एक उष्ण औ निम्न -उष्ण कटिबंधी छोटी छिपकिली होती है -गेको ,जो रात में घात लगाकर कीट -पतंगो को खाती है .इसके ग्द्देनुमा पैरो का उभरा हुआ किनारा (इसके हुक्ड रिजीज़ ) इसको वर्टिकल (ऊर्ध्वाधर )सरपट चढ़ने की कूवत प्रदान करतें हैं ।
घरेलू छिपकिली इसी का सहोदर है ।
जब यह ख़ुद को शिकार होता देखती है तो एक सहज रणनीति के तहत अपनी ही टेल(पूंछ )को काट कर फेंक देती है ,एक झटके में ।
आधा घंटे तक यह पूंछ फड़कती रहती है ,जीवित प्राणी का भ्रम पैदा करती है ।
टिमोथी हिघम (क्लेम्सों विश्व -विद्द्यालय )एवं अंथनी रसेल (कैलगरी विश्व -विद्द्यालय ) ने टेल के सारे मोव्मेंट्स का अध्धय्यन किया है ।
बायलोजी लेटर्स में आपने बतलाया है -पूंछ ना सिर्फ़ आगे पीछे फड़कती है ,हवा में पलटीभी खा सकती है ,जर्क भी दे सकती है .अलबत्ता विस्तारित फड़कन इसके आवास (हाबीताट) से तय होती है .लेओपार्ड गेको रेगिस्तान में जमीन पर रहतीं हैं ,धड से अलग की गई टेल शिकार को साफ़ दिखती रहती है (यह एक तरह की केमाफ्लेजिंग ही तो है ,शत्रु को चकमा देकर निकल जाना है ।).
हिघम कहतें हैं-दी मोर बेलिस्तिक एंड काम्प्लेक्स मोव्मेंट्स माईट बी मोर बेनिफिसिअल इन देट सार्ट आफ टेरेन.यह शिकार को औ ज्यादा भटका सकतीं हैं ,दिस्त्रेक्त कर सकती हैं .तो जनाब कुदरत ने हर जीव को अपनी हिफाजत का इनबिल्ट तरिका दिया है ,उसकी प्रकृति औ आवास के अनुकूल ।सन्दर्भ सामिग्री :-
गेकोस टेल कैन स्टे एलाइव फार थर्टी मिनिट्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १२ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ) ,
शनिवार, 12 सितंबर 2009
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