अभागे हैं वो देश जिनके ज्ञान की भाषा और है ,व्यवहार की और .हिन्दी दिवस पर मन थोडा भावुक हो जाता है .जी करता है -प्यास लगे और इसी प्यास ने हमें भेज दिया -इस्लामिक कल्चरल सेंटर ,नै -दिल्ली ,जहाँ हिन्दी दिवस पर पुस्तक (जीवन शैली रोग :डॉ .फनी भूषण दास )विमोचन कार्य -क्रम प्रायोजित था .प्रायोजक थे -अखिल विश्व हिन्दी समिति ,१०८ -१५६८ डॉ .फारेस्ट हिल्स न्यूयार्क ११३७५ ,यु एस ऐ ।
मोगेम्बो खुश हुआ -डॉ .फनी भूषण दास साधक निकले .आप पिट्सबर्ग में सर्जरी के प्रोफेसर रहें है (अब सेवा निवृत्त )है .आयु है ७९ वर्ष ,यानी अभी आप ओक्तो -ज्नेरियन (अस्सी वर्षीय )नहीं हुए हैं ,आपकी एक और पुस्तक प्रकाशनाधीन है ,होसला भी रखतें हैं आप एम् .बी .बी .एस .कोर्स की टेक्स्ट बुक्स लिखने का ,बशर्ते थोडा होसला भारत सरकार भी दिखाए ,क्योंकि किताबें लिखना इस दौर में खर्ची का सौदा है ,घर फूंक तमाशाई होने वाली बात है जो हो ,समारोह में जाकर हमारा होसला बढ़ा ,मुख्य अतिथि थे -डॉ .कर्ण सिंग ,अध्यक्ष सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् ,भारत सरकार .उपस्थित डॉ .जगदीश प्रसाद (चिकित्सा अधीक्षक ,सफदरजंग ,अस्पताल ,एवं प्रिन्स्पिल वर्धमान मेडिकल कालिज ),डॉ .वी .के .डोगरा .,डॉ .आर .के .श्रीवास्तव (निदेशक स्वास्थय सेवायें ,भारत सरकार )एवं लेखक फनी भूषण दास किसी ना किसी विध सफदर जंग अस्पताल से जुड़े थे .डॉ .कर्ण सिंह को छोड़ सभी शिष्य -भाव लिए फनी भूषण जी के प्रति समारोह में शिरकत कर गद गद थे ,हमारी नियति भी जुदा नाथी,क्योंकि हम रु -बा -रु थे एक ऐसी शख्सियत के जो विज्ञान औ इस देश की मिटटी के प्रति समर्पित है ।
अध्यक्षीय टिप्पणी भी लाज़वाब थी -डॉ .कर्ण सिंह ने कहा -आदमी के खान पान का सम्बन्ध वहाँ की जलवायु ,समुन्द्र तट से ऊंचाई ,आवास से है ,ज़रूरी नहीं हैं ,सब लोग शाकाहारी ही हों ,ठंडी जलवायु में सामिष भोजन लेने में कोई हर्ज़ नहीं ,जैसे -जैसे हम दक्षिण में केरल ,तमिलनाडू की औ बढतें हैं ,९० फीसद लोग शाकाहारी नजर आतें हैं .आपने पहले हार्ट सर्जन कृष -चं -अन बर्नाड का हवाला दिया ,जो अफ्रिका निवासी थे ,औ उस समय भारत के अफ्रीका के संग राजनयिक सम्बन्ध नहीं थे ,इंदिरा जी की सहमती से डॉ ,बर्नाड को मारीश्श पासपोर्ट पर बुलवाया गया .इसीलियें तो कहतें हैं ,भारतीय कुछ भी कर सकतें हैं ,नीयत भर हो कुछ करने की ।
डॉ .कर्ण सिंह ने कहा -शौच एक एहम मुद्दा है ,भारतीय कहीं भी लघु शंका कर लेतें हैं ,दुनिया भर में और कहीं भी ऐसा नहीं होता .सेहत का सम्बन्ध साफ़ शौचालय से भी उतना ही है ,जितना खान पान ,रहनी -सहनी जीवन शैली से है .सरल जीवन शैली ,सरल सीधा स्वास्थय ,जैसा भोजन वैसाही ,तन -मन और सेहत ।
पुस्तक की भूमिका में ही स्पष्ट उल्लेख है -सुश्रुत संहिता का ,जिसका पहले अरबी औ बाद को अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद हुआ .मेतीरिया - मेडिका ही आगे जाकर मेडिकल एन -साईं -कलो -पीडिया कहलाई )।
आज हम अपने ज्ञान की भाषा बोलने में शर्माते ला -जातें हैं ,सकुचातें हैं ,क्यों ?
जब की हिन्दी अब दुनिया की दूसरे -तीसरे नम्बर की भाषा है .और यह फैसला भी वोट -गिनती की तरह नहीं भाव बोध से होना चाहिए ।
हमारा मान ना है ,पुस्तक "जीवन शैलीस्वस्थ जीवन आधार "-डॉ .फनी भूषण दास
का अंग्रेज़ी में भी अनुवाद होना चाहिए -भाषा कोई भी हो ,महा -सरस्वती है .हिन्दी इसका अपवाद नहीं हैं ।
निवेदन है -हिन्दी भाषी साहित्य कारों से -"तुम तो अपने वक्त के सूरज रहे हो ,
अब भला आकाश से क्योंकर सितारे मांगते हो ?
पुस्तक प्राप्ति स्थान :अखिल विश्व हिन्दी समिति ,१०८ -१५६८ डॉ .फारेस्ट हिल्स ,न्यूयार्क ११३७५ ,यु .एस .ऐ ।(२ )सी -७०५ ,आनंद लोक ,मयूर विहार फेज़ -१ ,नै -दिल्ली ।
(३ )विश्वायतन प्रकाशन ,मेहता भवन ,राधारानी सिन्हा रोड ,मोठा -कचक ,भागल पुर ,बिहार
(४ )अखिल विश्व हिन्दी समिति ,,१०८ -१५६८ डॉ .फारेस्ट हिल्स ,न्यूयार्क ११३७५ ,यु .एस .ऐ ।
सोमवार, 14 सितंबर 2009
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