प्राचीन प्रोटीनों को एक बार फ़िर काम में लिए जाने लायक बनाकर (रीसरेक्ट कर )आरेगन विश्व -विद्यालय के शोध छात्रों ने दर्शाया है ,विकासात्मक धारा (इवोलूशन ) सिर्फ़ और सिर्फ़ आगे की ओर है .(है ना अजीब बात ,फ़िर भी हम लोग न सिर्फ़ अतीत को खंगालते रहतें हैं ,कई तो जीते भी अतीत में है )।
शोध कर्ताओं की टीम ने पता लगाया है ,"दी पाथ्स तू दा जींस वंस प्रेजेंट इन आवर एन्सेस्तार्स आर फार एवर ब्लाक्द "इसीलिए विकास का रास्ता आगे की ओर ही है ,बस ,पीछे की और जा ही नहीं सकता ।
शोध टोली ने कंप्यूटर पुनर -सरंचना (कम्पू -तेश्नल रिकंस्त्रक्ष्ण ) का स्तेमाल प्राचीन जींस के क्रम दोबारा तैयार करनें के अलावा ,दी एन ऐ संश्लेषण ,प्रोटीन इंजिनीअरिंग के अलावा एक्स -रे -क्रिस्तालोग्रेफी का स्तेमाल एक हारमोन रिसेप्टर (अभिग्राही )के जीन को दोबारा प्रयोज्य बनाने के लिए किया था .ताकि अब से ४० करोर साल पहले हमारेरीढ़ धारी पूर्वजों में मौजूद जींस की हु -बा -हूँ ,नक़ल उतारी जा सके ।
इस एवाज़ सारी तवज्जो एक ख़ास प्रोटीन (ग्लूको -कोर्तिको -ईद रिसेप्टर ) को दी गई .यही प्रोटीन हारमोन कोर्तिसोल को बाँध के रखती है ,स्ट्रेस अनुक्रिया (स्ट्रेस रेस्पोंस ) का विनियमन ,प्रतिरक्षण ,मेटाबोलिस्म (रेत आफ बर्निंग केलोरीज़ ,यानी चय -अपचय )कुल मिलाकर रीढ़ -धारी जीवों के व्यवहार के लिए उत्तरदायी है ।
बेशक इस ग्लुकोकोर्तिको -ईद रिसेप्टर को वैसा ही गढ़ लिया गया जैसा यह कोर्तिसोल के उद्भव के वक्त था ,लेकिन जैसे ही दी एन ऐ सिक्युएंस में हेरा फेरी करके की -म्युतेस्हंस (एहम -उत्परिवर्तन ) को रिवर्स करने (पूर्वा -वस्था में लाने )की कोशिश की गई ,प्रोटीन (ग्लुकोकोर्तिकोइड रिसेप्टर )ही नष्ट हो गई .शेष रह गई ,एक डेड नॉन फंक्शनल प्रोटीन ।
सन्दर्भ सामिग्री :वन वे आणली :इवोलूशन केन आणली गो फोरवर्ड (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २५ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
शनिवार, 26 सितंबर 2009
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