प्रोढ़ -अवस्था के वह धूम्रपानी जिनके खून में चर्बी भी सामान्य से ज्यादा घुली हुई है (यानी जो हाई -कोलेस्त्रिमिया से भी ग्रस्त है )और साथ ही उच्च रक्त चापके साथ जीवन यापन कर रहें हैं ,अपनी उम्र से दस साल पहले चल बसतें हैं ।
जबकि कितने ही अध्धय्यनों से और बारहा यह पुष्ट हो चुका है ,गैर -धूम्र -पानी और स्वास्थाय्कर खूराख के साथ नियमित कसरत करने वाले इनके हमउम्र दिल की बीमारियों से अपेक्षया बचे रहतें हैं ।
लेकिन इस बात की पड़ताल की इस सबका इनकी उत्तरजीविता पर क्या प्रभाव पड़ता है ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने की है ,आपने उन आंकडों को खंगाला है जो १९६० के दशक के दौरान ४० -६९ साला १९ ,००० नौकरी पेशा लोगों (सिविल सर्वेन्ट्स )के स्वास्थय के बारे में जुटाए गए थे .इन आंकडों में इनकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री ,जीवन शैली ,खान -पानी ,रहनी -सहनी ,वेट ,ब्लड -प्रेशर ,ब्लड शुगर ,कोलेस्ट्राल औ लँग फंक्शन दर्ज है ।
२८ बरस बाद इनमे से जिंदा बचे ७००० ,लोगों की एक बार फ़िर पूरी चिकित्सीय पड़ताल की गई ।
पता चला जो धूम्र -पान ,कोलेस्त्रीमिया ,हाई -बल्डप्रेशर जैसे तिहरे जोखिम की चपेट में थे उनकी मृत्यु का ख़तरा इस दरमियान दो -से तीन गुना ज्यादा था ,बरक्स उन हम उम्रों के जो इन व्याधियों के खतरों से मुक्त थे ।
ना सिर्फ़ औसतन इनकी उम्र १० बरस कम हुई मौत भी दिल सम्बन्धी बीमारियों से हुई ।
बेशक गत दशक के दौरान अमीर देशों में फेटल स्ट्रोक्स और हार्ट अटेक के मामले घटकर एक चौथाई रह गए ,लेकिन रिस्क फेक्टर्स में उतनी कमीबेशी दर्ज नहीं हुई .बेशक अमरीका में बेकाबू उच्च -रक्त -चाप (अन्कोंत्रोल्ड ब्लड प्रेशर )के मामले १९९९ के बाद से अबतक घट
कर १६ फीसद ,हाई -ब्लड कोलेस्ट्रोल के १९ फीसद ,एवं तम्बाखू के स्तेमाल के १५ फीसद रह गएँ हैं ।
यही बात गरीब देशों के बारे नहीं कही जा सकती ,जहाँ धूम्र -पान का चलन घटने के स्थान पर बढ़ रहा है ,दिल के मामले भी औ उच्च -रक्त चाप भी जो जीवन शैली रोग बन चले हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-बेड हेबिट्स कट लाइफ बाई १० इयर्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १९ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
शनिवार, 19 सितंबर 2009
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