गोरे सफ़ेद चमड़ी वाले योरोप वासी इस धरती पर अबसे ५५०० साल पहले ही तब आयें हैं जब आदिम जात (आदि मानव )शिकार छोड़ खेती किसानी की और मुडा,इस अवधि से पहले ब्रिटेन औ स्केंडिनेवियाई मुल्कों के लोग काले कलूटे थे ,हालिया शोध ऐसा इशारा कर रही है ।
वजह रही अनाजों में विटमिन डीकी कमी ।
सूरज की रोशनी जब हमारे शरीर पर पड़ती है ,तब गोरी चमड़ी काली के बरक्स विटामिन डी का संशाधन अपेक्षया ज्यादा कर लेती है ।भले ही रौशनी बेदम हो .
उत्तरी योरोप में सूरज की नामालूम सी रोशनी , के चलते विटामिन डी चमड़ी द्वारा तैयार करलेना ज़िंदा रहने के लिए बहुत ज़रूरी है .,रहा होगा ।
ओस्लो विश्व -विद्दायलय के विज्ञानी जोन मोआं कहतें हैं ,५५०० -५२०० के दरमियान लोग मच्छीछोड़ कर अन्य खाद्दय-पदार्थों की और मुड़े.और इस प्रकार दिनानु -दिन चमड़ी का रंग लाईट होता गया (काले से श्याम ,सांवला ,गेहूना ,फ़िर गोरा ).मोआं इंस्टिट्यूट आपःफीजिक्स
(भौतिकी संस्थान ,ओस्लो विश्व -विडदायालय )में शोध रत हैं ।
घातक हो सकती हैं विटामिन डी की कमीबेशी -न्यू यार्क स्तिथ ब्रुक हेवन लेब के जैव विज्ञानी रिचर्ड सेत्ला भी ऐसा ही कहतें हैं ,जो इस शोध को सांझा कर रहें हैं ।
यह कमीबेशी -मधुमेह (दाया -बितीज़ ),ह्रदय रोग ,जोडों का दर्द (आर्थ -रा इतिस )की वजह तो बनती ही है ,रोग प्रतरोधी तंत्र को भी मुरदार (निर्जीव )बनाती है ।
ठंडे उच्च अक्षांशीय इलाकों में त्वचा का रंग हल्का होता चला जाएगा ,यह ज़रूरी भी हो जाता है ..अनाज विटामिन डी की कमीबेशी को पूरी नहीं कर पातें हैं ,५५००--५२०० साल पहले भी यही कहानी थी .और काली चमड़ी में सूरज की मरी मरी रौशनी विटामिन डी का संसाधन ठीक से नहीं कर पाती थी ।
सन्दर्भ सामिग्री :वाईट स्किन इवोल्व्द आफ्टर हूमेंस टूक टी फार्मिंग -टाइम्स आफ इंडिया ,अगस्त ३१ ,२००९ पेज १५ ,कालम २-३ ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).9350986685
सोमवार, 31 अगस्त 2009
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1 टिप्पणी:
ये तो वैसा ही जैसे तेज धूप में हम खिड़कियों पर पर्दे डाले रखते हैं लेकिन रोशनी कम होने पर उन्हें हटा देते हैं।
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