़ा ब्रेकथ्रू ,इक महत्वपूर्ण कदम इक ख़ास खोज बतलाया जारहा है .

स्नो -फ्लेक्स की तरह वृद्धि करतीं हैं गेलेक्सीज़ .

जैसे आसमान से रुई के फाये सी स्नो टपकती है .वैसे ही गैस के ऐसे ही धुनिहुई रुई के बादल से नीहारिकाएं पैदा होतीं हैं .रफ्ता -रफ्ता गुरुत्व इन्हें समेटता है .तमाम जाइंट गेलेक्सीज़ जिनमे अरबों सितारें हैं ऐसे ही स्नोफ्लेक्स जैसे गैसी बादल से विकसित हुईं हैं ।
स्नोफ्लेक ऐसे ही पैदा होता है .स्विनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलोजी के नेत्रित्व में साइंसदानों की इक टीम ने इसका पहला प्रत्यक्ष प्रमाण जुटाया है ।
इस एवज तीन अलग अलग दूरबीनों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है .गौर तलब है यह सिद्धांतगेलेक्सी फोरमेशन के बाबत गत वर्ष जर्मनी के खगोल विज्ञानी लुडविग ओसर ने प्रस्तुत किया था .

भेड़ें बनेंगी अब हटिंग -टांस तथा अल्जाइ -मार्स शोध का विषय ...

केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के साइंसदानों ने न्यूरो -दी -जेंरेतिव डीज़ीज़(हटिंग -टांस तथा अल्जाइ -मार्स डीज़ीज़ ) पर शोध कार्य को आगे बढाने की दृष्टि से शीप्स(भेड़ों )को खासा स्मार्ट बतलाया है .बोध /संज्ञानात्मक प्रक्रिया से ताल्लुक रखने वाली रिसर्च में इनकी अपनी उपयोगिता सिद्ध होगी .पहले इन्हें उपयोगिता की दृष्टि से यह दर्जा हासिल नहीं था .

ड्रग रेज़ीस्तेंट मलेरिया से बचाव कर सकती है उष्ण कटिबंधी समुद्री शैवाल ....

ट्रोपिकल सी वीड टू फाईट मलेरिया .एंटी -फंगल केमिकल कंपाउंड्स फाउंड ऑन सीवीड मे बी दी लेटेस्ट वेपन इन दी वार अगेंस्ट ड्रग -रेज़ीस्तेंट स्त्रैंस ऑफ़ दी डीज़ीज़.(मुंबई मिरर ,साईं -टेक ,फरवरी २३ ,२०११ ,पृष्ठ ३० )।
उष्ण -कटी - बंधी समुद्री शैवाल फंगल रोग संक्रमण /फंगल के हमले से बचाव के लिए सदियों से इक रासायनिक यौगिक समूह का स्तेमाल करती रहीं हैं .समझा जाता है इन यौगिकों में मलेरिया रोधी गुण हैं जो मलेरिया की दवा रोधी स्ट्रेन का भी खात्मा कर सकतें हैं ।
सीवीड्स ने विकास क्रम में अपने बचाव के लिए इक ख़ास रासायनिक सिग्नलिंग सिस्टम का विकास किया है .इसीको इक रणनीति के तौर पर मलेरिया के खिलाफ आजमाया जाएगा ।
जोर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के रिसर्चरों ने पता लगाया है पेचीला एंटी -फंगल अणु(मोलिक्युल्स )शैवाल की सतह पर इक समान विभाजित नहीं है कुछ ख़ास इलाकों में इनका ज़माव (सांद्रण ,कंसेन्ट्रेशन )है .यह वह लोकेशंस हैं जहां किसी भी प्रकार की क्षति /इंजरी फंगल इन्फेक्शन के खतरे को बढा सकती है ।
कुदरत की लीला देखिये नेचुरल वर्ल्ड रसायन की इस भाषा को समझता आया है .बा -खबर रहीं है शैवालों की तमाम स्त्रैंस केमिस्ट्री की इस लेंग्विज से .आखिर प्रश्न उनके बने रहने से जुड़ा रहा है ।
इन रासायनिक प्रक्रियाओं को हम अपने फायदे के लिए अपना सकतें हैं .बीमारियों के नए इलाज़ तलाश सकतें हैं ।
हालाकि तमाम सीवीड्स इक ही प्रजाति की उपज थीं लेकिन इनमे दो अलग अलग समूह एंटी -फंगल रसायनों के मिलें हैं ।
फ्रॉम वन सीवीड पोप्युलेशन डब्ड दी 'बुशी 'टाइप फॉर इट्स अपीयरेंस ,२३ डिफरेंट एंटी -फंगल कंपाउंड्स वर फाउंड ।
मलेरिया (ड्रग रेज़ीस्तेंटमलेरिया )के खिलाफ रण- नीति :
दस लाख से ज्यादा लोग आलमी स्तर पर मलेरिया की वजह से मर जातें हैं .प्लाज़ -मोडियम -फाल्सी -पेरम परजीवी इसकी वजह बनता है ।
मलेरिया के खिलाफ प्रयुक्त सबसे प्रमुख दवा "अर्तेमिसिनिं "के खिलाफ भी इस परजीवी ने दवा प्रति -रोध खडा कर लिया है .दुनिया की आधी आबादी को कभी भी मलेरिया हो सकता है .ख़तरा मुह्बाये खडा हुआ है ।
इन्हीं एंटी -मलेरियल अणुओं का सहारा है जो शैवालों को फफूंदी के हमले से बचाते आयें हैं ।इन्हीं में से कुछ समाधान निकलेगा दवा रोधी मलेरिया का ।
लेब आजमाइशों में उत्साहवर्धक नतीजे मिलें हैं .अब इन्हें डीज़ीज़ के माउस मोडल में आजमाया जाना है ।
राईट केमिस्ट्री मिले मनुष्यों पर आज़माइश के लिए इन संभावनाओं से भरे मोलिक्युल्स में यदयपि यह ज़रूरी नहीं है लेकिन उम्मीद है ज़रूर .

हेल्थ टिप्स .

कैंसर के खतरे को कम करतें हैं टमाटर क्योंकि इनमे "केरोतिनोइड लाइकोपीन "भरपूर हैं ।
मचली आने पर,उबकाई या ऐसी अनुभूति होने पर इक चाय का चम्मच भर "सोडा बाई -कार्बोनेट "/खाना सोडा इक कप पानी या फिर दूध में मिलाकर ले लें .

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

ब्लड प्रेशर नापने के लिए अब बनेगी हाथ घडी .

"रिस्ट -वाच"टू टेल "बीपी "मोर एक्युरेत्ली (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी २२ ,२०११ ,पृष्ठ १७ )।
यह हाथ घडी बतला सकती है आपको ख़तरा है उस सायलेंट किलर से जिसे हाई -पर टेंशन कहतें हैं जो दबे पाँव आता है जबतक लक्षण प्रकट होतें हैं मुखरित होतें हैं बहुत देर हो चुकी होती है ।
इसे तैयार किया है इक ब्रितानी साइंसदानों की टोली ने ।
इसे आर्म -कफ़ डिवाइस से बेहतर बतलाया जा रहा है जो रक्त का दाब तब मानिटर करती हैजब रक्त बाजू के ऊपरी हिस्से में प्रवाहित होता है ।
बेशक इस परम्परागत विधि(आर्म कफ ) से ब्लड प्रेशर मापना आसान साबित हुआ है लेकिन इस विधि से हमेशा ही यह सही सही नहीं जाना जा सकता की दिलके बिलकुल करीब तथा दिमाग को रक्त ले जाने वाली आर्ट -रीज का क्या हाल है .जबकि नुकसानी बे -इंतिहा हो सकती है .ऐसे में फाल्स पोजिटिव तथा निगेटिव मान आना स्वाभाविक है .असली हाले दिल जानने में ऐसे में चूक हो ही जाती है .बिला वजह भी ऐसे में हाई -पर -टेंशन की दवाई चलती रह सकती है ।
नै प्राविधि अपर आर्म्स से प्राप्त रीडिंग्सका रिस्ट से बंधे सेंसर से जो पल्ज़ के संपर्क में रहताप्राप्त मान का रीडिंग्स का परस्पर तालमेल बिठाती है ,समायोजित करती है दोनों मानों(पाठों /रीडिंग्स को ) को ।
अब उन लोगों को समय रहते बेहतर तरीके से आगाह किया जा सकेगा जिन्हें हार्ट अटेक और ब्रेन अटेक का ज्यादा ख़तरा रहता है ।
हाई ब्लड प्रेशर समय रहते शिनाख्त न हो पाने की वजह से ही दुनिया भर में लाखों लाख लोगों की जान लेता रहा है .इसके लक्षण मुखरित ही नहीं हो पातें हैं .जब तक पता चलता है देर हो चुकी होती है ।
नै डिवाइस को पहनना इक दम से आसान है .स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त अनुदान राशि से इसे तैयार किया गया है ।
लिसेस्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर ब्र्याँ विल्लिंस(ब्रियान विलियम्स ) ने सिंगापुर के साइंसदानों के साथ मिलकर इस विधि की सटीकता की आज़माइश कर ली है ।
इसे इक शानदार उपलब्धि बतलाया जा रहा है जो ब्लड प्रेशर मानितरण में इक क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली है ।
१०० पोंड्स कीमत की यह युक्ति आइन्दा दो तीन सालों में उपलब्ध हो जायेगी .आम औ ख़ास के लिए .

हासिल कर सकतें हैं सिक्स पैक एब्स सर्जरी से भी .

लेज़र की तरह इक एक्रोनियम/एक्रोंय्म /संक्षिप्त रूप है वेज़र यानी "वी ए एस ई आर "जिसका विस्तार है :वाइब्रेशन एम्प्लीफिकेशन ऑफ़ साउंड एनर्जी एट रेजोनेंस ।
इसका स्तेमाल सिर्फ बॉडी कंटूरिंग(साड़ी दुनिया की सब से ज्यादा सेक्सी ड्रेस नारी देह -यस्टी के मुखर होने वाले इन्हीं कंटूर्स की वजह से मानी जाती है )के लिए ही नहीं न्यूट्रिनो की तरह यूथ की पहुँच से बाहर"इल्युज्नरी एब्स" के लिए भी किया जाता है .इट इज ए होली ग्रेल ऑफ़ यूथ दीज़ डेज़ .जहां हर कोई शाहरुख /आमिर /सलमान बनना चाहता है ।
इन दिस सर्जिकल प्रोसीजर फस्ट दी फैट इज रिमूव्ड फ्रॉम दी बॉडी इन लोंगित्युडिनल लाइंस (लेंग्थ वाइज़ )बाई किर्येतिंग ह्म्प्स इन सच ए वे देत इट क्रियेट्स एन इल्यूज़न .दिस इज डन बाई एचिंग दी स्किन एंड रिमूविंग सुपरफिशियल (सर्फेस )फैट बाई सेग्रिगेतिंग इट फ्रॉम सराउंडिंग टिश्यु थ्रू 'लाइपो -सक्शन '(चूषण विधि द्वाराशरीर में ज़मा वसा की निकासी )।
बेहद माहिरी (एक्स्पर्तीज़ )चाहिए इस असाधारण शल्य चिकित्सा के लिए .आम प्लास्टिक सर्जन के बूते की बात नहीं है यह विशेषीकृत सर्जरी .इस आर्ट को निरापद बनाने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और कौशल चाहिए ।
भारत भर में इस सर्जरी को संपन्न करने केलिए कुल दस मशीनें हैं .शल्य और यह टेक्नोलोजी ,इससे सम्बद्ध इक्यूपमेंट बेहद महंगा है .माहिरों में माहिर कितने हैं इसका भी कोई निश्चय नहीं सिर्फ कयास लगाया जा सकता है ।
विशेष :भ्रम में जीना ठीक नहीं .खुद को मुगालते में रखने से क्या हासिल होगा ?सिर्फ जानकारी के लिए यह रिपोट लिखी गई है .मैं व्यक्तिगत तौर पर इसका समर्थन नहीं करता .

