कहतें हैं आदि मानव ने पहले भेड़िये को पालतू बनाया मांस भक्षण के लिए (स्वान का पूर्वज माना जाता है भेड़िये को ).,फ़िर कुत्ते की बारी थी .दक्षिणी चीन में कुत्तों की सबसे ज्यादा किस्मे पाई जातीं हैं ,यहाँ कुत्तों का मांस चाव से खाया जाता रहा है ,(हमारा नार्थ -ईस्ट ,उत्तर -पूरबी राज्य भी इस मामले में पीछे नहीं रहें हैं ).संभवतय यहीं से स्वान दूसरी जगहों पर पहुंचे ।
स्वान की जीनोम साम्प्लिंग (जीवन खंडों की डेटिंग औ मिलान के जरिये ) के जरिये विज्ञानियों ने पता लगाया है ,स्वान -पालन ,दोमेस्तिकेष्ण आफ डाग्स अब से ११,००० -१४ ,००० साल पहले शुरू हुआ होगा .चीन में अनेक संग्रहालयों में स्वान अस्थियों के कट मार्क्स सहित अवशेष आज भी रखे हुए हैं ।
कालांतर में कुत्ता एक बेहतरीन हाउंड (शिकारी कुत्ते की एक नस्ल ) साबित हुआ ,एक अच्छा दोस्त पहरी औ खुफिया तंत्र की जान भी .बर्फीले इलाकों में इसने स्लेड खींची है .प्राकिर्तिक आपदाओं के समय चट्टानों के नीचे दबे कुचले ,जिंदा लोगों को ढूंढ निकाला है .सर्दियों में अपने संसर्ग की गर्माहट दी है ,इस बिना झोली के फ़कीर ने ।(पूस की एक रात -प्रेम चंद ).
रायल इंस्टिट्यूट आफ टेक्नालाजी के आनुवांशिक -विज्ञानियों ने इस शोध को आगे बढाया है ।
इन्होने कुत्तों के मिटो -कोंद्रिअल दी .एन ऐ .की साम्प्लिंग करके पता लगाया है -एक ही वंश वेळ रही है ,दुनिया भर में पाले जाने वाले स्वानों की .ठीक वैसे ही जैसे हम सब एक अफ्रीकी माँ की संतानें बतलाये जातें हैं (पूछा जा सकता है ,फ़िर रंग -औ -नस्ल -औ वर्ग भेद कैसा औ क्यों ?)।
स्वान पालन की शरुआत दक्षिण चीन से आरम्भ होने का अनुमान इस आधार पर लगाया गया है ,क्योंकि आज भी वहाँ कुत्तों की सबसे ज्यादा नस्लें हैं ,जो मूल स्थान पर ही हो सकतीं हैं .दूसरे महा द्वीपों में स्वान की उतनी नस्लें नहीं हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :बेस्ट फ्रेंड ?अर्ली मैं न मे हेव तैम्द डाग्स फार फ़ूड (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर ९ ,२००९ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).
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