आज की औरत उतनी ही महत्वा -कांक्षी है ,जितना की मर्द ,जिम्मेवारी का बोझ भी उस पर तीहरा है ,घर -दफ्तर का काम ,बच्चों का काम ,बॉस की झख -झख ,मर्द की मर्दानगी सभी से उसे दो चार होना पड़ता है .घर -गृहस्थी में बराबरी की हिस्से दारी निभाने वाले मर्द हैं ज़रूर ,लेकिन कुलमिलाकर समाज में पुरूष वर्चस्व ही है ।
ऐसे में महिला शशक्ति -करन लफ्फाजी से आगे नहीं जाता .कीमत इस सबकी औरत के दिल को चुकानी पड़ रही है ,जो अब पहले की बनिस्पत दस साल पहले ही ५० के आस पास औसतन दिल की बीमारियों की चपेट में आ रहा है .यह कहना है डॉक्टर अशोक सेठ साहिब का ,आप एस्कोर्ट्स अस्पताल दिल्ली के चेअरमेन हैं ।
अलावा इसके आलमी स्तर पर भी अब १५ -२० फीसद महिलायें ह्रदय रोगों की चपेट में हैं ।
अपनी माँ -नानी -दादी के बरक्स आज की औरत ज्यादा तनाव में है ,रहनी -सहनी का ढांचा ,काम के घंटे ,कार्य -दिवस सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा है .डॉक्टर प्रवीण चन्द्र ,निदेशक कार्डिएक केथ लेब मेक्स अस्पताल दिल्ली के अनुसार बदलती जीवन शैली ही आज की औरत को दस साल पहले दिल की बीमारियों की ज़द में ला रही है ,जबकि पहले औरत को दिल की बीमारी का ख़तरा साठाहोने पर (साठोत्तरी होने पर होता था ),माहवारी के चलते इस्ट्रोजन हारमोन भी दिल की हिफाज़त करता रहता था .गर्भ -निरोधी टिकिया ,आई -पिल जैसी शै ने यह फायदा बेअसर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है .तनाव के चलते कई गैर -शादी शुदा महिलायें उम्र से पहले मेनोपाज (रजो -निवृत्ति ,कम्प्लीट सिजेशन आफ मेंस्त्र्युअल साईं किल ) का साम ना करते देखी गई हैं तनाव की अनदेखी करने के खामियाजे औरत के दिल को भुगतने पड़ रहें हैं .आर्टेमिस अस्पताल गुडगाँव के डॉक्टर कुशाग्र कहतें हैं ,अक्सर जब पत्नियां अपने बीमार पतियों के संग आती हैं ,तो उनके ठीक होने के बाद ही अपनी बीमारी का ज़िक्र करतीं हैं ,जब की मर्ज दोनों का यकसां होता है ,लक्ष्ण भी .लेकिन औरत पहले अपने मर्द के अच्छा होने का इंतज़ार करती है ,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है .कीमत अन्नपूर्णा के दिल को चुकानी पड़ती है ।
ज़रूरी नहीं है ,औरत के अन्दर अन्ज़ाइना के परम्परा गत लक्ष्ण (सीने में दर्द हो ,दर्द भी रेदिअतिग हो )हों -सिर्फ़ ब्रेथलेस -नेस भी हो सकती है -दर्द कहीं से भी उठ सकता है ,कमर ,उपरी बाजू ,ग्रोइन (पेट औरजांघ के बीच का भाग ,उरू -संधि ),जाज़ (जबडा ).ट्रेड -मिल टेस्ट भी धोखा दे सकता है ,अक्सर औरत के माम ले में नकारात्मक (निगेटिव आता है .).गर्भ -निरोधी टिकिया ब्लड क्लाटिंग के लिए कुसूर वार ठहराई गई है ।
ब्रेथ -लेस -नेस और अपच का दवा के बाद भी बने रहना भी दिल की बीमारी का लक्षण हो सकता है ।
समाधान एक ही है -यदि आप अपनी बीबी को प्यार करतें हैं ,माँ बहिन को तवज्जो देतें हैं ,तो तीस के पार उनके खून में घुली चर्बी ,मौजूद शक्कर की जांच होनी चाहिए ।
एक बात और -दिल की अपनी कोई नर्व नहीं होती ,अलबत्ता बाहरी झिल्ली जिसमे हृद-पेशी लिपटी रहती है ,नर्व्ज़ लिए होती है -इसीलिए दिल का दौरा पड़ने पर ,ओक्सिजन की चिल्लपों होने पर हृद पेशी की बाहरी मेम्ब्रेन में मौजूद नर्व्ज़ अन्य अंगो को दर्द की इत्तला भेज देती है -यह दर्द कहीं भी हो सकता है -ज़रूरी नहीं है -स्टर्नम (सीने की हड्डी )से उठे .औरत को पड़ने वाला दिल का दौरा मर्द के बरक्स ज्यादा गंभीर होता है ,औरत की स्मार्टर आर्तारीज़ के चलते अन्जिओप्लास्ती और कोरोनरी -आर्टरी -बाई पास ग्रेफ्टिंग भी उतनी कारगर नहीं होती ,माम ला संगीन है -दिल दा मामला है .दिल के दरवाज़े हैं आख़िर ,खुलते खुलते ,खुल्तें हैं ।
,प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
रविवार, 27 सितंबर 2009
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