नेज़ल स्प्रे युनिवर्सल फ्ल्यू वेक्सीन की जगह ले सकता है ....

ए नेज़ल स्प्रे देट कैन बीट ओल टाइप्स ऑफ़ फ्ल्यू (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी २२ ,२०११ ,पृष्ठ १७ )।
इक जेनेटिक रीजन जो सभी फ्ल्यू वायरसों (विषाणुओं में ) में इक समान होता है का पहली मर्तबा स्तेमाल करते हुए साइंसदानों ने इक ऐसा नेज़ल स्प्रे तैयार किया है जो इक युनिवर्सल फ्ल्यू वेक्सीन की तरह काम कर सकता है .इसकी चूहों पर आज़माइश करके देख ली गई है ।
'जनरल वाय्रालोजी 'में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इसे एडिलेड विश्वविद्यालय के साइंसदानों के नेत्रित्व में इक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने तैयार किया है ।
आदिनांक स्वास्थ्य अधिकारी ही आइन्दा विषाणु की कौन सी स्ट्रेंन सामने आ सकती है इसका कयास लगाते आये हैं .इसी के आधार पर हर बरस इक नै फ्ल्यू वेक्सीन तैयार की जाती रही है .यह अतिरिक्त रूप से खर्चीला ,समय साध्यतथा श्रम साध्य साबित होता है .इक युनिवर्सल वेक्सीन ही इस दुष्चक्र से मुक्ति दिलवा सकती है ।
इक सरल तथा पूरी तरह से सिंथेटिक युनिवर्सल वेक्सीन जो न तो किसी इन्फ़्ल्युएन्ज़ा वायरस से व्युत्पन्न की गई हो और न ही जिसे साल दर साल री -फोर्म्युलेट करने की ज़रुरत ही रहे के अपने साफ़ साफ़ दिखने वाले फायदे हैं फ्ल्यू के खिलाफ जो फ्ल्यू के प्रसार को रोक सके .बचाव कर सके फ्ल्यू से ।
रिसर्चरों ने शोध के लिए इक ख़ास पेप्टाइड माइस(चूहों ) की नोज़िज़(नासिका से ) से डिलीवर की है .यह फ्ल्यू वायरस के इक बहुत ही छोटे से रीजन को इम्यून रेस्पोंस भेजती है .इन्फ़्ल्युएन्ज़ा वायरस -ए तथा बी सभी में यह टाइनी रीजन मौजूद रहता है .यहरीजन असरकारी तरीके से वायरस को न्युत्रेलाइज़ कर देता है ,बे -असर /निष्क्रिय /उदासीन बना देता है ।
टेस्ट वेक्सीन ने विषाणु की इक लेबोरेअरी स्ट्रेंन'एच ३ एन २ 'के प्रति जहां १००%प्रोटेक्शन दर्शाया वहीँ हाई -ली पैथोजेनिक वायरस "एच ५ एन १ "/बर्ड फ्ल्यू वायरस के खिलाफ भी २० % बचाव किया ।
व्यावसायिक तौर पर उपलब्ध इन्फ़्ल्युएन्ज़ा दवाएं भी इतनी ही असरकारी साबित होतीं हैं इससे कम न ज्यादा ।
इससे इक आस बंधती है यह इक पोजिटिव रेस्पोंस है बेशक आइन्दा टेस्टिंग की गुंजाइश भी रहती है (लेबोरेटरी तथा क्लिनिकल टेस्टिंग में अभी और परीक्षण तो होने ही होने हैं .).

ज्यादा किक करती है केफीन लडकों को ...

बोइज गेट ग्रेटर किक फ्रॉम केफीन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी २२ ,२०११ ,पृष्ठ १७ )।
इक डबल ब्लाइंड स्टडी के नतीजों के मुताबिक़ लड़कियों कीबनिस्पत लडकों को केफीन ज्यादा असर (किक करती है )करती है .लडकों के खेल कूद में प्रदर्शन पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ता है लडकियाँ केफीन लेने के बाद बेहतर प्रदर्शन नहीं करतीं हैं ।
बुफ्फालो विश्वविद्यालय में न्यूरो -बाय्लोजिस्त एवं न्यूट्रीशन साइंसिज़ में सहायक प्रोफ़ेसर जेंनिफेर एल टेम्पले ने यह अध्ययन संपन्न किया है ।
इस अध्ययन से यह जान लेने में मदद मिलेगी कि ड्रग एब्यूज के मामले में लडकों और लडकियों की ससेप्तिबिलिती अलग अलग क्यों रहती है ।
दी जर्नल ऑफ़ एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिकल साइको -फार्मा -कोलोजी में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जो दोनों जेन्दर्स की केफीन के प्रति रेस्पोंस जुदा दिखलाती है .

ये चस्का ही ऐसा है ......

'हलुवा सूजी का ,चस्का दूजी का 'अगर आप इस रिपोर्ट के शीर्षक से यह समझे हैं तो आप गलत है यहाँ बात होने जा रही है फास्ट फ़ूड की .अमरीकन जर्नल ऑफ़ कार्डियोलोजी में प्रकाशित इक अध्ययन के अनुसार फास्ट फ़ूड का चस्का कुछ लोगों को इस कदर लगता है कि होस्पितेलाइज़ होने के बाद भी हफ्ते में इक मर्तबा फास्ट फ़ूड खाने से नहीं चूकते .बेशक कुछ लोग इससे हार्ट अटेक के बाद दूर चले आतें हैं हृद रोग माहिरों की बात मानकर लेकिन तकरीबन आधे मरीज़ इसे भुगताने के ६ माह बाद ही अपने पसंदीदा फास्ट फ़ूड आउटलेट पर मनपसंद फास्ट उड़ाते देखे जा सकतें हैं सप्ताह में कमसे कम इक दफा ।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिसोरी ,केन्सास सिटी कैम्पस के जॉन स्पेर्तुस ने अपने अध्ययन मेंजिन २५०० दिल के मरीजों को शामिल किया उनमे से ८८४ (३६%)ने इक सर्वे में साफ़ साफ़ बतलाया अस्पताल में भर्ती रहते दिल का दौरा पड़ने से इक माह पहले तक उन्होंने हफ्ते में इक मर्तबा तो फास्ट फ़ूड खाया ही खाया था .६ महीने बाद जब स्पेर्तुस ने इनसे बात की तब पता चला इनमे से ५०३ अभी भी हफ्ते में इक मर्तबा अपनी पसंद का फास्ट फ़ूड खाने से नहीं चूक रहें हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :जंक फ़ूड लवर्स स्टिक तू फास्ट -फ़ूड डाइट इविन आफ्टर हार्ट अटेक (दीटाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी २२ ,२०११ ,पृष्ठ १७ ).

जीवन शैली रोग है स्लीप पेरेलिसिस .

इक स्लीप डिस -ऑर्डर है स्लीप पेरेलिसिस जिसको हवा देती है हमारी विकृत होती जीवन शैली ।

काज़ेतिव एजेंट्स ?

(१)स्ट्रेस एंड एल्कोहल कन्ज़म्प्शन :आगे निकलने की जानलेवा होड़ अपनी कीमत वसूल रही है .जीवन का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं रहा है ।

एल्कोहल स्ट्रेस को कम नहीं बढाता है .सिगरेट की तरह इसका भी एंड इफेक्ट डिप्रेसिव है .

यदि आप ओल्ड हाग सिंड्रोम /स्लीप पेरेलिसिस की चपेट में है तब ग्लास से परहेज़ करें .एल्कोहल का सेवन कम करदें ।

(२)इर्रेग्युलर स्लीप :बहुत कुछ आपके स्लीप पैट्रन पर निर्भर करता है ."यो यो" स्लीप (जो क्वान्तिती और क्वालिटी दोनों में बदलती रहती है ) स्लीपिंग हेबिट्स ,लेट नाईट पार्टीज़ /स्लीप आपके चित्त (स्टेट ऑफ़ माइंड )को प्रभावित करती हैं ।

बी पी ओ में काम करने वाले जल्दी इस सिंड्रोम की चपेट में आजातें हैं .सरका -डियन रिदम की ऐसी की तैसी कर्देतें हैं अनियमित काम के घंटे ,बदलती शिफ्तें ।

जेट लेग :बारहा सात समुन्दर पार की लम्बी हवाई यात्रा भी इस सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों के लिए ठीक नहीं है .यह स्लीप डिस -ऑर्डर्स को न्योंतना है .स्लीप पेरेलेसिस के मरीजों को ट्रांस -मेरीडियन हवाई यात्रा से बचना चाहिए ।

अन्डर- लाइंग/ऑन गोइंग मेडिकल कंडीशंस /मनोरोग :एन्ग्जायती ,बाई -पोलर इलनेस तथा पोटेशियम डिस -ऑर्डर भी स्लीप पेरेलेसिस को हवा दे सकतें हैं ,पंख लगा नै परवाज़ दे सकतें हैं इस रोग को .पोटेशियम डिस -ऑर्डर पोटेशियम की कमी से पैदा होता है ।

ऐसे में स्लीप पेरेलेसिस के रोगी को स्लीप स्टडी करवानी चाहिए .पोली -सोम्नोग्राम दूसरे विकारों की खबर देदेता है ।

रिस्क फेक्टर :मनोविकारों से ग्रस्त वे लोग जो 'नार्कोलेपसी '(देखते देखते ही दिन के किसी भी पहर अल्प काल के लिए आँख लग्जाना )केताप्लेक्सी (लोस ऑफ़ मसल टोन काज़िंग ए फाल ऑर हिप्नोगोगिक हेलूसिनेशन ),वेकिंग अप विद ए हेलूसिनेशन आर मोर एत रिस्क ।

सन्दर्भ -सामिग्री :वेकिंग अप टू फीयर .एन एलार्मिंग ५०%ऑफ़ डी पोप्युलेशन सफर्स फ्रॉम स्लीप पेरेलिसिस .अवर एक्सपर्ट्स हेल्प्स यु आइदेंतिफाई दी सिम्टम्स एंड एक्स्प्लेंस दी रेमेडियल एक्सन .(मुंबई मिरर ,फरवरी २२ ,२०११ ,पृष्ठ २७ )।

स्लीप पेरेलिसिस हम इससे पहले प्रकाशित पोस्ट में बतला चुकें हैं .यह उससे अगली किस्त थी .कृपया इससे ठीक पहली पोस्ट पढ़ें ।

वीरुभाई .

व्हाट इज स्लीप पैरा -लिसिस ?

