पृथ्वी की कक्षा में दर्ज बदलाव की वजह से जहाँ आर्कटिक को थोडा गरमाना चाहिए था वहीं गत दस सालों में पिछली दो सहस्राब्दियों के बरक्स उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र गरमा गया है ।
उक्त दो हज़ार बरसों में जहाँ यह क्षेत्र ठंडा होता रहा ,वहीं बीसवी शती में ठंडा होते जाने का यह क्रम पलटाजैसे -जैसे वायुमंडल में जी .एच .जी .(ग्रीन हाउस गैसिज़ )बढती गईं उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र गर्माता चला गया ।
यदि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसें नहीं ज़मा होती तो गर्मियों के तापमान थोडा कमतर रहते ।
१९९९-२००८ का दशक अब तक का सबसे अधिक गर्मी भरा दशक रहा ।
भूगर्भ -विज्ञान औ पर्यावरण विज्ञान के आचार्य डारेल काफ- मन (उत्तरी अरिजोना विश्व्विद्दयालय से संबद्ध ) एवं वायुमंडलीय शोध के राष्ट्रिय केन्द्र से जुड़े विज्ञानी उक्त तथ्य की पुष्टि करतें हैं ।
यदि आर्कटिक के ठंडा होते चले जाने का सिलसिला जारी रहता तो गर्मियों में इस क्षेत्र के तापमान कमतर रहते जबकि फिलवक्त २.५ सेल्सिअस ऊपर हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :आर्कटिक वार्मेस्ट इन २००० इयर्स ओवर लास्ट डिकेड (टाइम्स आफ इंडिया ,सेप्टेम्बर ५ ,२००९ ,असोसिएतिद प्रेस के सौजन्य से ।)
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
शनिवार, 5 सितंबर 2009
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