"सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर ,देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर "-कविवर बिहारी ने किसी झोंक में नहीं कहा था ,आज दुनिया नेनो इस ब्यूटीफुल के दौर में आ गई है ,पहले कहा जाता था -स्माल इज ब्यूटीफुल ।
तो ज़नाब इस दौर में कौन पूछता है टी .एन .बोम को (थर्मोंयुक्लीअर डिवाइस ,हाई -द्रोजन बम )हाइड्रोजन बम को ,अब टेक्टिकलवेपन्स (सहज प्रयोज्य ,आसानी से चलाये जाने वाले ,दागे जाने वाले आयुद्धों यानी वार हेड्स )का दौर है ।
हमारे पास लो इन्तेंसिती वेपन्स हैं ,स्मार्ट बम हैं जिन्हें मल्टिपल -वार -हेड्स -मिज़ाइल्स पर फिट किया जा सकता है .गार्डन वेजिटेबिल -सूप की तरह गार्डन वेरायटी एटमी बम हैं ।
फेट मेन और लिटिल मेन (हिरोशिमा औ नागासाकी पर अमरीका द्वारा दागे गए एटमी बम ) अब दिखावे की तीहलहैं ,संग्रहालय की शोभा हैं ।
यह मिनी -न्युक्स (लघु एवं प्रयोज्य एटमी बम का दौर है .डर्टी वेपन्स ),डर्टी बम ,न्युत्रों बमों का दौर है ,मार भी दे औ किसी को ख़बर भी ना हो ।
जार बम (टी .एन .बम )१९६१ में तत्कालीन सोविअत संघ ने आजमाया था ,जिसकी विस्फोटक क्षमता ५० मेगा टन यानी फेट मेनऔ लिटिल मेन से तक़रीबन ३५०० गुना थी ।
तब ना तो इतनी एकुरेसी थी औ ना ही भरोसा ,मसल पावर की तरह था हाइड्रोजन बम .इसकी धमक फिनलेंड तक गई ,स्वीडन में तो खिड़कियों के शीशे भी टूट गए .भूकंपीय तरंगे (सीज्मिक वेव्ज ने तीन मर्तबा पृथ्वी का चक्कर लगाया ,तीनो बार इन्हें दर्ज किया गया ।यह था सोविअत संघ द्वारा किए गए हाइड्रोजन बम का उत्तर प्रभाव .
भारत ने इसके लघु रूप सार (कम शक्ति का टी .एन ) का परिक्षण १९९८ में किए ५ एटमी परीक्षणों के दरमियान किया ,जिसकी ताकत (टी एन टी में विस्फोटक क्षमता मात्र ४५ किलोटन थी )।
भारत कम्प्यूटिंग के द्वारा इस क्षमता में औ इजाफा कर सकता है ,ज़रूरत के मुताबिक । कोई भी मुगालते में ना रहे .
अलबत्ता यह अति -सटीक अन्तर -महाद्वीपीय बेलेस्टिक मीजायलों का दौर है .बेहद सटीक डिलीवरी सिस्टम का दौर है ।भारत के पास त्रि -आयामी डिलीवरी सिस्टम है ,पर्याप्त देत्रेंटहै .
टी .एन का खोफ तो टी .एन .वेपन्स की होड़ से पहले ही गालिब था ,तभी तो मेगा -साइज़ पर इतराता -इठलाता अमरीका अपना टी .एन .परिक्षण २५ मेगाटन तक सीमित रखने के लिए विवश था ,क्योंकि यह तीर नहीं तुक्का था ,जो लक्ष्य च्युत हो एक बड़े इलाके को नेस्तनाबूद कर सकता था .मल्तिपिल वार हेड्स डिलीवरी सिस्टम अर्जुन की आँख की तरह अपने लक्ष्य पर नज़र टिकाये रहता है ।
बेशक एटमी बम हाइड्रोजन बम के बरक्स एक छोटा सा पटाखा है .एटमी बम एक सिंगिल स्टेज (एक चरणीय )विखंडन -शील वेपन है जिसमें फिशाइल -युरेनियम (यूरेनियम -२३५ )या फ़िर प्लूटोनियम -२३९ पर नयूत्रों दाग कर विखंडन कराने के साथ साथ एक चेन रिएक्शन को बनाए रखने के लिए विखंडन -शील (फिशाइल )पदार्थ की एक निश्चित क्रांतिक मात्रा (क्रिटिकल मॉस )ली जाती है ,ताकि पलांश में ही यह बढ़कर अनियंत्री हो जाए औ एक विस्फोट में सारे पदार्थ के परखचे उड़ जाएँ ।
एटमी भट्टी में केवल चेन रिएक्शन को बनाए तो रहा जाता है ,बेकाबू नहीं होने दिया जाता ।
जबकि हाइड्रोजन बम एक कई चरणों वाला फिशन -फ्युसन बम है ,जिसमे एटमी बम का स्तेमाल आवश्यक ताप औ दाब पैदा करने के लिए किया जाताहै ,ताकि हाइड्रोजन के विभिन्न संस्थानिक (आइसोटोप्स )परस्पर जुड़ कर हीलीं यम् बना डालें .यह प्रक्रिया सूरज की अपनी भट्टी (कोर )में चलती रहती है ।
यह दौर हलके बमों का है ,प्रयोज्य डिलीवरी सिस्टम का है ,तभी हमारा पड़ोसी जी जान से इन्हें हथियाने ,पत्ते पर लेने में जुटा है ,जिसके बारे में यही कहा जा सकता है -"परिंदे अब भी पर तोले हुए हैं ,हवा मेन सनसनी घोले हुए हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :एटॉमिक पालिटिक्स :हु नीड्स दा हाइड्रोजन बम ?(टाइम्स आफ इंडिया , सेप्टेम्बर २ ,२००९ ,पेज २१ ।)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
बुधवार, 2 सितंबर 2009
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