व्हाट इज स्लीप पैरालिसिस ?
यक बा यक कई मर्तबा ऐसा होता है आप आधी रात गए गहरी नींद से जाग जातें हैं ,लेकिन अपने आपको पैरालाइज़्द महसूस करतें हैं ,हाथ पैर नहीं हिला सकते हैं आप कुछ पल को .बोल भी न पातें हैं .कई लोग इसे किसी प्रेत की ढिठाई बतलातें हैं कहतें हैं वह हमारी छाती पर चढ़ा बैठा था हमारा दम घोंट रहा था .यकीन मानिए यह इक आम अनुभव है जो पैरा नोर्मल बिलकुल नहीं है .जीवन शैली से जुड़ा है यह रोग"स्लीप पेरेलिसिस " ।
इक फिल्म आरही है :३.३३ जो इसी सिंड्रोम (स्लीप पैरालिसिस )से ताल्लुक रखती है .इसे निर्माता विल्सन लौईस बना रहें हैं ।
इस जीवन शैली रोग को 'ओल्ड हाग सिंड्रोम 'भी कहा जाता है .छाती में भारीपन महसूस करता है रोगी खासकर तब जब वह सुपाइन पोजीशनमें (फेस अप )लेटाहोता है और नींद से बाहर अचानक आरहा होता है .इस स्थिति में व्यक्ति को लगता है जैसे उसे फालिज मार गया हो .न वह हिल डुल सकता है न बोल सकता है ।
आखिर ऐसा होता क्यों हैं ?
माहिरों के अनुसार इस अल्प कालिक स्थिति में मरीज़ का शरीर निद्रा में होता है लेकिन दिमाग जागृत अवस्था में होता है .शरीर के हिल डुल न पाने की वजह यही विरोधाभास बनता है ।
बोम्बे हॉस्पिटल के मनो -रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ .अशित सेठ कहतें हैं :इस अतिप्राकृत स्थिति (सुपर -नेच्युरल स्टेट )का बखान /व्याख्या अनेक संस्कृतियाँ अलग अलग तरीकेसे करतीं दिखलाई दे जातीं हैं लेकिन यह स्थिति आम तौर पर रोगी को कोई क्षति नहीं पहुंचाती है ।
बस यह इक तरह की 'मोटर पेरेलिसिस' है(इसी लिए अंग संचालन में अल्पकालिक बाधा महसूस होती है ।).यह स्थिति .मानसिक बीमारी नहीं है स्लीप पेरेलिसिस ।
यह नींद की "रेम "अवस्था (रेपिड आई मूवमेंट )में पैदा होती है .इस स्थिति में काया सोई हुई रहती है दिमाग जागता रहता है .उसे अपने परिवेश /एन्वाय्रंमेंट्स की खबर रहती है .इस स्थिति में डरावना सपना खासकर तब जब वह उठने वाले ही होतें हैं नींद की गोद से, इन्हें इक दम से बेहद डरा देता है .सिट्टी पिट्टी गुमहो जाती है व्यक्ति कुछ भी नहीं बोल पाता है सकते में आजाता है ।
क्या लक्षण हें स्लीप पेरेलिसिस के ?
सब के अपने अपने मिथ हें अपने अपने डीलयु -स्जन (भ्रांत धारणाएं ) .इन विश्वाशों से बाहर निकल कर रोग के लक्षणों को पहचानना बहुत ज़रूरी है ।
(१)सफोकेशन :फालिज (स्टेट ऑफ़ पेरेलिसिस ) में पेशियाँ भी निद्रा ग्रस्त रहतीं हें .जैसे ही व्यक्ति की इस स्थिति में आँख खुलती है नींद टूटती है केवल उसका दिमाग सचेतन अवस्था में होता है .जागृत होता है ।
दरअसल इस स्थिति में क्योंकि रेस -पाय -रेटरी मसल्स भी सोये रहतें हें इसिस्लिये व्यक्ति को अपना दम घुटता सा लगता है (कोई ऊपरी शक्ति ,प्रेत बाधा का किया धरा नहीं है यह सफोकेशन ,दम घुटने का एहसास ।
(२)हलूसिनेशन (मति भ्रम /दृष्टि /श्रवण सम्बन्धी भ्रम /निर्मूल भ्रम ):वह जो आपके परिवेश में नहीं है दिखलाई /सुनाई देना हलूसिनेशन है .निराधार भ्रम है ।
क्योंकि सोते हुए आपने दुस्स्वप्न देखा है इसीलिए नींद टूटने पर भी वह कुछ और देर दिखलाई देता रहता है .यही विज्युअल हेलूसिनेशन है .कोई प्रेत बाधा नहीं है यह आपकाअंध - विश्वास मिथ आधारित है ।
(३)फीलिंग मैड:इस रोग के लक्षण के रूप में मरीज़ को ऐसा भीलग सकता है वह बहक गया है पागल हो गया है .हेलूसिनेशन इस बोध को और भी बढा देतें हें .यह इक शरीर -क्रिया वैज्ञानिक व्यापार है .फिजियो -लोजिकल एपिसोड है मानसिक बीमारी नहीं है .(ज़ारी ....) .

क्या हैं सोलर फ्लेयर्स (सौर -ज्वालायें ,सौर लपटें )?

व्हाट आर सोलर फ्लेयर्स ?
सौर ज्वालायें सौर सतह से उठने वाली तीव्र लेकिन अल्पकालिक ऊर्जा प्रवाह है .सूरज को रोशन करने वाले हिस्से के रूप में दिखलाई देतीं हैं यह .ये अतिरिक्त प्रमाण में शक्ति शाली विकिरण और आवेशित कण लिए उठती हैं सौर सतह से .इसी से ज़ोरदार सौर पवनें चलतीं हैं .सौर सतह से लगातार आवेशित कणों के रूप में ही सौर पवनें उठतीं हैं ।
हमारी पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र हमें कमोबेश अन्तरिक्ष के मौसम की मार से बचाए रहता है ।
लेकिन मेस्सिव सोलर फ्लेयर्स न सिर्फ पावर ग्रिड्स को विच्छिन्न कर देतीं हैं ,ग्लोबल पोजिशनिंग सेटेलाईट सिस्टम्स सिग्नल्स में व्यवधान और व्यतिकरण (इंटर फारेंस )पैदा करतीं हैं ,नागर संचार को बुरी तरह असर ग्रस्त करतीं हैं .

सौर ज्वालायें अभी और असर ग्रस्त करेंगी हमारी गेजेट्स को ....

सोलर फ्लेयर्स टू रीक हेवोक विद अवर गेजेट्स (साईं -टेक ,मुंबई मिरर ,फरवरी २२ ,२०११ ,पृष्ठ २६ )।
२२ फरवरी ,०१५६ ग्रीन विच मीन टाइम :गत पांच सालों में दर्ज़ सबसे तेज़ सौर ज्वालायें अपने आवेशित प्लाज्मा कणों(हॉट आयो -नाइज़्द गैस,आयनों के साथ )की लपटों के साथ प्रचंड वेग ९०० किलोमीटर प्रति सेकिंड की चाल से पृथ्वी की औरइस दिन ,इस पहर लपकीं ।
अनुमान है ऐसा ही इक अन्तरिक्ष अंधड़ फिर उठेगा सौर सतह से .यह हमारी अधुनातन गेजेट्स को असरग्रस्त करेगा .अन्तरिक्ष के मौसम से जुडी है आज गेजेट प्रिय समाज की नव्ज़ जिसमे तमाम तरह के उपग्रह शामिल हैं जिन पर हम संचार के मामले में निर्भर हैं ।
इक ज़ोरदार (शक्तिशाली )सौर आंधी /सोलर स्टोर्म इस सारे ताम झाम /प्रोद्योगिकी को विच्छिन्न /तहस नहस /नाकारा बना सकती है .उपग्रहों को झुलसा सकती है .स्टोक मार्किट्स को धुल चटा सकती है,बत्ती गुल कर सकती है इक बड़े हिस्से की .महीनों यह क्रम चल सकता है ।
अमेरिकन असोशियेशन फॉर दी एडवांसमेंट ऑफ़ साइंसिज़ की वार्षिक बैठक में यह राय माहिरों ने व्यक्त की है .स्थिति बदतर हो सकती है क्योंकि सूरज ११ साला सौर चक्र सक्रियता की और अग्रसर है ।
अब से दस बरस पहले जब सौर सक्रियता अधिकतम हुई थी यह दुनिया ऐसी नहीं थी .न सेल फोन इतने थे न उनके काम करने के तरीकों में इतनी विविधता थी .आज बात कुछ और है .इसलिए सौर ज्वालाओं के परिणाम भी दूरगामी होंगें .

हेल्थ टिप्स .

जब आपके पपी(पेट/स्वान /डॉग)को डायरिया हो :
इक हिस्सा स्किन साफ़ करके उबाला हुआ चिकिन दो भाग वाईट राईस के साथ दीजिये .वाईट राईस कि जगह कोतेज़ चीज़ भी ले सकतें हैं .अतिसार (दस्त )में आराम आयेगा ।
यदि आपका लाडला डाय्पर रेशिश से आजिज़ आचुका है ,आठ भाग पानी में इक भाग विनेगर (सिरका /वाईट विनेगर /रेड वाइन विनेगर /जो भी हो आपके पास )मिलाकर धौ दीजिये .

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

बोन ड्रग्स लेने वाली प्रौढा ज्यादा दिन ज़िंदा रहतीं हैं ....

एल्डर -ली वोमेन ऑन बोन ड्रग्स मे लिव लोंगर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी २१ ,२०११ ,पृष्ठ१९ )।
बेशक हाल फिलाल मीडिया मे बोन ड्रग्स को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा है लेकिन इससे होने वाले फायदे की भी बराबर पुष्टि हो रही है पलड़ा लाभ की और झुक गया है .लम्बी उम्र प्राप्त करतीं हैं बोन ड्रग्स लेने वाली प्रौढा .बेशक सम्बन्ध सीधा नहीं है ।
लेकिन ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चरों ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट मे बतलाया है जो प्रौढा इन दवाओं का सेवन करतीं हैं वे दवाएं न लेने वाली महिलाओं से ज्यादा जीतीं हैं ।
उनके अध्ययन मे शरीक हरेक सौ के पीछे वे तीन महिलायें जो दवा नहीं ले रहीं थीं जल्दी शरीर छोड़ गईं ।
बिस्फोस्फोनेट्स से ताल्लुक रखता है यह अध्ययन .आम तौर पर दवा लेने वाली महिलायें अपेक्षाकृत स्वस्थ रहतीं हैं बेशक लम्बी उम्र तक ज़िंदा न भी रहें ।
टोनी स्ताबिले ओस्तिओपोरोसिस सेंटर ,कूल्माबिया यूनिवर्सिटी ,न्युयोर्क ने भी इस खबर का स्वागत किया है ।
बोन ड्रग्स के लिए अनेक दवा निगम दवाएं बना रहें हैं मसलन जिनमे मर्क्स की दवा "फोसमक्स "रोशेज़ की "बोनिवा "नोवारातिस की "रीक्लास्त "तथा वार्नर चिल्काट्स की "एक्तोनेल "का नाम लिया जासकता है ।
ओस्टियो -पोरोसिस मे ये तमाम दवाएं प्रिस्क्राइब की जातीं हैं .असरकारी नुश्खा हैं अस्थि क्षय का ,लोस ऑफ़ बोन मॉस का जो रजो -निवृत्त महिलाओं को आमतौर पर अपनी चपेट मे ले लेता है ।
तकरीबन इक करोड़ अमरीकी ओस्टियो -पोरोसिस की चपेट मे हैं जिनका बहुलांश मिनोपोज़ल महिलायें हैं .इस रोग मे अस्थियाँ इतनी कमज़ोर हो जातीं हैं उठते बैठते भी टूटने लगतीं हैं .

