शनिवार, 12 सितंबर 2009

"आई -साईबोर्ग "-केविन वार्विक्क .

"आई -साईबोर्ग "-नाम है उस किताब का जिसके लेखक स्वयम केविन वार्विक्क हैं .साईबोर्ग संक्षिप्त रूप है -साइबरनेतिक आर्गेनिज्म का ,यानी एक ऐसी प्रणाली ,ऐसा निकाय जो एक साथ इंसान भी हो औ आंशिक तौर पर मशीन भी .वार्विक्क अपने आपको साईबोर्ग बनने के लिए किस प्रकार औ किस विध वोलिन्तिअर करतें हैं ,निडर होकर प्रस्तुत करतें हैं ,किताब में उसका विस्मयकारी ब्योरा (विवरण )है .किताब में उनके व्यक्तिगत जीवन सेहत औ सीरत के कई पक्ष उजागर होतें हैं ।

यह कथा है उनके विज्ञानिक उद्द्यमऔ समर्पण भाव की जिसमे वह निर्मम होकर अपने बिल्कुल अपनों का भी कच्चा चिठ्ठा खोलतें हैं .दुनिया भर के विज्ञानिक ,आलमी विज्ञान जगत किताब को पढ़कर नैतिकता औ नीतिशाश्त्र सम्बन्धी सवाल उठाने लगें हैं ।

आख़िर वार्विक्क ने ऐसा क्या कर दिया जो आज पूरा विज्ञान जगत आलोडित है .ख़ुद अपने जीवन को साईबोर्ग बनने की ललक में उन्होंने क्यों दाव पर लगादिया ?क्या उनके लिए साईबोर्ग बनना सबसे एहम सवाल था ,औ था तो क्यों ?

आख़िर मानवीय शरीर का दर्जा बढ़ाने ,अपग्रेड करने की नौबत क्यों आन पड़ी ?

दरअसल वार्विक्क ऐसा मानतें हैं -मानवीय शरीर की देखने चीज़ों को पर्सीव करने की ,त्रि -आयामी दर्शन की भी एक उपरी सीमा है .उसके मन की किवाड़ आँखें हैं ,औ आँख की अपनी सीमा है ,अति सूक्ष्म दूरबीनें उस उपरी सीमा का औ रिफ्लेक्तिंग औ रिफ्रेक्तिंग टेलीस्कोपों से भी बढ़कर रेडियो दूरबीने जो सुदूर अन्तरिक्ष से आने वाले पल्सार्स ,इतर रेडियो स्रोतों को पकड निष्कर्ष निकालती हैं आदमी को औ भी बौना साबित करतीं हैं ।

अभिव्यक्ति की भी अपनी सीमा है ,मानवीय अभिव्यक्ति की औ भी ज्यादा क्योंकि उसका माद्ध्यम भाषा बनती है .(भारत जैसे मुल्कों में उसकी हदबंदी सर्वग्रासी राजनीति भी करती है ।)

वार्विक्क सवाल उठातें हैं -क्या हम प्रोद्द्योगिकी की मदद से मानवीय क्षमताओं को औ भी बढ़ा सकतें हैं ?ज़वाब भी ख़ुद ही प्रस्तुत करतें हैं ख़ुद को गिनी पिग की तरह विज्ञान औ ज्ञान की बेहतरी के लियें .,वोलान्तिअर करके आज़माइशो के लिए ।

बकौल उनके संभावनाएं मौजूद हैं -इसके लिए मशीन -इंटेलिजेंस (कृत्रिम -बुद्धि )का अतिरिक्त दोहन करना होगा ताकि मशीने पार -एन्द्रिक संवेदनों ,भाव बोध ,सहज बोध औ दूर बोध को भांप सकें ,कयास लगा सकें .औ इससब के लिए केवल विचार केन्द्रीय बल ,विधायक तत्व की भूमिका निभाये ।

इधर रिमोट का स्थान दिमाग में फिट किया गया ,एक चिप लेने लगा है ,फालिज ग्रस्त लोग इससे अपने रोजमर्रा के काम कर सकतें हैं .कल यह आमफ़हम (आम चलनमें ) भी हो सकता है ,ऐसा वार्विक्क मानतें हैं ।इसकी शुरुआत उन्होंने ख़ुद अपने से करदी है ,अपने केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम )में सेकडों इलेक्ट्रोड्स (सर्जिकल इम्प्लान्ट्स फिट करवाकर )।

आपको साइबर -नेतिक्स (संतान्त्रिकी )का पितामह इसीलियें माना जाता है .संतान्त्रिकी वह विज्ञान है जो हमारे दिमाग औ केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र में होने वाले सम्प्रेष्ण (क्मुनिकेश्न्स नेट वर्क )की तुलना मशीन एवं अन्य यांत्रिक प्रणालियों में संपन्न संचार से करता है ।

ख़ुद वार्विक्क दुनिया के पहले साईबोर्ग (मशीनीकृत इंसान या फ़िर इंसानी मशीन हैं ).वैसे कितने ही लोग जो जीवन शैली रोग ग्रस्त हैं आज तेक्नोलाजिक्ल इम्प्लांट लगाए देहव्यापार को चला रहें हैं .किसी ने इंसुलिन पम्प फिट करवा रखा है ,किसी ने पेस मेकर तो किसी ने नकली दिल ,किसी ने निकोटिन चिप ,आप चाहें तो इन्हें भी आंशिक साईबोर्ग तो मान समझ ही सकतें हैं ।

हो सकता है -कल मशीने आदमी की काबलियत को चुनोती देने लगें .अति -बौद्धिक मशीने हमारे बीच आ जाएँ औ अपना कुनबा बढ़ाने लगें ?अपना ही प्रतिरूप गढ़ने संवारने लगें ?कल सारे फैसले मशीनी मानव करने लगें .ये पूरी कायनात रोबोट चलाने लगें ?विज्ञानी इसी आशंका से ग्रस्त हैं .हमारा मानना है -"अभी तो और भी रातें सफर में आएँगी ,चरागे शब मेरेमहबूब संभाल के रख ।"

सन्दर्भ सामिग्री :-केविन वार्विक्क ,"आई ,साईबोर्ग "गूगल सर्च ।

प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),मैं प्रमाणित करता हूँ प्रस्तुती मौलिक है ,सन्दर्भ सामिग्री स्रोत से जुताई गई है ,अनुवाद मात्र नहीं है ।

वीरेंद्र शर्मा ,दी-२ (तू ) फ्लेट्स ,फ्लेट नम्बर १३ ,वेस्ट किदवाई नगर ,नई -दिल्ली -११० -०२३

दूरध्वनी :०११ -९३५०९८६६८५

कोई टिप्पणी नहीं: