अक्सर माँ -बाप अपना गुस्सा ,खीज ,नैराश्य बच्चों पर निकाल देतें हैं ,कभी पीठ पे धोल जमाकर ,कभी थप्पड़ मार कर .स्कूलों में तो कई -मर्तबा वहशीपन की हद हो जाती है .लेकिन वो किस्सा दूसरा है .यहाँ मामला बच्चों की परवरिश के दौरान माँ -बाप द्वारा डाट -डपट से आगे निकल कर स्पेंकिंग (पीठ औ चूतड पर थप्पड़ )मारने से ताल्लुक रखता है ।
दूसरी मर्तबा बच्चों पर हाथ उठाने से पहले इस अध्धय्यन के नतीजे जेहन में ज़रूर ले आयें .न्यू हेम्पशायर यूनिवर्सिटी के शोध छात्रों ने पता लगाया है -ऐसे बच्चे दूसरे बच्चों की बनिस्पत (जिनके माँ ०बाप डाट -डपट धौल बाज़ी से परहेज़ करतें हैं .)बुद्धि के मामले में पिछड़ जाते हैं ।
भूल जाइए इस घिसे पिटे जुमले को -"स्पेअर दारोड एंड स्पाइल दा चाइल्ड "-वो ज़माना और था ।
बच्चों का बुद्धि -कोशांक इस बात से ताल्लुक रखता है -उन्हें कितनी मर्तबा सज़ा दी गई ,मार पीट की गई उनके साथ .वो बच्चे जिनके साथ रोज़ -बा -रोज़ मार पीट की जाती है -उनमे पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस दिस -ऑर्डर जैसे लक्ष्ण दिखलाई देतें हैं .ऐसे बच्चे बहुत जल्दी भयभीत औ भौचक रह जातें है ,बात -बात पर ।
ज्यादा डाट डपट से बच्चों की मानसिक क्षमता औ योग्यता छीजने लगती है ,उनका मानसिक विकास धीमा पड़ जाता है .थोडी सी डाट -डपट भी अपना असर दिखाती है -अच्छी नहीं है ।
मुर्रे श्त्रौस के नेत्रित्व में १५०० बच्चों को दो समूह में विभक्त किया गया -२-४ साला औ ५-९ साला .इस बात के मद्दे नज़र ,गत ४ सालों में उनके साथ कितनी बार औ कितना डाट डपट ,मार पीट की गई ,उनका आई .क्यु। जांचने के बाद निम्न नतीजे निकले -पहले वर्ग के बच्चों में पाँच अंकों की गिरावट दर्ज की गई उन बच्चों की बनिस्पत जिनके साथ मार पीट नहीं की गई थी ,जबकि दूसरे वर्ग के बच्चे इस मामले में २.८ अंक पीछे रहे ।
सन्दर्भ सामिग्री :स्पेंक्द किड्स में एंड अपविद लोवर आई .क्यु .(टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर २६ ,२००९ ,पृष्ठ २३ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
शनिवार, 26 सितंबर 2009
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1 टिप्पणी:
भाई जी, हम तो पिटते रहे और अपनी बुद्धि को कम करते रहे लेकिन हमने बच्चों को पीटा नहीं तो वे तेज हो गए। अब अनुभव कर रहे हैं कि हम तो पहले भी पिटे और अभी भी पिट रहे हैं।
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