भूकंप की पूर्व सूचना के लिए उपग्रह .....

ब्रितानी और रुसी साइंस दानों ने मोस्को में इक प्रोजेक्ट पर दस्तखत किये हैं जिसके तहत पृथ्वी की कक्षा में दो उपग्रह स्थापित किये जायेंगें जो पृथ्वी की परिक्रमा इक दूसरे से कुछ सौ मील दूरी बनाते हुए करेंगें .यह इक ट्विन सेटेलाईट प्रोजेक्ट है ।
यह भूकंप प्रवण क्षेत्रों का निरंतर जायजा लेंगें .हाई - रिस्क जोंस पर इनकी गिद्ध दृष्टि संकेंद्रित रहेगी .हाई -सीज्मिक (उच्च भूकंपीय) एवं ज्वालामुखीय (वोल्केनिक एक्टिविटी )का यह बराबर मानितरण करते रहेंगें ।
इससे उम्मीद बंधी है समय रहते भूकंप की चेतावनी प्रसारित कर जान माल की भारी तबाही से बचा जा सकेगा .समय रहते संभावित स्थानों को खाली करवा लिया जाएगा .

कोई पचास अरब सितारे होंगें हमारी दूध -गंगा में...

हमारी मिल्की वे गेलेक्सी (कुंडली नुमा नीहारिका में )ग्रहों की पहली गणनाका अनुमान लगालिया गया है इसके लिए नासा के ग्रह अन्वेषी केप्लर टेलिस्कोप से प्राप्त तथ्यात्मक आंकड़ों के आधार पर स्थिति का आकलन किया गया है .तकरीबन ५० अरब ग्रह होने का अनुमान लगाया गया है जिनमे से ५० करोड़ पर धुर तापमान नहीं हैं ये ग्रह नबहुत ज्यादा गर्म हैं न बे -इन्तहा ठन्डे ।
तारा विज्ञान के माहिरों ने पहले बरस में रात्रि आकाशके छोटे से हिस्से का अवलोकन करने के बाद इस संभावना पर विचार किया तारा मंडलों के कितने ग्रह -परिवार बेटे पोते (ग्रह ,उपग्रह )हो सकतें हैं।
पृथ्वी और सितारों के बीच से जब भी कोई ग्रह गुज़रता है केप्लर उसका संज्ञान ले लेता है ।
अब तक केप्लर कोई १२३५ उम्मीदवार ग्रहों (केंदिदेत प्लेनेट्स का जायजा ले चुका है .जिन्हें ग्रह होने का पात्र समझा गया है ).इनमे से ५४ ऐसे इलाके में हैं जहां जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ मौजूद हैं .इस इलाके को गोल्दीलोक्स ज़ोन कहा जाता है ।
केप्लर का मुख्य मकसद हमारी दूध गंगा में एकल ग्रह संसार की टोह लेना नहीं है यह आंकना है इनमे से कितने आवास की सुपात्रता ,जीवन के anukool हो सकतें हैं .

आ अब लौट चलें ...अपनी जड़ों की और......

बेक टू बेसिक्स !देयर इज डिस -कनेक्ट बिटवीन हाव वी आर डिज़ा -इंड टू लिव एंड दी वे वी आर लिविंग .इज ए रिटर्न टू केवमेन लाइफ स्टाइल दी न्यू हेल्थ सीक्रेट ?नोना वालिया फाइंड्स आउट .टाइम्स न्यूज़ नेट वर्क /नोना .वालिया @टाइम्स ग्रुप .कोम /टाइम्स लाइफ /सन्डे ,फरवरी २० ,२०११ ,पृष्ठ ४ )।
तंदरुस्ती का राज अब हमें अपने पूर्वजों से जानना होगा जिनका मूल मन्त्र था खाओ कम उडाओ ज्यादा केलोरीज़ .कुदरत की गोद में रहते हुए कुदरती खाना कमाके खाओ .पका पकाया नहीं ।
अब से चालीस हज़ार बरस पहले हमारा शरीर कन्दरा वासी हमारे पूर्वजों की दिनचर्या के ही अनुरूप था .जहां बैठे ठाले किसी को कुछ नहीं मिलता था .अपना भोजन तलाशना होता था .शिकार के लिए ,कंदमूल फल फूलकी तलाश में इधर से उधर दौड़ना पड़ता था ।
आज हम अपने उसी शरीर तंत्र के साथ अन्याय कर रहें हैं ।
"दी इवोल्यूशन डाइट"के लेखक एस बी मोरसे कहतें हैं :अपने उन्हीं पूर्वजों की जीवन शैली अपना कर हम फिर से अच्छी सेहत के मालिक बन सकतें हैं ।
बस स्वास्थाय्कर अनेक फलों ओर तरकारियों में से हमें अपना भोजन चुनना होगा .कुदरती /नेचर द्वारा दिए खाद्य खाने होंगें ,मशीनों द्वारा संशाधित नहीं .अपनी जैव घडी को पहचानकर उसी के अनुरूप सोना उठना कसरत करना होगा .सब कुछ बतलाती है हमारी सरका -डियन रिदम ।
हमारा शरीर आराम तलबी के हिसाब से नहीं रचा गया था .पूरी तरह से निश्चित दिखने वाली नहीं थी हमारी जीवन शैली ,शांत ओर तनाव मुक्त ।भागम भाग थी संगर्ष था .बैठा ठाला कोई न था ।
पोषण विज्ञानी डॉ .शिखा शर्मा कहतीं हैं :रेशा हीन परिष्कृत खाद्य नित नै समस्याएं पैदा कर रहा है .हम लोग खाद्यान्नों से छिटक रहें हैं .मक्का ,ज्वार ,बाजरा हमारी खुराक का हिस्सा नहीं बन पा रहा है .भारतीय चाहें न्यू -योर्क में हो या जापान ,नै दिल्ली ,में हो हर कोई वही सब खा रहा है .परिष्कृत ,कृत्रिम ,आटा,चावल सब कुछ परिष्कृत ,रेडीमेड ।
हर कोई बैठा बैठा ही काम कर रहा है .रेलवे रिज़र्वेशन के काउंटर से लेकर बैंक तक .बेशक काल सेंटर्स ओर कोर्पोरेट वर्ल्ड की सैर कर आइये ,सिदेंतरी लाइफ स्टाइल कोमन फीचर है दैनिकी का ।
पर्सनल पॉइंट की शोभा कॉल कहतीं हैं आज जो नवजात पैदा हो रहा है वह ४० ,०० पहले पैदा शिशु से भिन्न नहीं है .लेकिन हमारा परिवेश ,पर्यावरण -पारिश्थिति तंत्र सब कुछ जुदा हैं .तब्दील हो चुकें हैं .हमारी आनुवंशिक बनावट आज के कसरत हीन ,बनावटी माहौल के अनुरूप नहीं है ।
हमारी आनुवंशिक बुनावट ओर रहनी सहनी में परस्पर सम्बन्ध टूट गया है .हम बैठे ठाले खा रहें हैं .खाना पका पकाया मिल जाता है कोई मशक्कत नहीं करनी पडती इसे हासिल करने में .इसी लिए अतिरिक्त चर्बी ओर टमी हमने बढा ली है .बच्चे भी टमी लिएचर्बी चढ़ाए घूमतें हैं बड़े भी .
पोषण भी पूरा नहीं मिल रहा है .क्रत्रिम खाद्य पुष्टिकर तत्वों से दूरी बनाए हुए है .संवेगात्मक तौर/भावात्मक तौर पर हम तनाव पाले हुएँ हैं ।
लन्दन विश्विद्यालय में संपन्न इक अध्ययन के अनुसार वे तमाम लोग जो कंप्यूटर पर दिन भर में चार घंटा या ओर भी ज्यादा देर तक काम करतें हैं या फिर टी वी देखतें हैं उनके लिए मेजर हार्ट प्रोब्लम (हार्ट अटेक,मायोकार्दियेक इन -फार्क -शन आदि )का ख़तरा १२५ % बढ़ जाता है .अकसर ऐसे मामलों में मृत्यु भी हो जाती है .दो या उससे कम घंटा कंप्यूटर /टी वी के सामने बिताने वालों के लिए ऐसीकोई संभावना नहीं रहती है ।
दरअसल देर तक ऐसे बैठे बैठे काम करने को इनेक्तिविती में शुमार किया जाता है जिससे रोग संक्रमण औरअपचयन (चय-अप -चय सम्बन्धी ,मेटाबोलिक )सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो जाती हैं .यही इस बढे हुए खतरे की वजह बनती है ।
"घर से ऑफिस ,ऑफिस से घर ,बस इतनी परवाज़ ज़िन्दगी ,दफ्तर की मोहताज़ ज़िन्दगी "।
घर और ऑफिस में अटका यह आदमी कहीं भी सुकून से नहीं है ,टेंस है .चिंता ग्रस्त है ।
इसीलिए" केवमेन की जीवन शैली" अपनाने की बातचल पड़ी है .कुदरती खाने का ज़िक्र छिड़ रहा है .आवश्यता के अनुरूप ही हमें खाना चाहिए .विकास क्रम में इक खुराकी योजना हमारे लिए बनी है .हम लगातार ब्लंडर पे ब्लंडर किये जा रहें हैं .खा ज्यादा रहें है खर्च कम कर रहें हैं .इसलिए हमारा बेंक बेलेंस (टमी /चर्बी )बढ़ रही है .एब्डोमिनल ओबेसिटी सौगात है इस अधुनातन जीवन शैली की ।
कन्दरा में रहने वाली महिला लकड़ी और खाद्य सामिग्री जुटाने में दिन भर खट -ती थी .(देश के सूदूर इलाकों ,पहाड़ की औरत को आज भी लकड़ी पानी जुटाने के लिए मीलों चलना पड़ता है )लेकिन शहराती महिलायें खासकर कामकाजी आधुनिक महिला मेहनत मशक्कत से दूर ही है .शहरी खान-पान की शैली शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा करवा रही है .इसीलिए इम्युनिटी सम्बन्धी समस्याएं आड़े आ रहीं हैं ।
कोमन कोल्ड में भी अब हम एंटी -बायतिक्स लेतें हैं (सेकेंडरी इन्फेक्शन को टाले रहने के लिए )जो नुकसानदायक साबित होता है .रोग प्रति रोधी तंत्र से समझौता करवाता है ।
समाधान व्यायाम है .जितना खाओ उतना कमसे कम उडाओ .बर्न करो केलोरीज़ को ।
आज बच्चा पैदा बाद में होता है डिब्बा बंद आहार पे पहले डाल दिया जाता है .फैड डाइट शरीर को डेमेज ही करतीं हैं .फिटनेस के माहिरों का यही कहना है .जब आप पैदा हुए थे यह फैड डाइट नहीं थी .आपके बच्चों के लिए क्यों ?माँ का दूध सर्वोत्तम आहार है ६ मासे के लिए .उसके बाद स्तन पान के साथ ,डाल दलिया ,पूरिज सभी कुछ मसल के दिया जाता है .बचपन में ही पड़ जाती है गलत खान पान की नींव .

