दुनिया भर में पहली मर्तबा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने एक्तोपिया कार्दिस से ग्रस्त शिशु पर कामयाबी के साथ बीटिंग हार्ट सर्जरी आजमाई ।
पैदाइश से ही इस बच्चे का पूरा का पूरा दिल सीने से बाहर उभरा हुआ था .अति संक्रमित हालत में इसे रेलगाडी के साधारण डिब्बे से लाया गया बिहार से एम्स तक .चिथड़े से ढका दिल रास्ते में बुरी तरह संक्रमित हो गया ।
दो बार ब्लड एक्सचेंज त्रेंस्फ्युज़ं एन के सहारे पहले इसे संक्रमण मुक्त किया गया ।
पूरी तसल्ली के बाद चिकित्सकों की एक टीम ने दसवें दिन बच्चे का दिल ३.५ घंटा चले शल्य कर्म के बाद यथा स्थान रख दिया ।
ऐसा करने के लिए पहले सीने की कोटर (केविटी )का पुनर्निमाण किया गया ताकि १०० फीसद बाहर विकसित हुए दिल के लिए कमरा बनाया जा सके ।
फ़िर सीने और उदर(अब्दोमन ) के बीच एक विंडो बनाई गई .इस एवज ना सिर्फ़ यकृत (लीवर )को विस्थापित किया गया ,डायफ्राम को भी ६० डिग्री दाइसेक्त करना पडा ।
अब दिल आंशिक तौर पर उदर और आंशिक मतौर पर सीने के कोटर में आ गया ।
इस एवज कार्डियो -पल्मोनरी मशीन का स्तेमाल सक्रमण की ज्यादा संभावना के चलते नहीं किया गया ।
३.५ घंटा चले शल्य कर्म के दौरान दिल की धोक्नी लुब -डूब करती रही ।
काम याब शल्य कर्म रहा है ये ,अभी तक बच्चे के वाई -टल पैरा -मीटर्स यथा रक्त चाप ,दिल और नवज की फड़कन ,हार्ट रेट संभावित सीमा में बनी हुई है ,दीगर है बच्चा अभी क्रिटिकल स्टेज में ही कहा जाएगा ।
जीवन मृत्यु ऊपर वाले के हाथ में -वी ट्रीट ही क्युर्स -यही विनम्र निवेदन है -चिकित्सकों का ।
हाथ जोड़े खडा है ,बच्चे का पिता चंदर माझी .हाथ हमारे भी उठ गए हैं प्रार्थना में ।
बधाई के पात्र हैं डाक्टर ऐ .के .बिसोई (ह्रदय -वक्ष शल्य कर्मी ,कार्दिओथोरासिक सर्जन )और उनकी पूरी टीम जिसमे शरीक रहें हैं -डाक्टर वी .के .पाल .(नवजात देखभाल के माहिर ),एवं हृद्रोग विद ,डाक्टर संदीप अग्रवाल (शिशु शल्य कर्मी ),डाक्टर संदीप चौहान (चेतना हारी विद )।
कहतें हैं ,असली काम अनेस्थेटिक पदार्थ देने वाले अन्स्थिज़िओलोजिस्त (चेतना हारी विद )का ही होता है ,शल्य कर्मी तो मोची की तरह हैं ,लेकिन हम इससे इतेफाक नहीं रखते ,यह एक टीम वर्क का करिश्मा है ।
सन्दर्भ सामिग्री :१० डे ओल्ड हेज़ हार्ट इन प्लेस -टाइम्स आफ इंडिया ,सेप्टेम्बर ४,२००९ पेज -३ ,केपिटल एडिशन प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
शुक्रवार, 4 सितंबर 2009
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