सूरज के अपेक्षतया ठंडे (वास्तव में अपेक्षतया कम तापमान ) वाले भागों को सूरज के काले धब्बे या फ़िर सन्सस्पॉट कहा जाता है .विशाल चुम्बकीय क्षेत्र वाले हिस्से हैं ये सन्स स्पॉट ।
अलबत्ता आजकल मौजमस्ती वाले ऐसे स्थान को भी सन्स स्पॉट कहा जाता है ,जहाँ का मौसम गुनगुना हो ,खिली हुई खुशनुमा धूप लिए ।
अब विज्ञानियों ने पता लगाया है ,सूरज से निसृत कुल गर्मी (ऊर्जा ),विभिन्न तरंगों में विभाजित ऊर्जा में थोडी सी घटबढ़ भी आलमी मौसमों (ग्लोबल वेदर पेट्रंस)में बदलाव की एक एहम वजह भी बन सकती है ।
मानसून की तीव्रता और प्रागुक्ति दोनों पर इसके ख़ास असर देखे जा सकतें हैं ।
सन स्पॉट चक्र ११.२ वर्ष की अवधि का होता है .जब सोलर मेक्सिमा औ मिनिमा में ०.१ फीसदऊर्जा का अन्तर आ जाता है ,सारी कायनात के मौसम को ये बित्ताभर फर्क कैसे असर ग्रस्त बनाता है ,मौसम विदों के लिए यह एक बड़ी चुनोती रहा आया है ,।
प्रत्येक ११.२ साल बाद सूरज के काले धब्बों की संख्या बढ़कर अधिकतम हो जाती है ।अलबत्ता धब्बों की संख्या औ आकार का गुना (प्रोडक्ट )यकसां रहता है .
गत सौ साला मौसम के रिकार्डों को खंगालने औ पेचीला कंप्यूटर माडलों की मदद से अमरीका के वायुमंडलीय शोध के राष्ट्रीय संस्थान से सम्बद्ध विज्ञानियों की एक ग्लोबी टीम ने पता लगाया है ,सूरज के ऊर्जा आउट पुट में ज़रा सी भी बढोतरी पवनों की तीव्रता औ बरसात के पेटर्न को प्रभावित करती है ।
पहली मर्तबा एक राय से सब मानतें हैं ,समझने लगें हैं उस क्रिया -विधि को जो इस निसृत ऊर्जा के थोड़े से फर्क को आवर्धित कर ट्रोपिकल पेसिफिक के सतही जल को अपेक्षतया ठंडा (कूलर ) तथा आफ इक्वेतोरिअल रेनफाल को बढ़ा देती है ।
भारतीय मानसून उष्ण और उप -उष्ण (सब्त्रोपिक ) इलाकों से उठती -डूबती पवनों से संचालित होता रहा है .सौर चक्रीय प्रागुक्ति (सोलर साइकिल प्रिदिक्संस ) पवनों के रूख (सर्कुलेशन ) का खुलासा कर सकती है .और यह भी की समुन्दरों के जल की सतह के तापमानों में बदलाव का मौसम के मिजाज़ पर क्या असर पड़ता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :सन स्पोट्स स्पार्क्स क्लाइमेट चेंज -टाइम्स ट्रेंड्स -टाइम्स आफ इंडिया ,अगस्त २९ ,२००९,कालम २-४ ,पेज १९
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).
मंगलवार, 1 सितंबर 2009
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