नाश्ते में दूध दलिया /पुरीज़ लीजिएगा .

रिसर्चरों के मुताबिक़ सुबह का नाश्ता सारे दिन भर का पोषण तय करदेता है .नाश्ते में दूध दलिया /दूध कोर्न फ्लेक्स /दूध ओट मिल्स/दूध मल्टी ग्रैन मिक्स कुछ भी अपनी रूचि के अनुरूप लीजिये .इक बौल(कटोरा /कटोरी /सौसर ) सीरियल का नाश्ते का सिरमोर (सबसे अव्वल नाश्ता )साबित होता है ।
इस नाश्ते के बाद लोगोंकी दिन भर में सुग्री(मीठी ) और चिकनाई सनी चीज़ों की और रुख करने की संभावना न्यूनतर रह जाती है ।
बी एन ऍफ़ न्यूट्रीशन बुलेटिन में प्रकाशित पोषण विद सिग्रिड गिब्सन के इस अध्ययन के मुताबिक़ सीरियल (अन्न से बना खाद्य पदार्थ जिसे अकसर दूध के साथ लिया जाता है)केल्सियम के अलावा खाद्य रेशों ,,प्रोटीनों और कार्बो -हाइड्रेट्स का बेहतरीन स्रोत हैं ।
अध्ययन से पता चला पांच में से इक वयस्क (बालिग़ )नाश्ते में कुछ भी सोलिड फ़ूड नहीं लेतें हैं ,इक तिहाई सीरिअल तथा ४५ %नॉन -सीरिअल ब्रेकफास्ट (अन्न हीन नाश्ता )लेतें हैं .चाय और कोफी सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं .औरतें मर्दों के बरक्स ब्रेड ,सौसेज ,अण्डों के बनिस्पत फलों को ज्यादा तरजीह देतीं हैं ।
पता चला जो लोग नाश्ता करतें हैं वे २४ घंटों में कम चिकनाई तथा ज्यादा मीठा (कार्बो -हाइड्रेट )लेतें हैं .इसका श्रेया सीरिअल आधारित ब्रेकफास्ट को दिया जासकता है ।
नॉन सीरिअल ब्रेकफास्ट के साथ संतृप्त वसा (सेच्युरेतिद फैट्स )लोग ज्यादा लेतें हैं .इसीलिए सर्वोत्तम हैं ब्रेकफास्ट सीरिअल .

हेल्थ टिप्स .

कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए :इक चम्मच भर (लगभग पांच ग्राम )साबुत धनिया (कोरियेंदर सीड्स )रात भर इक कप पानी में भीगा रहने दीजिये .सुबह उठकर इस पानी को पी जाइए .फूले हुए सीड्स सब्जी में काम आ जायेंगे ,इस उपाय को निरंतर अपनाइए कोलेस्ट्रोल कम होगा ।
डायबेटिक आटा यह भी है :सोयाबीन का आटा (सोया फ्लोर ),काले चने का आटा (ब्लेक ग्राम फ्लोर )तथा जै का आटा (ओट फ्लोर) बराबर अनुपात में मिला लीजिये .डायबिटीज़ के मरीज़ के लिए /आम आदमी के लिए यह रेशा बहुल आटा बहुत अच्छा है .

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

कैसे पहचाने निकट खड़े हार्ट अटेकको ?

गैस और अपच की शिकायत के साथ दबे पाँव आने वाला दिल का दौरा (सायलेंट हार्ट अटेक ) इन दिनों आम हो चला है .यदि अपच की शिकायत एन्तासिड्स लेने के घंटा भर बाद तक भी बनी रहती है तब जिसे आप गैस या अपच समझ रहें हैं वह दिल का दौरा भी हो सकता है .ऐसे में अविलम्ब ई सी जी होना चाहिए -डॉ .अशोक सेठ ,फोर्टिस एस्कोर्ट्स होस्पिताल्सका यही कहना मानना है ।
बेशक ६० फीसद लोग दिल का दौरा पड़ने पर ,आसन्न होने पर, सीने में ख़ासकर तेज़ दर्द जो आगे बढ़ता बाजू क्या उँगलियों तक भी आजाता है ,पसीना छूटने के साथ तथा मचलीकी शिकायत करते देखे जा सकतें हैं लेकिन १५-२० % अपच और कमर दर्द ही महसूस किये बैठे रहतें हैं .पसीना भी इन्हें नहीं छूटता है .लेकिन जबड़े में दर्द खासकर जब गले में भी तकलीफ महसूस हो अनहोनी के ज्यादा करीब माना जाता है .सायलेंट हार्ट अटेक अपच और गैस की शिकायतकी आड़ में /मुखोटा लगाकर ही आता है ।
ऐसे मामले भी माहिरों के सामने आयें हैं जब लोग तमाम रात एन्तासिड्स के भरोसे रहें हैं और सुबह होते होते हार्ट अटेक की गिरिफ्त में खिसक आयें हैं .

व्हाट इज फेमिलियल हाइपर -कोलेस्त्रोलिमिया ?

फेमिलियल हाइपर - कोलेस्त्रोलिमिया क्या है ?(ऍफ़ एच ?)।
यह ऍफ़ एच उनलोगों में भी देखा जा सकता है जो हर तरह से इक स्वस्थ जीवन शैली अपना रहें हैं .यह इक बिरला आनुवंशिक रोग है जो खानदानों में देखा जा सकता है .इसीलिए इसकी चर्चा भी कमतर ही हुई है ।
बहर -सूरत 'हार्ट यु के 'के अनुसार इस स्थिति से ग्रस्त लोगों का यह दायित्व है वह अपने बच्चों को दस साल का होने पर टेस्टिंग के लिए (लिपिड प्रोफाइल का पूरा जायजा लेने के लिए )किसी अच्छी भरोसे मंद(लाल पैथालोजी जैसी किसी ) लेब में ले जाएँ ।
अपोलो क्लिनिक ,स्टेट्स, के सर्जन वी. के. निगम कहतें हैं वैसे भी आजकल इक स्वस्थ व्यक्ति की पहली टेस्टिंग ३० साल की उम्र में हो जानी चाहिए ।
ऍफ़ एच में कोलेस्ट्रोल खासकर बेड कोलेस्ट्रोल (एल डी एल कोलेस्ट्रोल /लो डेंसिटी लिपो -प्रोटीन कोलेस्ट्रोल )का उच्च स्तर बहुत ज्यादा पाया जाता है .ऐसे में हृद वाहिकीय -रोगों की दस्तक जल्दी शुरू हो जाती है .दस साला बच्चों में भी इसका रोग निदान (डायग्नोसिस )हो सकती है .ऐसे में रोग की जल्दी शिनाख्त बेहतर प्रोग्नोसिस की चाबी है ।
मेदान्ता हार्ट इंस्टिट्यूट के हृद -रोगों के माहिर डॉ .कार्तिकेय भार्गव कहतें हैं :आजकल २४ साला यूथ को भी हार्ट अटेक पड़ते देखा जा सकता है सुना भी बहुतों ने होगा .(मैं इक ऐसे रोगी को जानता हूँ जिसे हार्ट अटेक और ब्रेन अटेक दोनों हो चुकें हैं पांच साल के अंतर से .फिलवक्त उसकी उम्र ३१ बरस है ।).
कुछ मामलों में इसके पीछे ऍफ़ एच का भी हाथ हो सकता है .हालाकि जीवन शैली से जुडी खुराफातें इसके पीछे ज्यादा दिखलाई देंगी .मसलन कुछ लोग कम उम्र में ड्रग्स (नशीली दवाओं के )के आदि हो जातें हैं .राहुल महाजन फेक्टर से ग्रस्त हो जातें हैं ।
वैसे भी भारतीय 'कोरोनरी -आर्ट -री दीजीज़ /परिह्रिदय धमनी रोग )की चपेट में पश्चिम के लोगों से दस साल पहले ही आजातें हैं .इसी आनुवंशिक पूर्वपरता(जेनेटिक प्री -डिस -पोजीशन ) की वजह से संभवतया रोग भी उग्रतर रहता है .शहरी जीवन शैली की गिरावट इसे बद से बदतर बना रही है ।
यही वजह है दिल्ली जैसे महानगर में हृद रोग मधुमेह और कैंसर को पछाड़ कर सबसे ज्यादा मारक नंबर वन किलर बन गए हैं ।
स्मोकिंग ,साइकोलोजिकल स्ट्रेस ,डेस्क वर्क बैठे बैठे करते रहने की आदत ,सिदेंतरी लाइफ स्टाइल यानी कसरत का दैनिकी से गायब होना ,पान मसाला इक चंडाल चौकड़ी की तरह युवा भीड़ को घेरे हुए है .ऐसे में पारिवारिक इतिहास हृद रोगों को बदतरीन बना देता है ।

जानिएगा हाले दिल ?

भले ग्रोथ रेट्स रिसकर नीचे नहीं पहुँच रही हो हाले दिल यकसां है भारत के आम औ ख़ास का अब .उपभोक्तावाद के फैलाव के साथ अब दिल के रोग शहरी अमीरों के टोटके नहीं रह गए हैं शहरी गरीबों ,गाँवों और कस्बों तक पहुँच गए हैं अंकिल चिप्स के साथ -साथ .यहाँ अंकल चिप्स सिर्फ जंक फ़ूड का प्रतीक भर हैं ।
किशोरपन का मोटापा ,कसरत का जीवन से ऐसे गायब होना जैसे गधे के सिर से सींग तथा अन -हेल्दी फ़ूड हेबिट्स ,भ्रष्ट होती जीवन शैलियाँ आम औ ख़ास को हृद रोगों के करीब ला रहीं हैं ।
कोर्पोरेट (निगमों )की सीढियां चढ़ते ३०-४० साला लोग अब हार्ट अटेक की चपेट में आने लगें हैं .हृद रोगों के ३५-५० फीसद मामले अब ५० साल से कम उम्र के लोगों को ही असर ग्रस्त कर रहें हैं जबकी पश्चिम में हृद रोगों की चपेट में आने की औसत उम्र ५५ साल ही है ।
अब १४ साला किशोर भीहाई ब्लड प्रेशर की जद/हद में आ रहें हैं यही कहना है डॉ के .के .सेठी ,देहली हार्ट एंड लंग इंस्टिट्यूट ) का।बकौल आपके ज्यादर बच्चे अब टी वी देखते अंकल चिप्स (आलू चिप्पड़) खाते खातेहोम वर्क करते बड़े हो रहें हैं .कसरत रूटीन से नदारद है .बिग ट -मीज़ भी अब आम है बच्चों में .इसी जीवन शैली के चलते चालीस के होते होते हृद रोग दस्तक दे देतें हैं ।
बकौल डॉ .सेठी अब रिक्शा चलाने वाले दिहाड़ीदार भी हार्ट अटेक की चपेट में आ रहें हैं .सड़क के किनारे का अन -हेल्दी आयल में पकाया खाना इसकी वजह बन रहा है .जलेबी और कचौड़ी वनस्पति तेल में न सिर्फ तैयार की जाती है .बार बार गरम(री -हीट) भी की जाती है.आक्सीकृत होकर ये दोनों चीज़ें शरीर में खतरनाक ट्रांस -फैटी एसिड्स बनातीं हैं जो हृद रोगों की वजह बनता है । जंक फ़ूड का चलन कंज्यूमर प्राइज़ इंडेक्स की तरह बढ़ रहा है .
हृद रोगों के लिए मुख्य कुसूरवार स्मोकिंग की लत है .औरतों में स्मोकिंग और डायबिटीज़ की दुर्भि -संधि डायबिटीज़ की नंबर १ वजह बन रही है .(माफ़ कीजिये औरतें वह भी हैं जो बीडी पीतीं हैं हमारे आपके घरों में माई /मैड कहलातीं हैं /मजूरनें हैं /दिन भर मेहनत मजूरी करतीं हैं,हृद रोग इन्हें भी नहीं छोड़ रहा है )।
'टोबेको कंट्रोल 'जर्नल में प्रकाशित इक फिनलैंड के अध्ययन के मुताबिक़ चालीस साल से कम उम्र के धूम्र्पानियों के लिए नॉन -स्मोकर्स की बनिस्पत हार्ट अटेक का ख़तरा ५ गुना बढा हुआ रहता है .इन स्मोकर्स में से हार्ट अटेक जिन्हें पड़ चुका है उनमे इसकी मुख्य वजह धूम्रपान ही बना है .अलावा इसके ४० के नीचे जिन लोगों को दिल का दौरा इक बार पड़ चुका हैउनमे से ८० %स्मोकर्स थे .स्मोकिंग एकल रिस्क फेक्टर बनकर उभरा है इस अध्ययन में ।
पोषण विज्ञान तथा खुराक की माहिर डॉ -शुभा सभरवाल परामर्श देतीं हैं बाहर का खाना(केरी होम )और घर से बाहर खाना हफ्ते में इक बार से ज्यादा सेहत के लिए ठीक नहीं है . सलाद का अधिकाधिक स्तेमाल कीजिये .यह शरीर से विषाक्त पदार्थों की निकासी में सहायक रहता है .खाद्य रेशे रोजमर्रा की खुराक में शामिल कीजिये .भूसी और चौकर ,गेंहू का आटा चौकर युक्त अच्छे हैं ।
खुराक में रेड मीट और एग यलो कम कीजिये (कोलेस्ट्रोल से भरें हैं दोनों ).दिल की जो हिफाज़त करे ऐसा खाना खाइए .परिष्कृत तेलों की जगह सरसों का तेल (कच्ची धानी का )और ओलिव आयल स्तेमाल कीजिये ।


