लोगों को हाई -जीन (स्वास्थय -विज्ञान )की ज़रा सी भी समझ हो तो स्वां इन फ्लू के इस दौर में जब की यह विश्व -मारी (पेंदेमिक )बन चुका है -लोग जगह जगह ना थूके-बचपन में एक शैर सूना था -जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठके ,या वो जगह बतादे ,जहाँ पर खुदा ना हो ।
हमें हिन्दुस्तान में कोई एक ऐसी जगह बता दे ,जहाँ लोग और जहाँ के लोग गली -कूचे में सरेआम बिना संकोच के बाकायदा "थूकते ना हों ।"
डॉक्टरों का कहना है -स्वां फ्लू के फैलाव में हमारी इस अजीबो गरीब आदत का भी बड़ा हाथ है .पैथोरिस्पाय -रेटरी वायरस के फैलाव में " जगह -जगह थूकने की बुरी आदत अपनी भूमिका निभा रही है .एयर द्रोप्लेट्स के माध्यम से इन्फ़्लुएन्ज़ा २००९ -ऐ वायरस बाकायदा जनसमुदायों में प्रसार पा रहा है ।मरीज़ से भले ही आप ६ फीट की दूरी बनाए रहें ,उसकी जगह -जगह रह चलते सरे राह थूकने की लत का क्या कीजिएगा?
काश हम फ्लू से ही कुछ सीख लेते ।
"स्टाप स्पिटिंग फ्लू विल गो अवे "
बुधवार, 30 सितंबर 2009
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