मंगलवार, 1 सितंबर 2009

दादी माँ के आजमाए हुए नुस्खे में तरमीम ?

साइलिअम सीड्स यानी इसबगोल के पके सुखाये बीज पेचिस की मुफीद देसी दवारही है -नानी हमारी सिंग्रेह्नी से ग्रस्त रहती थी ,पेचिस होने पर हमें भी दही या छाछ के साथ इसबगोल की भूसी खाने को मिलती थी ,कब्ज़ होने पर यही इसब गोल गरम दूध के साथ आजमाई जाती थी ,कहतें हैं ,चिकित्सा विद यह खून में से चर्बी को कम करती है .पश्चिम में ब्रेकफास्ट सीरियल (नाश्ते की मेज़ पर )इसका डेरा है ।
साइलिअम पादप फ्रांस ,स्पेन ,भारत में उगाया जाता है .भारत इसका निर्यातक है ।
आंतों से जलीय अंश (पानी सोख कर )यह स्टूल को बल्क(स्थूलता )औ मृदु (साफ्ट )बानाता है .बोवेल मोवमेंट में मदद गार है .साइलिअम प्लांट प्लान्तेनपरिवार का एक वार्षिक पौधा है .इसके बीज खाए जातें है -विविध प्रकार से संसाधित कर ।
जल में घुलनशील खाद्द्य रेशों (डा -इतरी फाइबर ) का बेहतरीन स्रोत समझा जाता रहा है -इसबगोल .विरेचक (लेक्सेटिव) के रूप में इसका स्तेमाल होता रहा है .योरोप औ एशिया में यह खासा लोकप्रिय है ।
अब एक ताज़ा अध्धय्यन इर्रितेबिल बोवेल सिंड्रोम (आतों के संक्रमण औ शोजिश )में ऐसे खाद्द्य रेशों को जो जल में आसानी से नहीं घुलते ना देने की सिफारिश कर रहा है .गेहूं का चोकर अन्य खाद्द्य रेशे इस स्तिथि में आजमाने से आई .बी .एस .के लक्षण औ उग्र हो सकतें हैं .यथा पेट में एंठन ,अन्य शिकायतें बढ़ सकतीं हैं .नीदर्लेन्ड के चिकित्सा विज्ञानी आज्मैशों के बाद ऐसे ही नतीजे निकाल रहें हैं ।
अब तक के अध्धय्यन इसबगोल को एच .डी.एल .में इजाफा एवं ब्लड शूगर के विनियमन में मददगार साबित करते रहें हैं .बार्ले ,लेन्तिल्स औ वो तमाम सब्जीयाँ जो खाने के बाद दांतों में फस्तीं हैं ,दाइत्रीफाइबर के बेहतरीन स्रोत हैं ।
अलबता जल में घुलनशील साइलिअम बोवेल मूवमेंट में मदद गार हो सकता है ,लेकिन अघुलनशील खाद्दय रेशे इसे औ इर्रेगुलर बना सकतें हैं ,यही इस नै जानकारी का मूल स्वर है ।
वैसे इंडिविजुअल अनातोमी भी कोई चीज़ है ,इसमें कंडीशनिंग का भी रोल है ,बचपन की आज माइशें भी हैं ,आदत भी हैं ,खाने पीने नुस्खें अपनाने की .

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत ुपयोगी जानकारी है आभार