व्हाट इज ड्राई आइस ?

व्हाट इज ड्राई -आइस ?
सोलिड कार्बन -डायोक्साइड को ड्राई आइस भी कहा जाता है .इसका स्तेमाल खाद्य सामिग्री को निम्न ताप पर परिरक्षित करके उसकी भंडारण अवधि बढाने के लिए किया जाता है .कोल्ड चैन को बनाए रखना ज़रूरी होता है कुछ दवाओं और टीकों के मामले मेंभी .इंसुलिन को भी ४ सेल्सियस तापमान पर बनाए रखना पड़ता है .ताकि उसकी प्रभ -विष्णुता ,असर्कारिता बनी रहे .लेकिन इसके लिए घरेलू फ्रिज पर्याप्त रहता है .
थियेटर्स में विशेष प्रभाव (स्पेशल इफेक्ट्स )पैदा करने के लिए भी ड्राई -आइस का स्तेमाल किया जाता है ।
कोल्ड सोलिड कार्बन -डायोक्साइड जिसे शून्य से ७८ .५सेल्सियस /११० फारेन्हाईट)नीचे यानी (-७८.5/-११०)पर रखा गया हो को ड्राई -आइस कहा जाता है .
ड्राई आइस का स्तेमाल रेफ्रिजरेशन के अलावा कृत्रिम कोहरा /धुंध जैसा प्रभाव पैदा करने में किया जाता है .

रिसेश्निश्ता कौन हैं ?

व्हाट इज ए रेसेश्निश्ता ?
इस शब्द समुच्चय का स्तेमाल पहले पहल क्रिसमस के पर्व पर दिसंबर माह २०१० में तब हुआ जब इक छोर पर विश्व आर्थिक मंदी की मार झेल रहा था ,दूसरी और कुछ औरतें अपनी औकात से बाहर निकल कर बे -इन्तहा खरीद फरोख्त में मुब्तिला थीं .हाथ न मुठ्ठी ,फडफडा उठ्ठी .पर्स खाली और शोपिंग का उन्माद हावी वाली उक्ति चरितार्थ कर रहीं थीं इस दौर में कुछ औरतें .इन्हीं के लिए 'रेसेश्निश्ता शब्द प्रयोग चलन में आया .

सगोत्रता विश्लेषण क्या है ?

व्हाट इज किन्शिप एनेलिसिस ?व्हेन एंड व्हाई आईटी इज निडिद?
इक परिवार के सदस्यों में परस्पर सम्बन्ध को किन्शिप या सगोत्रता कहतें हैं .इनमे आनुवंशिक (जेनेटिक प्रोफाइल का समेल होना )साम्य भी होता है ।
वह व्यक्ति जो हाल ही में शरीर छोड़ चुका है ,अभी अभी दिवंगत हुआ है उस स्थिति में जब उसके कोई भी अवशेष ,अपराध सम्बन्धी सूत्र ,डॉक्टरी शव परीक्षा सम्बन्धी नमूने उपलब्ध न हो तब उसकी वंश -वेळ का पता लगाने के लिए 'किन्शिप एनेलेसिस 'का ही सहारा रह जाता है .इसके तहत उन डी एन ए मार्कर्स का पता लगाया जाता है जो इक वंशावली में कोमन रहतें हैं ।
दिवंगत की जेनेटिक प्रोफाइल (जीवन खण्डों ,जीवन इकाइयों ,जींस का खाका ) की पुनर -संरचना /पुनर -निर्माण किया जाता है उसके जीवित सम्बन्धियों से नमूने जुटाकर .ताकि पेतार्नीति को सुनिश्चित किया जा सके .यही पेतार्निती टेस्टिंग की बुनियाद है .पितृत्व परीक्षण (पट' नटी टेस्टिंग ) इसी पर आधारित होता है .

जागर्नौट्स कौन हैं ?

हू आर जागर्नौट्स ?
जागन(जार्गों ) व्यवसाय -विशेष से जुड़े व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त विशिष्ट या तकनीकी शब्द हैं .इन्हें आम लोग नहीं समझ पाते .उदाहरण के लिए मेडिकल जार्गों ,साइंटिफिक /लीगल /कंप्यूटर जार्गों ।
जार्गोनौट्स वो तमाम लोग हैं जो इस ब्यूरोक्रेटिक शब्दावली का प्रयोग करते हैं .उन लोगों को भी जार्गोनौट्स कहा जा सकता है जो रोजमर्रा की बात चीत में भी इस विशिष्ट शब्दावली का जमके स्तेमाल करतें हैं .लेखन में भी कुछ लोग इन शब्दों को यूज़ कर रहें हैं .वे भी जार्गोनौट्स कहलायेंगें .जार्गोनौट्स वह व्यक्ति भी कहलायेगा जिसे रोज़ बा रोज़ साहित्य में प्रयुक्त विशेष शब्दावली को समझने का कौशल और महारत हासिल है ।
ऐसी ही विशिष्ट शब्दावली गढ़ने वाला तराशने वाला शब्दों का महारती वागीश्वर भी जागरोनौट कहलायेगा .

हेल्थ टिप्स .

जब आप कंप्यूटर पर काम करते हैं तब आँखों को किसी भी प्रकार के दवाब स्त्रैनिंग से बचाए रखने के लिए मानिटर का एंगिल इस प्रकार एडजस्ट करें,समायोजित करें ,की दूसरी कोम्पीतिंग रोशनियाँ उस पर न पड़ें थोड़े से परिवर्तन के साथ यह आसानी हो जाएगा ।
कब्ज़ से बचाव के लिए १५-२० तुलसी की पत्तियाँ(बेसिल लीव्ज़ )ग्राउंड करके इनका सत/अर्क /जूस खाली पेट सुबह सवेरे पी जाएँ कब्ज़ में राहत मिलेगी .दिनमे दो बार ऐसा करें ,जब आपका पेट अपेक्षया खालीभी हो.

व्हाट इज मारकेटोपिया ?

मार्केट और यूटोपिया का मिश्र है 'मार्केटोपिया '.इक शब्द समुच्चय है जो मार्केट और यूटोपिया का जमा जोड़ है ।
पहले यूटोपिया को लेतें हैं :यूटोपिया इक किताब का शीर्षक है जिसमे थोमस मूर इक ऐसे काल्पनिक स्थान ,कल्पना लोक की चर्चा करतें हैं ,इक ऐसी अवस्था का बखान करतें हैं जहां हरेक चीज़ इक दम से परफेक्ट है .परिपूर्ण ,दोषरहित है .यहाँ हर कोई समस्वर इक लयताल हार्मनी में जीता है ।
मार्केट का अर्थ तो आप जानते ही हैं .खासकर उस दौर में जब सब कुछ बाज़ार की ताकतों के ही हाथों में है ,व्यक्ति की अस्मिता भी ।
मार्केटोपिया शब्द अरिजोना राज्य के प्रोफ़ेसर टेरेंस बाल के बौद्धिक कौशल की उपज है .यह इक ऐसी दुनिया की शिनाख्त ,इक ऐसे लोक का रेखांकन करता है उस पर बौद्धिक फब्तियां ,व्यंग्य -पूर्ण टिप्पणियाँ करता है जिसमे सामाजिक दायित्व पूरी तरह समाप्त हो जातें हैं ,जिसमे तमाम जन सेवाओं का निजीकरण हो चुका होता है .सब कुछ बाजारू ताकतों से नियंत्रित होता है ।
इस कल्पना लोक में जीवन की गुणवता बहुत ही निचले दर्जे की है ,डिस्तोपिया की स्थिति हैं यहाँ जो यूटोपिया का इक दम से विलोम है यानी सब कुछ इतना निचले दर्जे का है यहाँ जितना की हो सकता है बद से बदतरीन है ।
मार्केटोपिया का सबसे बड़ा दुर्गुण फेयरनेस का उल्लंघन है .औचित्य और निष्पक्षता इस लोक में नहीं है ।
वे तमाम मार्केतोपियंस जिन्हें आर्थिक तंगी के चलते स्वास्थ्य सेवायें शिक्षा आदि मयस्सर नहीं हैं ,उनकी पहुँच के बाहर पोलिस प्रोटेक्शन भी बना रहता है ,जीवन की इतर ज़रूरीयात भी .सोसल गुड्स में भी उनकी समान भागेदारी नहीं रहती है .बात साफ़ है मार्केटोपिया में बाज़ार की पौ बारह है व्यक्ति की उपेक्षा ।

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

कैंसर की जड़ पर प्रहार के लिए एन्तिबोद्य के रूप में 'स्मार्ट बोम "

एंटी -बॉडी एज 'स्मार्ट बोम 'टू फाईट कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी ,१९ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के साइंसदानों की इक संयुक्त टीम ने इक ऐसी एंटी -बॉडी तैयार कर ली है जिसका स्तेमाल कैंसर की मूल वजह पर प्रहार के लिए इक 'मेडिकल स्मार्ट बम 'के बतौर किया जासकेगा ।
कलम कोशाओं यानी स्टेम सेल्स को ही नष्ट कर्देगी यह एंटी -बॉडी । यही कैंसर कलम कोशायें कैसर को पनपाती हैं .
इस प्रयास में ऑस्ट्रेलिया की डाकिन यूनिवर्सिटी के संग साथ इक अंतर -राष्ट्रीय प्रोजेक्ट के तहत इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बेंगलोर सहयोग कर रहा है .इस प्रोजेक्ट में बर्वों हेल्थ एंड्रयू लव कैंसर सेंटर तथा कम जेनेक्स फार्मा -सीतिकल्स भी शामिल हैं ।
इस टीम ने दुनिया का पहला 'आर एन ए अप्तामर' तैयार किया है .वास्तव में यह इक रासायनिक एंटी -बॉडी है जो इक निर्देशित मिसायल की मानिंद काम करती है .यह कैंसर स्टेम सेल्स को ढूंढ निकाल उनके साथ नथ्थी हो जाती है .कैंसर साइंस जर्नल ने इस शोध को प्रकाशित किया है ।
इस एप्तामर में इक खूबी यह भी है यह स्टेम सेल्स तक दवा सीधे सीधे पहुंचा सकती है .असरकारी कैंसर इमेजिंग प्रणाली के विकास को इसने सुगम बनाने का रास्ता साफ़ कर दिया है .इससे कैंसर का जल्दी से जल्दी पता चल जाएगा .इससे इलाज़ भी पुख्ता तौर पर कामयाबी के साथ हो सकेगा ।जल्दी शुरू हो सकेगा .
कैंसर के पुख्ता इलाज़ के लिए कैंसर स्टेम सेल्स की शिनाख्त सटीक और समय रहते हो जानी चाहिए .स्मार्ट बम इसे आसान बनाता है .

