न्यूयार्क विश्व्विद्दाय्लय के विज्यानिओं ने उस सुरक्षा कवच का पता लगा लिया है जिसका स्तेमाल बक्टेरियम (जीवाणु ,बेक्टीरिया बहुवचन )एंटी -बाय्तिक्स दवाओं को बेअसर करने में करता रहा है ।
यही वजह है एक तरफ़ बीमारीओं की दवा रोधी किस्में पनपी हैं ,दूसरी तरफ़ बेक्टीरिया प्रतिजैविकीय पदार्थों (एंटी -बाय्तिक्स )को मज़े से चट करता रहा है ,अलबत्ता दवा रोधी किस्में पैदा होने की वजह इलाज़ बीच में छोड़ भाग खडे होना भी रहता है ।
दरअसल बेक्टीरिया कुछ ऐसे एंजाइम (किण्वक )तैयार करता है जो अन्तिबाय्तिक दवाओं का मुकाबला करने के लिए नाइट्रिक ओक्स्साईड्स बनाते हैं .यही दवा प्रतिरोध की वजह बनतें हैं ।
अब ऐसी दवाएं तैयार की जा सकेंगी जो इन एंजाइम्स का बनना मुल्तवी रखेंगी (रोक सकेंगी ).फलस्वरूप एंटी -बायटिक दवाओं को अपनी पुरानी धार (पोटेंसी ,असर कारकता )वापस मिल सकेगी .ऐसा होने पर आम एंटी -बाय्तिक्स भी सही अर्थों में जीवाणु का खात्मा कर सकेंगे ।
फिलवक्त तो जीवाणुओं की नै से नै जेनरेशन की तलाश रहती आई है ।
अब खतरनाक सुपर्बग (एम् .आर .एस .ऐ .)मेथी -साइलीन को भी ठीकाने लगाया जा सकेगा .यह एक दवा रोधी ढीठ किस्म का बेहद खतरनाक बेक्टीरिया समझा गया है .,जिससे पार पाना दुष्कर रहा है .कई किस्म की बाधाओं का सामना चिकित्सा जगत को इस जीवाणु की बदौलत करना पडा है ,एक तरफ इसकीकाट के लिए ज़रूरी दवाओं की अपेक्षाकृत ज्यादा कीमत ,दूसरी तरफ़ सुरक्षा सम्बन्धी तमाम सवालात मुह बाए खडे रहें हैं ।
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी लंगोने मेडिकल सेंटर के एवगेनी नुद्लेर का यह अध्धय्यन विज्ञान पत्रिका "साइंस "में प्रकाशित हुआ है ।
अब नै रन-नीति के तहत मौजूदा एंटी -बाय्तिक्स की असर्कार्ता (कारगरता ,पोटेंसी ) को ही बढ़ा कर इन्हें ज्यादा सक्षम बानाया जा सकेगा ।
नए एंटी -बाय्तिक्स के अन्वेषण पर होने वाला पैसा इधर खर्च किया जाएगा .नुद्लेर कहतें हैं कई एंटी -बाय टिक्स जीवाणुओं को ठिकाने लगाने के लिए कुछ चार्ज्ड -पार्टिकल्स (आवेशित कण ,आवेशित परमाणु औ अनु )बनातें हैं जिन्हें रिएक्टिव ओक्सिजन स्पिसिज़ कहा जाता है (ओक्सिदेतिव स्ट्रेस भी यही है ।)
सन्दर्भ सामिग्री :-बेक्टीरिया यूज़ एंजाइम्स तू रेजिस्ट एंटी -बाय्तिक्स (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १२ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
रविवार, 13 सितंबर 2009
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