बांझपन (औरत और मर्द दोनों के मामले में )अब एक और दिशा से आता दिखाई दे रहा है ,अभी तक लो स्पर्म काउंट (धूम्र पान एवं तम्बाखू सेवन से ),सेल फोन्स औ जंक फूड्स (कबाडियाबासा भोजन )को ही बाँझपन सम्बन्धी समस्याओं के लिए कसूरवार समझा जाता था ।
अब पता चला है शुक्राणु (स्पर्मेताज़ोआन )औ फिमेल एग्ग (दिम्बानु ) की परस्पर प्रतिस्पर्धा के चलते एक तरफ़ विकासक्रम में स्पर्म्स ,सुपर-स्पर्म्स में तब्दील हो रहें हैं तो दिम्बानु ने उसे मिलन मनाने से रोक बाधित कर फ़र्तिलाइज़्द एग्ग को ही विनष्ट करने की रणनीति तैयार कर ली है .नतीजन बांझपन की एक और वजह पैदा होते दिखलाई देने लगी है ।
वैकासिक जैव -विज्ञानी (एवोलुश्नरी बाय्लाजिस्त ) तेल अवीव विश्व -विद्द्यालय के ओरें हस्सन कहतें हैं -कुछ मर्द इसीलिए समस्या ग्रस्त हैं ,वह सुपर्स्पर्म पैदा कर रहें हैं .यरूशलम पोस्ट के मुताबिक यह अति -शुक्राणु बहुत ज्यादा तेज़ -तर्रार औ ताकतवर हैं .ये औरत के सुरक्षा तंत्र को भेद कर जिसके तहत एक बार में एक शुक्राणु को ही फिमेल एग्ग से मिलन मनाने का अवसर मिलता है ,ज्यादा तादाद में पहुँच जातें हैं ,नतीजन एग्ग ही विनष्ट हो जाता है ।
बायलाजिकल रिवियुज़ में हस्सन कहतें हैं ,औरत और मर्द के जननांग एक विकासात्मक आर्म्स रेस में फंस गए हैं ,यह दौड़ निरंतर जारी है ,घमासान लडाई अभी भी चल रही है .विकासक्रम में प्रजनन क्षमता बढ़नी चाहिए थी ,हो ठीक उलट रहा है ।
ऐसा प्रतीत होता है -औरत -मर्द परस्पर रिप्रोदाक्तिव एन्तागोनिस्ट (प्रजनन -विरोधी )हो गएँ हैं ,होना प्रजनन -सहायक चाहिए था ,ये निष्कर्ष एम्पाय्रिकल एविडेंस (संख्यात्मक साक्ष्य )और गणीतिय माडिल की मदद से निकाले गएँ हैं .इस निदर्श को तैयार करने में विभागीय बायो -मठेमतिक्स -उनित (जैव -गणीतिय एकक )के लुईस स्तोने भी मदद गार रहें हैं ।
हजारों सालों के विकासक्रम में औरत के शरीर ने (अनातोमी ,शरीर -क्रिया -विज्ञान )ने स्पर्म को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनादिया है ,लिहाजा इनाम स्वरूप ताकतवर ,द्रुतगामी तेजतर्रार तैराक शुक्राणु पैदा हो गएँ हैं जो ओवम (डिम्ब या दिम्बानु )के सुरक्षा कवच को बींधने में कामयाब रहतें हैं .इसी की अनुक्रिया स्वरूप मर्द के अंडकोष बेतहाशा आक्रामक शुक्राणु पैदा कर रहें हैं .मनी दज़ंस आफ मिलियंस आफ डेम तू इनक्रीज दिएर चान्सिस फार सक्सेसफुल फरती -लाइजेशन ।
लेकिन इस विकासात्मक रंनीतिक औजार के अप्रत्याशित परिणाम निकलरहें हैं .यह एक नाज़ुक संतुलन की स्तिथि है औ काल क्रम में औरत -मर्द के शरीर परस्पर लय ताल बना लेतें हैं .इस सूक्ष्म ट्यूनिंग के सिलसिले में कई मर्तबा प्रजनन -ह्रास (इन्फर्तिलिती बढ़ने लगती है )ज्यादा हो जाता है .गत दशक में शायद इसीलिए प्रजनन ह्रास के ज्यादा मामले सामने आयें हैं ।
इस सारे घटना क्रम में समय एक विधाई भूमिका में है ,जैसे ही पहला स्पर्म एग्ग से मिलन मनाता है ,फलस्वरूप उससे जुड़ता है एक जैव -विज्ञानिक अनुक्रियाऔरों को आने से रोकने लगती है .यहाँ दूसरे के अन-अधिकृत प्रवेश का मतलब -फरती -लाइज्द एग्ग की सीधे सीधे मौत है .विकासक्रम में पैदा तेजतर्रार स्पर्म यही गलती दोराराहें हैं .ऐसा लगता है ,औरत का शरीर भी इस पोलिस्पर्मी के ख़िलाफ़ कमर कसके किलेबंदी कर रहा है .यानी तू दाल -दाल मैं पांत -पांत ।
(तू एवोइड दी फेटल कांसेकुएंसस आफ पोली -स्पर्मी ,फिमेल रिप्रोदाक्तिव ट्रेक्ट हेव इवोल्व्द तू बिकम फार्मिदेबिल बेरियर्स तू स्पर्म )यानी दुर्जेय दुर्ग बना रहा है औरत का प्रजनन -मार्ग इस बहु -शुक्रानुता (पोलिस्पर्मी )के ख़िलाफ़ ."दे इजेक्ट दाय्लूट्स ,दाई -वर्त एंड किल स्पर्माताज़ोआ (शुक्राणु ).यानी प्रजनन मार्ग प्रतिरक्षा रणनीति के तहत अवांछित शुक्राणुओं को बाहर खदेड़ने के लिए तैयार है .जैसे दर्द नाशक दर्द की लहर को दिमाग तक पहुँचने से रोक्तें हैं ,वैसे ही प्रजनन मार्ग सुपर -स्पर्मेताज़ोआन को भटका देगा ,विनष्ट कर देगा ताकि एक औ सिर्फ़ एक शुक्राणु ही एग्ग से मिलन मना कामयाब गर्भाधान करवा सके ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"सुपर- स्पर्म "में बी बिहाइंड इन्फर्तिलिती (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १५ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
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