स्वाद बरकरार वाईट का, गुण पैदा किये ब्राउन राईस के ....

नाव, वाईट राईस व्हिच इज एज हेल्दी एज ब्राउन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,फरवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
साइंसदानों ने वाईट राईस की इक ऐसी किस्म विकसित की है जिसमे स्वाद वाईट का लेकिन गुण ब्राउन राईस के हैं .हेल्दी वाईट राईस है यह ।
माहिरों ने इसे तैयार करने में मिलिंग प्रोसेस में संशोधन किया है .परिष्कृत किया है इस प्रक्रिया को .चावल की यह किस्म दिल के लिए मुफीद बतलाई जा रही है .आर्त्रीज़ को संकरा होने से बचाए रखती है यह संशोधित वाईट राईस वेरायटी .ब्लड प्रेशर के विनियमन में भी इसे कारगर बतलाया जा रहा है ।
न इसे देर तक चबाना पड़ता है न यह सख्त है .स्वाद गंध रूप सबकुछ पूर्व -वत
"इन दी हीटली वाईट राईस ,दी 'सब -अलेयुरों लेयर '-दी थिन स्किन रेस्पोंसिबिल दी हार्ट बेनिफिट्स -इज नोट शेव्ड ऑफ़ at दी एंड ऑफ़ दी प्रोसेस ,व्हेन दी मिल्ड ग्रेन इज पोलिश्ड टू ए शाइन.,as is done in regular white rice .

अस्थि बढ़वार की कुंजी इक कुदरती प्रोटीन के हाथों में हैं .....

प्रोटीन 'की' टू बोन फोरमेशन आइदेंती -फाइड(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।

आदिनांक अस्थि क्षय (ओस्टियो -पोरोसिस )के इलाज़ के बतौर ऐसी दवाएं ही दी जाती रहीं हैं जो अस्थि क्षय (लोस ऑफ़ बोन मॉस )को कम करती हैं या कम करने का प्रयास करतीं हैं ।

अब ऑस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने गत इक दशक की रिसर्च के बाद इक ऐसी प्रोटीन पर नजर टिकाई है जिसे हमारा शरीरप्रति -रक्षा तंत्र तथा कलम कोशायें (स्टेम सेल्स ) कुदरती तौर पर बनातीं हैं .

इंटर -फेरन गामा नाम की यह प्रोटीन हिपाताइतिस-सी के इलाज़ में आजमाई जाती रही है .अब पता चला है यह अस्थि क्षय को थाम कर अश्थी बढ़वार को प्रेरित करती है .इट इन्क्रीजीज़ बोन फोरमेशन .

अपने अध्ययन में रिसर्चरों ने 'मिनोपोज़ल रोदेंट्स 'इनार्फेरों गामा की छोटी खुराकें मुहैया करवाईं ।
लो दोज़िज़ ऑफ़ इन्तेर्फेरों गामा वर गिविन टू दी स्माल मेमल्स .परीक्षणों से पता चला माइस के अस्थि द्रव्यमान (बोन मॉस )में इजाफा हो गया है .

काया से बाहर निकल सूक्ष्म शरीर की बातें दिमागी इन्द्रिय बोध में खलल मात्र है ?

कन्फ्यूज़न बिहाइंड आउट ऑफ़ बॉडी एक्सपीरिएंस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
क्या 'आउट ऑफ़ बॉडी एक्सपीरिएंस 'इक वास्तविक अनुभव है ?जिसमे सूक्ष्म शरीर अपने ही स्थूल शरीर से अलग हो निरपेक्ष भाव से उसे निहारता है इक जर्नलिस्ट की तरह .या फिर यह दिमागी संभ्रम मात्र है ?दो विपरीत इन्द्रिय बोध से पैदा कन्फ्यूज़न है ?
जो हो यह स्वतन्त्र रिसर्च का विषय कुछ के लिए बना हुआ है .इतिहास के झरोखे से २१ वीं शती तक लोग बहु विध अपनी स्थूल काया से अलहदा निकल मौत के मुह से वापस स्थूल शरीर में लौट आने के अनुभव सुनातें हैं .कुछ रिसर्चर ऐसे लोगों के अनेक ब्रेन स्केन उतार चुकें हैं ।
बेशक कितने ही इन अनुभवों को आत्मन /आत्मा के अस्तित्व से जोड़ते रहें हैं .तो कुछ परलोक की सैर से ।
अब यूनिवर्सिटी ऑफ़ जिनेवा की इक रिसर्च टीम इसे दिमागी कन्फ्यूज़न बतला रही है जिसकी वजह सेन्स पर्सेप्सन में परस्पर विरोध बतलाया जारहा है .इन्द्रिय बोध में परस्पर नज़रिए का फर्क बतलाया जा रहा है .

हेल्थ टिप्स .

फलों का चयन करते समय :कस्टर्ड एपिल (शरीफा ),चीकू ,अंगूर ,आम ,केला तथा मस्क- मेलन का स्तेमाल ज्यादा न करें .कभी कभार ठीक है इन सूगरी(हाई इन सुगर कंटेंट )फलों का स्तेमाल ।
जहां तक हो मिन्स्द मीटतैयार (कीमा ) न खरीदें इसमें वसा आनुपातिक तौर पर ज्यादा हो सकती है जिसे आपपकाते वक्त अलग नहीं कर सकते .चिकिन भी स्किन साफ़ करवा कर खरीदिये ।
डीप फ्रीज़र में रखे ड्रेस्ड चिकिन में लो टेम्प्रेचर बेक्टीरिया हो सकतें हैं .मैं ऐसे कई प्रौढ़ लोगों को जानता हूँ जो इसे खाने के बाद डिसेंट्री की चपेट में आजातें हैं .

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

ध्यान कैसे फायदा पहुंचाता है मधुमेह रोगियों को ?

स्ट्रेस हारमोनो के स्राव को कम करवाता है ध्यान .एड्रीनेलिन और कोर्तिसोल की लोडिंग /फ्लडिंग /बेतरह बढ़ने को रोक सकता है नियमित ध्यान .स्रावी तंत्र (इंडो -क्रा -इन सिस्टम )का विनियमन (रेग्युलेट करता है ध्यान )करता है मेडिटेशन का अभ्यास .स्ट्रेस हारमोन जब कम हो जातें हैं ,ब्लड सुगर को बढाने वाला कारक ,ट्रिगर भी समाप्त होजाता है फलतय रक्त शर्करा नियंत्रण में आजाती है ।
ध्यान मष्तिष्क को भी कूल रखता है शांत प्रशांत ,उत्तेजना से परे रखता है .सोच को सकारात्मक बनाता है ध्यान .मरीज़ का भाव जगत उसके विवेक जगत पर हावी नहीं हो पाता है ।अपने आप पर आपका नियंतरण हो जाता है आप खुद को अपने आत्म स्वरूप /निजता को पहचानने लगतें हैं .खुद से मिलतें हैं आप .बाखबर रहतें हैं अपने "स्व" से.अपने 'होने 'से 'इज्नेस' से .
विशेष :मैंने राज योग की दीक्षा ब्रह्मा -कुमारीज़ विश्विद्यालय से ग्रहण की है .सकारात्मक रहना भी वहीँ से सीखा .माउंट आबू में कई राष्ट्री अंतर -राष्ट्री सेमीनार किये हैं ,नियमित अपने रोहतक प्रवास के दौरान क्लासिज़ की हैं .ब्रह्मा कुमारीज़ विश्विद्यालय में ."ध्यान " कहीं से भी सीखिए ,हर हाल अच्छा है .

क्या मधुमेह में तनाव खानपान की आदतों को भी असरग्रस्त करता है ...

जी हाँ !रोग जैसे जैसे पुराना पड़ता जाता है व्यक्ति ला -परवाह होता जाता है .उसका भावात्मक मष्तिष्क ,विवेक मष्तिष्क को अपने अधीन करलेता है .अदबदाकर मरीज़ बद परहेजी करने लगता है .कुछ नहीं होता ,अब और क्या होना है उसका फलसफा सा बनने लगता है .स्ट्रेस ईटिंग करने लगता है व्यक्ति जान बूझकर अनाप शनाप खाना ,सेहत को ,मधुमेह में नुकसान देने वाला खाना खाने लगता है .ऐसे में राजयोग ,ध्यान ,मेडिटेशन की किसी भी शैली की ज़रुरत पडती है .ताकि रागात्मक मन ,भावजगत, तर्क बुद्धि पर हावी न हो ।
मधुमेह रोग में नियमित ध्यान ज़रूरी है ,सुबह शाम बस दस मिनिट .

कैसे बचे मधुमेह रोगी तनाव से ?(ज़ारी ...)

गत पोस्ट से आगे ....
अपेक्षाएं बनती हैं तनाव का सबब .गीत है :मन रे तू काहे न धीर धरे ..(फिल्म: चित्र लेखा )इसी की इक कड़ी है :'उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभाये .....'फलसफा बनाइये इसे जीवन का ।क्यों अपेक्षाओं में जीते हैं आप .व्यक्ति को जो आपके साथ है आपका साथी है उसकी सीमाओं में अपनाना सीखिए ,संभावनाओं में नहीं .
और यह भी :मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया .....(फिल्म : हमदोनो )इसी की आगे की इक कड़ी है :जो मिलगया उसी को मुकद्दर समझ लिया ,जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया .प्रेरणा आदमी कहीं से ले सकता है .तनाव की काट है :पोजिटिव थिंकिंग और तनाव का पल्लवन करती है निगेटिव थिंकिंग ,नकारात्मक सोच .पोजिटिव रहिये तनाव से बचिए .मुश्किल नहीं है .राज योग में बैठिये .

कैसे बचें मधुमेह रोगी तनाव से ?

