गुरुवार, 24 सितंबर 2009

एक नज़र इधर भी ....

सड़क के बीचों बीच एक पत्थर पडा था .लोग उससे बेपरवाह आ जा रहे थे .सब उससे बचके निकल रहे थे ,कोई कोई ऊपर से भी .किनारे पर पडा एक पत्थर यह सब लीला देख रहाथा ,साक्षी भाव लिए ..जब उससे रहा नहीं गया तो एक दिन वह बीच वाले पत्थर से बोला -भाई !किनारे पर आ जावो ।
"अपने आप कैसे आवूं ,लोग मेरी तरफ़ देखते ही नहीं ."-ज़वाब मिला .किनारे वाला पत्थर सोचने लगा -बड़े अजीब लोग हैं इस शहर के ,रास्ते में पडा पत्थर भी दिखाई नहीं देता है .कैसे देख रहें हैं यह लोग "विश्व नगरी बननेका सपना ?शर्म नहीं आती ?
इस शहर में मैंने किसी को फुटपाथ पर चलते नहीं देखा ,इसका मतलब यह नहीं है -फुटपाथ हैं नहीं .हैं ,पर उन पर या तो कचरा पडा रहता है ,या फ़िर फेरीवाले डेरा डाले रहतें हैं ,कहीं कहीं चाय का खोखा भी है ।
मैंने अक्सर देखा है -आबालवृद्ध (बच्चे जवान औ बुजुर्ग )सभी सड़क पर चलतें हैं ,हर जगह इनके लिए जेब्रा क्रोसिंग है ,जहाँ से यह सड़क काटें वाही जेब्रा क्रोसिंग है .एक दिन फुटपाथ एक युवा भीड़ से मुखातिब हुआ कहने लगा -बेशक आप भारत का भविष्य हैं लेकिन इस समय आप का भविष्य खतरे में है ,कहीं से भी वेगन -आर आएगी ,आपको रोंद कर निकल जायेगी ,वेगन -आर तो फुटपाथ पर भी चढ़ आई है ज़नाब ,फ़िर आप किस खेत की मूली हैं ?
रेड लाइट खड़ी खड़ी सोच रही थी -इस शहर में लोग मेरी तरफ़ देखते ही नही ,मैं अपना काम अक्सर ठीक से अंजाम देतीं हूँ ,इंडिकेटर तो कोई देखता ही नहीं .क्या हो गया है इस शहर को ?तभी आकाशवाणी हुई -अभी सदबुद्धिका इशारा नहीं हुआ है ,इसीलिए इंडिकेटर कोई नहीं देखता ।)

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