मूल मन्त्र है :जब जब जो जो होना है ,तब तब सो सो होता है .'तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय ,अनहोनी होनी नहीं होनी होय सो होय .फिर जो कुछ होता है ,हुआ है उसे हम बदल भी नहीं सकते .वास्तिवकता को बदला नहीं जा सकता इसी लिए इसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए इसी में भला है .इक और दर्शन है :जो भी होता है अच्छा ही होता है ,भले ही आज वह हमारे अनुरूप न दिखे लगे ,दीर्घावधि में उसके भी अच्छे नतीजे निकलने वाले हैं .सकारात्मक सोच ज़रूरी है .बहुत कुछ ऐसा होता है जो हमारे अनुरूप नहीं होता है .लेकिन होता है .विवेक से उसे ग्राहिय बनाना चाहिए ।
विवेकी मस्तिष्क को समझाइये जो होना था हो चुका .बाहरी दवाब के कारण हुआ .इसे पहचानिए ,इससे बचिए .खुद को बदलिए .औरों को आप नहीं बदल सकते ।और फिर सब दिन इक जैसे नहीं होते .केवल परिवर्तन ही शाश्वत है .
भावात्मक मस्तिष्क ,दिमाग का भाव जगत भी इक नहीं बारहा आहत होता है ."मुश्किलें मुझपर पड़ी इतनी की आसाँ हो गईं "इक फलसफा यह है और दूसरा :पूछना है गर्दिशे ऐयाम से ,अरे हम भी बैठेंगे कभी आराम से ।
और इक नज़रिया यह भी है :जाम को टकरा रहा हूँ जाम से ,अरे खेलता हूँ गर्दिशे ऐयाम से ,और उनका गम ,उनका तसव्वुर उनकी याद ,अरे कट रही है ,ज़िन्दगी आराम से .

तनाव के दौरान क्या ब्लड ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ जाता है ?क्यों ?

तनाव के दौरान स्ट्रेस हारमोनों का स्राव हमारा स्रावी तंत्र सामान्य से ज्यादा करने लगता है .स्ट्रेस हारमोन कोर्टिसोलतथा एड्रीनेलिन ज्यादा रिश्ता है .यह ब्लड ग्लूकोज़ के स्तर को बढा देता है ।
इसीलिए मधुमेह ग्रस्त व्यक्ति के लिए खासकर रोग के पुराना पड़ जाने पर तनाव का प्रबंधन और भी ज्यादा ज़रूरी हो जाता है ।
तनाव इक ट्रिगर का काम करता है ब्लड सुगर को स्पाइक करने में .आप चाहें तो इसे स्ट्रेस बोर्न डायबिटीज़ (तनाव जन्य मधुमेह भी कह सकतें हैं ।).
आम तौर पर सामान्य अवस्था में भोजन से पहले ब्लड सुगर का स्तर ७० -१०० मिलीग्राम %प्रति -डेसीलिटर तथा बाद भोजन १४० % से कम रहता है .तनाव के बाद यह दोनों मान बढ़ जातें हैं .इसलिए कहा जासकता है तनाव रक्त शर्करा का स्तर बढाने वाला ज्ञात कारक है एजेंट है ।
चिंता नौकरी की ,काम के शिफ्टों में लगातार बदलते वाहियात घंटे ,नींद का अभाव ,सर्कादियन रिदम (जैव घडी का गड़बडानायुवा भीड़ को भी मधुमेह की कगार पर ले आरहा है .

जिन लोगों का मधुमेह रोग दवा से नियंत्रित है क्या उन्हें भी ब्लड सुगर की जांच करवानी चाहिए ?

जी हाँ क्योंकि यह उस समय की दिनचर्या /खान- पान दवा से ही नियंत्रित है .चूक होते देर नहीं लगती .इसलिए पखवाड़े में इक मर्तबा या फिर माह में इक बार ज़रूर फास्टिंग और पोस्ट प्रेंदियलब्लड सुगर (नाश्ते के बाद )जांच ज़रूर करवातें रहें ।
रोग पुराना हो जाने ,बेहिसाब बे -काबू रहने लगे ,घर में ही ग्लुको - मीटर रखें ,अपने डायबेतो -लोजिस्ट के कहे अनुसार जांच करते रहें .सभी ग्लुको -मीटर सटीक जांच देते हैं इनपर आप भरोसा कर सकतें हैं .

शोध की खिड़की से :कोमन कोल्ड में जिंक सम्पूरण की भूमिका

पोस्ट ग्रेज्युएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च .चंडीगढ़के रिसर्चरों ने अभी हाल ही में १५ ट्रायल्स का विश्लेषण किया है जिसमे १३६० कोमन कोल्ड के असर में आये ऐसे लोग शामिल थे जिन्हें (सभी को नहीं )जिंक सप्लीमेंट दिया गया था .पता चला इनमे से जिन्हें संक्रमण लगते ही पहले २४ घंटों में ही जिंक सम्पूरण दे दिया गया तथा जिन्होंने ने इसे कमसे कम पांच दिनों तक लगातार लिया उनके लक्षणों की उग्रता में कमी दर्ज़ की गई बरक्स उनके जिन्हें मात्र प्लेसिबो पर ही रखा गया था .इनके सप्ताह के भीतर ही संक्रमण मुक्त होने की संभावना भी ज्यादा रही ।
इस रिव्यू से कोमन कोल्ड में जिंक सम्पूरण की इलाज़ के बतौर भूमिका इक बार फिर सामने आई है यह कहना है शोध को नेत्रित्व प्रदान करने वाली रिसर्चर मीनू सिंह का .यह रिव्यू कोच्राने लाइब्रेरी में प्रकाशित हुआ है ।
देखना यह भी रुचिकर होगा ,क्या जिंक सप्लीमेंट्स उन अस्मा (दमा ग्रस्त )मरीजों के लक्षणों की उग्रता को भी कम कर सकता है जो कोमन कोल्ड की चपेट में आगएं हैं ।
साइंसदानों के मुताबिक़ सालभर में बालिग़ लोग दो से चार मर्तबा ,बच्चे साल भर में १० दफा इस संक्रमण की चपेट में आजातें हैं .इससे बचने के लिए विशेष कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके विषाणु आम होते हुए भी विविधता लिए हुए हैं .कितनी स्ट्रेंन हैं ?स्ट्रेन ही स्ट्रेन हैं कोई गिने तो .

सौर ज्वालाओं ने चीन में शोर्ट वेव रेडिओ संचार को सर्ग्रस्त किया ...

सोलर फ्लेअर्स ?
सोलर फ्लेअर्स आर ए सडन इरप्शन ऑफ़ ए हाई एनर्जी हाइड्रोजन गैस फ्रॉम दी सर्फेस ऑफ़ सन ,असोशियेतिद विद सन स्पोट्स ।
सौर ज्वालाओं या सौर लपटों ने जो उच्च ऊर्जा प्रोटोन बहुल होतें हैं दक्षिणी चीन में लघु तरंग रेडिओ -प्रसारण को असर ग्रस्त किया है .यह कहना है चीन के मौसम प्राधिकरण (चाइना मीटियोरो -लोजिकल एडमिनिस्ट्रेशन )का ।
इस सौर ज्वाला (सोलर फ्लेयर )के संग साथ इक चुम्बकीय तूफ़ान(मेग्नेटिक स्टोर्म ) भी उठा था जिसने शोर्ट वेव रेडिओ -नेटवर्क को असर ग्रस्त किया था ।
इसे चीन के मौसम सम्बन्धी प्राधिकरण के अन्तरिक्ष मौसम मानी -तरन केंद्र ने स्थानीय समय के अनुसार सुबह 0९.५६ मिनिट (मंगलवार के दिन )दर्ज़ किया था .इसे एक्स २.२ -क्लास सोलर फ्लेअर बतलाया गया है ।
इसने आकस्मिक तौर पर आयनमंडल में हलचल (विक्षोभ )पैदा किया था .इसी से दक्षिणी चीन के आकाश के ऊपर शोर्ट वेव रेडिओ नेट वर्क असर ग्रस्त हुआ था .

चिकिनगुनिया के इलाज़ में प्रगति की ओर.....

साइंटिस्ट ए स्टेप क्लोज़र टू फाइंडिंग चिकिनगुनिया क्योर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी १७ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
साइंसदान इक ख़ास किस्म के मच्छर के काटने से पैदा होने वाली विषाणु जन्य बीमारी के समाधान के नज़दीक पहुच गए हैं .आदिनांक इसका न कोई विशिष्ट इलाज़ हमारे पास था न टीका ।
डेंगू जैसे लक्षण ही इस हाड तोड़ बीमारी में भी दिखलाई देतें हैं मसलन ज्वर ,जोड़ों का लंबा चलने वाला दर्द ,चिल्स (सर्दी से पैदा कंप )मचली,उबकाई आना आदि .दस दिनों तक बने रह सकतें हैं ये लक्षण .जोड़ों की पीड़ा हफ़्तों क्या महीनों भी बनी रह सकती है ।
अब सिंगापुर और फ्रांस के तकरीबन इक दर्ज़न साइंसदानों की इक अंतर -राष्ट्री टीम ने दो मोनोक्लोनल एंटी बॉडीज का पता लगाया है .इन्हें एकल कोशा से ही विकसित किया गया है .ये चिकिनगुनिया की अनेक स्त्रैंस को निष्क्रिय कर सकतीं हैं .बीमारी जो एडेस(एडीज )मच्छरों के हमें काटने से फैलती है .डेंगू से मिलती जुलती है अपने लक्षणों में .

फुट ऑडर से निजात दिलवाएगी यह इलेक्त्रोनी युक्ति ..

ए डिवाइस टू टेक स्टिंक आउट ऑफ़ योर शूज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी १८ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
शू निगम 'शू केयर इन्नोवेशन 'ने फुट ऑडर के चलते शर्मिंदगी उठाने वाले एथलीट्स एवं अन्यों के लिए 'स्टेरी -शू 'नाम की इक ऐसी गेजेट बाज़ार में उतारी है जो 'शूज को स्तेरिलाइज़'विसंक्रमित जीवाणु मुक्त कर्देगी ,उन बेक्तीरियाज़ को परा -बैंगनी विकिरण की मदद्से नष्ट कर देगी जो भयंकर दुर्गन्ध की वजह बनतें हैं ।
क्लीनिकली इस बात की पुष्टि हो चुकी है ,'स्टेरी -शू सेनिताइज़र'जूतों में पसरी हुई माइक्रो -ओर्गेनिज्म (सूक्ष्म जैविक संगठन ) को अल्ट्रा -वाय्लिट रेडियेशन डालकर नष्ट करदेती है .जूतों में पनपते बेक्टीरिया को मारने का यह रसायन -मुक्त ज़रिया है .इसी के साथ शू ऑडर घट जाता है ।
रिसर्चरों के अनुसार हमारे प्रत्येक पैर से जूते में औसतन २५० मिलीटर पसीना चूता है ,रिश्ता है जूतों में .४५ मिनिट में स्टेरी शू इस जीवाणु का ९९.९ %खात्मा करदेता है ।
वे तामाम खिलाड़ी जो एथलीट्स फुट ,टो -नैल फंगस ,फुट ऑडर का बुरी तरह शिकार हो जातें हैं .स्मेली ट्रेनर्स अब राहत की सांस ले सकतें हैं ।
शू ट्री की तरह दिखने वाई इस युक्ति को जूतों के अन्दर रखना होता है .